समाजकानून और नीति महिला आधारित गालियों पर दिल्ली अदालत का अहम फैसला

महिला आधारित गालियों पर दिल्ली अदालत का अहम फैसला

न्यायालय ने कहा कि यह शब्द किसी व्यक्ति का अपमान करने के लिए मात्र प्रयुक्त नहीं किया जाता। यह शब्द किसी भी मेहनती महिला की डिग्निटी का अपमान करने के लिए काफी हैं।

दिल्ली की एक ज़िला अदालत का ‘मॉडेस्टी‘ संबंधी फ़ैसला, स्त्री-द्वेषी अपशब्दों को सामान्य से बाहर करने की दिशा में एक कदम आगे जाता है। हालिया फैसले में, डिजिटल क्षेत्र में स्त्री-द्वेष के ख़तरों से सीधे निपटते हुए, अदालत में यह स्वीकार किया गया है कि कई जेंडर विशेष गलियां अपमानजनक शब्द, पुरुष प्रभुत्व को फिर से स्थापित करने का एक तरीक़ा है। इस घटना में आरोपी ने शिकायतकर्ता महिला को बेहद अश्लील और धमकी भरे संदेश भेजना शामिल था। आरोपी व्यक्ति ने इस तरह की धमकी महिला को कई बार दी थी। दिल्ली की जिला अदालत द्वारका के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट हरजोत सिंह औजला के माध्यम से एक महत्वपूर्ण और बेहद ज़रूरी फ़ैसले में इस क़ानूनी और नैतिक रुख़ की फिर से पुष्टि की कि किसी महिला के लिए अपशब्द (सेक्स वर्कर के लिए एक अपमानजनक हिंदी शब्द) शब्द का इस्तेमाल भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के तहत अपराध है।

इस फ़ैसले में स्पष्ट और तर्कसंगत रूप से कहा गया है कि ऐसे शब्द सिर्फ़ अपमानजनक ही नहीं हैं बल्कि ये लैंगिक, यौन रूप से प्रेरित हैं और महिला की गरिमा और चरित्र पर प्रहार करने के इरादे से इस्तेमाल किए गए हैं। न्यायालय ने कहा कि जेंडर को आधार करते हुए यह शब्द किसी व्यक्ति का अपमान करने के लिए मात्र प्रयुक्त नहीं किया जाता। यह शब्द किसी भी मेहनती महिला की डिग्निटी का अपमान करने के लिए काफी हैं। विशेषकर, जब यह शब्द किसी महिला के लिए प्रयुक्त होता है, तो यह दिखाता है कि वह महिला वफ़ादार नहीं है और यह भी दिखाता है कि इस शब्द का आशय यह है कि महिला चरित्रहीन है और यह उसके चरित्र पर कलंक लगाता है। शिकायतकर्ता महिला ने यह भी आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसकी माँगें पूरी न करने पर उसे बलात्कार और हत्या की धमकी दी थी। आरोपी की ओर से दरवाज़ा नहीं खोला तो गोली मार दूँगा जैसे बयानों को आईपीसी की धारा 503 के तहत आपराधिक धमकी माना गया। अदालत ने माना कि ये खोखली धमकियां नहीं थीं, बल्कि गंभीर धमकियां थीं जिनसे महिला के मन में डर और दहशत पैदा हो गई थी।

न्यायालय ने कहा कि जेंडर को आधार करते हुए यह शब्द किसी व्यक्ति का अपमान करने के लिए मात्र प्रयुक्त नहीं किया जाता। यह शब्द किसी भी मेहनती महिला की डिग्निटी का अपमान करने के लिए काफी हैं।

‘डिग्निटी’ का अर्थ और आईपीसी की धारा 509 का उद्देश्य

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

हालांकि सामान्य अंग्रेज़ी प्रयोग में “डिग्निटी” शब्द ईमानदारी, सच्चाई, विनम्रता और आत्म-सम्मान का सूचक हो सकता है, लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के अंतर्गत इसका अर्थ एक विशिष्ट कानूनी और लैंगिक अर्थ रखता है। इस प्रावधान के प्रयोजनों के लिए, डिग्निटी विशेष रूप से एक महिला की यौन गरिमा और पवित्रता को बताता है। उसकी शारीरिक एजेंसी की मान्यता और उसके यौन व्यक्तित्व के संबंध में वह सम्मान जिसकी वह हकदार है। हर महिला में अपने शरीर, खासकर अपनी यौन और प्रजनन पहचान को लेकर एक अंतर्निहित आत्म-सम्मान की भावना होती है। यह व्यक्तिगत गरिमा केवल व्यक्तिगत नहीं होती, बल्कि एक सभ्य समाज की अपेक्षाओं से भी परिलक्षित और सुदृढ़ होती है, जो महिला के शरीर की पवित्रता को मान्यता देती है और उसे बनाए रखती है।

कानून यह स्वीकार करता है कि महिलाएं, जिस पितृसत्तात्मक ढांचे में वे रोज़ाना रहती हैं, उसके कारण अक्सर यौन रूप से असुरक्षित होती हैं। उन्हें शर्मिंदा करने, अपमानित करने या उन पर नियंत्रण स्थापित करने के इरादे से कहे गए शब्दों और कामों का सामना करना पड़ता है। इसी असुरक्षितता से सुरक्षा के लिए आईपीसी की धारा 509 बनाई गई है। यह प्रावधान नैतिकता सिखाने के लिए नहीं, बल्कि एक महिला के मौखिक यौन आक्रमण, अपमानजनक हाव-भाव या टिप्पणियों से मुक्त जीवन जीने के अधिकार की रक्षा के लिए है जो उसकी सुरक्षा, सम्मान और आत्म-बोध का उल्लंघन करते हैं।

हर महिला में अपने शरीर, खासकर अपनी यौन और प्रजनन पहचान को लेकर एक अंतर्निहित आत्म-सम्मान की भावना होती है। यह व्यक्तिगत गरिमा केवल व्यक्तिगत नहीं होती, बल्कि एक सभ्य समाज की अपेक्षाओं से भी परिलक्षित और सुदृढ़ होती है, जो महिला के शरीर की पवित्रता को मान्यता देती है और उसे बनाए रखती है।

अदालत ने अपने इस फैसले में यही कहा कि ऐसी भाषा सामान्य गाली से कहीं आगे जाती है और सीधे तौर पर महिला के चरित्र और गरिमा को निशाना बनाती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 509 किसी महिला की गरिमा का अपमान करने या उसकी निजता में दखल देने के इरादे से कहे गए शब्दों, हाव-भाव, ध्वनि या वस्तु को अपराध मानती है, जिसके लिए तीन साल तक की साधारण कारावास और जुर्माने की सज़ा हो सकती है। धारा 509 के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आने के लिए, किसी महिला की गरिमा का अपमान करने या उसकी निजता में दखल देने का स्पष्ट और जानबूझकर किया गया इरादा होना चाहिए। यह इरादा यह सुनिश्चित करने के लिए होना चाहिए कि आपत्तिजनक हाव-भाव या वस्तु महिला को दिखाई दे, या आपत्तिजनक शब्द या ध्वनि महिला सुन या समझ सके। इस इरादे और प्रत्यक्षता के बिना, केवल आपत्तिजनक भाषा या हाव-भाव का होना इस प्रावधान को लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

कौन से शब्द महिला की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं?

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

गरिमा का उल्लंघन केवल अमूर्त रूप में नहीं होता है बल्कि इसका उल्लंघन तब होता है जब किसी महिला को ऐसे शब्दों, हाव-भावों, ध्वनि या वस्तु द्वारा अपमानित, असुरक्षित या अपमानित महसूस कराया जाता है जो विशेष रूप से उस पर निर्देशित होते हैं और उसकी व्यक्तिगत गरिमा को भंग करने के इरादे से किए जाते हैं। धारा 509 लागू करने के लिए, यह स्थापित होना चाहिए कि किसी विशिष्ट महिला या महिलाओं के आसानी से पहचाने जाने योग्य समूह के गरिमा का अपमान किया गया है, यानी अपराध के लिए अपमान का स्पष्ट लक्ष्य जरूरी है। किसी महिला के गरिमा को भंग करने का इरादा यह निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण तत्व है कि क्या उक्त धारा के तहत अपराध किया गया है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 509 किसी महिला की गरिमा का अपमान करने या उसकी निजता में दखल देने के इरादे से कहे गए शब्दों, हाव-भाव, ध्वनि या वस्तु को अपराध मानती है, जिसके लिए तीन साल तक की साधारण कारावास और जुर्माने की सज़ा हो सकती है।

कैसे पता चलेगा कि जो शब्द कहे गए हैं वो महिला की शील/गरिमा को आघात पहुंचा रहे हैं या नहीं? इस बारे में अदालत का कहना है कि जब इस्तेमाल किए गए शब्द किसी महिला की शालीनता को आघात पहुंचाने में सक्षम हों, तो वे पूरी तरह से इस धारा के दायरे में आते हैं। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कानून के तहत कल्पना किया हुआ “गरिमा” को आईपीसी में परिभाषित नहीं किया गया है, बल्कि इसे व्यापक रूप से “व्यवहार की स्त्री-सुलभ मर्यादा” के रूप में समझा जाता है। दूसरे शब्दों में, अंतिम कसौटी यह है कि क्या अभियुक्त के शब्दों या कामों को किसी महिला के गरिमा का उल्लंघन करने वाला माना जा सकता है।

संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है, जो मौखिक यौन दुर्व्यवहार से सुरक्षा तक विस्तृत है। अनुच्छेद 14 और 15(3) राज्य को महिलाओं के अधिकारों और समानता की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार देते हैं। जब किसी महिला को जेंडर से जुड़ी गलियां और अपशब्द कहे जाते हैं तो यह केवल असभ्यता नहीं है, यह केवल अपमान से कहीं आगे जाता है। यह एक समान नागरिक के रूप में उसकी संवैधानिक पहचान पर सीधा हमला है, जिसका उद्देश्य अक्सर उसे चुप कराने या उसे अधीनता में लाने के लिए मजबूर करना होता है, जिससे उसकी एजेंसी पर नियंत्रण स्थापित होता है।

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