सूचना का अधिकार हर नागरिक को शासन-प्रशासन में पारदर्शिता पाने का अधिकार देता है। हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के विद्यार्थियों ने बिना जानकारी दिए कोर्स और हॉस्टल शुल्क बढ़ाने के खिलाफ प्रदर्शन किया। विद्यार्थियों का आरोप है कि प्रशासन ने कार्यकारिणी परिषद और विद्यार्थियों से यह सूचना छिपाई। मामला तब सामने आया जब ऑनलाइन पोर्टल पर बढ़ी हुई फीस दिखाई दी। अब परिषद भी विद्यार्थियों के समर्थन में खड़ी है और प्रशासन से जवाब मांग रही है। एएमयू अधिनियम 1920 के अनुसार किसी भी बदलाव की जानकारी पहले विद्यार्थियों और परिषद को देना अनिवार्य है।
बिना कार्यकारिणी परिषद की सलाह के ऐसा करना, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट, 1920 का सीधा उल्लंघन माना जा रहा है। विद्यार्थियों से बातचीत में पता चला कि यह धरना लगभग एक महीने से आंतरिक रूप से जारी था। लेकिन पिछले हफ्ते से बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने विरोध शुरू किया, जिसके बाद यह मामला खुलकर सामने आया। इस आंदोलन में लगभग सभी विभागों के छात्र सक्रिय रूप से शामिल हो रहे हैं। खास बात यह है कि इसमें महिलाओं की नेतृत्वकारी भूमिका दिखाई दे रही है। लॉ डिपार्टमेंट के विद्यार्थियों ने ‘ब्लैक कोट मार्च’ निकाला, वहीं एमबीबीएस के विद्यार्थियों ने ‘व्हाइट कोट मार्च’ निकालकर अपनी एकजुटता और विरोध दोनों को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया।
मैडम नैमा खातून, जब कुलपति बनी थीं तब हमें सबसे ज़्यादा खुशी हुई थी। हमें गर्व था कि देश के इतने बड़े शैक्षिक संस्थान की कुलपति अब एक महिला होंगी। हमें विश्वास था कि अब महिलाओं को आगे बढ़ने और अपनी बात रखने का अवसर और आसानी से मिलेगा। लेकिन आज जिस तरह से हमारे साथ व्यवहार किया जा रहा है, उससे हम निराश और दुखी हैं।
महिला प्रदर्शनकारियों के साथ गलत बर्ताव

बीते दिनों प्रदर्शन कर रही महिलाओं के छात्रावास के बाहर उत्तर प्रदेश महिला पुलिस तैनात की गई थी। जब सभी छात्रावास से निकलकर महिलाएं मुख्य द्वार बाब-ए-सैय्यद की ओर बढ़ीं, तो उन्हें रोकने की कई कोशिशें की गईं। इसमें विश्वविद्यालय प्रशासन भी शामिल था। वहां मौजूद छात्राओं का कहना है कि उन पर लाठी चार्ज करने की कोशिश की गई। वहीं, उन्होंने ये भी बताया कि उन्हें उनके हिजाब को पकड़कर घसीटा भी गया। इस पूरे घटनाक्रम के बाद प्रदर्शन स्थल पर बैठी महिलाओं ने अपनी गहरी असुरक्षा जताई। इस विषय पर एक प्रदर्शन कर रही महिला बताती हैं, “मैडम नैमा खातून, जब कुलपति बनी थीं तब हमें सबसे ज़्यादा खुशी हुई थी। हमें गर्व था कि देश के इतने बड़े शैक्षिक संस्थान की कुलपति अब एक महिला होंगी। हमें विश्वास था कि अब महिलाओं को आगे बढ़ने और अपनी बात रखने का अवसर और आसानी से मिलेगा। लेकिन आज जिस तरह से हमारे साथ व्यवहार किया जा रहा है, उससे हम निराश और दुखी हैं।” छात्राओं से बातचीत के दौरान फॉरेन लैंग्वेज विभाग की छात्रा सलीमा हैदर (बदला हुआ नाम) लगातार ए.एम.यू. प्रशासन की ओर से सामना किया जा रहा अपशब्द और मानसिक उत्पीड़न का ज़िक्र करती हैं।
वह कहती हैं, “मुझे पकड़ कर खींचा गया है। बार-बार उत्तर प्रदेश पुलिस को प्रशासन की तरफ़ से कहा गया कि इसे पकड़ो, इसे उठाओ और इसके ख़िलाफ़ तहरीर लिखी जाये। वे हमसे पूछते हैं—यहां महिलाएं क्यों हैं? उनका यहां क्या काम है? लेकिन, क्या प्रदर्शन करने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को है? सड़कों पर उतर कर विरोध करती हुई स्त्रियों पर सवाल क्यों उठते हैं? क्या ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का यही मतलब है कि अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाती हुई स्त्री को सबसे पहले चरित्रहीन ठहरा दिया जाए?” विरोध प्रदर्शन कर रही विद्यार्थियों की शुरुआती मांग केवल बढ़ी हुई फीस को वापस लेने की थी। लेकिन अब यह मांग आगे बढ़ते हुए छात्र-छात्राओं के साथ समान व्यवहार और विश्वविद्यालय में सुरक्षित, सम्मानजनक माहौल की गारंटी तक जा पहुंची है। विद्यार्थियों की मुख्य मांगे हैं कि बढ़ी हुई फीस को वापस लिया जाए, प्रोक्टोरियल टीम इस्तीफा दे और गिरफ्तार विद्यार्थयों को रिहा कर सुरक्षा दी जाए, 75 फीसद उपस्थिति नियम खत्म किया जाए और ए.एम.यू. छात्रसंघ चुनाव दोबारा शुरू किए जाएं।
फैज़ का सवाल है कि बिना मानद कोषाध्यक्ष सचिव की अनुमति लिए यह पैसा किसके पत्र पर और किसके लाभ के लिए खर्च किया गया? उन्होंने बताया कि प्रशासन ने अपने वित्तीय विवरण में पूरे पांच साल का खर्च दिखाया है, जिसमें कुल दो करोड़ बहत्तर लाख रुपये (₹2,72,00,000) की राशि खर्च हुई है।
क्या है विद्यार्थियों की मांगे

चूंकि विद्यार्थियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की Lyngdoh Committee ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय प्रशासन से छात्र संगठन के चुनाव को लेकर सवाल किया था। इसके जवाब में प्रशासन ने वर्ष 2025-26 की समय सीमा दी थी। अब वह अवधि पूरी हो चुकी है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में छात्रों द्वारा दायर की गई पीआईएल और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ध्यान में रखते हुए, विश्वविद्यालय में छात्र संगठन का चुनाव होना चाहिए। विधि संकाय से एल.एल.एम. कर रहे एक छात्र फैज़ (बदला हुआ नाम) ने एक साक्षात्कार में बताया था कि एएमयू प्रशासन ने एक काउंटर एफिडेविट दाखिल किया है। इसमें यह जानकारी दी गई है कि छात्र संगठन का पैसा कहां और कितना खर्च हुआ। लेकिन विद्यार्धियों का कहना है कि Honorary Treasurer Secretary (मानद कोषाध्यक्ष सचिव) की स्वीकृति के बिना संगठन का पैसा खर्च नहीं किया जा सकता।
फैज़ का सवाल है कि बिना मानद कोषाध्यक्ष सचिव की अनुमति लिए यह पैसा किसके पत्र पर और किसके लाभ के लिए खर्च किया गया? उन्होंने बताया कि प्रशासन ने अपने वित्तीय विवरण में पूरे पांच साल का खर्च दिखाया है, जिसमें कुल दो करोड़ बहत्तर लाख रुपये (₹2,72,00,000) की राशि खर्च हुई है। विद्यार्थी अब इस पर स्पष्ट जवाब चाहते हैं। इस बीच राजनीतिविज्ञान से स्नातक कर रहे विद्यार्थी उबैद (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि गुरुवार को विद्यार्थियों को नमाज़ पढ़ने से रोका गया। इसके साथ ही मौजूदा विद्यार्थियों पर लाठीचार्ज भी किया गया। उबैद का आरोप है कि इस कार्रवाई में अलीगढ़ विश्वविद्यालय का प्रशासन और उत्तर प्रदेश पुलिस दोनों शामिल थे। वहीं, प्रदर्शन कर रहे विद्यार्थियों का कहना है कि यदि हम धरना स्थल को छोड़कर कहीं और जाते हैं, तो प्रशासन धरने की जगह खाली करा देगा। इससे हमारा प्रदर्शन यहीं समाप्त हो जाएगा।
32-36 प्रतिशत तक बढ़ी हुई शुल्क उन विद्यार्थियों के लिए बड़ी चुनौती बन गई है जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं और अपनी पढ़ाई का ख़र्च कभी कोचिंग कराकर तो कभी छोटी-मोटी नौकरी करके निकालते हैं। ऐसे विद्यार्थियों के सामने अचानक बढ़ा हुआ शुल्क जमा करना कठिन हो गया है।
36 फीसद तक फीस में बढ़ोतरी क्यों है मुश्किलों का कारण
32-36 प्रतिशत तक बढ़ी हुई शुल्क उन विद्यार्थियों के लिए बड़ी चुनौती बन गई है जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं और अपनी पढ़ाई का ख़र्च कभी कोचिंग कराकर तो कभी छोटी-मोटी नौकरी करके निकालते हैं। ऐसे विद्यार्थियों के सामने अचानक बढ़ा हुआ शुल्क जमा करना कठिन हो गया है। इसी कारण ए.एम.यू. में विद्यार्थियों ने विरोध प्रदर्शन किया। इस विरोध के बाद ए.एम.यू. प्रशासन ने विद्यार्थियों से संवाद की कोशिश की और कहा कि किसी भी विद्यार्थी की पढ़ाई सिर्फ़ इसलिए प्रभावित नहीं होगी क्योंकि वह बढ़ा हुआ शुल्क नहीं दे पा रहा है। प्रशासन का कहना है कि वे पूरी कोशिश करेंगे कि किसी भी विद्यार्थी की पढ़ाई बाधित न हो और शुल्क वृद्धि पर भी विचार किया जाएगा। हालांकि, विद्यार्थियों का कहना है कि प्रशासन की ओर से अभी तक कोई लिखित आदेश या आधिकारिक सूचना जारी नहीं की गई है। केवल ‘बातचीत का प्रस्ताव’ दिया गया है, जिसमें कोई तय समय या दिनांक नहीं बताया गया है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के समर्थन में जामिया मिलिया इस्लामिया के विद्यार्थियों ने भी 13 अगस्त को एकजुटता दिखाते हुए रैली निकाली।
इससे यह साफ है कि यह मुद्दा केवल एक विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं है, बल्कि उच्च शिक्षा में बढ़ती फ़ीस और उसके प्रभाव को लेकर व्यापक चिंता का विषय बन गया है। उच्च शिक्षा सभी विद्यार्थियों के लिए सुलभ और समान अवसर देने वाली होनी चाहिए। फ़ीस वृद्धि जैसी नीतियां ग़रीब और हाशिये पर खड़े विद्यार्थियों को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं। साल 2023 की ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (AISHE) रिपोर्ट के अनुसार, देश में उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GER) सिर्फ़ 28.4 फीसद है। यानी हर सौ युवाओं में से केवल 28 ही उच्च शिक्षा तक पहुंच पा रहे हैं। यह संख्या तब और भी कम हो जाती है जब हम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों की बात करते हैं। साथ ही, शिक्षा में निजीकरण और महंगे शुल्क के कारण ग़रीब वर्ग के विद्यार्थियों के लिए विश्वविद्यालय तक पहुंचना और कठिन होता जा रहा है। इसलिए ज़रूरी है कि शिक्षा नीतियां विद्यार्थियों के आर्थिक हालात को ध्यान में रखते हुए बनाई जाए। अगर शिक्षा सभी के लिए सुलभ नहीं होगी, तो समान अवसर और सामाजिक न्याय का सपना अधूरा रह जाएगा।

