इतिहास गुलाब कौर: वह सिख महिला जिसने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी | #IndianWomenInHistory

गुलाब कौर: वह सिख महिला जिसने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी | #IndianWomenInHistory

आज गुलाब कौर का नाम मुख्यधारा के इतिहास में बहुत कम सुनाई देता है। हालांकि वे ग़दर आंदोलन जैसी ऐतिहासिक धारा की अहम कार्यकर्ता थीं। पंजाब और ग़दर पार्टी के साहित्य में उनका उल्लेख मिलता है, लेकिन आम जनता तक उनकी कहानी नहीं पहुंच पाई।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे नाम हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों में वो जगह नहीं मिली जिनके वो हकदार हैं। हमारे बीच ऐसी कई क्रांतिकारी महिलाएं थीं जिनके योगदान को इतिहास ने न ही जानने और न ही सामने लाने की कोशिश की। इन्हीं अनसुने नामों में से एक हैं गुलाब कौर, जो पंजाब की एक साधारण महिला होकर भी ग़दर आंदोलन की मज़बूत आवाज़ बनीं। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि स्वतंत्रता के संघर्ष में महिलाएं न केवल भागीदार रहीं, बल्कि कई बार सबसे आगे खड़ी होकर लोगों को प्रेरित भी करती रहीं। गुलाब कौर का जन्म पंजाब के संगरूर ज़िले के एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनका बचपन ग्रामीण माहौल में बीता। साधारण परिवेश और सीमित संसाधनों में पली-बढ़ी गुलाब का जीवन शायद एक आम ग्रामीण महिला की तरह गुजर जाता। लेकिन उनकी किस्मत उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने वाली थी। शादी के बाद वे अपने पति के साथ फ़िलीपींस चली गईं। यह वही समय था जब ग़दर पार्टी विदेशों में रह रहे भारतीयों के बीच स्वतंत्रता के चेतना की आग जला रही थी।

ग़दर पार्टी से उनका जुड़ाव

तस्वीर साभार: Canva

फ़िलीपींस में उनकी मुलाक़ात ग़दर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से हुई। पार्टी का उद्देश्य विदेशों में रह रहे भारतीयों को संगठित करना और भारत से ब्रिटिश शासन को खत्म करना था। गुलाब इस आंदोलन से गहराई से प्रभावित हुईं। वे अपने पति के साथ अमेरिका जाना चाहती थीं, लेकिन उनका अपने पति के साथ नहीं रहा। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन ग़दर आंदोलन को समर्पित कर दिया। ग़दर पार्टी के दफ़्तर में वे सक्रिय कार्यकर्ता बनीं। वहां वे क्रांतिकारी साहित्य बांटने, जनसभाओं का आयोजन करने और लोगों को आंदोलन में शामिल करने का काम करने लगीं। उस दौर में महिलाएं सार्वजनिक जीवन में कम ही दिखती थीं, लेकिन वह  बेख़ौफ़ होकर भीड़ के बीच जातीं और देश की आज़ादी का संदेश देतीं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े साहित्य को लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने प्रिंटिंग प्रेस पर कड़ी निगरानी रखी और पत्रकार के रूप में गदर पार्टी के सदस्यों को हथियार बांटे। उन्होंने क्रांतिकारी साहित्य बांटकर अन्य लोगों को भी गदर पार्टी में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। लगातार निगरानी के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें दो साल तक लाहौर की जेल में रखा गया, जहां उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गईं।

प्रचार और संगठन में उनकी भूमिका

गुलाब लगभग 50 अन्य ग़दर कार्यकर्ताओं के साथ फ़िलिपींस से एस.एस. कोरिया जहाज़ पर भारत के लिए रवाना हुईं और रास्ते में जहाज़ बदलकर तोशा मारू पर सवार हो गईं। भारत पहुंचने के बाद वे कपूरथला, होशियारपुर और जालंधर जैसे इलाकों में सक्रिय साथी बनीं और सशस्त्र क्रांति के लिए लोगों को संगठित करने लगीं। उन्होंने आज़ादी से जुड़े साहित्य का वितरण किया और ग़दर पार्टी के क्रांतिकारी प्रिंटिंग प्रेस पर नज़र बनाए रखी। ब्रिटिश विरोधी माहौल को मज़बूत करने के साथ-साथ उन्होंने ग़दर पार्टी के सदस्यों को हथियार और गोला-बारूद भी पहुँचाए।

इसके लिए वे अक्सर पत्रकार का रूप धारण करतीं और कई लोगों को ग़दर आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित करतीं। गुलाब गाँव-गाँव जाकर लोगों को ब्रिटिश शासन की सच्चाई बतातीं। उन्होंने कई जगह अख़बार और पर्चे बाँटे, जिनमें स्वतंत्रता की पुकार गूंजती थी। उनकी आवाज़ आम लोगों के दिलों को छूती थी। वे बतातीं कि भारत की आज़ादी सिर्फ पुरुषों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि महिलाओं का भी उतना ही कर्तव्य है। उन्होंने किसानों और मज़दूरों को जागरूक किया कि उनकी गरीबी और शोषण का असली कारण ब्रिटिश शासन है। उनकी सक्रियता के कारण ग़दर पार्टी को पंजाब और विदेशों में व्यापक समर्थन मिलने लगा।

उनका जेल और वहां दी गई यातनाएं

तस्वीर साभार: Canva

गुलाब की बढ़ती लोकप्रियता और सक्रियता से ब्रिटिश प्रशासन एक तरह से घबरा गया। उन्हें गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया। वहां उन्होंने भयानक यातनाएं सही। कहा जाता है कि उन्हें अंधेरी कोठरी में रखा गया, जहां कई दिनों तक उन्हें भोजन और पानी नहीं दिया गया था। ब्रिटिश अधिकारियों ने उनकी हिम्मत तोड़ने की कोशिश की, लेकिन वे झुकी नहीं। जेल से बाहर आने के बाद भी उन्होंने आंदोलन से दूरी नहीं बनाई। वे जानती थीं कि उनकी राह कठिन है, लेकिन उनकी निडरता और समर्पण ने उन्हें क्रांतिकारियों के बीच एक विशेष स्थान दिलाया।

उन्होंने यह साबित किया कि स्वतंत्रता संग्राम केवल पुरुषों की लड़ाई नहीं थी। वे उन सैकड़ों-हज़ारों महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं जिन्होंने घर-परिवार, समाज और यहां तक कि व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों से जूझते हुए भी आज़ादी की लड़ाई में अपनी भूमिका निभाई। उनकी कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि महिलाएं जब अन्याय और शोषण के खिलाफ खड़ी होती है, तो इतिहास बदलने की क्षमता रखती है। गुलाब कौर जैसी महिलाएं उस दौर की सच्ची नायिकाएं थीं, जिन्होंने व्यक्तिगत दर्द को सामूहिक संघर्ष में बदल दिया।

उनकी विरासत और स्मृति

साल 1941 में उनका निधन हो गया। आज गुलाब कौर का नाम मुख्यधारा के इतिहास में बहुत कम सुनाई देता है। हालांकि वे ग़दर आंदोलन जैसी ऐतिहासिक धारा की अहम कार्यकर्ता थीं। पंजाब और ग़दर पार्टी के साहित्य में उनका उल्लेख मिलता है, लेकिन आम जनता तक उनकी कहानी नहीं पहुंच पाई। उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि स्वतंत्रता संग्राम में हर उस व्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण था, जो अपनी सुविधा और सुरक्षा छोड़कर देश के लिए लड़ा। गुलाब कौर ने यह दिखाया कि एक साधारण महिला भी असाधारण साहस दिखा सकती है। गुलाब कौर का जीवन और संघर्ष हमें यह सिखाते हैं कि आज़ादी की लड़ाई में किसी का भी योगदान छोटा नहीं था। उन्होंने ग़दर आंदोलन को अपनी आवाज़, अपनी मेहनत और अपने साहस से मज़बूत किया। उनका नाम भले ही इतिहास की किताबों में छिपा हो, लेकिन वे हर उस भारतीय महिला की प्रतीक हैं, जिसने समाज की परंपराओं को तोड़कर राष्ट्र की सेवा की। वह हमें यह याद दिलाती हैं कि स्वतंत्रता सिर्फ राजनीतिक लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह आत्मसम्मान और अस्तित्व की लड़ाई भी थी और इस लड़ाई में महिलाएं कभी पीछे नहीं थीं।

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