भारत आज दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। देश अपनी आज़ादी के 100 साल पूरे होने पर, यानी साल 2047 तक, एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। हमारे शहर आर्थिक और तकनीकी विकास की रीढ़ माने जाते हैं। पढ़ाई, नौकरी और अस्पताल जैसी सुविधाओं के कारण लोग तेजी से शहरों की ओर आ रहे हैं। ख़ासकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में शहरों ने अहम भूमिका निभाई है। लेकिन हाल ही की महिला सुरक्षा पर राष्ट्रीय वार्षिक रिपोर्ट और सूचकांक (एनएआरआई) एक असहज करने वाला सच सामने लाती है। तमाम वादों और दावों के बावजूद आज भी इन शहरों में महिलाएं ख़ुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाती हैं। भीड़भाड़ वाली जगहों से लेकर अंधेरी सुनसान गलियों तक महिला सुरक्षा एक चुनौती बनी हुई है। स्कूल-कॉलेज जाने वाली से लेकर ऑफिस में जॉब करने वाली महिलाओं को डर, आशंका और असुरक्षा के साए में जीना पड़ता है जो कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए बेहद निराशाजनक है। यह रिपोर्ट सिर्फ़ आंकड़े नहीं बताती बल्कि ज़िम्मेदारी और जवाबदेही तय करने के लिए रास्ता दिखाने का काम भी करती है।
क्या है एनएआरआई 2025 रिपोर्ट
बिज़नेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने अगस्त 2025 को दिल्ली में महिला सुरक्षा पर राष्ट्रीय वार्षिक रिपोर्ट और सूचकांक जारी किया। इसमें 31 शहरों की 12,000 से अधिक महिलाओं के अनुभव और उनकी आवाज़ों को शामिल किया गया हैं। आम तौर पर आधिकारिक अपराध डेटा सिर्फ़ रिपोर्ट किए गए मामलों को ही दिखाता है, लेकिन यह स्टडी उससे आगे जाकर महिलाओं की रोज़मर्रा की ज़िंदगी, यौन हिंसा और सुरक्षा के उनके अनुभवों और धारणाओं को सामने लाती है। इस रिपोर्ट में महिलाओं की सुरक्षा के लिए 65 फीसदी स्कोर मानक माना गया और सभी शहरों को इसी आधार पर इससे कम या ज़्यादा की रैंकिंग दी गई।
राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने अगस्त 2025 को दिल्ली में महिला सुरक्षा पर राष्ट्रीय वार्षिक रिपोर्ट और सूचकांक जारी किया। इसमें 31 शहरों की 12,000 से अधिक महिलाओं के अनुभव और उनकी आवाज़ों को शामिल किया गया हैं।
भारत में महिलाओं की सुरक्षा का हाल

नारी रिपोर्ट के अनुसार कुछ सुरक्षित शहरों में कोहिमा 82.9 फीसदी, विशाखापट्टनम 72.7 फीसदी और भुवनेश्वर 70.9 फीसदी सबसे सुरक्षित शहरों में गिने गए। वहीं, इंदौर, त्रिवेंद्रम और पणजी जैसे शहर औसत स्तर 65 से 67 फीसदी पर रहे। इन शहरों का अच्छा प्रदर्शन इसलिए है क्योंकि वहां लैंगिक समानता मज़बूत है, लोग सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, पुलिस व्यवस्था बेहतर है और बुनियादी ढांचा मजबूत है। दूसरी ओर पटना 59 फीसदी, फरीदाबाद और दिल्ली 42 फीसदी, कोलकाता 58.2 फीसदी और रांची 56.3 फीसदी को सबसे कम सुरक्षित शहरों में शामिल किया गया। इन शहरों के ख़राब प्रदर्शन वहां के कमज़ोर बुनियादी ढांचा, पितृसत्तात्मक मानदंड और सीमित संस्थागत जवाबदेही से जोड़ा गया।
रिपोर्ट की माने तो सर्वे में शामिल दस में से छह महिलाओं ने माना है कि वो अपने शहर में सुरक्षित महसूस करती हैं। हालांकि, दस में से चार ने खुद को ‘इतना सुरक्षित नहीं’ या ‘असुरक्षित’ बताया है। सर्वे में शामिल महिलाओं में से 86 फीसदी ने कहा कि वे दिन के समय में तो स्कूलों और कॉलेजों में सुरक्षित महसूस करती हैं। लेकिन, रात में ख़ासकर आस-पड़ोस की गलियों, सार्वजनिक परिवहन और मनोरंजन स्थलों पर उन्हें सुरक्षा की भावना में भारी कमी नज़र जाती है। महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर भी चुनौतियां कम नहीं हैं। सर्वे में ये साफ़ होता है कि 91 फीसदी महिलाओं ने अपने कार्यस्थल को सुरक्षित बताया है। हालांकि 53 फीसदी महिलाओं को यह भी पता नहीं था कि उनके कार्यस्थल पर यौन हिंसा निवारण (पॉश) नीति लागू है भी या नहीं। जबकि कार्यस्थल पर यौन हिंसा निवारण कानून का सख्ती से और अनिवार्य रूप से लागू होना आवश्यक है।
सर्वे में शामिल महिलाओं में से 86 फीसदी ने कहा कि वे दिन के समय में तो स्कूलों और कॉलेजों में सुरक्षित महसूस करती हैं। लेकिन रात में ख़ासकर आस-पड़ोस की गलियों, सार्वजनिक परिवहन और मनोरंजन स्थलों पर उन्हें सुरक्षा की भावना में भारी कमी नज़र जाती है।
यौन हिंसा के बढ़ते मामले, लेकिन शिकायतों में कमी

इकोनॉमिक टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2024 में 7 फीसदी महिलाओं ने कम से कम एक बार यौन हिंसा का सामना किया था। वहीं 18 से 24 साल की युवतियों में यह आंकड़ा दोगुना होकर 14 फीसदी तक पहुंच गया है। यौन हिंसा की घटनाओं में घूरने से लेकर अश्लील टिप्पणियां और यौन हिंसा जैसी गंभीर स्थितियां शामिल थीं। 38 फीसदी महिलाओं ने अपने ही आस-पड़ोस को ऐसे हिंसा का केंद्र बताया है, जबकि 29 फीसदी ने सार्वजनिक परिवहन को असुरक्षित माना है। लेकिन जब इन मामलों के बारे में शिकायत दर्ज कराने की बात आती है तो महिलाओं में अब भी काफ़ी झिझक देखी जाती है। सर्वे के मुताबिक, यौन हिंसा का सामना करने वाली एक तिहाई महिलाएं ही रिपोर्ट कर पाती हैं और दो तिहाई अपराध बिना दर्ज़ हुए ही रह जाते हैं।
इसकी वजह से नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो तक सही आंकड़ा नहीं पहुंच पाता है। रिपोर्ट दर्ज़ न कराने की एक बड़ी वजह है प्रशासन पर भरोसे की कमी। सर्वे में शामिल केवल 25 फीसद महिलाओं ने ही प्रशासनिक कार्यवाही पर भरोसा जताया। सर्वे में हिंसा की रिपोर्ट करने वाली महिलाओं की संख्या नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के साल 2022 के आंकड़ों से 100 गुना ज़्यादा है। सर्वे में शामिल 69 फीसद महिलाओं ने मौजूदा सुरक्षा उपायों को कुछ हद तक पर्याप्त माना जबकि 30 फीसद से ज़्यादा ने सुरक्षा में बड़ी कमियों की ओर इशारा किया। इससे साफ पता चलता है कि सर्वाइवर्स को एक तरफ जहां पितृसत्तात्मक सोच की वजह से विक्टिम ब्लेमिंग का सामना करना पड़ता है। वहीं प्रशासनिक कार्यवाही पर भरोसे की कमी की वजह से ज़्यादातर महिलाएं अपने साथ होने वाले अपराधों की रिपोर्ट दर्ज़ करने का हौंसला नहीं कर पाती हैं।
साल 2024 में 7 फीसदी महिलाओं ने कम से कम एक बार यौन हिंसा का सामना किया था। वहीं 18 से 24 साल की युवतियों में यह आंकड़ा दोगुना होकर 14 फीसदी तक पहुंच गया है। यौन हिंसा की घटनाओं में घूरने से लेकर अश्लील टिप्पणियां और यौन हिंसा जैसी गंभीर स्थितियां शामिल थीं।
महिलाओं की सुरक्षा क्यों मानवाधिकार है

नारी रिपोर्ट जारी करते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ने कहा महिला सुरक्षा को सिर्फ़ कानून-व्यवस्था का मुद्दा मानना ग़लत होगा क्योंकि यह जीवन के हर हिस्से को छूता है। चाहे वो किसी महिला की पढ़ाई हो, उसका स्वास्थ्य हो, उसके लिए रोज़गार के अवसर हों या कहीं आने-जाने की आज़ादी हो, उन्होंने कहा कि जब महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं तो वे अपनी सीमाएं खुद तय करने लगती हैं और यह सीमाएं उनके व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ देश की तरक़्क़ी को भी रोकती हैं। उन्होंने महिला सुरक्षा के लिए चार पहलुओं जैसे कि शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और डिजिटल पहलुओं का ज़िक्र किया।
उन्होंने कहा कि आज साइबर अपराध और व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग महिलाओं के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है। इसलिए ज़रूरी है कि सुरक्षा केवल सड़कों पर होने वाले अपराधों तक सीमित न रहे, बल्कि महिलाओं को ऑनलाइन अपराधों, आर्थिक असमानता और मानसिक हिंसा से बचाने की भी मज़बूत व्यवस्था की जाए।महिला सुरक्षा पर राष्ट्रीय वार्षिक रिपोर्ट में महिला हेल्पलाइन, स्मार्ट शहरों में सीसीटीवी नेटवर्क और महिला पुलिस अधिकारियों और बस चालकों की बढ़ती संख्या जैसे कदमों को सकारात्मक पहल के रूप में दर्ज किया गया है। कई केंद्र शासित प्रदेशों में अब 33 फीसदी पुलिस बल महिलाएं हैं। जिससे विश्वास निर्माण में बहुत अहम बदलाव देखने को मिला है।
हिंसा की रिपोर्ट करने वाली महिलाओं की संख्या नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के साल 2022 के आंकड़ों से 100 गुना ज़्यादा है। सर्वे में शामिल 69 फीसद महिलाओं ने मौजूदा सुरक्षा उपायों को कुछ हद तक पर्याप्त माना जबकि 30 फीसद से ज़्यादा ने सुरक्षा में बड़ी कमियों की ओर इशारा किया।
महिला आयोग के अनुसार समाज को अपनी ज़िम्मेदारी भी समझने और निभाने की जरूरत है। जैसे, हेल्पलाइन का इस्तेमाल करना, जागरूकता अभियानों को बढ़ावा देना या सार्वजनिक स्थानों को सुरक्षित और साफ़-सुथरा रखना। सार्वजनिक परिवहन में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी महिलाओं को सुरक्षित महसूस करने के लिए किया जा सकता है जैसा कि ऐप आधारित कैब सेवाओं में होता है। संस्थागत बदलावों के साथ ही समाज की मानसिकता में बदलाव लाना भी उतना ही ज़रूरी है। किसी भी तरह का अपराध होने पर विक्टिम ब्लेमिंग के बजाय अपराधी पर कार्रवाई करने पर ज़ोर देना चाहिए। इन सब के साथ ही ज़रूरी है कि समाज से पितृसत्तात्मक सोच को ख़त्म करके समानता पर आधारित समावेशी समाज को बढ़ावा देना चाहिए।
नारी 2025 रिपोर्ट यह सवाल उठाती है कि क्या आज भी महिलाएं रात को अकेले घर लौट सकती हैं, क्या वे निडर होकर सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल कर सकती हैं, क्या वे सार्वजनिक जगहों का आनंद बिना हिंसा के डर के ले सकती हैं और क्या ज़रूरत पड़ने पर सिस्टम उनके साथ खड़ा होगा क्या उन्हें ज़रूरत पड़ने पर न्याय मिलेगा। रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि शहर की सुरक्षा सिर्फ़ आंकड़ों से तय नहीं होती, बल्कि तब साबित होती है जब महिलाएं आज़ादी से घूम सकें, बेझिझक अपनी शिकायत दर्ज करा सकें और बिना किसी रोक-टोक के अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकें। इसके लिए ज़रूरी है कि समुदाय से लेकर सरकार तक मिलकर ठोस और सकारात्मक कदम उठाएं। तभी हम ऐसे शहर बना पाएंगे जहां महिलाएं न केवल सुरक्षित महसूस करेंगी बल्कि निडर होकर अपनी ज़िंदगी और सपनों को पूरी तरह जी सकेंगी।

