संस्कृतिकिताबें बानू मुश्ताक की ‘हार्ट लैंप’: मुस्लिम महिलाओं के जीवन और संघर्ष की कहानी

बानू मुश्ताक की ‘हार्ट लैंप’: मुस्लिम महिलाओं के जीवन और संघर्ष की कहानी

‘हार्ट लैंप’ बानू मुश्ताक की लिखी हुई बारह कहानियों का एक शानदार संग्रह है। इस किताब के लिए उन्हें इस साल इंटरनेशनल बुकर प्राइज पुरस्कार भी मिला है।

‘हार्ट लैंप’ बानू मुश्ताक की लिखी हुई बारह कहानियों का एक शानदार संग्रह है। इस किताब के लिए उन्हें इस साल इंटरनेशनल बुकर प्राइज पुरस्कार भी मिला है। कन्नड़ भाषा में लिखी किताब के लिए बुकर पुरस्कार पाने वाली वह पहली भारतीय महिला हैं। इस किताब की ज्यादातर कहानियां उन्होंने कन्नड़ भाषा में लिखी हैं, और ‘हार्ट लैंप’ उन्हीं कहानियों का अंग्रेज़ी अनुवाद है। इस किताब का कन्नड़ से अंग्रेज़ी में अनुवाद दीपा भास्थी ने किया है। इसकी हर एक कहानी दक्षिण भारत के मुस्लिम परिवारों में रहने वाली महिलाओं  और लड़कियों के इर्द-गिर्द घूमती है। इन कहानियों में बानू मुश्ताक ने दिखाया है कि मुस्लिम महिलाएं अपने परिवार, पति और बच्चों के बीच किस कदर अलग-अलग तरह के संघर्षों और मुश्किलों का सामना करती हैं जो मुस्लिम समाज के हर तबके से आती हैं।

जिन्हें लेखिका ने अपनी हर कहानी में, उनके सामाजिक और आर्थिक पहलू को ध्यान में रखते हुए बड़े ही सलीके से उकेरते हुए, हर एक किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। किताब की कहानियों के मुख्य किरदार खास करके घर की चार दीवारों में कैद मुस्लिम महिलाएं हैं । बारह कहानियों में सिर्फ एक कहानी ऐसी है जिसमें उन्होंने एक कामकाजी महिला को दिखाया है। बानू के बारे में थोड़ा संक्षेप में बात करें  तो वह एक लेखिका के साथ-साथ पेशे से वकील भी रही हैं। उन्होंने एक नारीवादी सामाजिक कार्यकर्ता और जर्नलिस्ट के तौर पर भी काम किया है और अभी भी कर रही हैं। वह एक लंबे समय से एक नारीवादी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में सक्रिय हैं। ऐसा कह सकते है कि उन्होंने अपने इस अनोखे लेखन कार्य से कन्नड साहित्य में लेखन की एक नई शैली विकसित की है।

‘हार्ट लैंप’ बानू मुश्ताक की लिखी हुई बारह कहानियों का एक शानदार संग्रह है। इस किताब के लिए उन्हें इस साल इंटरनेशनल बुकर प्राइज पुरस्कार भी मिला है। कन्नड़ भाषा में लिखी किताब के लिए बुकर पुरस्कार पाने वाली वह पहली भारतीय महिला हैं।

मुस्लिम महिलाओं के प्रजनन अधिकार और समाज का दबाव

तस्वीर साभार: रितिका बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

हार्ट लैंप की कहानियों में बानू मुश्ताक घर की चार दीवारी में कैद मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों के परिवार में उनके लिए मौजूद लैंगिक असमानता, भेदभाव और उनकी आज़ादी से जुड़े मुद्दों पर खुल कर बात करती हैं। मुस्लिम महिलाओं के इन सब संघर्षों के साथ-साथ वह इन महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों से जुड़े अहम मुद्दों पर लगभग हर एक कहानी में सवाल उठाती हैं । वह कहानियों के किरदारों के माध्यम से दिखाती हैं, कि कैसे धर्म और कुरान का हवाला देकर अक्सर मुस्लिम परिवारों में महिलाओं के प्रजनन अधिकार  को नजरअंदाज और कंट्रोल किया जाता है। ‘ब्लैक कोबरा’ नाम की कहानी में देखा जा सकता है कि कैसे अमीना की दस साल की शादी में सात बच्चे होने के बाद, जब वह अपने पति के सामने अपने ऑपरेशन कराने को लेकर कहती है। तो उसका पति यह कह कर टाल देता है, कि वह मस्जिद में मौलवी है और ऐसा करना कुरान के हिसाब से एक दम सही नहीं है। लेकिन अमीना का शरीर अब बच्चों को जन्म देने और दूध पिलाने के लिए उतना मजबूत नहीं रहा था । कहानी से समझा जा सकता है कि कैसे समाज के हर एक समुदाय में महिलाओं के प्रजनन को पुरुष कंट्रोल करते हैं और किस तरह से उनके प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है ।  

पुरुषों के हिसाब से जब तक बच्चों के शरीर पर कपड़े और पेट में खाना है । तब तक पत्नी को गर्भधारण पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। फिर वह पत्नी के स्वास्थ्य लिए कितना भी कठिन और जानलेवा क्यों न हों। जबकि महिलाएं जानती हैं कि अगर ऑपरेशन हो जाए तो उनका जीवन बेहतर हो सकता है।  ‘ब्लैक कोबरा’ कहानी ही नहीं बल्कि इस किताब की अन्य कहानियों में भी देख सकते हैं, कि कैसे एक पुरुष अपनी मर्दानगी को मोहब्बत और प्यार का नाम दे कर , अपनी पत्नी के प्रजनन स्वास्थ्य को नजरअंदाज करता है । जिसकी कीमत उसकी पत्नी को अपनी जान से चुकानी पड़ती है। वहीं  ‘अ टैस्ट ऑफ हेवन’ कहानी में वह बड़े ही सलीके से शामीम बानू के चिड़चिड़े और गुस्सैल मिजाज की बात करते हुए, मेनोपॉज पर बात करती है कि कैसे कम जानकारी और रूढ़िवादी सोच के चलते अन्य लोगों के साथ कभी-कभी महिलाएं भी अपने स्वास्थ्य समस्या को नहीं समझ पाती और इसके चलते ध्यान नहीं देती हैं।

‘ब्लैक कोबरा’ नाम की कहानी में देखा जा सकता है कि कैसे अमीना की दस साल की शादी में सात बच्चे होने के बाद, जब वह अपने पति के सामने अपने ऑपरेशन कराने को लेकर कहती है। तो उसका पति यह कह कर टाल देता है, कि वह मस्जिद में मौलवी है और ऐसा करना कुरान के हिसाब से एक दम सही नहीं है।

पितृसत्तात्मक रूढ़िवादी सोच और नियमों पर सवाल करती कहानियां 

तस्वीर साभार : Richmond Hill Family Lawyers

वह अपनी कहानियों के माध्यम से यह सवाल उठाती हैं, कि कैसे पुरुषों ने अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करने और कभी-कभी दहेज के लिए कई शादियां करने के लिए अपने मन मुताबिक नियम बना लिए हैं। चार बार शादी करने की कुरान से मिली छूट को पुरुष एक कर्तव्य की तरह देखते हैं। जिसे वह खुशी-खुशी निभाना चाहते हैं । हमेशा से ही पुरुषों ने खुद के हिसाब से दहेज लेने, पत्नियों को छोड़ने और अपने तौर-तरीकों से सब कुछ करने की आजादी अपने पास रखी है। इन सब पितृसत्तात्मक नियमों के चलते पुरुषों ने अपनी ही बहनों और बेटियों को उनकी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी, अधिकारों आदि से भी वंचित रखा है ताकि वह पितृसत्ता के नियम को कायम रख सकें।

‘फायर रेन’ नाम की कहानी में बानू मुश्ताक मुस्लिम महिलाओं के पिता की संपत्ति में बराबर हिस्सेदारी के हक़ पर सवाल उठाती हैं। उनकी कहानियां याद दिलाती हैं कि इस्लाम में महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा के लिए साफ़ नियम बने हैं, लेकिन पुरुष अक्सर अपनी मर्ज़ी से कुरान की बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं। ‘फायर रेन’, ‘अ फाइनल डिसीजन ऑफ द हार्ट’ और ‘हार्ट लैंप‘ जैसी कहानियों में साफ़ दिखता है कि किस तरह पितृसत्तात्मक सोच और नियमों को पुरुष आसानी से सही ठहरा देते हैं।

‘फायर रेन’ नाम की कहानी में बानू मुश्ताक मुस्लिम महिलाओं के पिता की संपत्ति में बराबर हिस्सेदारी के हक़ पर सवाल उठाती हैं। उनकी कहानियां याद दिलाती हैं कि इस्लाम में महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा के लिए साफ़ नियम बने हैं, लेकिन पुरुष अक्सर अपनी मर्ज़ी से कुरान की बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं।

जिम्मेदारियों में उलझी महिलाओं  की आस्था और विश्वास 

तस्वीर साभार : News Book

घर की चार दीवारों के बीच परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी में व्यस्त यह महिलाएं, ईश्वर पर अपनी आस्था और विश्वास को लेकर भी उतनी ही सजग हैं, जितना अपने घरेलू कामों को लेकर हैं। ‘अ टेस्ट ऑफ हेवन’ कहानी में एक मीठे सोडा का स्वाद एक बुजुर्ग महिला के संघर्ष भरे जीवन के अंतिम दिनों में ऐसा अनोखा एहसास कराता है, कि वह अपनी आस्था के चलते इसकी आदी हो जाती हैं । जिसका स्वाद उसके लिए स्वर्ग में मिलने वाले किसी पेय वस्तु के रूप में होता है। वहीं ‘द श्राउड’ कहानी में एक बुजुर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर महिला अपने संघर्ष भरे जीवन की अंतिम इच्छा मात्र यह रखती है कि जब वो इस दुनिया से अलविदा करे तो मक्का-मदीना के जमजम के पानी में डुबोए हुए कफन में करे। कहानियों में दिखने वाली आस्थावान महिलाओं के हौसले बेहद मज़बूत नज़र आते हैं। 

कोई भी शारीरिक या भावनात्मक पीड़ा उन्हें तोड़ नहीं पाती। यही वजह है कि ‘हार्ट लैम्प’ और ‘बी अ वुमन वन्स, ओ लॉर्ड’ की मुख्य महिला पात्र अपने पतियों के अपमानित और छोड़े जाने के बाद सब कुछ ईश्वर और किस्मत पर छोड़ देती हैं और ईश्वर से यह सवाल करती हैं कि आखिर उन्हें महिला क्यों बनाया गया। वहीं  ‘रेड लूंगी’ नाम की कहानी में जब रजिया को गर्मी की छुट्टियों में कुल अठारह बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी मिलती है, तो वह तय करती है कि इन बच्चों की कूद-फांद पर रोक लगाने का एकमात्र तरीका लड़कों का खतना करवा दिया जाए। इसके तहत एक सामूहिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जहां गांव  के गरीब लोग भी अपने बेटों का खतना मुफ़्त में करवा सकते हैं। आस्था की असली सच्चाई उसे तब दिखाई देती है जब रजिया के खुद के परिवार के लड़कों के ज़ख्म संक्रमित हो जाते हैं जबकि एक गरीब महिला का लड़का आरिफ़ बिना किसी चिकित्सकीय सहायता के पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है। उस पर वह कहती है कि ‘खार कु खुदा का यार, गरीब कु परवरदिगार’।

‘रेड लूंगी’ नाम की कहानी में जब रजिया को गर्मी की छुट्टियों में कुल अठारह बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी मिलती है, तो वह तय करती है कि इन बच्चों की कूद-फांद पर रोक लगाने का एकमात्र तरीका लड़कों का खतना करवा दिया जाए।

कहानियों की पीड़ा के बीच उजागर होती पितृसत्तात्मक सामाजिक हकीकतें 

बानू मुश्ताक की नारीवादी सोच, वकील और पत्रकार होने का असर उनकी कहानियों में साफ दिखाई देता है। उनकी मुस्लिम महिलाओं पर लिखी कहानियां  इतनी दिल को छूने वाली और मजबूत हैं कि उन्हें पढ़कर आप भावुक हो सकते हैं। किताब में कुछ कहानियां जैसे ‘हाई-हील्ड शू’ और ‘द अरेबिक टीचर एंड गोभी मंचूरी’ साफ दिखाती हैं कि कैसे पुरुष कभी-कभी छोटी सोच, लालच और स्वार्थ के कारण महिलाओं के अधिकारों और इच्छाओं का उल्लंघन करते हैं। तभी तो कहानी हाई -हील्ड शू में असिफ़ा का पति नायज खान अपनी भाभी के हाई हील्ड शू से प्रभावित होकर, वैसे ही शू अपनी बीबी असिफ़ा को दिलाता है । बिना इस बात कि परवाह किये कि उसकी पत्नी गर्भवती है ।  बिना यह जाने की उसकी पत्नी ने आज तक कभी भी अपने पति नायज खान की हवाई चप्पल के अलावा कुछ और पैरों पर नहीं पहना था। वहीं दूसरी कहानी द अरैबिक टीचर एंड गोबी मंचुरी’ एक युवा शिक्षक की कहानी है। कहानी मनोरंजक है लेकिन बानू उसमें एक पुरुष की बेहद ही बेकार महत्वाकांक्षा को उजागर करती है कि वह कैसे लड़कियों के लिए अरबी की कक्षाएं सिर्फ इसलिए चलाता है।

 ताकि अपने लिए एक ऐसी बीवी ढूंढ सके, जो उसकी पसंदीदा डिश गोभी मंचुरी बनाना जानती हो। किताब का अंत एक रुला देने वाली कहानी के साथ होता है। जिसमें एक गहरी सामाजिक सच्चाई को साफ देखा जा सकता है। कहानी ‘वी अ वुमन वन्स, ओ लॉर्ड’ यानी हे प्रभु, एक बार महिला बनो इस कहानी में एक महिला को उसका पति उसे उसके तुरंत जन्मे बच्चे और अन्य दो बच्चों के साथ अस्पताल में अकेला छोड़ यह कहकर दूसरी शादी के लिए जाता है कि उस महिला ने अपने पति को कभी भी यौन सुख नहीं दिया था। इस गहरे दुख में डूबी वह महिला ईश्वर से अपने महिला होने पर सवाल करती है और कहती है कि ‘यदि तुम्हें संसार को दोबारा बनाना हो, और महिला – पुरुष  का सृजन करना हो, तो अनुभवहीन कुम्हार की तरह मत करना। हे प्रभु, एक बार महिला बनकर धरती पर आओ! इन गहरे शब्दों और दिल छु लेने वाली  कहानी के साथ किताब खत्म होते -होते एक गहरी हकीकत बता जाती है कि महिला  होना इस पुरुष प्रधान समाज में कितना मुश्किल और कठिन है ।  क्योंकि ईश्वर भी खुद महिला  बन कर इस पुरुष प्रधान समाज में नहीं जी सकते हैं।

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