हाल ही में मेरी एक परिचित महिला, जिनकी उम्र तकरीबन सत्तर साल के आस-पास होगी; को स्ट्रोक आया। उन्हें हाथ-पैर में कमज़ोरी महसूस हुई, बोलते समय ज़बान लड़खड़ाने लगी और उनका एक तरफ का चेहरा सुन्न हो गया। अस्पताल में भर्ती करते समय न उन्हें और न उनके बेटे को ही यह पता चल पाया कि उन्हें दौरा क्यों आया। बाद में डॉक्टर ने बताया कि ऐसा स्ट्रोक की वजह से था। खैर, कुछ करीब एक महीने की देखभाल के बाद वो पूरी तरह ठीक हो गईं और अपनी दिनचर्या में वापस आ गईं। वहीं, मेरी एक और परिचित महिला को समय पर इलाज नहीं मिल सका और आज वो न केवल सही से बोल नहीं पातीं और उनके चेहरे पर असर पड़ा है, बल्कि अपने कपड़े भी खुद से नहीं पहन पातीं और बालों में कंघी भी नहीं कर पातीं। अपने छोटे-छोटे कामों के लिए वो अब दूसरों पर निर्भर हैं।
क्यों महिलाओं में स्ट्रोक अधिक होता है
स्ट्रोक, जिसे सरल भाषा में ब्रेन अटैक भी कहते हैं तब होता है जब मस्तिष्क के किसी हिस्से तक खून नहीं पहुंच पाता या जब दिमाग की कोई नस फट जाती है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें तुरंत उपचार की ज़रूरत होती है। अच्छी बात यह है कि स्ट्रोक एक लाइलाज बीमारी नहीं है और इसके 80 प्रतिशत मामलों में व्यक्ति पूरी तरह ठीक हो जाता है, बशर्ते उसे इलाज समय पर मिले। स्ट्रोक के कुछ लक्षण तो महिलाओं और पुरुषों में आम होते हैं, जैसे कि बोलते समय ज़बान का लड़खड़ाना, चेहरे पर असर (होंठ तिरछे से हो जाना), बाहों में कमज़ोरी, लेकिन महिलाओं में कुछ अतिरिक्त लक्षण भी आने की संभावना होती है। जैसे, मतली, बेहोशी या फिर भ्रम की स्थिति। लक्षण आने के शुरुआती तीन घण्टों में ही उपचार शुरू हो जाने पर इसकी जटिलताओं से बचा जा सकता है।
स्ट्रोक के कुछ लक्षण तो महिलाओं और पुरुषों में आम होते हैं, जैसे कि बोलते समय ज़बान का लड़खड़ाना, चेहरे पर असर (होंठ तिरछे से हो जाना), बाहों में कमज़ोरी, लेकिन महिलाओं में कुछ अतिरिक्त लक्षण भी आने की संभावना होती है।
स्ट्रोक के बाद महिलाएं अक्सर अधिक शारीरिक कमजोरी और विकलांगता से जूझती हैं। उन्हें स्मृति और सोचने-समझने की क्षमता पर भी असर महसूस हो सकता है। कई महिलाएं अवसाद और अकेलेपन का सामना भी करती हैं। महिलाएं आमतौर पर परिवार की देखभाल की ज़िम्मेदारी निभाती हैं। लेकिन जब खुद उन्हें स्ट्रोक हो जाता है, तो अक्सर उन्हें पर्याप्त सहयोग और देखभाल नहीं मिल पाती। इससे उनका पुनर्वास और मुश्किल हो जाता है। इलाज में देरी होने पर व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह काम करना बन्द कर सकता है और यहां तक कि इससे किसी की मौत भी हो सकती है।
सेरेब्रोवस्कुलर सोसायटी ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर छपी जानकारी के मुताबिक, पूरी दुनिया में स्ट्रोक के मामले महिलाओं में ज़्यादा नज़र आते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में यह पुरुषों में मृत्यु का पाँचवां प्रमुख कारण है जबकि महिलाओं में तीसरा प्रमुख कारण है। स्ट्रोक के आधे से भी ज़्यादा मामले महिलाओं में होते हैं और हर पांच में से एक महिला स्ट्रोक की वजह से मर जाती है। महिलाओं में स्ट्रोक का जोखिम पुरुषों से अधिक क्यों होता है इसकी एक वजह तो सीधे तौर पर यह है कि महिलाएं पुरुषों से ज़्यादा जीती हैं। बुज़ुर्ग महिलाओं में तो इसका जोखिम ज़्यादा होता ही है। साल 2020 में स्ट्रोक जर्नल के एक अध्ययन के मुताबिक 25-44 साल की महिलाओं में इसी आयु वर्ग के पुरुषों की तुलना में स्ट्रोक का जोखिम ज़्यादा होता है।
मेनोपॉज़ के कुछ सालों बाद महिलाओं में स्ट्रोक का जोखिम दोगुना हो जाता है क्योंकि एस्ट्रोजन हॉर्मोन हमारे दिल को स्वस्थ रखने में मदद करता है और ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखता है। यह बैड कोलेस्ट्रॉल को बनने से रोकता है। चूंकि मेनोपॉज़ के बाद एस्ट्रोजन की कमी हो जाती है या यह पूरी तरह से खत्म हो जाता है इसलिए महिलाओं में स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है।
महिलाओं में स्ट्रोक का जोखिम ज़्यादा होने के पीछे और कौन-सी वजहें ज़िम्मेदार हैं, यह समझने के लिए हमने महाराष्ट्र के बीड की रहने वाली डॉक्टर गौरी कैवल्य से बात की। उनके अनुसार, “जब किसी महिला के शरीर में हॉर्मोन संबंधी बड़े बदलाव होते हैं उस समय उसे स्ट्रोक का खतरा ज़्यादा रहता है, जैसे गर्भावस्था के दौरान, मेनोपॉज के दौरान और उसकी शुरुआती अवस्था में। इसके अलावा, अगर महिला को गंभीर स्तर के ओसीडी हो या थायरॉइड की, कैंसर, उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी समस्याएं हों, वे बर्थ कंट्रोल पिल्स ले रही हों, उन्हें शुगर या फिर अत्यधिक तनाव जैसी समस्याएं हों तो भी उनमें यह जोखिम बढ़ जाता है।” जर्नल ऑफ़ स्ट्रोक में छपे एक अध्ययन के मुताबिक़ स्ट्रोक के बाद पुरुषों की तुलना में महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता पर ज़्यादा असर पड़ने की संभावना होती है।
वे पूरी तरह ठीक हो सकें इसकी संभावना भी उनमें पुरुषों की तुलना में कम होती है। मेनोपाज़ के बाद स्ट्रोक का खतरा महिलाओं में बढ़ जाता है। इस विषय पर डॉक्टर गौरी बताती हैं, “मेनोपॉज़ के कुछ सालों बाद महिलाओं में स्ट्रोक का जोखिम दोगुना हो जाता है क्योंकि एस्ट्रोजन हॉर्मोन हमारे दिल को स्वस्थ रखने में मदद करता है और ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखता है। यह बैड कोलेस्ट्रॉल को बनने से रोकता है। चूंकि मेनोपॉज़ के बाद एस्ट्रोजन की कमी हो जाती है या यह पूरी तरह से खत्म हो जाता है इसलिए महिलाओं में स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है।”
जब किसी महिला के शरीर में हॉर्मोन संबंधी बड़े बदलाव होते हैं उस समय उसे स्ट्रोक का खतरा ज़्यादा रहता है, जैसे गर्भावस्था के दौरान, मेनोपॉज के दौरान और उसकी शुरुआती अवस्था में। इसके अलावा, अगर महिला को गंभीर स्तर के ओसीडी हो या थायरॉइड की, कैंसर, उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी समस्याएं हों, वे बर्थ कंट्रोल पिल्स ले रही हों, उन्हें शुगर या फिर अत्यधिक तनाव जैसी समस्याएं हों तो भी उनमें यह जोखिम बढ़ जाता है।
स्ट्रोक से बचने के लिए क्या करें
स्ट्रोक से बचने में जीवनशैली में बदलाव काफी अहम भूमिका निभा सकता है। डॉक्टर गौरी के अनुसार, “महिलाओं को तीन मुख्य बातों का ध्यान रखना चाहिए: संतुलित आहार लेना, नियमित व्यायाम करना और अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना। इन बातों का ध्यान रखकर स्ट्रोक को नियंत्रित किया जा सकता है और उसके जोखिम को कम किया जा सकता है।” आगे उन्होंने बताया कि कुछ खाद्य पदार्थों में एस्ट्रोजन पाया जाता है और उनका सेवन करके महिलाएँ शरीर में एस्ट्रोजन की कमी से खुद का बचाव कर सकती हैं। जैसे, सीसम सीड्स, फ्लेक्स सीड, अनार, बादाम, साबुत अनाज, बंदगोभी वगैरह। अगर महिलाएँ इन्हें नियमित रूप से अपने खान-पान में शामिल करें तो वे एस्ट्रोजन की कमी से खुद का बचाव कर सकती हैं और इस तरह से स्ट्रोक के जोखिम को कम कर सकती हैं। वृद्धावस्था की दहलीज़ पर पहुंची महिलाओं को खुद भी और उनके साथ उनके परिवार में रह रहे बाकी सदस्यों जैसे कि उनके पार्टनर और उनके बच्चों को भी यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि बुढ़ापे में किन बीमारियों का जोखिम उनमें ज़्यादा है।
ज़रूरत है कि वे अपनी केयरटेकिंग की भूमिकाओं को दरकिनार करके खुद का ध्यान रखना सीख सकें और उनके साथ रह रहे लोग इसमें उनकी मदद कर सकें। इसके अलावा न केवल देखभाल बल्कि स्ट्रोक और बहुत-सी अन्य बीमारियों के लक्षणों को लेकर सजग रहना भी खुद महिला के लिए और उनके परिवार वालों के लिए बहुत ज़रूरी है। आमतौर पर बुज़ुर्ग महिलाएं अस्पताल जाने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर रहती हैं तो वो समय पर अस्पताल पहुंच सकें इसका ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। स्ट्रोक को बुखार या जुखाम जैसी आम बीमारी समझकर इलाज में देरी करने की भूल बहुत भारी पड़ सकती है। स्ट्रोक केवल चिकित्सकीय आपातकाल नहीं है, बल्कि यह लैंगिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मुद्दा है। महिलाओं में इसकी रोकथाम, समय पर पहचान और समुचित देखभाल पर खास ध्यान देने की जरूरत है। तभी स्ट्रोक से होने वाली मृत्यु और विकलांगता को कम किया जा सकेगा।

