भारतीय सिनेमा के इतिहास में पुरुषों का बोलबाला रहा है। महिलाओं के लिए घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर बड़े पर्दे तक पहुंच बना पाना आसान नहीं था। हमारे पुरुष-प्रधान समाज के, इतिहास में कुछ महिलाएं ऐसी रहीं हैं, जिन्होंने न इन रूढ़िवादी नियमों को तोड़ा बल्कि अपनी एक अलग पहचान बनाई। उन्हीं में से एक शख्सियत थीं, टी. पी. राजलक्ष्मी, जिन्होंने न केवल फिल्म उद्योग में काम किया, बल्कि तमिल सिनेमा की पहली महिला निर्देशक, पहली महिला निर्माता और पहली महिला पटकथा-लेखिका के रूप में अपनी कला का विस्तार किया ।
उनसे अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा मिली जो समाज के रूढ़िवादी नियमों को तोड़ते हुए अपने जीवन में कुछ अलग करने का जज़्बा रखती हैं। उनका जीवन काफी संघर्ष पूर्ण रहा। लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और वो सब कर दिखाया जो वो करना चाहती थीं। उनके जीवन से यह सीखा जा सकता है कि अगर जीवन में ऊंचाई का शिखर छूना है। तो समाज के बनाए हुए रूढ़िवादी नियमों को तोड़ना ज़रूरी है ।
उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा का विरोध किया और विधवा विवाह का समर्थन किया। लेकिन उनका काम केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या जैसी प्रथाओं का विरोध करते हुए कई बच्चियों को गोद भी लिया।
शुरुआती जीवन और अभिनय की शुरुआत
द सिनेमा रिसोर्स सेंटर में छपे एक लेख के मुताबिक, टी. पी. राजलक्ष्मी का जन्म साल 1911 में तंजौर जिले के सालियामंगलम गांव में हुआ था। परिवार की रूढ़िवादी मानसिकता के कारण महज 11 साल की उम्र में ही उनका बाल विवाह कर दिया गया था। लेकिन उनके पिता की अचानक मौत के तुरंत बाद ही उनकी शादी टूट गई। इसके बाद उन्हें और उनकी माँ को गरीबी के दिन देखने पड़े। राजलक्ष्मी बहुत प्रतिभाशाली लड़की थीं। उन्होंने गाना, गाना शुरू कर दिया ताकि अपने परिवार का खर्च चला सके। उस समय महिलाओं को नुक्कड़ -नाटक या कलामंच में अभिनय करने की अनुमति नहीं थी। लेकिन वो समाज के नियमों को दरकिनार करते हुए, रंगमंच से जुड़ गईं और रंगमंच के जनक कहे जाने वाले शंकरदास स्वामीगल से मिलीं।
जिन्होंने उन्हें इस क्षेत्र में शामिल करने की सिफारिश की। इसके बाद वह युवा किशोरी कुन्नैया कंपनी जैसी कई नाटक मंडलियों में शामिल हो गईं। इसकी वजह से, उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा। उन्होंने मंच पर पहला किरदार पवलकोडी में निभाया। इस नाटक पर, बाद में फ़िल्म बनाई गई, जिसमें उस समय के कई सितारों ने काम किया। यहीं से उनके अभिनय की शुरुआत का दौर आरंभ हो गया। एक लोकप्रिय नाट्य कलाकार के रूप में उनका उदय तमिल सिनेमा के शुरुआती कदमों के साथ ही हुआ, क्योंकि राजलक्ष्मी को तमिल फिल्म उद्योग में कदम रखने में ज़्यादा समय नहीं लगा।
परिवार की रूढ़िवादी मानसिकता के कारण महज 7 साल की उम्र में ही उनका बाल विवाह कर दिया गया था। लेकिन उनके पिता की अचानक मौत के तुरंत बाद ही उनकी शादी टूट गई। इसके बाद उन्हें और उनकी माँ को गरीबी के दिन देखने पड़े। राजलक्ष्मी बहुत प्रतिभाशाली लड़की थीं। उन्होंने गाना, गाना शुरू कर दिया ताकि अपने परिवार का खर्च चला सके।
सिनेमा में अभिनय, लेखन और निर्देशक बनने तक का सफर
उनकी अदाकारी और हुनर के चलते बहुत जल्द ही उन्हें फिल्मों में काम मिलने लगा। उन्हें फिल्मों में पहला रोल साल 1931 में मिला। उन्हें ‘कालीदास’ में हीरोइन के तौर पर कास्ट किया गया। यह फ़िल्म दो भाषाओं में बनी थी, जो तमिल और तेलुगु भाषा की पहली बोलती फ़िल्म थी। यह फ़िल्म काफ़ी सफल रही। इसके बाद, वे उस समय की सबसे ज़्यादा मांग में रहने वाली कलाकार बन गईं और इसके बाद लगातार कई फिल्मों में अपनी अदाकारी से दर्शकों के मन में एक गहरी छाप छोड़ी। साल 1933 की फिल्म वल्ली तिरुमनम साल 1935 में हरिचंद्र, और साल 1933 कोवलन जैसी फ़िल्में लोक थिएटर और पौराणिक कथाओं पर आधारित थीं। ये फ़िल्में उस समय की सांस्कृतिक परंपराओं को आगे बढ़ाती हैं और दिखाती हैं कि कैसे राजलक्ष्मी ने लोककथाओं और मिथकों को आधुनिक सिनेमा के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया।
हालांकि उनकी कला अभिनय और गायन तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने एक लेखिका, निर्माता, निर्देशक और संपादक के रूप में काम किया । दरअसल, अपने करियर के लगभग दस सालों के बाद, उन्होंने खुद फिल्में बनाने के लिए अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी, श्री राजम टॉकीज, बनाई। इस तरह, साल 1936 में उन्होंने अपनी फिल्म मिस कमला बनाकर दक्षिण भारत की पहली महिला निर्देशक बनने का इतिहास रचा। यह फिल्म उनके अपने उपन्यास ‘कमलावल्ली’ पर आधारित थी। इस फिल्म के साथ, वह दक्षिण भारत की पहली महिला निर्देशक और फातमा बेगम के बाद भारत की दूसरी महिला निर्देशक बनीं। हालांकि उन्होंने अन्य निर्देशकों की फिल्मों में अभिनय जारी रखा, लेकिन मिस कमला की सफलता के बाद उन्होंने निर्देशन में अपना काम आगे बढ़ाया। उस दौर की बाकी फ़िल्मों की तरह, राजलक्ष्मी की भी ज़्यादातर फ़िल्में खो गईं हैं। यादों के तौर पर कुछ ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड और प्रिंट मीडिया के संग्रह बचे हुए हैं।
दरअसल, अपने करियर के लगभग दस सालों के बाद, उन्होंने खुद फिल्में बनाने के लिए अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी, श्री राजम टॉकीज, बनाई। इस तरह, साल 1936 में उन्होंने अपनी फिल्म मिस कमला बनाकर दक्षिण भारत की पहली महिला निर्देशक बनने का इतिहास रचा।
राजनीतिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में योगदान
वह एक बहुमुखी प्रतिभावान कलाकार होने के साथ -साथ ब्रिटिश भारत में एक राजनीतिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों ने नाटकों में अभिनय करने और उनकी उपस्थिति की आलोचना करने वाले गीत लिखने के लिए जेल में डाल दिया था। उनकी कई रचनाएं सेंसर भी हुईं। उदाहरण के लिए,फिल्म इंडिया थाई को अत्यधिक देशभक्तिपूर्ण माना गया, जिसके कारण सेंसर बोर्ड ने इसका नाम बदलकर ‘तमिल थाई’ रखने के लिए मजबूर किया। देशभक्त और राजनीतिक रूप से विद्रोही, राजलक्ष्मी एक नारीवादी महिला भी थीं । उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा का विरोध किया और विधवा विवाह का समर्थन किया। लेकिन उनका काम केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या जैसी प्रथाओं का विरोध करते हुए कई बच्चियों को गोद भी लिया। टीसीआरसी के मुताबिक, पेरियार ईवी रामासामी राजलक्ष्मी को बहन कहकर पुकारते थे और उनकी कलात्मक प्रतिभा और उनके राजनीतिक विचारों की सराहना करते थे।
हालांकि उन्होंने 1940 के दशक में फिल्म उद्योग से दूरी बना ली। साल 1961 में उन्हें ‘कलईमामणि पुरस्कार’ से नवाजा गया। अपने जीवन के अंतिम सालों में वह अस्वस्थ रहने लगीं और उन्होंने अपने परिवार के साथ रहने लगी। इसी के चलते साल 1964 में उनकी मृत्यु हो गई। भले ही आज उनकी बनाई हुई बहुत सी फिल्में खो चुकी हैं । लेकिन उनके संघर्ष और योगदान के लिए वो हमेशा याद की जाती रहेंगी । टी. पी. राजलक्ष्मी उन महिलाओं में से थीं, जिन्होंने पितृसत्ता और सामाजिक बंदिशों के बीच अपने लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की महिलाओं के लिए रास्ता बनाया। एक बाल-विवाह का सामना कर चुकी लड़की का दक्षिण भारत की पहली महिला निर्देशक और बहुमुखी कलाकार बनना उस समय में सबसे साहसिक उपलब्धि थी। राजलक्ष्मी हमें याद दिलाती हैं कि परंपराओं को चुनौती देने वाली महिलाओं की कहानियां कभी गुमनाम नहीं होतीं, वे इतिहास का आधार बनती हैं।


Hello writer,
Article is very well articulated but I am curious to know that is article mein unke education se related kuch jaankaari nahi di gyi hai. Kya aapke pass hai ? Jaise child marriage hui, tab padhai kitni ki thi ke, writings mein utar gyi….. Wo thoda samajh nahi aya.