समाजख़बर हर तीन में से एक महिला करती है इंटिमेट पार्टनर वायलेंस का सामना: डब्ल्यूएचओ

हर तीन में से एक महिला करती है इंटिमेट पार्टनर वायलेंस का सामना: डब्ल्यूएचओ

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट बताती है कि आईपीवी और हिंसा सिर्फ किसी महिला के शारीरिक और मानसिक चोट और नुकसान तक सीमित नहीं होती है, बल्कि इसका असर एक महिला के शारीरिक, यौन, प्रजनन स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, स्वतंत्रता, संबंधों, आर्थिक स्थिति पर भी एक लंबे वक्त तक रहता है।

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र की साल 2023 की वायलेंस अगेंस्ट वुमन प्रीवेलेंस एस्टिमेट्स रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में लगभग हर तीन में से एक महिला यानी लगभग 84 करोड़ महिलाएं अपने जीवनकाल में कभी ना कभी अपने इंटिमेट पार्टनर से शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करती हैं। अपने ही साथी से महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा के यह आंकड़े साल 2000 से दुनिया भर में एक जैसे ही बने हुए हैं। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि सिर्फ पिछले एक साल में ही दुनिया भर की 31.6 करोड़ महिलाएं जिनमें से 11 फीसदी 15 साल या उससे अधिक उम्र की थीं, अपने अंतरंग साथी, पूर्व पति और मौजूद पति से शारीरिक या यौन हिंसा का सामना किया है। रिपोर्ट यह दावा करती है कि इंटिमेट पार्टनर हिंसा(आईपीवी) को कम करने की दिशा में दुनिया भर में काम बहुत ही धीमा है, जिसके कारण महिलाओं के खिलाफ़ होने वाली इस हिंसा में पिछले दो दशकों में सालाना सिर्फ 0.2 फीसदी की ही कमी आई है। 

रिपोर्ट में पहली बार साथी के अलावा किसी और व्यक्ति से यौन हिंसा के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय अनुमान शामिल किए गए हैं। इसमें पाया गया कि 15 साल की उम्र से अब तक लगभग 26.3 करोड़ महिलाओं ने अपने साथी के अलावा यौन हिंसा का सामना किया है। दूसरी ओर विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे आंकड़े सामज में शर्म, बदनामी और डर के कारण काफी कम दर्ज किए जाते हैं। महिलाओं के खिलाफ़ लैंगिक और यौन हिंसा दुनिया भर में एक लंबे वक्त से कायम रहने वाली और साथ ही कम बात की जाने वाली मानवाधिकार समस्याओं में से एक है। डब्ल्यूएचओ की यह यह रिपोर्ट साल 2000 से लेकर 2023 तक के बीच में दुनिया भर के कुल 168 देशों के आंकड़ों का विश्लेषण पर तैयार की गई है। यह दिखाती है कि इंटिमेट पार्टनर वायलेंस का संकट कितना गहरा है और इसके समाधान के लिए वैश्विक स्तर पर वित्तीय सहायता की कितनी कमी बनी हुई है। 

वायलेंस अगेंस्ट वुमन प्रीवेलेंस एस्टिमेट्स रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में लगभग हर तीन में से एक महिला यानी लगभग 84 करोड़ महिलाएं अपने जीवनकाल में कभी ना कभी अपने इंटिमेट पार्टनर से शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करती हैं।

क्या है इंटिमेट पार्टनर वायलेंस?

इंटिमेट पार्टनर वायलेंस का मतलब अंतरंग साथी, पति और पार्टनर के महिलाओं के खिलाफ़ की जाने वाली शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा है। इस तरह की हिंसा किसी महिला के साथ शादी, डेटिंग और लिव इन रिश्ते में हो सकती है। यह एक ऐसी हिंसा है, जिसमें किसी महिला के अपने पति, साथी और पार्टनर एक लंबे वक्त तक लगातार शारीरिक और यौन हिंसा करते हैं और महिलाओं के व्यवहार, यौन, प्रजनन और निर्णय लेने की आज़ादी को भी नियंत्रित करते हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में इस तरह की हिंसा को महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले सबसे आम और व्यापक प्रकार की हिंसा के रूप में गिना गया है।

कई महिलाएं अपने साथ होने वाली आईपीवी के खिलाफ़ आवाज़ नहीं उठा पाती हैं। इसके पीछे भावनात्मक जुड़ाव, प्यार, डर, सामाजिक बंधन और आर्थिक या समाजिक निर्भरता जैसे कई कारण शामिल होते हैं। इसके अलावा समाज की पितृसत्तात्मक सोच, लैंगिक पूर्वाग्रह और पारंपरिक व्यवस्था भी कारक होते हैं। यह सब मिलकर महिलाओं के खिलाफ़ इस तरह की हिंसा को सामान्य बना देते हैं, जिसके कारण महिलाएं अक्सर अपने साथ होने वाले इन हिंसात्मक अनुभवों को साझा नहीं करतीं। साथ ही कभी -कभी खुद महिलाएं भी अपने साथी के किये जाने वाली हिंसा को एक सामान्य व्यवहार या उनका अधिकार समझकर स्वीकार भी कर लेती हैं। 

भारत में साल 2023 में 15 से लेकर 49 साल की आयु वर्ग की लगभग 30 फीसदी महिलाएं अपने जीवनकाल में कभी ना कभी ऐसी हिंसा का सामना कर चुकी हैं। इसके अलावा भारत में अपने साथ के अलावा यौन हिंसा का सामना कर चुकी महिलाओं की संख्या लगभग 4 फीसदी है।

महिलाओं पर इसका प्रभाव

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट बताती है कि आईपीवी और हिंसा सिर्फ किसी महिला के शारीरिक और मानसिक चोट और नुकसान तक सीमित नहीं होती है, बल्कि इसका असर एक महिला के शारीरिक, यौन, प्रजनन स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, स्वतंत्रता, संबंधों, आर्थिक स्थिति पर भी एक लंबे वक्त तक रहता है। इस तरह की हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं को अक्सर अनचाहे गर्भावस्था, यौन संचारित संक्रमण और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अधिक ख़तरा होता है। वहीं दूसरी ओर रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के खिलाफ़ इस तरह की हिंसा कम उम्र में ही शुरू हो जाती है और इसका खतरा आजीवन रहता है। बीते एक साल में 15-19 साल की 1.25 करोड़ किशोरियों यानी 16 फीसदी ने अपने अंतरंग साथी से शारीरिक और यौन हिंसा का अनुभव किया है। वहीं यूएन वुमन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विकलांग महिलाओं में सामान्य महिलाओं की तुलना में आईपीवी का दर अधिक होती है।

इसके साथ ही कम उम्र की विकलांग महिलाओं के साथ हिंसा और ज्यादा होती है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ़) की रिपोर्ट मुताबिक महिलाओं के साथ आईपीवी के मामले में दुनिया भर में बहुत सी महिलाएं अपने साथी द्वारा हिंसा का सामना पहली बार किशोरावस्था में करती हैं। इसके साथ ही बहुत से बच्चे ऐसे घरों में बड़े होते हैं, जहां वह हर रोज अपनी मां के साथ होने वाली घरेलू हिंसा को देखते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, इस तरह की हिंसा लगभग हर देश में होती है। लेकिन कम विकसित, संघर्ष प्रभावित और जलवायु संवेदनशील क्षेत्रों में महिलाएं इसका ज्यादा सामना करती हैं। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को छोड़कर ओशिनिया में पिछले साल इंटिमेट पार्टनर हिंसा के 38 फीसद मामले सामने आए, जो दुनिया के औसत 11 फीसद से 3 गुना ज़्यादा है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ़) की रिपोर्ट मुताबिक महिलाओं के साथ आईपीवी के मामले में दुनिया भर में बहुत सी महिलाएं अपने साथी द्वारा हिंसा का सामना पहली बार किशोरावस्था में करती हैं।

अगर भारत में इंटिमेट पार्टनर वायलेंस पर नजर डालें तो पता चलता है कि भारत में साल 2023 में 15 से लेकर 49 साल की आयु वर्ग की लगभग 30 फीसदी महिलाएं अपने जीवनकाल में कभी ना कभी ऐसी हिंसा का सामना कर चुकी हैं। इसके अलावा भारत में अपने साथ के अलावा यौन हिंसा का सामना कर चुकी महिलाओं की संख्या लगभग 4 फीसदी है।  द सीएसआर जर्नल में नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 आधारित रिपोर्ट मुताबिक भारत में लगभग 26.21 फीसदी शादीशुदा महिलाओं ने अपने जीवन में कभी न कभी अपने साथी के साथ हिंसा का सामना किया है। इसमें 60 फीसदी ने शारीरिक हिंसा, 2.15 फीसदी ने यौन हिंसा और 9.54 फीसदी ने भावनात्मक हिंसा का सामना किया है।

महिलाओं के लिए सुरक्षा नीतियों और वित्तीय सहयोग की ज़रूरत

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ़ आईपीवी में साल 2000 से कोई खास कमी नहीं आई है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि वैश्विक स्तर पर हिंसा रोकने वाले कार्यक्रमों के लिए मिलने वाली वित्तीय मदद लगातार घटती जा रही है। यह ऐसे समय में हो रहा है जब मानवीय आपात स्थितियां, बढ़ती आर्थिक सामाजिक असमानताएं और अन्य संकट दुनिया भर में लाखों महिलाओं और लड़कियों को हिंसा के ख़तरे में और ज्यादा धकेल रहे हैं। साल 2022 में वैश्विक विकास सहायता का केवल 0.2 फीसदी ही महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा की रोकथाम पर केंद्रित कार्यक्रमों के लिए आवंटित किया गया था। साल 2025 में यह वित्तीय सहायता और भी कम हो गई है।

डब्ल्यूएचओ और संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर सरकारों से महिलाओं के खिलाफ़ होने वाली इस तरह की हिंसा, की रोकथाम के लिए ठोस नीतियों और कार्रवाई के साथ पर्याप्त वित्तीय सहयोग के लिए अपील करती है, ताकि प्रमाण के आधार पर रोकथाम कार्यक्रमों को दुनिया भर में बढ़ाया जा सके। साथ ही इस तरह की हिंसा की सर्वाइवरों के लिए स्वास्थ्य, न्याय और सामाजिक सेवाएं मज़बूत की जा सकें। रिपोर्ट दुनिया भर के सभी देशों को सुझाव देती है कि सभी देश बेहतर डेटा प्रणालियों में निवेश करें, ताकि प्रगति पर नज़र रखी जा सके और उन समूहों तक पहुंचा जा सके, जो सबसे ज़्यादा खतरे में हैं। साथ ही रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर सभी देशों में ऐसे क़ानून और नीतियां लागू करने पर जोर देती है जिससे महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाया जा सके। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि कोई भी समाज ख़ुद को न्यायपूर्ण, सुरक्षित या स्वस्थ नहीं कह सकता, अगर उसकी आधी आबादी डर के साए में जी रही हों। इस हिंसा को ख़त्म करना केवल एक नीतिगत विषय नहीं है। यह हर व्यक्ति की गरिमा, समानता और मानवाधिकारों का भी सवाल है। 

  

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