भारत की राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगातार मज़बूत हो रहा है। साल 2025 में कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में महिलाओं ने न केवल मतदाता के रूप में, बल्कि उम्मीदवार के तौर पर भी अपनी मज़बूत मौजूदगी दर्ज कराई है। वहीं, जो महिलाएं पहले से राजनीति में सक्रिय हैं या विभिन्न पदों पर काम कर रही हैं, उन्होंने अपने अनुभव, नीतिगत समझ और सक्रिय कामकाज के ज़रिए भारतीय राजनीति में अपनी भूमिका को और सशक्त किया है।
इस लेख में हम उन महिला नेताओं पर नज़र डालेंगे, जिन्होंने साल 2025 में ज़मीनी राजनीति से लेकर सदन तक अपनी मेहनत, संघर्ष और जनसमर्थन के बल पर नई मिसालें कायम की हैं। समाज की रूढ़िवादी मान्यताओं, पितृसत्तात्मक ढांचे और पुरुष-बहुल राजनीति जैसी बाधाओं के बावजूद इन महिलाओं ने न केवल खुद को स्थापित किया है, बल्कि यह भी साबित किया है कि नेतृत्व क्षमता का कोई जेंडर नहीं होता।
1-छोटी कुमारी
साल 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भोजपुरी अभिनेता खेसारी लाल यादव को हराकर चर्चा में आईं छोटी कुमारी का जन्म सारण जिले के भगवानपुर गांव में हुआ। वह गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आता है। उन्होंने अपनी पहचान सामाजिक कार्यों के ज़रिये बनाई। उन्होंने साल 2011 में राजनीति में कदम रखा। साल 2014 में वे छपरा, सारण जिला परिषद की अध्यक्ष चुनी गईं। साल 2024 में उन्हें भाजपा महिला मोर्चा की बिहार प्रवक्ता नियुक्त किया गया। साल 2025 में पार्टी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए मौजूदा विधायक डॉ. सी.एन. गुप्ता का टिकट छोटी कुमारी को दिया। छपरा जैसे राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में उन्होंने लोकप्रिय प्रतिद्वंद्वी खेसारी लाल यादव को हराकर विधानसभा में प्रवेश किया। उनकी यह जीत ऐतिहासिक मानी जा रही है क्योंकि साल 1962 के बाद पहली बार छपरा से किसी महिला विधायक का चुनाव हुआ है। यह जीत न सिर्फ़ व्यक्तिगत सफलता है, बल्कि क्षेत्र की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और बदलाव का संकेत भी है।
2-संजना जाटव
1 मई 1998 को राजस्थान के भरतपुर ज़िले के भुसावर क्षेत्र के पास एक साधारण जाटव परिवार में संजना जाटव का जन्म हुआ। शादी के बाद भी उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी और ग्रेजुएशन के बाद एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। इसी दौरान संजना गांव-कस्बों में लोगों की समस्याएं सुनने लगीं और स्थानीय राजनीति में सक्रिय हुईं। साल 2023 में वे कठूमर विधानसभा सीट से बेहद कम अंतर से चुनाव हार गईं, लेकिन यह हार उन्हें ज़मीन से और जोड़ गई। नवंबर 2025 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने उन्हें राष्ट्रीय सचिव नियुक्त करते हुए मध्य प्रदेश कांग्रेस की सह-प्रभारी की ज़िम्मेदारी सौंपी। यह नियुक्ति उनकी जमीनी सक्रियता और नेतृत्व क्षमता की पहचान है। यह उन युवा दलित महिलाओं के लिए भी प्रेरणा है जो राजनीति में अपनी जगह बनाना चाहती हैं।
3-सुप्रिया सुले
सुप्रिया सुले शिक्षा पूरी करने के बाद सक्रिय राजनीति में आईं और बारामती लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर संसदीय राजनीति में प्रवेश किया। संसद में उनकी उपस्थिति हमेशा सक्रिय और प्रभावशाली रही है। साल 2025 में सुप्रिया सुले ने लोकसभा में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025’ पेश किया। इस बिल का उद्देश्य कर्मचारियों को कार्य समय के बाद काम से जुड़े संदेशों से दूरी रखने का कानूनी अधिकार देना है। यह कदम बर्नआउट रोकने और कार्य-जीवन संतुलन मजबूत करने की दिशा में अहम माना गया। फ्रांस जैसे देशों से प्रेरित यह पहल कामकाजी माता-पिता और युवाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही उन्होंने मत्स्य पालन, स्टार्टअप्स और रोजगार योजनाओं पर भी संसद में लगातार सवाल उठाए हैं, जिससे आम नागरिकों की चिंताएं सामने आई हैं।
4-इक़रा हसन चौधरी
18वीं लोकसभा की सबसे कम उम्र की मुस्लिम महिला सांसद के रूप में इकरा हसन चौधरी चर्चा में आईं। उन्हें आम तौर पर इकरा चौधरी के नाम से भी जाना जाता है। वे उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक उभरती हुई युवा नेता हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में इकरा ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर कैराना सीट से जीत दर्ज की। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार प्रदीप चौधरी को 69,116 मतों से हराया था। उन्होंने बजट, किसान आय, स्वास्थ्य सेवाओं; खासकर गायनेकोलॉजिस्टों की कमी और महिला योजनाओं से जुड़े सवाल उठाए हैं। कैराना क्षेत्र में उन्होंने महिला स्वास्थ्य शिविर, स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रम और स्कूल सुधार जैसी जमीनी पहलें भी शुरू की हैं। साल 2025 तक वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक प्रभावशाली युवा महिला नेता के रूप में उभरी हैं।
5-नीलम पहलवान
नीलम कृष्ण पहलवान दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र की एक जमीनी और प्रभावशाली नेता के रूप में उभरी हैं। 43 वर्षीय नीलम ने अंग्रेज़ी में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है। उन्होंने स्थानीय स्तर से राजनीति की शुरुआत की और भारतीय जनता पार्टी की सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। साल 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नजफगढ़ जैसी चुनौतीपूर्ण सीट से नीलम पहलवान को उम्मीदवार बनाया। यह सीट लंबे समय तक आम आदमी पार्टी का गढ़ मानी जाती थी। नीलम ने इस चुनौती को अवसर में बदला और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार तरुण कुमार को लगभग 29,000 वोटों से हराया। करीब 1,01,708 वोट पाकर वह नजफगढ़ की पहली महिला विधायक बनीं।
6-अगाथा कोंगकल संगमा
24 जुलाई 1980 को जन्मीं अगाथा संगमा ने बचपन से ही अपने पिता, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता पी. ए. संगमा के राजनीतिक जीवन को करीब से देखा। लेकिन उन्होंने अपनी पहचान खुद बनाई। साल 2008 में अगाथा तुरा लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं। वह देश की सबसे युवा सांसदों में से एक थीं। संसद में रहते हुए उन्होंने ग्रामीण विकास, महिलाओं की बुनियादी ज़रूरतों और जल संरक्षण जैसे मुद्दों पर सक्रिय काम किया। इसी वजह से उन्हें “वॉटर वुमन” के नाम से पहचान मिली। साल 2025 में जब उन्होंने राज्य में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को बेहद चिंताजनक बताया, तो यह केवल बयान नहीं था, बल्कि ज़मीनी अनुभव से उपजी चिंता थी। वह सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श जैसे संवेदनशील विषयों को सरल भाषा में समझाती हैं। डिजिटल दुनिया के खतरों पर खुलकर बात करती हैं और बच्चों को यह भरोसा दिलाती हैं कि गलत के खिलाफ बोलना उनका अधिकार है। पॉक्सो मामलों, काउंसलिंग की ज़रूरत और बच्चों के लिए सुरक्षित सार्वजनिक स्थानों को लेकर उन्होंने मेघालय में बाल सुरक्षा को एक अहम मुद्दा बनाया है।
7- शांभवी चौधरी
बिहार के दलित समुदाय से आने वाली शांभवी चौधरी एक युवा राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के टिकट पर समस्तीपुर सीट से जीत दर्ज की। इस जीत के साथ वह भारत की सबसे कम उम्र की दलित सांसद बनीं। समस्तीपुर की एससी आरक्षित सीट से चुनाव लड़ते हुए उन्होंने 5,79,786 वोट हासिल किए और कांग्रेस उम्मीदवार सनी हजारी को 1,87,251 वोटों से हराया। इस जीत के साथ वह सामाजिक बदलाव की एक अहम मिसाल बनकर उभरीं।
8- अलीफ़ा अहमद
तृणमूल कांग्रेस की उभरती नेता अलीफ़ा अहमद ने जून 2025 के कालीगंज उपचुनाव में बड़ी जीत दर्ज कर बंगाल की राजनीति में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई। नादिया ज़िले में जन्मी अलीफ़ा, दिवंगत विधायक और वकील नसीरुद्दीन अहमद की बेटी हैं। सार्वजनिक सेवा की विरासत ने उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को आकार दिया। उन्होंने पश्चिम बंगाल से उच्च शिक्षा प्राप्त की और लगभग 15 वर्षों तक टीसीएस में आईटी इंजीनियर और एजाइल डिलीवरी मैनेजर के रूप में काम किया। 2018 में नादिया जिला परिषद की सदस्य बनने के साथ उन्होंने राजनीति में कदम रखा। 2025 के उपचुनाव में उन्होंने भाजपा उम्मीदवार को 50,049 वोटों से हराया और 2 जुलाई 2025 को विधायक पद की शपथ ली। महिला शिक्षा, स्कूलों की गुणवत्ता, बुनियादी ढांचा और प्लासी के पर्यटन विकास उनकी प्राथमिकताएं हैं।
9-वर्षा गायकवाड़
वर्षा गायकवाड़ मुंबई की उन गिनी-चुनी महिला नेताओं में हैं, जिन्होंने जमीनी संघर्ष से संसद तक अपनी पहचान बनाई है। 3 फ़रवरी 1975 को मुंबई में जन्मीं वर्षा दलित समुदाय से आती हैं और उनकी सामाजिक जड़ें धारावी से जुड़ी रही हैं। साल 2025 में उत्कृष्ट संसदीय प्रदर्शन के लिए उन्हें संसद रत्न पुरस्कार मिला। उनकी सक्रिय उपस्थिति और मुद्दों पर लगातार आवाज़ उनकी पहचान बनी। वर्षा गायकवाड़ का सफ़र दिखाता है कि भारतीय राजनीति में महिलाएं अब नेतृत्व की मज़बूत भूमिका निभा रही हैं। उनका संघर्ष और काम आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है।

