एक कोशिश, माया एंजेलो और सुशीला टाकभौरे की कविताओं में समानता ढूंढने कीBy Aashika Shivangi Singh 6 min read | Jan 31, 2023
‘प्रेमाश्रम’ की नज़रों से देखें तो क्या यह हमारी विफलता है कि प्रेमचंद आज भी प्रासंगिक हैं?By Rupam Mishra 7 min read | Dec 15, 2022
टिकटशुदा रुक्का: ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी व्यवस्था के भयावह स्वरूप का ज़रूरी दस्तावेज़By Rupam Mishra 8 min read | Nov 24, 2022
जाति और जेंडर की परतों को उकेरती उमा चक्रवर्ती की किताब ‘जेंडरिंग कास्ट: थ्रू ए फेमिनिस्ट लेंस’By Shweta Singh 5 min read | Nov 14, 2022
सुकीरथरानीः जातिवादी समाज की हकीकत को अपनी कविताओं में दर्ज करने वाली दलित कवयित्रीBy Heena Sonker 5 min read | Nov 9, 2022
बाबा साहब आंबेडकर की वे पांच किताबें जो सभी को पढ़नी चाहिएBy Aashika Shivangi Singh 5 min read | Oct 26, 2022
गरीबी, जातिवाद और सामंतवाद की परतों को उधेड़ती है प्रेमचंद की कहानी ‘कफ़न’By Saurabh Khare 5 min read | Sep 19, 2022
आइए जानते हैं भारतीय साहित्य जगत की कुछ प्रमुख महिला रचनाकारों के बारे मेंBy Supriya Tripathi 6 min read | Aug 19, 2022
जेंडर की अलग-अलग परतों को खोलती वी. गीता की किताब ‘जेंडर’By Aashika Shivangi Singh 6 min read | Jul 29, 2022
‘चूड़ी बाज़ार में एक लड़की’ किताब जो बताती है, “कोई लड़की संस्कृति के सामने एक दिन में घुटने नहीं टेकती है”By Pooja Rathi 5 min read | Jul 25, 2022
पितृसत्ता की परतों को समझने के लिए क्यों पढ़ी जानी चाहिए वी. गीता की किताब- ‘पैट्रियार्की’By Aashika Shivangi Singh 5 min read | Jun 22, 2022
वे पांच बेबाक लेखिकाएं जिन्होंने रूढ़िवादी समाज को आईना दिखायाBy Rubina Sheikh 4 min read | Jun 13, 2022