संस्कृतिकिताबें स्त्री और पुरुष के लिए बनाए गए नियमों की ‘मनोवृत्ति’

स्त्री और पुरुष के लिए बनाए गए नियमों की ‘मनोवृत्ति’

कहानी की शुरूआत एक सुंदर अनाम युवती से होती है जो सुबह के समय गांधी पार्क की एक बेंच पर बेखौफ गहरी नींद में सोई पाई जाती है। भारतीय संस्कृति के सभ्य समाज के लिए यह चौंका देने वाली बात होती है क्योंकि समाज में महिलाओं का पार्क में सोना वर्जित है।

हिंदी साहित्य के प्रख्यात लेखक मुंशी प्रेमचंद अपने लेखन में समय से इतने आगे थे कि उस दौर से लेकर मौजूदा समय तक में उनकी रचना सटीक बैठती है। प्रेमचंद द्वारा लिखी ऐसी ही एक कहानी है ‘मनोवृति।’ मनोवृत्ति, मानसरोवर भाग-1 में प्रकाशित हुई थी। इस कहानी में उन्होंने अपनी काल्पनिकता में समाज के बनाए ढांचे में स्त्री-पुरुष की स्थिति का जो वर्णन किया है वह हूबहू आज भी ऐसे ही हमारे समाज में मौजूद है।

प्रेमचंद ने इस कहानी में संवादों के ज़रिये एक ऐसी स्थिति को गढ़ा गया है जो पितृसत्तात्मक व्यवस्था की सोच को सामने लाती है। कहानी की मुख्य किरदार एक अनाम युवती होती है। वह अनाम युवती सुबह के समय शहर के पार्क में एक बैंच पर बेखौफ़ सोई पड़ी दिखती है। उसे देखकर अधेड़ उम्र के आदमी, युवा पुरुष और महिलाएं भी जिस तरह की कल्पनाएं और बातें करते हैं, यही कहानी मनोवृति का सार है। कहानी में दिखाया गया है कि एक युवती का पार्क में इस तरह से सोना कैसे भारतीय संस्कृति के लिए भूचाल ला देता है। 

कहानी में यह बात भी स्पष्ट रूप से सामने आई है कि पुरुष के लिए एक महिला की पूरी पहचान एक उसके चरित्र पर ही केंद्रित होती है। वह स्त्री के पूरे अस्तित्व को नकारता है। मनुष्य के रूप में उसकी पहचान को कुछ नहीं मानता है। बचपन से ही लड़के और लड़की के बीच लैंगिक भेदभाव से भरा व्यवहार किया जाता है। महिलाओं के लिए यही पितृसत्तात्मक संरचना एक संघर्षों से भरी दुनिया का निर्माण करती है। 

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कहानी की मुख्य किरदार एक अनाम युवती होती है। वह अनाम युवती सुबह के समय शहर के पार्क में एक बैंच पर बेखौफ़ सोई पड़ी दिखती है। उसे देखकर अधेड़ उम्र के आदमी, युवा पुरुष और महिलाएं भी जिस तरह की कल्पनाएं और बातें करते हैं, यही कहानी मनोवृति का सार है। कहानी में दिखाया गया है कि एक युवती का पार्क में इस तरह से सोना कैसे भारतीय संस्कृति के लिए भूचाल ला देता है। 

कहानी की शुरुआत एक सुंदर अनाम युवती से होती है जो सुबह के समय गांधी पार्क की एक बेंच पर बेखौफ गहरी नींद में सोई पाई जाती है। भारतीय संस्कृति के सभ्य समाज के लिए यह चौंका देनेवाली बात होती है क्योंकि समाज में महिलाओं का पार्क में सोना वर्जित है। इस स्थिति को देखकर पार्क में घूमनेवाले लोगों के मन में जो विचार आते हैं वह समाज के मन मन में मौजूद औरतों के प्रति रूढ़िवादी सोच को दर्शाते हैं।

सबसे पहले पार्क में सोई लड़की को देखकर युवक मुस्कुराते हैं, वृद्ध चिंता के रूप में खुद के पुरुषत्व को भी नहीं छिपा पाते हैं और मौका लगते ही युवती को देखकर उसके साथ जीवन गुजारने और प्रेम की कल्पना में लीन हो जाते हैं। इसके बाद के हिस्से में युवती को पार्क में सोया देखकर प्रतिक्रिया वहां घूमने आई दो महिलाओं की है जो उस युवती को देखकर तुरंत संस्कारों की दुहाई देना शुरू कर देती हैं। 

कहानी में उस अनाम युवती को देखकर तीनों वर्ग की जो प्रतिक्रियाएं आती हैं वे सबसे पहले उसके चरित्र पर आती हैं। किसी अजनबी युवती को पार्क में ऐसे पाकर सभी लोग सबसे पहले उसकी स्थिति का बोध एक वैश्या के रूप में करते हैं। हर कोई उसके वहां बेफ्रिक सोने के लिए उसे वैश्या मानता है। यही बात दिखाती है कि कैसे समाज में अगर कोई महिला या लड़की, पुरुषों के बनाये नियमों से परे व्यवहार करती है तो उसका चरित्रहनन किया जाता है। उसे संस्कारहीन कहा जाता है और उसे केवल एक यौन वस्तु के रूप में देखा जाता है। युवा हो या वृद्ध, पुरुष कहानी में युवती के यौन रूप की चर्चा ज़रूर करता है। उनका यह करना बताता है कि उम्र का कोई भी पड़ाव हो पुरुष के लिए स्त्री का अस्तित्व उसकी देह तक ही सीमित है और हर स्थिति में उसपर अपना अधिपत्य मानता है।

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कहानी के अंतिम संवाद के हिस्से में पार्क में घूमने आई महिलाएं जब उस सोई हुई युवती को देखती हैं तो वे पितृसत्ता द्वारा बनाई ‘अच्छी औरत’ के मापदंडों पर उस युवती की अवस्था को कोसती नज़र आती हैं। महिलाओं की स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा कर, पुरुषों द्वारा की गई बातों को दोहराने का काम किया जाता है। आधुनिकता के अलाप के साथ “महिलाओं को दायरे में रहना चाहिए,” जैसी बातों में स्त्री को स्त्री के ख़िलाफ़ खड़ा दिखाती हैं।

कहानी में पुरुषों के संवाद में महिलाओं की स्वाधीनता को गलत बताकर उसे संस्कृति भष्ट्र करना कहा गया है। मॉडनिटी का तंज कसकर युवा और वृद्ध पुरुषों ने हर स्थिति में स्त्रियों की स्वतंत्रता को गलत ठहराया है। कहानी में पुरुष संवाद के भाग में पितृसत्ता की वे गहरी बातें सामने आती हैं जिनका मतलब यह है कि औरतों के जीवन पर केवल उनका अधिकार है और उन्हें उनके द्वारा तय पैमानों के आधार पर ही व्यवहार करना चाहिए।  

इस कहानी में स्त्री की सामाजिक, सार्वजनिक स्थिति की काल्पनिकता को दर्शाकर लोगों की सोच को सामने रखा गया है। जैसे-जैसे संवाद आगे बढ़ता है उसमें युवती की मानसिक और शारीरिक स्वतंत्रता को सबसे पहले चकनाचूर किया जाता है। समाज की संरचना पर किस तरह पुरुषों का अधिपत्तय है और वह कैसे उसे बरकरार रखती है उसकी नज़र कम उम्र के युवकों और महिलाओं के बीच हुई बातों से अनुमान लगाया जा सकता है। 

इस कहानी में स्त्री की सामाजिक, सार्वजनिक स्थिति की काल्पनिकता को दर्शाकर लोगों की सोच को सामने रखा गया है। जैसे-जैसे संवाद आगे बढ़ता है उसमें युवती की मानसिक और शारीरिक स्वतंत्रता को सबसे पहले चकनाचूर किया जाता है।

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कहानी में सार्वजनिक जगह में होनेवाले लैंगिक भेदभाव के पक्ष को भी रखा गया है। कैसे पार्क पुरुषों के लिए स्वतंत्रता और मनोरंजन का एक साधन है। वहीं, एक लड़की के साथ ऐसा नहीं होता है बल्कि वह सड़कों और पार्क और बाकी सभी सार्वजनिक जगहों पर पितृसत्ता के बनाए नियमों पर ही चलती है। अगर वह सार्वजनिक जगहों पर सिमटकर नहीं रहती है तो उसके चरित्रहनन में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है।

कहानी में महिलाओं की सार्वजनिक स्थिति के साथ महिला को एक यौन वस्तु तक ही सीमित रहने वाली सोच का भी ज़िक्र किया गया है। पूरी कहानी में पुरुषों के संवाद में युवती के पार्क में होने का कारण उसका वैश्या होना माना है। वैश्या मानकर उसे अपनी यौन कल्पनाओं में शामिल करना भी दिखाया है। मनोवृति कहानी में प्रेमचंद ने स्त्री की सार्वजनिक स्थिति का ज़िक्र करके स्त्री स्वाधीनता के सवाल को उठाया था जो आज भी हमारे सामने मौजूद हैं। कहानी में दिखाई गई महिलाओं की गतिशीलता पर पहरे की स्थिति वर्तमान में भी ऐसी ही बनी हुई है। प्रेमचंद ने अपने लेखन के माध्यम से पितृसत्ता की जंजीरों में कैद स्त्री की स्थिति का ज़िक्र किया है जो समय के साथ लगातार बनी हुई है। 

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तस्वीर साभारः Buzzfeed

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