संस्कृतिकिताबें सुकीरथरानीः जातिवादी समाज की हकीकत को अपनी कविताओं में दर्ज करने वाली दलित कवयित्री

सुकीरथरानीः जातिवादी समाज की हकीकत को अपनी कविताओं में दर्ज करने वाली दलित कवयित्री

बहुत सराहनीय लघु फिल्म 'कन्नाड़ी मीन' में सुकीरथरानी की कविता 'अप्पविन न्याबागामराधि' पर आधारित थी। यहीं नहीं उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'शी राइट' में भी चित्रित किया गया हैं।

जब भी मैं जाति के बारे में सोचती हूँ, मेरे मन मे एक बेचैनी पैदा हो जाती है। जीवन के दर्दनाक अनुभव सामने आने लगते हैं। असमानता से भरे इस समाज में औरत होकर जीवन जीना बहुत मुश्किल होता है। वहीं दलित औरतों के लिए ये मुश्किलें कई गुना बढ़ जाती हैं। यह जातिगत व्यवस्था का वो कड़वापन है जिसका बार-बार सामना करना पड़ता है। कहने को वर्तमान में समय बदल रहा है लेकिन जाति वर्चस्व का सच आज भी हमारे मन से नहीं निकला हैं। जब भी मैं इस विषय के बारे में सोचती हूँ तो बेचैनी से भर उठती हूं। ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि बहुत सी बातों का सामना मुझे अपनी जाति की वजह से करना पड़ता है। पहले मैं एक दलित औरत होना छुपाती थी। मुझे ये अपशब्द जैसा लगता था, लेकिन आज मैं गर्व से कहती हूं कि मैं एक दलित औरत हूं। इस साहस और गर्व का श्रेय सुकीरथरानी जैसी महिलाओं को जाता हैं जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से दलित वर्ग में चेतना लाने का काम किया। जाति के संदर्भ को समझाने और उसके संघर्षों को सबके सामने रखा।

प्रांरभिक जीवन

सुकीरथरानी, एक भारतीय नारीवादी दलित कवयित्री हैं, जिन्हें समकालीन दलित और तमिल साहित्य में उनके योगदान के लिए व्यापक रूप से सराहा जाता हैं। सुकीरथरानी, रानीपेट जिले के गवर्नमेंट गर्ल्स हाई स्कूल में एक तमिल शिक्षक भी हैं। उन्होंने अर्थशास्त्र और तमिल साहित्य में परास्नातक की डिग्री हासिल की हैं। सुकीरथरानी एक कवयित्री के साथ-साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। वे जाति व्यवस्था और समाज में औरतों की स्थिति पर अपनी स्पष्ट आलोचनाओं के लिए भी जानी जाती हैं।

सुकरथरानी का परिवार तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के लालपेट नामक गाँव से संबंध रखता हैं। वह गांव में ही अन्य दलित परिवारों के साथ पली-बढ़ी थी। उनके माता-पिता दोंनो ने प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा भी नहीं प्राप्त नहीं की थी। उनके पिता केवल कक्षा तीन तक पढ़े हुए थे। वे अपने परिवार में सबसे पहले शैक्षिक डिग्री हासिल करने वाली बनीं। उनके पाँच भाई-बहन हैं जिसमें तीन बहनें और दो भाई है। उनके दादा जी फैक्ट्री में मज़दूरी किया करते थे। उनके पिता ने भी उनके दादा जी की तरह दैनिक मजदूरी का काम किया। उनके दादा जी गाँव में कार्यक्रमों में पराई का कार्य करते थे। एक वाद्ययंत्र बजाने का काम जिसके बाद तमिलनाडु में दलितों का नाम ‘परिया’ रखा गया था। त्योहारों या अंत्येष्टि में (परायडीथल) पराई रस्मों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। हर साल एक व्यक्ति को पराई बजाने के काम के लिए चुना जाता।

सुकीरथरानी की कविताएं पूरे तमिलनाडु में कॉलेज पाठ्यक्रम का भी हिस्सा हैं। यही नहीं उनकी कविताओं का अंग्रेजी, मलयालम, कन्नड़, हिंदी और जर्मनी भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है।

जाति के साथ बचपन के अनुभव

जब वह कक्षा 2 में पढ़ रही थी तब एक ऐसी घटना हुई जिसे वह कभी नहीं भूल सकी। उनकी कक्षा की एक लड़की ने उन्हें नारियल की कैंडी दी। तो उन्होंने भी बदले में उसके लिए एक मिठाई खरीदने की सोची। जब उन्होंने उसे वह दी तो उस लड़की ने उनका हाथ खुद से दूर कर दिया। उस समय वह बहुत आहत हो गई थी और उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। लेकिन यह क्यों हुआ इसका पता उन्हें कुछ दिनों बाद में मालूम हुआ। ऐसा व्यवहार होने की वजह उस लड़की की सवर्ण जाति थी। उन दिनों स्वर्ण समुदाय के बच्चों से कहा जाता था कि वे दलित बच्चों के साथ न घुलें मिलें।

साहित्यिक कार्य और सम्मान

सुकीरथरानी की रचनाएं कैपैत्री एन कानवु केल, इरावु मिरुगम, कामथिपू, थेंडापादा मुत्तम और अवलाई मोझीपियरथल शामिल हैं। उन्होंने हमेशा अपनी कविताओं के माध्यम से जाति व्यवस्था और इससे पीड़ित महिलाओं की दुर्दशा को उठाया है। सुकीरथरानी की कविताएं पूरे तमिलनाडु में कॉलेज पाठ्यक्रम का भी हिस्सा हैं। यही नहीं उनकी कविताओं का अंग्रेजी, मलयालम, कन्नड़, हिंदी और जर्मनी भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है।

सुकीरथरानी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका हैं। उन्होंने थेवामगल कविथूवी पुरस्कार, पुथुमाईपिठन मेमोरियल अवार्ड और पेंगल मुन्नान (महिला मोर्चा) द्वारा महिला अचीवर पुरस्कार सहित कई सम्मान मिले हैं। साल 2021 में उन्हें अमेरिका में स्थित फोरम, अमाइप्पु इलक्किया विलक्कु द्वारा 25वां पुथुमाईपीठन मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित किया गया था।

दलित जाति से ताल्लुक रखने वाली कवयित्री सुकीरथरानी ने अपनी कविता में जाति को शामिल करते हुए महिलाओं के अनुभवों को एक नया दृष्टिकोण दिया है। उनकी कविताओं में सामान्य अवस्थाओं और मुक्ति की काल्पनिक अवस्थाओं की अलग-अलग किस्में रही है। पहला गांवों में दलितों के जीवन के आत्मनिरीक्षण से संबंधित है जो सवर्ण जाति के लोगों के जानवरों के शवों को ले जाते हैं, उनका निपटान करते हैं या उनकी खाल निकालते हैं, अंतिम संस्कार के जुलूसों में ढोल पीटते हैं और अंततः मुख्यधारा के गाँव से निरंतर अलगाव और इनकार से जीवनभर अपमानित होते रहते हैं। वह अपनी कविताओं में स्पष्ट रूप से दलित जीवन और उसके संघर्ष के बारे में लिखती हैं। चाहे वह गाँव की कल्पना हो या भूमि की या लोगों की। वह कहती हैं कि मेरे गाँव के चित्र में ‘जाति का दर्द’ हमेशा मौजूद है और ‘दर्द देने वाली भूख’ भी है क्योंकि दलितों को उनकी कड़ी मेहनत के लिए इतना कम मुआवजा दिया जाता है।

सुकीरथरानी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका हैं। उन्होंने थेवामगल कविथूवी पुरस्कार, पुथुमाईपिठन मेमोरियल अवार्ड और पेंगल मुन्नान (महिला मोर्चा) द्वारा महिला अचीवर पुरस्कार सहित कई सम्मान मिले हैं।

काल्पनिक क्षेत्र में वह एक नई भाषा की तलाश करती है जो ‘दुःख का अंत कर देगी’। दुनिया की एकमात्र महिला में वह एक ऐसी महिला की कल्पना करती है, जिसके लिए ‘पुरुष पत्थर की प्रतीक्षा में बदल गए, कल्पित कल्प मुक्त होने के लिए उनके चरणों के स्पर्श से उनके अभिशाप बन गए। ‘इरावु मिरुगम (रात का जानवर) में, वह अपने शरीर के माध्यम से जाति और दलित पहचान का पता लगती हैं। सुकीरथरानी अपनी कविताओं में लड़कियों, उनके शरीर, यौनिकता और परिवार द्वारा उनपर लगाई बाधाओं पर भी खुलकर बात करती है। ‘नो एल्फाबेट इन साइटः न्यू दलित राइटिंग फ्रॉम साउथ इंडिया’ किताब में ऑटो बॉयोग्राफिकल पीस में वह लिखती हैं कि कविता और मेरे दिल के एक बीच एक प्राकृतिक रिश्ता है। 

अपने लेखन के बारें में वह बताती हैं जिस विषय पर वह लिखती हैं उसके बारे में न तो ज्यादा कविताएं थीं और न ही 1990 के दशक में लोगों ने ऐसी रचनाएं पढ़ीं थी। कमला दास और तसलीमा नसरीन से लेकर कुछ अफ्रीकी कवियों की बहुत सारी अनुवादित कविताएं पढ़ना शुरू किया था। कविताएं पढ़कर ही मुझे वंचित महिलाओं के अधिकारों के बारे में पता चला। तमिल नारीवादी कवयित्री रेवती कुट्टी से मुझे प्रेरणा मिली। इसी सब से नारीवाद विचारों की मेरे जीवन में शुरुआत हुई। पिछले दो दशक से सुकीरथरानी महिलाओं की आजादी, नारीवाद, दलित नारीवाद, राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर लिख रही हैं।

न्यू इंडियन एक्सप्रेस के लेख के अनुसार वह कहती है, पिछले कुछ वर्षों में मेरा पढ़ना बढ़ा है, मेरी समझ बड़ी है और मैंने राजनीति के बारे में ज्यादा स्पष्टता महसूस की है और क्या मैं लिखना चाहती हूं। हजारों लोग हैं जो प्यार के बारे में लिखते है। मैं इसे एक व्यक्ति के लिए प्यार तक सीमित नहीं करना चाहती, लेकिन क्या समाज के लिए प्यार नहीं है, और सामाजिक बदलाव चाहना भी तो प्यार है। आखिरकार दलित महिलाएं (किसी भी जाति की महिलाएं) होने की वजह से वे समाज में ज्यादा उत्पीड़ित हैं। महिला होने के नाते मैं दर्द को समझती हूं और समानता लाने के लिए आवाज़ बन सकती हूं।

बहुत सराहनीय लघु फिल्म ‘कन्नाड़ी मीन’ में सुकीरथरानी की कविता ‘अप्पविन न्याबागामराधि’ पर आधारित थी। यहीं नहीं उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘शी राइट’ में भी चित्रित किया गया हैं। इस फिल्म में उनके अलावा तीन अन्य तमिल कवियों को भी फीचर किया गया था। साल 2009 में सुकीरथरानी ने श्रीलंका में तमिलों के ख़िलाफ़ हिंसा के विरोध में कवियों के एक प्रदर्शन का भी आयोजन किया था। इस प्रदर्शन में बहुत से कवियों ने हिस्सा लिया था।

संदर्भः

  1. Wikipedia
  2. The wire
  3. Indian Cultural Forum

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