संस्कृतिकिताबें वे पांच बेबाक लेखिकाएं जिन्होंने रूढ़िवादी समाज को आईना दिखाया

वे पांच बेबाक लेखिकाएं जिन्होंने रूढ़िवादी समाज को आईना दिखाया

पढ़ें उर्दू साहित्य की उन पांच लेखिकाओं के बारे में जिन्होंने अपने बेबाक और नारीवादी लेखन से समाज की रूढ़िवादी सोच को आइना दिखाया।

1- इस्मत चुग़ताई

इस्मत चुग़ताई को औरतों और लड़कियों की अनकही समस्याओं, भावनाओं और दुख को उर्दू कहानियों के ज़रिये उठाने के लिए जाना जाता है। इस्मत चुग़ताई 21 अगस्त 1915 में उत्तर प्रदेश के बदायूं में नुसरत खानम और मिर्ज़ा कासिम बेगम चुग़ताई के घर पैदा हुई। साल 1942 में उनकी कहानी ‘लिहाफ़’ छपने के बाद उन्हें नफ़रत और प्यार दोंनो ही मिला। लिहाफ़ में उन्होंने दो महिलाओं के समलैंगिक संबंधों के बारे में लिखा है। लिहाफ़ के छपने के बाद लोगों ने इस्मत पर अश्लीलता फैलने का इल्ज़ाम लगाया और लाहौर हाई कोर्ट में उनके ख़िलाफ़ मुकदमा भी चला।

हिलता हुआ 'लिहाफ़' यौनिकता के पहलूओं की कहानी

उन्होंने ‘लिहाफ़’ में केवल महिला समलैंगिकता पर अपने सुझाव दिए थे। अश्लील लेखन का इल्ज़ाम लगने के इस मुक़दमे के बाद जनता और मीडिया दोनों की नज़र उनके लेखन की ओर खींची चली आई और उन्हें अश्लील लेखिका का तमगा दे दिया गया। इस्मत चुग़ताई का मानना था कि लिहाफ़ ने उन्हें इतनी बदनामी दी है कि यह उनके सभी कामों पर भारी पड़ गई। इस कहानी के बाद उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह लिहाफ़ के बोझ के नीचे दब गया। साहित्यिक यथार्थवाद की विशेषता वाली शैली के साथ, चुग़ताई ने खुद को बीसवीं शताब्दी के उर्दू साहित्य में एक महत्वपूर्ण आवाज के रूप में स्थापित किया, और 1976 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया ।

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2- किश्वर नाहिद

तस्वीर साभार: DAWN

किश्वर नाहिद एक उर्दू शायरा और कवयित्री हैं जो अपने बेबाक लेखन के लिए मशहूर हैं। किश्वर साल 1940 में बुलंदशहर, भारत में पैदा हुई थीं। हालांकि, साल 1949 में अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चली गईं। किश्वर उस वक़्त अपना मुल्क छोड़कर गई जब भारत और पाकिस्तान बंटवारे की आग में जल रहा था, दोंनो तरफ के लोग, ख़ासकर औरतों हिंसा का ,सामना कर रही थीं। किश्वर को ऐसे वक़्त में तालीम हासिल करने के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने घर पर पढ़ाई की और पत्राचार के ज़रिये हाई स्कूल डिप्लोमा हासिल किया। इसके बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से अपनी एमए की डिग्री हासिल की। उन्होंने कविताओं के कुल 12 वॉल्यूम लिख डाले। उनकी कविताएं भारत और पाकिस्तान दोंनो ही देशों में प्रकाशित हुई। उनकी नज़्मों का अंग्रेजी और स्पेनिश में अनुवाद किया गया है। साल 1991 में उनकी मशहूर नज़्म “हम गुनहगार औरतें” द विमेंस प्रेस द्वारा लंदन में प्रकाशित की गई। उनके लेखन में नारीवादी विचारधारा की झलक हमेशा दिखाई दी।

3. अदा ज़ाफरी

तस्वीर साभार: Wikipedia

अदा ज़ाफरी उर्दू में कविताएं लिखनेवाली पहली महिला कही जाती हैं। उनकी पैदाइश 22 अगस्त 1925 में उत्तर प्रदेश के बदायूं ज़िले में हुई थी। अदा ज़ाफरी भी एक रूढ़िवादी समाज का हिस्सा थीं जहां औरतों को आज़ाद रहने, अपनी राय ज़ाहिर करने की इजाज़त नहीं थी। लेकिन उन्होंने बिना डरे खुद को और खुद के विचारों को ज़ाहिर किया। उन्होंने महज़ 12 साल की उम्र से ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं शायद इसीलिए उन्हें ‘उर्दू कविता की प्रथम महिला’ की मान्यता दी गई थी। वह अख़्तर शीरानी और ज़फर अली ख़ान असर लखनवी जैसे महान कवियों को अपनी कविताएं सुनाती थीं और अपनी गलतियों को सुधारती थी। शादी के बाद अदा अपने पति के साथ पाकिस्तान चली गईं। उनके पति खुद भी एक साहित्यकार थे। उर्दू ज़ुबान को बढ़ावा देने के लिए अदा ने अपनी पूरी ज़िंदगी काम किया। अदा ज़ाफरी के लेखन में हमेशा लैंगिक समानता का दृष्टिकोण मौजूद रहा। उन्होंने औरतों के साथ हो रहे भेदभाव, औरतों को हमेशा एक वस्तु की तरह देखना, नारीवाद जैसे कई ज़रूरी मुद्दों पर भी काम किया।

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4. डॉ. राशिद जहां

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राशिद जहां औरतों की बातों को बेबाक अंदाज़ में समाज के सामने अपने शब्दों के ज़रिये लानेवाली एक बेख़ौफ़ औरत थीं। इनकी पैदाइश 5 अगस्त 1905 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुई थी। उर्दू लेखिका, कथाकार और सामाजिक कार्यकर्ता राशिद ने अपने स्त्रीवादी विचारों को समाज के सामने बुलंदी के साथ पेश किया। राशिद के वालिद साहब भी एक लेखक थे तो राशिद ने काफी छोटी उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। लेकिन राशिद पहली बार चर्चा में तब आई जब उनकी कहानियों और नाटकों का संग्रह ‘अंगारे’ साल 1932 में प्रकाशित हुआ, क्योंकि उन्होंने अपनी कहानियों और नाटकों में तत्कालीन समाज में चल रहे मुस्लिम कट्टरपंथ तथा रूढ़िवादी विचारों को चुनौती दी थी। लेकिन जल्दी ही ब्रिटिश शासन ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। राशिद जहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और प्रगतिशील लेखक संघ की सक्रिय कार्यकर्ता भी रही थीं।

5. फ़हमीदा रियाज़

तस्वीर साभार: DAWN

फ़हमीदा रियाजॉ उर्दू साहित्य की एक मशहूर शायरा और कथाकार थीं। फ़हमीदा जो कि एक मानवाधिकार कार्यकर्ता भी थीं, वह अपनी हर बात को बुलंद आवाज़ और बेबाक होकर कहती थी। इनकी पैदाइश 28 जुलाई 1946 में मेरठ, उत्तर प्रदेश में हुई थी। बंटवारे के बाद वह पाकिस्तान चली गई। उन्होंने कई सारी शायरियां और कहानी लिखीं और लगभग सभी विषयों पर लिखीं। लेकिन फहमीदा अपने स्त्रीवादी और सत्ता विरोधी विचारों के लिए मशहूर थीं। इस पितृसत्तात्मक समाज को उन्होंने अपने लेखन के ज़रिये चुनौतियां दीं। जब उन्होंने सत्ता, मर्दवादी सोच आदि के ख़िलाफ़ लिखना शुरू किया तो उन पर कई सारे मुकदमे दायर किए गए। उन पर भी अश्लीलता फैलने के आरोप लगे गए। फिर भी वह इन सब बिना डरे हमेशा अपनी बात समाज के सामने अपनी शायरी के ज़रिए लाती रहीं। जिया-उल-हक़ के शासन के दौरान फ़हमीदा ने सबसे ज्यादा चुनौतियां झेलीं। यहां तक कि उन्हें और उनके परिवार को सात सात भारत में शरण लेनी पड़ी थी। लेकिन इन मुश्किलों ने फ़हमीदा की सोच और बेबाक लेखन को नहीं बदला।

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