इंटरसेक्शनलजेंडर उन्नाव बलात्कार : क्योंकि वह इंसाफ मांग रही थी इसलिए निशाने पर थी

उन्नाव बलात्कार : क्योंकि वह इंसाफ मांग रही थी इसलिए निशाने पर थी

उन्नाव केस इस बात को परिलक्षित करती है कि धन-बल से कैसे न्यायिक प्रक्रिया का गला घोंटा जा सकता है और कोर्ट के बाहर न्याय कैसा गौण हो जाता है।

भारत को दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देशों में शामिल किया गया है| इस खबर को हम सभी ने अखबारों और टीवी चैनलों में देखा-पढ़ा| लेकिन उसपर गौर करना ज़रूरी नहीं समझा| क्योंकि जब तक कोई घटना हमारे सामने न हो हम हर खबर या चेतावनी को दूर का ही मानते है|

बलात्कार महिलाओं के विरूद्ध होने वाली ऐसी हिंसा है जो हमारे भारतीय समाज में दिन दोगुनी और रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ रही है| इसे रोकने के लिए सरकार योजनाओं के नामपर ढ़ेरों प्रयास भी कर रही है, कहीं महिलाओं के हेल्पलाइन लायी जा रही है तो कहीं कवच योजना के नामपर उन्हें जागरूक करने का काम कर रही है| लेकिन अपने किसी भी प्रयास में सरकार ने पुरुषों से बात करना ज़रूरी नहीं समझा है| सारे सुरक्षा-पाठ उन्होंने महिलाओं के लिए ही तैयार किये हैं| इसी बीच एक बलात्कार की घटना का वो पहलू हमारे सामने आता है, जिसने इन सभी प्रयासों को मिटटी जैसा साबित कर दिया| जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ उन्नाव बलात्कार केस का, जिसमें मौजूदा सरकार के विधायक के खिलाफ आव़ाज उठाने वाली पीड़िता को मौत की नींद सुलाने की साजिश की गयी|

पिछले  साल एक रेप  पीड़िता ने उत्तर प्रदेश  के मुख्यमंत्री के आवास के सामने अपने इंसाफ के लिए खुद को खत्म करने की कोशिश की थी। ये खबर हमेशा की तरह मीडिया में आई-गयी खबर में से थी|

जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ उन्नाव बलात्कार केस का, जिसमें मौजूदा सरकार के विधायक के खिलाफ आव़ाज उठाने वाली पीड़िता को मौत की नींद सुलाने की साजिश की गयी|

एक एम. एल. ए  एक नाबालिग लड़की का बलात्कार करता है और बहुत दिनों तक यह खबर मीडिया में नहीं आती है। इंसाफ की राह देखते-देखते पीड़िता पुलिस स्टेशन पहुँचती है और वहाँ पर भी उसकी बात अनसुनी कर दी जाती है, विवश होकर वह मुख्यमंत्री आवास पहुँचकर इंसाफ की गुहार लगाती है, तब यह खबर मीडिया के ध्यान को आकर्षित करती है| तरह –तरह की रिपोर्टिंग के अनुसार यह पाया जाता है कि पीड़िता और उसके परिवार की आवाज को बहुत दिनों से दबाया जा रहा था। कई सूत्रों के अनुसार पीड़िता के पिता और चाचा ने इस घटना के खिलाफ आवाज उठाने पर उसके पिता को  एम. एल. ए  के गुर्गों से बुरी तरह पीटा जाता है और आर्म्स ऐक्ट के झूठे इल्ज़ामों के तहत उन्हें कारावास में भेज दिया  जाता है। पीड़िता के चाचा पर भी कई तरह के झूठे इल्जाम लगाकर उन्हें भी जेल में डाल दिया जाता है । बाद में पुलिस की अनदेखी या एम. एल. ए के उकसाए जाने पर लड़की के पिता को बुरी तरह जेल के अंदर पीटा भी गया  और उनकी मौत न्यायिक हिरासत में हो जाती है। उसके चाचा आज भी झूठे इल्ज़ामों के तहत जेल में सजा काट रहे हैं। यह सारी घटना इस बात को इंगित करती है कि जो भी लोग इंसाफ मांगने के लिए इस मुद्दे में सक्रिय थे उन्हें एक – एक करके दबाने की कोशिश की गई ।

भारत को दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देशों में शामिल किया गया है|  

कहा जाता है कि देश की न्यायिक प्रक्रिया में हम सभी को समान अधिकार मिले हैं, लेकिन उन्नाव केस से हम अंदाजा लगा सकते हैं कि असल ज़िंदगी में न्यायिक प्रक्रिया के बहुत स्वरूप हैं। यह समान रूप से हम सभी तक नहीं पहुँचती है । पिछले दिनों से यह खबर आ रही है कि एक सड़क दुर्घटना में पीड़िता और उसके वकील बुरी तरह घायल हो गए हैं और रेप  केस के दो अहम गवाह औरेतें जो की पीड़िता की चाची थीं, उनकी मौत हो गई है। खबरों में आया है कि जिस ट्रक से पीड़िता की कार क्षतिग्रस्त हुआ उस ट्रक के नंबर प्लेट पर काली ग्रीस पुती हुई थी। इन तमाम घटनाओं के बावजूद भी पुलिस व जांच अधिकारी इस जांच में जुटे हुए हैं  कि सड़क दुर्घटना एक षडयंत्र है या एक दुर्घटना जो कि इस बात के संदेह को बल देती है कि कहीं न कहीं इस मामले मे ढिलाई बरती जा रही है।

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इन सारी घटनाओं का तार आपस में जुड़ा हुआ है, फिर भी न जाने क्यों इसको बस एक सड़क दुर्घटना का नाम दिया जा रहा  है । घटनाओं का यह क्रम साफ-साफ बताता  हैं कि एम. एल. ए और उसके गुर्गों का एक ही मकसद था कि पीड़िता, गवाह और उसके वकील को मार दिया जाए ताकि इस केस को रफादफा किया जा सके। उन्नाव केस इस बात को परिलक्षित करती है कि धन-बल से कैसे न्यायिक प्रक्रिया का गला घोंटा जा सकता है और कोर्ट के बाहर न्याय कैसा गौण हो  जाता है। यह घटना एक फिल्म की कहानी नहीं बल्कि समाज की एक कड़वी हकीकत है कि हजारों निर्भया और आसिफ़ा कुर्बान हो जाती हैं और कानूनी परिवर्तन के बावजूद भी एक पीड़िता को अपने न्याय के लिए न जाने कितने तरीकों से संघर्ष करने पड़ते हैं। इसके बावजूद भी उसे न्याय लेने से रोक दिया जाता है।

इस सदी में तमाम सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव आयें लेकिन औरतों के विरूद्ध हिंसा उसी तरह से ज़ारी है। औरतें चारहदीवारी के बाहर हो या अंदर लेकिन अपने आप को उन लालचीं नज़रों से नहीं बचा पाती हैं जो उनके शरीर को मात्र अपनी वासना का साधन समझते हैं। यह सवाल बेहद गंभीर है कि आखिर कब तक औरतों कि इज्जत नीलाम की जाती रहेगी और वह न्याय के लिए दर-दर कि ठोकरें खातीं रहेंगी। धन बल के जोर पर एक औरत के आवाज को दबाया जाता है और उसे मारने की साजिश रची जाती है। एम. एल. ए सेंगर और उसके लोगों ने शर्मनाक साजिश से आज फिर न्याय को टक्कर देती हुई दिखाई दे रही है। महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजना आसान जान पड़ता है लेकिन अपने समाज में उनकी सुरक्षा करना मुश्किल लगता है। अंतिम सवाल यही है कि उन्नाव केस में कब तक पीड़िता को न्याय मिलेगा और न्याय मिलने तक वह जीवित रह भी पाएगी या नहीं।

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यह लेख ऋतु और विकाश ने लिखा है जो दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं|

तस्वीर साभार : ratopati

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