इंटरसेक्शनल आइए पीरियड्स पर चर्चा करें और मिथ्य तोड़े !

आइए पीरियड्स पर चर्चा करें और मिथ्य तोड़े !

पीरियड्स पर बात करने के लिए खुद ही हिचक को तोड़ना होगा और पीरियड्स को लेकर जागरूकता फैलाने वाली मुहिमों से जुड़ना होगा।

हर एक लड़की अपने एक निश्चित उम्र में पीरियड्स के अनुभव से गुज़रती है। कभी उसके अनुभव यादगार होते हैं तो कभी इतने भयावह कि उसे याद करना ही ज़िंदगी से बेमानी लगने लगती है। पीरियड के दर्द कई लड़कियों और महिलाओं के लिए असहनीय होते हैं क्योंकि एक तरफ तो दर्द से शरीर टूटता है, वहीं दूसरी तरफ काम को लेकर भी परेशानियां बनी रहती है। 

महिला कोई भी हो, हर एक महिला कामकाजी ही होती है। भले वह घर के काम करे या बाहर के, काम को आप बांंट सकते हैं मगर उसमें लगे परिश्रम को नहीं क्योंकि हर काम, काम होता है। हर महिला अपने पीरियड्स में भी कार्य करती है। कहीं-कहीं महिलाओं को ऑफिस में दो दिन की छुट्टी मिलती है ताकि वह पीरियड के दौराम आराम कर सके मगर घर पर अनेक महिलाएं बताती तक नहीं हैं कि उन्हें माहवारी हुई है। कई घर की हालत ऐसी होती है कि घर वालों को तब पता चलता है, जब महिलाएं सुबह की आरती नहीं किया करती हैं। इससे यह बात साफ है कि महिलाएं अपनी परेशानी कितनी आसानी से छुपा लिया करती हैं। वे दर्द में भी काम करते रहती हैं। 

वहीं अगर ऑफिस जाने वाली महिलाओं की बात करें तो हम पाएंगे कि महिलाएं इन दो दिनों में थोड़ा ही आराम कर पातीं हैं अगर महिला को अपने लिए वक्त निकालना आता है, तब वह अपने लिए वक्त निकालकर आराम को तवज्जो देंगी मगर थोड़ी-सी भी लापरवाही अगर आई तब वे अपने स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ कर देती हैं। ऐसे में उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अब बात करते हैं ऑफिसों में महिलाओं के लिए पीरियड्स के वक्त कैसा माहौल हुआ करता है। अनेक सरकारी संस्था महिलाओं को पीरियड्स के दौरान छुट्टी दिया करती है ताकि महिलाएं आराम कर सकें। कुछ प्राइवेट संस्था भी हैं, जो महिलाओं को छुट्टी दिया करते हैं मगर इसके साथ ही कुछ कार्यस्थलों का माहौल उतना अच्छा नहीं होता, जितना होना चाहिए। 

एक अनुभव है, जो मेरी एक दोस्त ने मुझसे साझा किया था। वह एक प्राइवेट कंपनी में काम करती है, जहां पीरियड्स पर कुछ लोग जोक किया करते हैं। साथ ही जब किसी लड़की को पीरियड्स होता है और वह दर्द के कारण थोड़ी शांत हो जाती है, इस पर भी लोग चुटकी लेना शुरु कर देते हैं, जिससे वहां ठहरना ही मुश्किल हो जाता है।  इस तरह से आज भी कुछ कंपनियों के कुछ कर्मचारी ऐसी हरकत करते हैं, जो निंदनीय है। घर पर भी अधिकांश महिलाएं पीरियड्स के वक्त अपना ख्याल नहीं रखतीं, जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बीमारियां अपने पैर पसारने लग जाती हैं, जिसमें से थकान, खून की कमी सबसे आम है। ऐसे भी पीरियड्स के वक्त यह समस्या आम हो जाती है, जिसपर ध्यान नहीं दिया जाए तो आगे चलकर यह गंभीर रुप धारण करने से भी नहीं चूंकती है। 

पीरियड्स पर बात करने के लिए खुद ही हिचक को तोड़ना होगा और पीरियड्स को लेकर जागरूकता फैलाने वाली मुहिमों से जुड़ना होगा।

पीरियड्स पर पहले बात तक नहीं होती थी लेकिन बदलते परिवेश और लोगों की बदलती सोच ने इसमें कुछ सकारात्मक बदलाव लाए हैं। पीरियड्स पर बन रही फिल्मों और जागरूकता अभियान ने लोगों को इसके प्रति जागरूक किया है कि पीरियड एक बीमारी नहीं है बल्कि एक बायोलॉजिकल प्रोसेस है। जिसके बारे में हर लड़की को मालूम होना चाहिए और उससे जुड़ी तमाम चीजों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। हम हमेशा देखते हैं कि लड़कियों में जानकारी के अभाव के कारण अनेकों समस्याएं हो जाती हैं कभी-कभी लड़कियां खुद डिप्रेशन की अवस्था में चली जाती हैं कि उन्हें यह क्या हो गया है?

और पढ़ें : #MyFirstBlood: पीरियड से जुड़ी पाबंदियों पर चुप्पी तोड़ता अभियान

हम देख सकते हैं इस उदाहरण से कि पीरियड से संबंधित जागरूकता की कमी अभी भी बरकरार है हालांकि कुछ लोगों ने इस चुप्पी को तोड़कर इस विषय में काम करना शुरू किया है जो बहुत सराहनीय है क्योंकि इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए लोगो को हिम्मत की सख्त जरूरत होती है क्योंकि लोग इन मामलों को आज भी दकियानूसी नजरों से देखते हैं उन्हें पीरियड्स सिर्फ परेशानी लगती है। कई सरकारी स्कूलों में पीरियड से संबंधित जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं ताकि लड़कियों को इसकी जानकारी हो। विभिन्न सरकारी स्कूलों में लड़कियों को पैड के लिए भी पैसे दिए जाते हैं ताकि वह पीरियड्स के समय स्वच्छ रह सके और हर तरह की बीमारी से दूर रह सके जो उन्हें गंदे कपड़े आदि लेने से हो जाती है। 

प्राइवेट स्कूलों में भी इस विषय पर जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं ताकि वहां भी लड़कियों को जागरूक किया जा सके क्योंकि लोगों को लगता है कि प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे पहले से बहुत ही ज्यादा शिक्षित होते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। वहां के भी अधिकांश बच्चों में जागरूकता का अभाव होता है और वह अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए कभी-कभी गलत कदम भी उठा लेते हैं, जो उनके लिए और समाज के लिए बिल्कुल सही नहीं होता है। 

पीरियड्स पर बात करने के लिए खुद ही हिचक को तोड़ना होगा और पीरियड्स को लेकर जागरूकता फैलाने वाली मुहिमों से जुड़ना होगा और इससे प्रोत्साहित भी करना होगा। इन मुहिमों और जागरूकता अभियान से ही लोगों में एक सकारात्मक परिवर्तन आएगा। साथ ही सरकार को भी इस दिशा में अपने कदम बढ़ाने होंगे ताकि वर्कप्लेस में काम करने वाली महिलाओं को पीरियड्स के समय सुविधा प्राप्त हो। साथ ही घर से और घर में काम करने वाली महिलाओं को भी पीरियड्स के समय हर प्रकार की सुविधा मिले इसके लिए घर में रहने वाले लोगों को जागरूक रहना होगा। 

और पढ़ें : ‘माहवारी स्वच्छता दिवस’ पर जब बात निकले तो दूर तल्ख़ जाए – क्योंकि अभी बहुत कुछ बदलना बाक़ी है


तस्वीर साभार : unfpa

संबंधित लेख

Skip to content