इंटरसेक्शनल कुयिली : दक्षिण भारत की दलित वीरांगना| #IndianWomenInHistory

कुयिली : दक्षिण भारत की दलित वीरांगना| #IndianWomenInHistory

कुयिली वह पहली दलित महिला थी जिसने सेनापति के तौर पर अंग्रेज़ों के खिलाफ़ युद्ध किया। वह भारतीय इतिहास की सबसे महान वीरांगनाओं में से एक है।

भारतीय इतिहास में महिलाओं का योगदान अक्सर भुला दिया जाता है। हमारे इतिहास के शूरवीर योद्धाओं और शासकों की जब भी बात होती है हम अधिकतर पुरुषों के नाम ही याद रखते हैं। महिलाएं खासकर दलित और आदिवासी महिलाएं जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम भूमिका निभाई थी उनमें से एक या दो को छोड़कर बाकियों के नाम तक हम नहीं जानते। इसलिए ज़ाहिर है कि हम यह नहीं जानते कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ जंग छेड़नेवाली पहली भारतीय एक औरत थी। तमिलनाडु के शिवगंगा की रानी वेलु नचियार (1730-96)। हम यह भी नहीं जानते कि उनके लिए यह कर पाना असंभव होता अगर उनके साथ एक और वीरांगना न लड़ी होती। यह वीरांगना थी उनकी सेनापति, अंगरक्षक और खास सहेली-भारत की पहली दलित महिला सेनापति- कुयिली। 

कुयिली का बचपन 

कुयिली का जन्म तमिलनाडु के शिवगंगा के एक गांव में हुआ था। उसके पिता पेरियमुदन और मां रकू किसान थे और ‘अरुंधतियार’ जाति से तालुक्क रखते थे, जो तमिलनाडु की एक अनुसूचित जाति है। कुयिली की मां रकू अपने साहस और ताकत के लिए पूरे गांव में मशहूर थी। कुयिली के पैदा होने के कुछ ही समय बाद खेतों मे घुस आए एक पागल सांड से लड़ते हुए रकू की मृत्यु हो गई। 

पत्नी के चले जाने के बाद पेरियमुदन बहुत आहत हुए और बेटी के साथ अपना घर छोड़कर शिवगंगा की राजधानी में आ गए, जहां रानी वेलु नचियार का शासन था। यहां वे मोची का काम करके अपना गुज़ारा करने लगे और छोटी कुयिली को उसकी मां की वीरता की कहानियां सुनाकर बड़ा करने लगे। पेरियमुदन जल्द ही शाही मोची बन गए और रानी के लिए जूते बनाने लगे, जिसकी वजह से उन्हें और कुयिली को रोज़ महल में आने-जाने की अनुमति थी। इस तरह रानी वेलु नचियार कुयिली से रोज़ मिलने लगी और दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई। 

रानी की अंगरक्षक कैसे बनी कुयिली 

बड़ी होते-होते कुयिली अपनी मां जैसी साहसी और ताकतवर बनती गई। उसने कई तरह के अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखे और कई अलग-अलग युद्ध कलाओं में पारंगत हो गई। अब वह रानी के साथ रहने लगी थी और उनकी सबसे करीबी इंसान बन चुकी थी। इसी तरह कई बार कुयिली ने रानी की जान भी बचाई। एक रात जब रानी सो रही थी तो एक हत्यारा उनके शयन कक्ष में घुस आया और उन्हें मारने की कोशिश की। कुयिली भी वहीं सो रही थी और वह उस हत्यारे से लड़कर रानी की जान बचाने में सफल हुई। ऐसा करते हुए वह खुद बुरी तरह से घायल हुई। जब रानी की नींद टूटी और उन्हें सब पता चला, उन्होंने अपनी साड़ी फाड़कर कुयिली की मरहम-पट्टी की। एक और बार कुयिली को पता चला कि उसके अपने गुरु रानी को मारने का षड्यंत्र कर रहे हैं तो इस बात की खबर लगते ही उसने खुद अपने गुरु की हत्या कर दी। यह देखकर रानी वेलु नचियार अत्यंत प्रभावित हो गई और उन्होंने कुयिली को अपना खास अंगरक्षक घोषित कर दिया।

रानी वेलु नचियार से कुयिली की करीबी की बात ब्रिटिश शासकों तक पहुंच गई। वे चाहते थे कि रानी पर हमला और शिवगंगा की राजधानी पर कब्ज़ा करने में कुयिली उनकी मदद करे। उन्होंने पूरी कोशिश की कुयिली को अपने साथ शामिल करने की, पर वह टस से मस न हुई।

सेनापति कुयिली

रानी वेलु नचियार से कुयिली की करीबी की बात ब्रिटिश शासकों तक पहुंच गई। वे चाहते थे कि रानी पर हमला और शिवगंगा की राजधानी पर कब्ज़ा करने में कुयिली उनकी मदद करे। उन्होंने पूरी कोशिश की कुयिली को अपने साथ शामिल करने की, पर वह टस से मस न हुई। लालच और धमकियां देकर उन्होंने कुयिली को अपने साथ मिलाने की बहुत कोशिश की पर वह अपनी बात पर अड़ी रही। जब सारी कोशिशें नाकाम हुईं, ब्रिटिश सेना ने शिवगंगा के दलित समुदाय पर हल्ला बोल दिया। निहत्थे दलितों को दिनदहाड़े बेरहमी से काटा जाने लगा ताकि अपने समुदाय के लोगों की हालत देखकर कुयिली अंग्रेज़ों से हाथ मिला ले।

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जब रानी को यह बात पता चली, उन्होंने कुयिली को अपनी सेना के महिला पलटन की सेनापति बना दिया ताकि वह अपने लोगों की रक्षा के लिए ब्रिटिश ताकतों के ख़िलाफ़ लड़ सके। कुयिली इतिहास में पहली दलित महिला बनी जिसने सेना का नेतृत्व किया हो। अपने साहस और शौर्य के लिए उसकी सेना में उसे ‘वीरतलपति’ (वीर नेता) और ‘वीरमंगई’ (वीरांगना) जैसे नामों से जाना जाने लगा।

18वीं सदी के दूसरे भाग में रानी वेलु नचियार ने मैसूर के टीपू सुल्तान, उनके पिता हैदर अली और शिवगंगा के मरुदु पांडियर भाईयों के साथ शामिल होकर ब्रिटिश शासकों के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी। सेना के महिला पलटन के नेतृत्व में थी कुयिली और सेना में कुयिली के पिता पेरियमुदन भी शामिल थे। मक़सद था शिवगंगा किले को अंग्रेज़ों के कब्ज़े से मुक्त करवाना, क्योंकि यहीं से वे शिवगंगा के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण कर रहे थे। शिवगंगा किला हमेशा ब्रिटिश सैनिकों से घिरा रहता था और किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। पूरे साल में सिर्फ़ एक ही दिन के लिए शिवगंगा किला बाहरवालों के लिए खुलता था। नवरात्रि के आखिरी दिन, जब महिलाओं को विजयादशमी की पूजा करने के लिए किले के अंदर देवी राजराजेश्वरी अम्मा के मंदिर में जाने की अनुमति थी। सेनापति कुयिली ने इसी मौके का फ़ायदा उठाया और इसके आधार पर एक नई रणनीति बनाई।

1780 साल में विजयादशमी के दिन कुयिली अपनी पूरी पलटन के साथ शिवगंगा किले में घुस गई। पलटन की सारी महिलाएं भक्तों के भेष में थी और अपनी टोकरियों में उन्होंने फूल और प्रसाद के साथ अपने शस्त्र छिपाए थे। अंदर जाते ही कुयिली किले के उस कमरे में चली गई जहां अंग्रेज़ों के सारे हथियार रखे हुए थे। इसके बाद उसने वह किया जिसे आज की भाषा में ‘सुसाईड बॉम्बिंग’ कहते हैं।

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कुयिली ने पहले ही अपनी सैनिकों से कहकर अपने शरीर पर बहुत सारा तेल और घी डलवा लिया था। कमरे में पहुंचते ही उसने अपने हाथ में लिए दीपक से खुद को आग के हवाले कर दिया। आग से जलती हुई कुयिली ने हथियारों पर छलांग लगाई और सारे हथियारों के साथ उसका शरीर भी एक पल में भस्म हो गया। भारतीय इतिहास में पहली बार किसी ने हमले का यह तरीका अपनाया था।

अंग्रेज़ सैनिक वैसे भी युद्ध के लिए तैयार नहीं थे और सारे हथियार ध्वंस हो जाने के बाद उनके पास आत्मरक्षा का कोई विकल्प नहीं था। रानी वेलु नचियार की सेना ने उन्हें आसानी से हरा दिया और शिवगंगा किले पर जीत हासिल कर ली। अपने असाधारण साहस और बलिदान के लिए कुयिली भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण नाम है। साल 2013 में तमिलनाडु की सरकार ने उसकी स्मृति को समर्पित एक स्मारक बनवाया था। दुर्भाग्य से तमिलनाडु के बाहर बहुत कम लोग कुयिली के बारे में जानते हैं। हमारे इतिहास में महिलाओं, ख़ासकर दलित महिलाओं का अमूल्य योगदान रहा है। हमें ज़रूरत है इन सभी ऐतिहासिक चरित्रों के बारे में पढ़ने और जानने की। इन्हें इतनी आसानी से भुला दिया नहीं जा सकता।

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तस्वीर साभार : Feminism In India

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