समाजकानून और नीति लव जिहाद के बहाने पितृसत्तामक मूल्‍यों को और मज़बूत करने की हो रही है कोशिश

लव जिहाद के बहाने पितृसत्तामक मूल्‍यों को और मज़बूत करने की हो रही है कोशिश

सोचने वाली बात यह भी है कि ऐसा कब और कैसे हुआ कि महिला के इस फैसले से कि वह किसके साथ अपना जीवन गुज़ारना चाहती है, इससे परिवार और कौम की इज्जत चली जाती है। हमें यहां गहराई से देखें तो समझ सकते हैं कि महिला की इज्जत उसके स्वतंत्र निर्णय लेने से जुड़ी हुई नहीं है बल्कि उसके शरीर और यौनिकता से जुड़ी हुई है।

लव जिहाद के बारे में यह अवधारणा बनाई गई है कि ‘लव जिहाद के ज़रिये मुस्लिम पुरुष हिंदू समुदाय की महिलाओं से प्रेम का स्वांग रचाकर उनका धर्म परिवर्तन करवाते हैं। यह हिंदू समाज की जनसंख्या को कम करने के लिए शुरू किया गया एक जिहाद है।’ लव जिहाद की अवधारणा पहली बार साल 2009 में केरल और कर्नाटक में व्यापक धर्मांतरण के दावों के साथ भारत में राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आई। भले ही लव जिहाद आज एक नया शब्द हो लेकिन इसकी जड़ें हम 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश भारत में भी देख सकते हैं जहां पर आर्य समाज ने ‘बेटियों की लूट’ या ‘हिंदू स्त्री की लूट’ जैसे नारे लगाए थे।

वर्तमान में लव जिहाद के खिलाफ बीजेपी शासित कई राज्य की सरकारों ने लव जिहाद को लेकर कानून बनाने की बात कही है। उत्तर प्रदेश में इस कानून को मंज़ूरी भी दे दी गई है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ‘लव जिहाद’ को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा और कहा है, “यह शब्द देश को बांटने और सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए गढ़ा गया है। शादी-विवाह व्यक्तिगत आज़ादी का मामला है जिस पर लगाम लगाने के लिए कानून बनाना पूरी तरह से असंवैधानिक है और यह किसी भी अदालत में टिक नहीं पाएगा। प्रेम में जिहाद का कोई स्थान नहीं है।” इस बीच, हाल ही में इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय ने एक अहम फैसले में कहा कि जीवनसाथी चुनने का अधिकार संवैधानिक है और यह जीवन और निजी स्‍वतंत्रता के अधिकार में निहित है। जबकि लव जिहाद संविधान के अनुच्‍छेद 21 के तहत मिले मनपसंद जीवनसाथी चुनने के अधिकार के खिलाफ है।

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अंतर-धार्मिक प्रेम और विवाह एक मुश्किल और चुनौतीपूर्ण फैसला होता है क्‍योंकि ये पितृसत्तात्मक समाज के अलग-अलग रूढ़िवादी परंपराओं और रीति-रिवाजों को चुनौती देता है। साथ ही साथ यह धार्मिक कट्टरपंथियों के विचारों और सोच के भी ख़िलाफ हैं। इस तरह की घटनाओं या मामले से उन्‍हें ‘खतरा’ अक्सर चली आ रही सदियों पुरानी रूढ़ियों पर महसूस होता है। भारत में कट्टरपंथी लोग विशेष रूप से प्रेम की अभिव्यक्ति के चारों ओर आतंक पैदा करने का एक माहौल का निर्माण करते हैं, चाहे वह वेलेंटाइन डे हो, समलैंगिक प्रेम संबंध या अंतरजातीय/अंतर-धार्मिक प्रेम संबंध हो, इन्‍हें वे अपनी ‘परंपराओं और संस्कृति’ के ख़िलाफ़ मौजूद सबसे बड़े खतरों के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

सोचने वाली बात यह भी है कि ऐसा कब और कैसे हुआ कि महिला के इस फैसले से कि वह किसके साथ अपना जीवन गुज़ारना चाहती है, इससे परिवार और कौम की इज्जत चली जाती है। हमें यहां गहराई से देखें तो समझ सकते हैं कि महिला की इज्जत उसके स्वतंत्र निर्णय लेने से जुड़ी हुई नहीं है बल्कि उसके शरीर और यौनिकता से जुड़ी हुई है।

वर्तमान संदर्भ में लव जिहाद के नाम पर मौजूदा राजनीतिक माहौल में एक महिला के शरीर, उसकी सोच, उसके विचार को पहले की तुलना में अधिक आक्रामक तरीके से सांप्रदायिक सीमाओं को तेज करने का एक प्रतीक बन गया है। हिंदू समूहों के लिए यह कल्पना करना भी नामुमकिन है कि हिंदू महिलाएं अपनी मर्ज़ी से अपना साथी चुनकर, जाति, धर्म की दीवारों को तोड़ते हुए प्रेम विवाह का फैसला कर सकती हैं। एक हिंदू महिला और एक मुस्लिम व्यक्ति के बीच हर रोमांस, प्रेम और विवाह हिंदू संगठनों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन के रूप में लिखा जा रहा है।

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भारत में लव जिहाद दक्षिणपंथी विचारधारा एवं कट्टर हिंदूवादी लोगों के लिए एक अवसर है जहां वे ध्रुवीकरण की राजनीति आसानी से कर सकें और नफरत की इस राजनीति का फायदा उठा सकें। वे इसका फायदा अलग-अलग स्तरों पर उठा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर बहुसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा खतरे में बताकर। इसके लिए कुछ ऐसे तर्क दिए जाते हैं- “अगर हिंदू महिला का धर्मांतरण होता रहा तो इससे मुसलमानों की संख्या बढ़ती जाएगी और दूसरा यह कि इससे बहुसंख्यक हिंदू अल्पसंख्यक श्रेणी में आ जाएंगे।” इस तरह लव जिहाद से बहुसंख्यक अल्पसंख्यक ध्रुवीकरण की राजनीति करने में मदद मिल सकती है या चुनावी राजनीति में फायदा मिल सकता है। लेकिन प्रेम विवाह या प्रेम संबंध का निर्णय में एक महिला के फैसले को सीधा-सीधा लव जिहाद कहने से पहले इस सोच का समर्थन करने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि ऐसा करके वे एक महिला के चुनाव की स्‍वंतत्रता पर आघात कर रहे हैं, वह अधिकार जो उसे संविधान ने दिया है।

सोचने वाली बात यह भी है कि ऐसा कब और कैसे हुआ कि महिला के इस फैसले से कि वह किसके साथ अपना जीवन गुज़ारना चाहती है, इससे परिवार और कौम की इज्जत चली जाती है। हमें यहां गहराई से देखें तो समझ सकते हैं कि महिला की इज्जत उसके स्वतंत्र निर्णय लेने से जुड़ी हुई नहीं है बल्कि उसके शरीर और यौनिकता से जुड़ी हुई है। प्रेम विवाह या प्रेम संबंध से ही समाज के कई शक्ति ढांचों या संरचनाओं को गिराया जा सकता हैं, उन्हें चुनौती दी जा सकती है। इसीलिए महिलाओं की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने के लिए लव जिहाद और धर्मांतरण जैसे सांप्रदायिक मुद्दे सामने लाए जा रहे हैं। हमें ऐसे सबल भारत का निर्माण करने का प्रयास करना है, जिसमें अंतर्जातीय और अंतर-धार्मिक प्रेम संबंधों के लिए स्थान बन सके और समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की भावना पर आधारित समाज का निर्माण हो सके। 

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तस्वीर : श्रेया टिंगल

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