“सभी पार्टियों ने ‘महिला शक्ति’ के नाम पर महिला स्टार प्रचारकों के चलन की शुरुआत की और इसका अनुसरण हर पार्टी ने ऐसे किया जैसे यह महिला-कल्याण और बहुमत के लिए आवश्यक गुण हो, पर दुर्भाग्यवश, इस नीति का अप्रत्यक्ष संबंध ‘आकर्षक वस्तु’ के समान महिलाओं के छवि निर्माण से है, जिसके तहत सत्ता मर्दों के हाथों रहेगी, पर चुनावी दांव (चाहे महिलाओं पर विवादित बयानों के ज़रिए या नई कल्याण नीति के ज़रिए) महिलाओं पर, महिलाओं के जरिए खेले जाएंगे – मर्दों की सत्ता के लिए। क्या इस बात को जागरूक महिलाएं कभी समझ भी पाएंगी, यह एक बड़ा सवाल है।”
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव शुरू हो चुके हैं। अगले महीने यह तय हो जाएगा कि उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का सपना लिए किस राजनीतिक दल के हाथों सत्ता की बागडोर आती है। बात की जाए राजनीतिक दलों की चुनावी तैयारी की, तो समय के साथ-साथ सभी ने जनता को ध्यान में रख कर अपनी चुनावी नीति-निर्माण का काम किया है। यह बात अलग है कि वह नीति लागू हो पाती है या नहीं। वैसे अब तक का अनुभव बताता है कि महिला मतदाता, मर्दों को वोट देकर सत्ता सौंप तो देती हैं मगर खुद हाशिए पर चली जाती हैं। संसद में महिला आरक्षण का मुद्दा इसका ज्वलंत उदारहण है।
अभी महिलाओं के संदर्भ में सभी दलों की रणनीति समान नज़र आ रही है। किसी पार्टी ने महिला स्टार प्रचारकों के ज़रिए ‘महिला शक्ति प्रदर्शन’ की नीति अपनाई है, तो किसी पार्टी ने अपने घोषणापत्र में महिला-कल्याण की ढेरों नीतियों का जिक्र किया है। इस चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले आइए, एक नज़र डालते हैं इन महिलाओं को लेकर इन पार्टियों की चुनावी रणनीति पर –
बहुजन समाज पार्टी का मौखिक घोषणापत्र
मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अपने आप में एक रोचक पार्टी है। मैदान में उतरते ही जहां राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणापत्र जारी कर चुनावी बिगुल बजा देते हैं और अपने घोषणापत्र पूरा होने या दूसरे के घोषणापत्र पूरा न होने की बातें कर चुनावी दांव खेलते हैं, वहीं इसके विपरीत, बसपा चुनावों में घोषणापत्र जारी नहीं करती है। यह पार्टी बिना घोषणापत्र के चुनाव लड़ती है, पर इस बात का यह कतई मतलब नहीं है कि इस पार्टी का कोई घोषणापत्र नहीं होता। मायावती अपने चुनावी भाषणों में मुद्दों का जिक्र करते हुए पार्टी का ‘मौखिक घोषणापत्र’ ज़ारी कर चुनाव लड़ती हैं।
उत्तर प्रदेश के इस चुनाव में महिलाओं के संदर्भ में, बदायूं में चुनावी प्रचार करते हुए मायावती ने कहा कि ‘यूपी में आतंक का माहौल है। बेटियों को मार कर पेड़ पर लटकाया जा रहा है|’ इस बात से यह साफ है कि मायावती ने अपने घोषणापत्र ‘महिला-सुरक्षा’ के मुद्दे को शामिल किया है, मगर इस पर उनकी पार्टी की क्या नीति है, इस पर कोई खास चर्चा नहीं की गई।
और महिला-फिल्मी सितारों का सहारा
वहीं दूसरी ओर, अन्य राजनीतिक पार्टियों से शुरू हुए महिला स्टार प्रचारकों के चलन को हाथों-हाथ लेते हुए मायावती ने जीनत अमान को चुना। मथुरा में बसपा का प्रचार करते समय जीनत अमान ने कहा – “लैला ओ लैला, ऐसी मैं लैला, हर कोई चाहे मुझसे मिलना अकेला।” फिर उन्होंने कहा कि यहां मैं अकेले मिलने नहीं बल्कि मनोज के समर्थन में वोट मांगने आई हूं।
महिला स्टार प्रचारकों वाला सपा-कांग्रेस का गठबंधन
सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन होने के बाद यह तय किया गया कि इनके प्रचार का जिम्मा प्रियंका गांधी वाड्रा और डिंपल यादव पर होगा। डिंपल और प्रियंका के चुनाव प्रचार का असर मतदातों पर कितना हुआ, इस बात का पता चुनावी नतीजों के आने पर चलेगा। यह माना जा रहा है कि ये दोनों स्टार प्रचारक महिला मतदाताओं को बड़े पैमाने पर गठबंधन की ओर मोड़ने में कामयाब हो सकती हैं। क्योंकि दोनों ही महिलाओं के मुद्दों पर सकारात्मक रुख रखती हैं। दोनों अपनी हाई प्रोफाइल लाइफ स्टाइल के कारण चर्चाओं में रहती हैं।
डिंपल राजनीति में काफी पहले से सक्रिय रही हैं और अभी कन्नौज की सांसद भी हैं। उल्लेखनीय है कि चुनाव प्रचार के दौर में जब डिंपल आगरा के रामलीला मैदान पहुंचीं, तो नारे लग रहे थे – ‘विकास की चाभी, डिंपल भाभी। साफ है कि समाजवादी पार्टी का अपनी चुनावी रणनीति के तहत डिंपल पर खेला गया दांव जनता को भा रहा है। इसके साथ ही, कर्नाटक के बेल्लारी में सुषमा स्वराज के सामने जिस तरह से प्रियंका ने अपनी मां का प्रचार संभाला हुआ था, उसके बाद लोगों ने प्रियंका को दूसरी इंदिरा गांधी की संज्ञा दे डाली है। इस लिहाज़ से इसे दोनों पार्टियों की अच्छी रणनीति माना जा रहा है।
पर घोषणापत्र में नाममात्र है महिला-स्थान
समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र की बात की जाए तो महिलाओं के लिए उनके पास दो घोषणाएं दर्ज थीं –
1- गरीब महिलाओं को प्रेशर कुकर बांटे जाएंगे।
2- महिलाओं को रोडवेज बस में आधा किराया देना होगा।
इसके अलावा, डिंपल यादव ने कानपुर में यह एलान किया कि प्रदेश में फिर से समाजवादी सरकार बनने पर सरकारी नौकरियों में महिलाओं की उम्रसीमा को खत्म कर दी जाएगी।
भाजपा की महिला स्टार प्रचारक
डिंपल यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनौती देने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने स्मृति ईरानी को बतौर स्टार प्रचारक चुना है। इसके अलावा आने वाले दिनों में मथुरा से पार्टी की सांसद हेमा मालिनी भी चुनाव प्रचार में नज़र आएंगी। इसके साथ ही, पिछले दिनों चर्चा में आर्इं दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह और भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल की अनुप्रिया पटेल भी प्रचार करेंगी।
कई नीतियों वाला इनका घोषणापत्र
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में महिलाओं के लिए कई नीतियों का जिक्र किया है, जिनमें से प्रमुख नीतियां हैं-
-प्रदेश के हर गरीब परिवार में बेटी के जन्म पर 50 हजार रुपए का विकास बांड दिया जाएगा। बेटी के छठी कक्षा में पहुंचने पर तीन हजार रुपए, आाठवीं में पहुंचने पर पांच हजार रुपए, दसवीं में पहुंचने पर सात हजार रुपए और 12वीं में पहुंचने पर आठ हजार रुपए दिए जाएंगे। बेटी के 21 वर्ष की होने पर दो लाख रुपए दिए जाएंगे।
-कन्याओं की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना लागू होगी और गरीब परिवारों में बेटी के जन्म लेने पर 5001 रुपए की राशि गरीब कल्याण कार्ड के माध्यम से दी जाएगी।
-अवंती बाई बटालियन, झलकारी बाई बटालियन और ऊदा देवी बटालियन के नाम से महिला सुरक्षा के लिए तीन नई महिला पुलिस बटालियनों की स्थापना की जाएगी। महिला उत्पीड़न के मामलों के लिए 1000 महिला अफसरों का विशेष जांच विभाग और 100 फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित किए जाएंगे। प्रत्येक थाने में पर्याप्त महिला पुलिसकर्मियों की संख्या, हर जिले में तीन महिला थाने, हर कॉलेज के नज़दीकी पुलिस थाने में छात्राओं के साथ छेड़खानी रोकने के लिए एंटी-रोमियो दल और गांव की महिलाओं के लिए सार्वजनिक शौचालय बनाए जाएंगे।
-आंगनबाड़ी सहायिकाओं का मानदेय बढ़ा कर 2500 रुपए, मिनी आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का मानदेय बढ़ा कर 3500 रुपए और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का मानदेय बढ़ा कर 4500 रुपए कर दिया जाएगा। एक समिति गठित कर आशा बहनों के मानदेय में उचित बढोतरी की जाएगी।
जाहिर है कि अन्य पार्टियों की अपेक्षा भाजपा के पास महिलाओं के संदर्भ में ज्यादा नीतियां हैं। साथ ही, महिला स्टार प्रचारकों के मोर्चे पर भी यह किसी पार्टी से पीछे नहीं है।
सभी राजनीतिक दलों की चुनावी रणनीति से यह साफ हो गया है कि उन्होंने महिलाओं को प्रचार के लिए चुना है। गौरतलब है कि मीडिया से लेकर राजनीतिक मंच तक हर जगह महिला स्टार प्रचारक और घोषणापत्र में महिला-मुद्दों को उजागर कर सुर्खियां बटोरने का काम तेज़ी से चल रहा है, लेकिन जब बात, पार्टियों के उम्मीदवारों पर आती है तब महिला-प्रतिनिधित्व नाममात्र तक सीमित कर दिया गया है। मिसाल के लिए – सपा के कुल 324 उम्मीदवारों में मात्र 24 महिला उम्मीदवार हैं। कांग्रेस के 43 उम्मीदवारों में मात्र दो महिला उम्मीदवार हैं। बसपा के कुल 401 उम्मीदवारों में केवल 18 महिला उम्मीदवार हैं। भाजपा ने कुल 304 उम्मीदवारों में मात्र 36 महिला उम्मीदवारों को स्थान दिया है।
पूंजीवादी राजनीतिक मंच वाली ‘वस्तु’ जैसी महिला
पूंजीवाद ने अपनी ज़रूरतों से स्त्रियों को चूल्हे-चौखट की गुलामी से आंशिक मुक्ति अवश्य दिलाई मगर स्त्रियों को दोयम दर्जे की नागरिकता देने के साथ ही उन्हें निकृष्टतम कोटि का गुलाम बना कर सड़कों पर धकेल दिया। पूंजीवाद की विकसित अवस्था की उपभोक्ता संस्कृति में सूचना तंत्र, प्रचार तंत्र और नए मनोरंजन-उद्योग में स्त्री खुद उपभोक्ता सामग्री बन कर रह गई है। यह बात राजनीतिक दलों की चुनावी रणनीति पर बेहद सटीक है, जहां महिलाओं का इस्तेमाल सिर्फ लोगों के लिए आकर्षण मात्र तक है।
पूंजीवादी संस्कृति की विशेषता यही है कि यहां हर इच्छा को तर्क का जामा पहना कर पेश किया जाता है। ठीक इसी तरह जैसे सभी पार्टियों ने ‘महिला शक्ति’ के नाम पर महिला स्टार प्रचारकों के चलन की शुरुआत की और इसका अनुसरण हर पार्टी ने ऐसे किया जैसे यह महिला-कल्याण और बहुमत के लिए आवश्यक गुण हो, पर दुर्भाग्यवश, इस नीति का अप्रत्यक्ष संबंध ‘आकर्षक वस्तु’ के समान महिलाओं के छवि निर्माण से है, जिसके तहत सत्ता मर्दों के हाथों रहेगी, पर चुनावी दांव (चाहे महिलाओं पर विवादित बयानों के ज़रिए या नई कल्याण नीति के ज़रिए) महिलाओं पर, महिलाओं के जरिए खेले जाएंगे- मर्दों की सत्ता के लिए। क्या इस बात को जागरूक महिलाएं कभी समझ भी पाएंगी, यह एक बड़ा सवाल है।
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