घर के मुख्य द्वार से अपने दाहिने पैर से चावल का कलश गिराकर बहु का आगमन| यानी कि लक्ष्मी का आगमन| घूंघट में शरमाई नई-नवेली दुल्हन की एक झलक पाने को आस-पड़ोस नाते-रिश्तेदार सभी व्याकुल रहते है| पर हमारे यहां बहु का चेहरा यूँ ही नहीं दिखा दिया जाता, उसके लिए तो हम बड़े जलसे के साथ मुंह-दिखाई की रस्म करते है| कुछ समय बाद जब बहु के पाँव भारी होते है तो यह खबर सुनते ही घर वाले ख़ुशी के मारे फूले नहीं समाते| बहु को लेकर सभी के सारे शिकवे-गिले एक पल में दूर हो जाते है| घर में आने वाले नए मेहमान के स्वागत के लिए बकायदा गोद भराई की रस्म की जाती है| इस दौरान बहु की हर छोटी-बड़ी पसंद-नापसंद का ख़ास ख्याल रखा जाता है| लेकिन जैसे-जैसे गर्भवती बहु के पेट का आकार बड़ा होता जाता है, उसे परदे के पीछे ढकने की जद्दोजहद शुरू हो जाती है| ‘क्योंकि शोभा नहीं देता इतना बड़ा पेट फूलाकर किसी के सामने आना|’
हमारे समाज में यह बेहद आम-सा दिखाई देने वाला चलन अपने आप में महिला-सौंदर्य के सन्दर्भ में समाज की बेहद संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है| गौरतलब है कि महिला के ‘माँ’ स्वरूप को किसी भी धर्म, समाज या देश में हमेशा से पूजनीय, पवित्र या यूँ कहें सर्वोपरि माना जाता रहा है| ऐसे में गर्भवती महिला के पेट को छुपाने का चलन समाज के दोहरे चरित्र को साफ़ तौर पर दर्शाता है| एक तरफ तो हम अपने वंश के ज़रिए समाज को बढ़ाने के उद्देश्य से अपने पूरे हर्ष-उल्लास के साथ परंपराओं के अनुरूप किसी महिला का स्वागत अपने घर में करते है, पर उसके गर्भवती होने के बाद बड़े होते पेट के आकार के साथ-साथ हमारी संकीर्ण सोच उसे ढकने-तोपने में जुट जाती है| महिलाएं कभी ढीली-ढाली गाउन तो कभी साड़ी के पल्लू या दुपट्टे से अपने पेट को छिपाती है या उन्हें इसे छिपाने को कहा जाता है| यह कहीं न कहीं गर्भधारित शरीर के प्रति समाज की ‘शर्मिंदगी भरी सोच’ को दर्शाता है| इसके तहत महिलाएं खुद भी अपने इस रूप को शर्मभरे नजरिए से देखने व जीने लगती है|
लेकिन अब समय बदल रहा है| क्योंकि कुछ महिलाएं खुद इस दिशा में बदलाव के लिए आगे बढ़ रही है| प्रिया मलिक एक ऐसी महिला है जिन्होंने समाज में महिला-सौंदर्य के लिए गढ़े मानकों को बदलने की दिशा में सक्रियता से काम करना शुरू किया है| प्रिया मलिक ने हाल ही में बंग स्टूडियो और द दिल्ली न्यू कंपनी के माध्यम से भारतीय पारंपरिक पोशाक में अपनी गर्भावस्था का फोटोशूट करवाया| यह फोटोशूट हिंदू धर्म की तीन देवी – लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा पर आधारित था|
गर्भवती महिला-सौंदर्य से जुड़ी तमाम संकीर्ण मानसिकताओं के विरुद्ध प्रिया की यह पहल एक सार्थक प्रयास है| आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां सुंदरता के बकायदा निर्धारित व तकनीकी तौर पर परिभाषित मानक है| जहां मोटी महिलाओं के घाघरा-चोली पहनने पर उन्हें भद्दा-बदसूरत करार किया जाता है| ऐसे में किसी गर्भवती महिला को भारतीय पारंपरिक पोशाक (साड़ी, लहंगा-चोली व सलवार-कमीज, जिसमें उनके पेट का आकार साफ़ तौर पर दिखाई पड़ता है|) में स्वीकार कर पाना दूर की बात है| पर वो कहते है न कि समय बदलता है| वाकई अब समय बदल रहा है| महिलाएं बेबाकी के साथ अपने हर रूप को अपने विचारों के साथ सामाजिक मंचों पर साझा कर रही है| माना इनकी संख्या फिलहाल बेहद कम है, लेकिन इस बात को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि – ‘न से ऊपर इन ‘कम’ का प्रभाव बेहद ज्यादा सक्रिय है|’
इस तस्वीर में प्रिया धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी के रूप में है|
दुष्ट-राक्षसों का नाश करने वाली देवी दुर्गा के रूप में|
ज्ञान की देवी सरस्वती के रूप में|
भारतीय समाज में महिला को ‘शक्ति’ का रूप माना जाता है जो हमें एक नया जीवन देती है और समाज को उसका भविष्य प्रदान करती है| इन तस्वीरों के ज़रिए प्रिया ने शक्ति की प्रतीक इन तीनों देवियों के रूप में मातृत्व के उस अदभुत सौंदर्य को दिखाया है, जिसे आमतौर पर छिपाने की परंपरा हमारे समाज में है| प्रिया स्वंय एक ब्लॉगर है और अपने लेखन के जरिए इस दिशा में पहल कर रही है| वह चाहती है कि उनकी इस पहल को आधी दुनिया के बड़े हिस्से तक पहुंचाया जाए, जिससे महिलाएं अपने इस सौंदर्य को पहचाने, न कि उसपर शर्मिंदा हो| प्रिया मिशाल हैं उन सभी महिलाओं के लिए जिन्हें अपनी गर्भावस्था में अपने बढ़ते पेट के आकार को देखकर शर्मिंदगी महसूस होती है|
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