उत्तर–प्रदेश में चम्बल नदी के किनारे बसा ‘बीहड़ का जंगल‘ अपने खूंखार जानवरों और खतरनाक डाकुओं के लिए जाना जाता है। सालों से चम्बल नदी के किनारे बसे बीहड़ के इस जंगल ने ना केवल खतरनाक डाकुओं के गिरोहों को पनाह दी, बल्कि इन गिरोहों की वहशी अत्याचारों से मजबूरन बनती ‘दस्यु सुंदरी‘ के इतिहास का साक्षी भी बना।
यहीं नहीं थमा दस्यु सुंदरी बनने का सिलसिला
साल 1983 में बीहड़ के डाकुओं ने, उत्तर प्रदेश के औराई जिले की सीमा परिहार का अपहरण किया। सीमा परिहार पर भी डाकुओं ने अत्याचार किया। जिसके बाद, सीमा परिहार भी फूलन देवी की तरह एक खतरनाक डाकू के रूप में जानी जाने लगी। सीमा परिहार ने भी पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया। सीमा ने समाज-सेवा करने के लिए साल 2007 में उत्तर-प्रदेश के भदोही जिले से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा। लेकिन सीमा को राजनीति के दावपेंच रास नहीं आए और उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली। सीमा परिहार ने महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए ‘ग्रीन गैंग‘ बनाया।
ज़रूरी है कि बीहड़ों के सन्नाटे मासूम बच्चियों की चीख़ नहीं बल्कि खिलखिलाहट के साथ गुन्जायमान हो।
दस्यु-सुन्दरियों का एक किस्सा गौरतलब है
‘दस्यु सुंदरियों’ की ये कहानी हर बार यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि जो उत्तर-प्रदेश देश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है और जिसे उत्तर से उत्तम प्रदेश बनाने का सपना लिए हर बार सरकार बागडोर थामती है और कई क्षेत्रों में इसे साबित भी करने की कोशिश करती है। ऐसे में, फिर राज्य में लगातार बढ़ती आतंक की ऐसी घटनाएँ जहाँ एक तरफ मानवता को शर्मसार करती है, वहीँ दूसरी तरफ, हमारे देश की राजनीति के एक ऐसे पहलु को सामने रखती है, जो अप्रत्यक्ष ढंग से वास्तविक राजनीति है। जहाँ वे इस आतंक को अपनी राजनीति के अहम मुद्दे के साथ अपना दाहिना हाथ भी बनाए रहते है। इन तीनों ‘दस्यु सुंदरियों’ में कई समानताएं गौरतलब है-
- इन तीनों का ताल्लुक उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिलों से रहा है।
2. इन सभी के ‘दस्यु सुंदरी’ बनने की दास्तां का गवाह बीहड़ के जंगल साक्षी बने।
3. सभी ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया और सबसे अहम – इन तीनों दस्यु सुंदरी को समाजवादी पार्टी नें ही टिकट देकर राजनीति में उतारा।
यहां विचारणीय है कि फूलन देवी से लेकर रेणु यादव तक ने सरकार के सामने अपनी दस्यु-सुंदरी बनने की दास्तां सामने रखी। अब सवाल यह है कि इसके बावजूद-
- आखिर क्यों आजतक बीहड़ के खौफनाक सन्नाटे का आतंक अभी तक जीवंत है?
2. क्यों आजतक बीहड़ की चुप्पी पर सरकार ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी?
3. क्या कभी इन दस्यु सुन्दरियों ने उस बीहड़ में सुधार करने का नहीं सोचा?
4. क्या औरों की तरह सत्ता में आने पर वे ब्राह्मणवादी सोच का शिकार हो गई या उनका शिकार जानबूझ कर किया गया,जिससे वे इस राजनीति के इस आतंक के कंधे को न काट दें?
5. क्यों बीहड़ के सन्नाटों में अपनी ललकार से पहचानी जाने वाली ये दस्यु सुंदरियाँ राजनीति की देहलीज़ पर कदम रखते ही सन्नाटे के अंधेरों में गुम हो जाती है?
सवाल कई हैं लेकिन इनका जवाब ना तो हमारे देश की राजनीति दे पाती है और ना ही बीहड़ के वो सन्नाटे। पर इन दोनों के सन्नाटों के बीच जब हर बार एक ‘दस्यु सुंदरी’ बनकर हमारे सामने आती है तो ये सन्नाटे भी चीख-चीख कर यह सवाल करने लगते हैं मौजूदा व्यवस्था के उन जिम्मेदार लोगों से जो कानून को तथाकथित रसूख़दार माननीयों के सुविधानुसार अनुसार विवेचित करते हैं। जिन्हें नारी का उनके बराबर खड़े होना गवारा नहीं है जो अपने अहम् और यौन कुंठा की तुष्टि के लिए बार-बार दस्यु सुन्दरी बनने के लिए किसी गरीब की बेटी को बाध्य करते हैं।
आज ज़रूरत है इस सोच को बदलने के लिए एक सकारात्मक-सार्थक व वैकल्पिक व्यवस्था में विश्वास सृजित व जागृत करने की जहाँ बीहड़ के लोगों को सुरक्षा के साथ विकास के समान अवसर उपलब्ध हों। ज़रूरी है कि बीहड़ों के सन्नाटे मासूम बच्चियों की चीख़ नहीं बल्कि खिलखिलाहट के साथ गुन्जायमान हो।
हमें समझना होगा कि दस्यु सुन्दरियाँ सिर्फ मसालेदार फ़िल्मों की पटकथा की पात्र नहीं हैं| बल्कि वे ग़रीबी व बेचारगी के सलीब पर चढ़ी वे नायिकाएँ हैं जो समाज द्वारा कई बार यातना-प्रताड़ना की कीलें ठोके जाने से मरने के बाद प्रतिशोध की अग्नि से उत्पन्न बीहड़ों को विवश होकर गले लगाती हैं|
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Swati lives in Varanasi and has completed her B.A. in Sociology and M.A in Mass Communication and Journalism from Banaras Hindu University. She has completed her Post-Graduate Diploma course in Human Rights from the Indian Institute of Human Rights, New Delhi. She has also written her first Hindi book named 'Control Z'. She likes reading books, writing and blogging.
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