उस दिन मीरा ऑफिस के घर लौट रही थी जब उस लड़के ने उसका करीब आधे घंटे तक पीछा करने के बाद उसके साथ छेड़खानी की| उस घटना ने मीरा को बेहद डरा दिया था| पर उसने घर आने पर किसी से कुछ नहीं कहा क्योंकि वो इस बात को अच्छी तरह जानती थी अगर उसने इस बात का जिक्र भी किया तो उसे तुरंत नौकरी छोड़कर घर बैठने को कहा जायेगा| पर इसमें घरवालों की भी कोई गलती नहीं है क्योंकि उनके पास मीरा की सुरक्षा को लेकर और कोई पुख्ता कदम नहीं था, जिससे वह अपनी बेटी को किसी भी वक्त सार्वजनिक जगह पर उसकी सुरक्षा को सुनिश्चित कर पायें| अगले दिन जब मीरा ने अपनी साथ हुई इस घटना के बारे में ऑफिस में अपनी महिला साथियों को बताया तो उनलोगों ने भी अपनी साथ हुई कई घटनाओं को साझा किया|
ये किस्सा सिर्फ मीरा का नहीं है और इस बात को हर वो महिला अच्छी तरह समझती है जो अपने आज़ाद देश में अपने अस्तित्व के लिए अपने परिवार के लिए घर से बाहर निकलती है| शहर छोटा हो या बड़ा गाँव अच्छा हो या बुरा ये किस्सा अब हर उस जगह का हिस्सा बन चुका है जहाँ आधी आबादी मर्दों के साथ कदम-से-कदम मिलाकर घर की दहलीज से लेकर दुनिया के शीर्ष तक के लिए आगे बढ़ रही है|
आजकल आये दिन हम सार्वजनिक जगहों पर महिला-असुरक्षा संबंधित घटनाओं को अंजाम दिया जाता है| यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिला के खिलाफ होने वाली हिंसा के संदर्भ हमेशा दोष महिला को दिया जाता है| अगर महिला उस समय घर से बाहर हो और वह रात का समय हो तो सीधा सवाल किया जाता है कि इतनी रात के समय वह बाहर क्यों गयी थी? इसी सवाल ने समाज में रात के समय को हमारी सड़कों को असुरक्षित बना दिया है|
अक्सर कहा जाता है कि हर बदलाव का एक समय आता है और ये समय तब आता है जब इसकी कोई पुख्ता पृष्ठभूमि हो| हमारे देश में हाल ही में महिलाओं के खिलाफ सार्वजनिक जगहों पर हिंसा की कई ऐसी घटनाएँ सामने आई जिन्होंने महिलाओं को इस मुद्दे पर एकजुट होने और इसमें उचित बदलाव लाने की दिशा की तरफ मोड़ दिया|
समाज के लिए अभी तक यह एक सवाल है कि लड़की रात में बाहर क्यों जाती है| इस सवाल को तोड़ने की ज़रूरत है| इसे सिर्फ तभी तोड़ा जा सकता है जब महिलाएं ज्यादा से ज्यादा सडकों पर आयें और अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं| इस कोशिश के लिए एक फेसबुक पर पेज ‘अपनी सड़कें’ के नाम से बनाया गया है| ‘अपनी सड़कें’ की शुरुआत करने वाली गीता यथार्थ यादव बताती है कि यह एक कोशिश है जिसके द्वारा सड़कों पर महिलाओं की स्थिति सहज करने की कोशिश की जा रही है। हर घटना के बाद भारतीय समाज में सबसे पहले सवाल पूछा जाता हैं के वो बाहर सड़क या रास्ते में क्यो थी, क्या कर रही थी?
समाज के लिए अभी तक ये एक टैबू है कि लड़की रात में बाहर क्यों जाती हैं, इस टैबू को तोड़ने की जरूरत है| ये सिर्फ तभी तोड़ा जा सकता हैं, जब महिलाएँ ज्यादा से ज्यादा सड़कों पर आए और अपनी मौजूदगी दर्ज़ करें| इस कोशिश के लिए फ़ेसबुक पेज ‘अपनी सड़कें’ नाम से बनाया गया| और धीरे धीरे दिल्ली समेत तमाम शहरों की लड़कियों को इस कोशिश में शामिल करने की पहल की गई|
#MeriRaatMeriSadak एक हैशटैग बनाया गया और इसे केम्पेन की तरह चलाया गया| दिल्ली टीम में गीता यथार्थ यादव, खुश्बू अख़्तर, अनुशक्ति, श्वेता यादव, रीवा सिंह, प्रीति नाहर, प्रियंका समेत तमाम लड़कियां शामिल है| छत्तीसगढ़ में बिलासपुर से प्रिया शुक्ला, जयपुर से रोहित कुमार, लखनऊ से गीता प्रभा सिंह, चंडीगड़ से प्रीति कुसुम, पंचकूला से मंजली सहारण, कलकत्ता से रितु तिवारी, बनारस से स्वाती सिंह, समेत देश के तमाम शहरों से लड़कियां और महिलाएं बीते 12 अगस्त, शनिवार को सड़कों पर उतरी| यह पूरी तरह गैर राजनीतिक केम्पेन है और इसका मकसद सामाजिक जागरूकता फैलाना है|
इसी अभियान के तहत बनारस में भी ‘मुहीम संस्था’,‘फेमिनिज्म इन इंडिया’ और ‘लोक समिति’ ने मिलकर जनमार्च का आयोजन किया| यह मार्च बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी गेट से लेकर रविदास गेट तक निकाला गया| मार्च में लड़कियों और युवाओं ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया|
“ये रातें ये मौसम ये सड़क का किनारा
है जितना तुम्हारा उतना हमारा’”
“सड़कों को लड़कियाँ पसंद है लड़कियों को सड़क”
जैसे संदेशों के ज़रिए शांतिपूर्ण तरीके से लड़कियों, महिलाओं और युवाओं ने अपने अधिकार को लेकर अपने विचारों को रचनात्मकता के साथ लोगों से साझा किया| मुहीम संस्था की स्वाती सिंह ने बताया कि इस अभियान का उद्देश्य समाज में न केवल यह संदेश देना है कि सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण न केवल उनका हक है बल्कि महिलाओं में देर रात बेहिचक बाहर निकलने की आदत को बढ़ावा देना है|
वहीं फेमिनिज्म इन इंडिया की सविता उपाध्याय ने बताया कि समाज में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा एक चिंता का विषय है वो उस दौर में जब महिलाओं किसी भी मोर्चे पर पुरुषों से पीछे नहीं है तो फिर सुरक्षित वातावरण को लेकर उनके अधिकार क्यों कम हो|
लोक समिति के नन्दलाल मास्टर ने कहा कि वर्तमान समय में महिलों की सुरक्षा को लेकर बढ़ती घटनाओं के लिहाज से यह पहल ज़रूरी है| हमारी सडकों को महिला के लिए रात में इसलिए ही खतरनाक कहा जाता है क्योंकि लड़कियां शाम होते ही अपने घर में कैद हो जाती है लेकिन ऐसा हर लड़की के संभव नहीं है खासकर कामकाजी महिला के लिए, ऐसे में सड़कों पर उनका अधिकार पुरुषों की तरह सुरक्षित होना चाहिए|
इस अभियान ने बेहद कम समय में देश के कई सारे शहरों और हजारों की संख्या में महिलाओं को आपस में जोड़ दिया| इसकी मूल वजह थी – इस गंभीर समस्या का आम बन जाना| इस अभियान ने सिर्फ यंग लड़कियों ने ही नहीं बल्कि अधेड़ महिलाओं ने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया, क्योंकि ये समस्या अमूची आधी आबादी की है जिससे हर महिला को कभी-न-कभी दो-चार होना पड़ा है| इस अभियान को न केवल जनसमर्थन मिला बल्कि मीडिया ने भी इस पहल को खूब सराहा| यूँ तो 12 अगस्त को इस अभियान के तहत कई शहरों में एकसाथ-एकसमय पर महिलाएं आधी रात को सड़कों पर उतरी पर इसका यह कतई मतलब नहीं है कि ये इस अभियान का अंत था| बल्कि इसके विपरीत यह इस अभियान का आगाज़ था जिसने सशक्त रूप से महिलाओं के लिए सूनसान और खतरनाक कही जाने वाली सड़कों को एकजुट कर समाज को एक सकारात्मक संदेश दिया|