सात जनवरी से बिहार के मीड डे मील के कर्मचारी अपनी मांगो को लेकर हड़ताल पर बैठे हुए थे, लेकिन फिलहाल यह हड़ताल उन्होनें स्थगित कर दी है| बिहार सरकार ने केवल 250 रूपये की ही बढ़ोतरी की है| पटना जिले में बच्चों की अनुपस्थिति भी दर्ज की गई|
मीड डे मील योजना सरकार की बहुमूल्य योजनाओं में से एक है जिसका लक्ष्य सरकारी स्कूलों में बच्चों के नामांकन दर को बढ़ाना था| ज्यादातर बच्चे गरीब परिवारों से आते है, जिनके मां-बाप या तो दिहाड़ी मजदूरी का काम करते है या फिर छोटे-मोटे काम करते है| इनमें से अधिकतर बच्चे अनुसूचित जाति से आते है| भारतीय प्रबंधन संस्थान (कलकत्ता) और यूरोपीय स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी (बर्लिन) से शोधकर्ताओं ने यह पाया कि इस योजना से बच्चों की पढ़ने की क्षमता में भी तेजी आई है और साथ ही उनका नामांकन दर भी बढ़ा है| लेकिन यह योजना कर्मचारियों को उनकी न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे पा रही|
केंद्र सरकार की योजना जैसे ‘बेटी पढ़ाओं बेटी बचाओं’ की सफलता का सारा मूल्यांकन इन सभी महिलाओं की बदहाली से पता चलता है|
बिहार के 70,000 स्कूलों के 2,48,000 रसोइयों को सरकार मात्र 1,000 रूपए की मासिक सैलरी ही देती है| इसमें करीब नब्बे फीसद महिलाएं है और यह वो महिलाएं हैं जो या तो विधवा है या अपने घर में एकलौती पैसा कमाने वाली है| इसमें ऐसी महिलाएं भी है जो पिछड़े वर्ग से आती है जो कि सामाजिक रूप से शोषित है| सभी महिलाएं सबसे पहले स्कूलों में पहुंचती है फिर खाना बनाने, बच्चों की सेवा करने और बर्तन को साफ करने जैसे सभी काम करती है|इसमें उन्हें चार से पांच घंटे लगते है और इसके बाद वह अपने घर के काम-काज करती है और गौर करने की बात यह भी है कि सभी औरतें जल्दी आती है और देर तक स्कूलों में रुकती है| इन सभी से टॉइलेट भी साफ करवाया जाता है और उन्हें वेतन के नामपर केवल 1000 रूपए दिए जाते है| एनडीए की सरकार हो या फिर दूसरी कोई सरकार लेकिन सभी ने कर्मचारियों के हालातों से मुहँ मोड़ रखा है| महिलाओं को अपने घरवालों से भी ताने सुनने पड़ते है क्योंकि कहने को तो वे स्कूलों में खाना पकाती है लेकिन भत्ता सिर्फ 1000 रूपए ही हाथ आता है|
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इस योजना का प्रभाव बच्चों पर तो पड़ा लेकिन मीड डे मील के कर्मचारियों की दशा बदहाल है और उनकी मांगों को सुनने वाला कोई नहीं है| महिलाओं का कहना है कि हम सबका पेट भरते है लेकिन हमारा पेट 1,000 रूपए में कैसे भर सकता है? इसका सरकार पर कोई असर नहीं| सरकार योजनाओं के नामपर हमारे साथ एक भद्दा स्वांग रच रही है| महंगाई के इस दौर में जहां दाल से लेकर सब्जियों के दाम बढ़ रहे हो और सरकार केवल वादे किए जा रही है, उसे निभा नहीं रही है| यूपीए सरकार के दौरान भी मांगे उठाई गई थी और साल 2013 में भत्ते को तुरंत दोगुना करने का वादा किया था, लेकिन इसके बावजूद इसे लागू नहीं किया गया।
यह योजना कर्मचारियों को उनकी न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे पा रही|
एनडीए सरकार ने जुलाई 2014 में लंबित प्रस्ताव को लाया था, लेकिन कैबिनेट समिति ने इस प्रस्ताव को टाल दिया। कर्मचारियों की मांगे केवल इतनी है कि उन्हें अच्छी सैलरी से लेकर स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ मिले और पीएफ जैसी सुविधाए भी मिले|
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देश में महिलाओं की कितनी दयनीय स्थिति है यह केंद्र सरकार को देखना चाहिए| कहने को तो हम हर साल 8 मार्च को महिला दिवस के रूप में मनाते है लेकिन वास्तविकता में उनके लिए कुछ नहीं कर रहे है| वे 50 फीसद की हिस्सेदार है लेकिन योजनाओं के नामपर हम उन्हें केवल विज्ञापन तक ही सीमीत कर रहे है| केंद्र सरकार की योजना जैसे ‘बेटी पढ़ाओं बेटी बचाओं’ की सफलता का सारा मूल्यांकन इन सभी महिलाओं की बदहाली से पता चलता है| अब ये समय है कि इस महिला दिवस हम सभी के लिए कुछ करें और सबसे पहले उन्हें इंसान होने का दर्जा दें, उन्हें समान अवसर और अधिकार दें और योजनाओं को सही से लागू करें|
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस ; डाउन टू अर्थ ; न्यूज़ क्लिक
तस्वीर साभार : Patrika
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