मैनें जब भी नीरजा को देखती हूं तब गौरवान्वित होती हूं| पितृसत्तातमक समाज में बहादुरी की अपेक्षा हमेशा पुरूष से ही रखता आया है लेकिन समाज की इस अपेक्षा को ध्वस्त करते हुए नीरजा भनोट लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गई| 22 साल की नीरजा ने अपनी जान देकर इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ दी| आज नीरजा को हम एक एयरहोस्टेस के रूप में पहचानते है जिसने अकेले 300 मुसाफिरों की जान बचाई| क्या नीरजा हमेशा से इतनी बहादुर थी? बहादुर तो फौजी होता है तो नीरजा कैसे इतनी बहादुर थी?
नीरजा का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ| मां रमा भनोट व पिता हरीश भनोट की लाडली बेटी थी| दो भाइयों की एकलोती बहन थी यही वजह थी कि घर पर सब उसे लाडो कहते थे| वह एक चुलबुली लड़की थी जो राजेश खन्ना के गानो पर थिरकती रहती थी| नीरजा की शादी 21 साल की उम्र में ही नरेश मिश्रा के साथ शादी हो गई थी लेकिन इस शादी में उन्हें घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न का सामना करना पड़ा| वो एक बहादुर और अन्याय को न सहने वाली लड़की थी इसलिए वो वापस अपने घर आ गई| वह मुसीबतों के आगे सर नहीं झुकाती थी बल्कि उससे लड़ती थी|
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घर लौटने के बाद उन्होंने पैन ऍम में फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी के लिए आवेदन दे दिया| वह चुन ली गई और मयामी गई| ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने एंटी-हाईजैकिंग कोर्स में एडमीशन लिया| मां नौकरी के बिल्कुल खिलाफ थी, बाकी मां की ही तरह ही उनकी चिंता यही थी कि वह कोई खतरे वाला काम न करें| घर की लाडली और अपने इरादों की पक्की नीरजा ने अपनी मां को मना लिया| एयरहोस्टेस बनने से पहले वह म़ॉडलिंग भी किया करती थी और चिप्स से लेकर टूथपेस्ट का विज्ञापन में दिखा करती थी|
पितृसत्तातमक समाज में बहादुरी की अपेक्षा हमेशा पुरूष से ही रखता आया है |
5 सितंबर यानि जन्मदिन के 2 दिन पहले उनकी पहली फ्लाइट थी| प्लेन में
फ्लाइट अटेंडेट थी| पैन ऍम फ्लाइट 73 मुंबई से न्यूयॉक जा रही थी, इस फ्लाइट में कुल 361 यात्री थे और 19 क्रू मेंमबर्स थे| प्लेन जब कराची एयरपोर्ट पर रूका तो चार आतंकवादियों ने गोलियों की बरसात कर दी औऱ प्लेन को हाइजैक कर दिया| नीरजा ने समझदारी व सूझबूझ दिखाते हुए पायलट को हाइजैक की जानकारी दे दी, प्लेन के तीनों पायलट कॉकपेट से सुरक्षित बच निकले लेकिन नीरजा प्लेन के अंदर ही रही| आतंकवादियों का निशाना अमेरीकी थे और उन्होंने नीरजा को सभी यात्रियों के पॉसपोर्ट इकट्ठा करने के लिए कहा कि जिससे पता चल सके कि कौन अमरीकी है| नीरजा ने इसमें भी अपनी चालाकी दिखाई, उन्होंने पॉसपोर्ट तो इकट्ठा किए लेकिन सूझबूझ दिखाकर सारे पॉसपोर्ट छुपा दिए| 17 घंटे अकेले वो किसी तरीके से आतंकवादियों को गोली चलाने से रोकती रही, लेकिन 17 घंटे बाद आतंकियों ने अंधाधुंध मारना शुरू कर दिया| उन्होंने प्लेन में बम भी फिट कर दिया लेकिन नीरजा ने हिम्मत रखी और हौसले से काम लिया| उन्होंने प्लेन का इमरजेंसी का गेट खोल दिया जिससे वह यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाल पाई| वह आतंकवादियों से भीड़ गई और उनसे हाथापाई के बीच उन पर गोली भी चला दी| वह एक जिम्मेदार फ्लाइट अटेंडेंट थी जिन्होंने अपनी जान से ज्यादा महत्व यात्रियों की जान को दिया लेकिन उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा|
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इस असीम बहादुरी औऱ बेहिसाब जज्बे के लिए उन्हें भारत सरकार ने अशोक चक्र से सम्मानित किया, पाकिस्तान ने उन्हें तमगा-ए-इंसानियत से नवाजा औऱ साल 2005 में अमेरिका ने जस्टिस फॉर क्राइम अवॉर्ड से सम्मानित किया| साल 2004 में भारत ने उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी की| उनके नाम पर एक संस्था है जिसका नाम नीरजा भनोट पैन ऍम न्यास है जो कि हर साल महिलाओं को उनकी बहादुरी के लिए सम्मानित करती है|
नीरजा ने अपनी जिंदगी में हौसले व हिम्मत के दम पर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया |
इसमें एक अवॉर्ड हवाई जहाज पर रहने वाली महिलाओं को मिलता है जो कि अंतरॉष्ट्रीय स्तर पर दिया जाता है और दूसरा अवॉर्ड अत्याचार के खिलाफ लड़ाई के लिए दिया जाता है| नीरजा ने अपनी जिंदगी में हौसले व हिम्मत के दम पर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया और हम केवल उनसे सीख सकते है कि किसी भी मुश्किल में हिम्मत बरकरार रखनी चाहिए| नीरजा भनोट मेरे जैसी हर महिला के लिए एक सशक्त मिसाल है|
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तस्वीर साभार : Your Story