इतिहास नारीवादी डॉ भीमराव आंबेडकर : महिला अधिकारों के लिए मील का पत्थर साबित हुए प्रयास

नारीवादी डॉ भीमराव आंबेडकर : महिला अधिकारों के लिए मील का पत्थर साबित हुए प्रयास

महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई डॉ. भीमराव अंबेडकर ने वर्षो पहले ही शुरू कर दी थी| उन्होंने साल 1942 से महिला अधिकारों के लिए लड़ाई शुरू की|

साल 2019 का चुनावी वर्ष सत्ताधारियों से यह सवाल कर रहा है कि राजनीति में महिलाओं की उपस्थिति कम क्यों है| महिला आरक्षण बिल आज भी पास क्यों नहीं हो पा रहा| महिला अधिकारों पर बोलना अलग बात है और उनके लिए लड़ाई लड़ना बिल्कुल अलग बात है| मौजूदा दौर में नारी सशक्तीकरण पर चौतरफा जोर दिया जा रहा है। कहीं सामाजिक चेतना के जरिए तो कहीं सख्त कानून के जरिए। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और संघ परिवार, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के ट्रिपल तलाक के  फ़ैसले का जश्न मना रहे हैं, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को पुरुष प्रधान मुस्लिम समाज से मुक्त करने का श्रेय दिया गया है। लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने हिंदू महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कोई पहल की। इसके विपरीत, उन्होंने हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और देश के पहले कानून मंत्री डॉ. बीआर आंबेडकर द्वारा की गई एक बड़ी पहल को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाए। महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई डॉ. भीमराव आंबेडकर ने वर्षो पहले ही शुरू कर दी थी| 

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महिला सशक्तिकरण को लेकर आंबेडकर की जुनूनी लड़ाई की शुरूआत साल 1942 में शोषित वर्ग की महिलाओं के एक सम्मेलन में देखने को मिली थी, जब उन्होंने कहा था, ‘किसी समुदाय की प्रगति महिलाओं की प्रगति से आंकी जाती है।’ उनके यही शब्द उन्हें नारीवाद का एक बड़ा नेता मानते है, जिसने जाति समस्या और महिला के अधिकारों को एक करके देखा| उनका मानना था कि महिलाओं की स्थिति इसलिए बदहाल है क्योंकि वे सब  जाति-प्रथा के जाल में फंसी हुई है| आजादी मिल जाने के बाद भी चिंता इस बात की थी कि आधी आबादी का क्या होगा| देश में जहां संविधान को बनाने में तीन साल से ज्यादा का समय लग गया था, वही महिला अधिकारों के लिए लड़ाई अभी भी बाकी थी| भारत सामाजिक व्यवस्था के तौर पर पितृसत्तात्मक है| महिला का स्थान पुरूष से नीचे हैं| बेटियों को हीन नज़र से देखा जाता है| हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में स्त्रियों को हीन नजर से देखा और प्रस्तुत किया गया है| मनुस्मृति जैसी किताबों में महिलाओं को नीचे दर्जे का दिखाया गया है व सभी अधिकारों से वंचित किया गया| आंबेडकर ने महिला सशक्तिकरण के रूप में प्राचीन ‘मनुस्मृति’ का दहन किया| वह केवल उपदेश देने में विश्वास नहीं रखते थे बल्कि उन्होंने हिंदू कोड बिल लाकर बेजोड़ मिसाल कायम की, जब यह बिल संसद में पेश किया गया तब इसे लेकर संसद के अंदर और बाहर विद्रोह मच गया| सनातनी धर्मावलम्बी से लेकर आर्य समाजी तक आंबेडकर के विरोधी हो गए| संसद में जहां जनसंघ समेत कांग्रेस के हिंदूवादी इसका विरोध कर रहे थे तो वहीं संसद के बाहर हरिहरानन्द सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में बड़ा प्रदर्शन चल रहा था|

किसी समुदाय की प्रगति महिलाओं की प्रगति से आंकी जाती है।

करपात्री महाराज के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू महासभा और दूसरे हिंदूवादी संगठन हिंदू कोड बिल का विरोध कर रहे थे| इसलिए जब इस बिल को संसद में चर्चा के लिए लाया गया तब हिंदूवादी संगठनों ने इसके खिलाफ देशभर में प्रदर्शन शुरू कर दिए| आरएसएस ने दिल्ली में दर्जनों विरोध-रैलिया की| इस सबके बावजूद आंबेडकर लड़ते रहे| हिंदू कोड बिल औपचारिक रूप से 5 फरवरी 1951 को पेश किया गया था| यह बिल हिंदू स्त्रियों की उन्नति के लिए प्रस्तुत किया गया था| हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, और हिंदू दत्तक और रखरखाव अधिनियम 1952 और 1956 के बीच पारित किए गए थे।

इस बिल में स्त्रियों को तलाक लेने का अधिकार मिला क्योंकि हिंदू ग्रन्थों के अनुसार ऐसी मान्यता थी कि अगर महिला अपने घर से डोली पर निकलती है तो वापस उसकी अर्थी उठती है और विवाहित स्त्रियों का अपने पिता के घर वापस आना पाप माना जाता था| उनकी इस पहल से महिलाएं अब कानूनी रूप से मजबूत हो गई थी|  एक पत्नी के होते हुए दूसरी शादी न करने का प्रावधान भी किया गया था| पुरूष चाहे तो कितनी ही शादी कर सकता था और ऐसी अवस्था में उसकी पहली पत्नी को प्रताड़ित किया जाता था| लेकिन इस कानून से स्त्रियों की दशा में सुधार हुआ|

वो मेरे लिए नारिवादी हो गए जो महिलाओं के अधिकारों पर केवल लिखते या बोलते नहीं थे बल्कि इसके लिए उन्होनें लंबी लड़ाई भी लड़ी|

महिलाओं को बच्चा गोद लेने का अधिकार  मिला और बाप-दादा की संपत्ति में भी हिस्से का अधिकार प्राप्त हुआ| इसके अलावा कई महत्वपूर्ण अधिकार जैसे – स्त्रियों को अपनी कमाई पर अधिकार और बेटी को उत्तराधिकार होने का| इसके अलावा अंतरजातीय विवाह करने का व अपना उत्तराधिकारी निश्चित करने की स्वतंत्रता भी दी गई|

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आज के परिवेश में जहाँ महिला सुरक्षा के नामपर केवल खर्चे जाते है वहां बाबा साहब ने मेरे जैसी हर महिलाओं को सुरक्षा का अधिकार दिया, मैं शायद तब तक उन्हें दलितो का मसीहा या संविधान-निर्माता  मानती थी जब तक मैने उनके बारे मे पढ़ा नहीं था या यूँ कहें जब तक हिंदू कोड बिल के लिए उनकी लड़ाई व संघर्ष को नहीं पढ़ा था| यह सब पढ़ने से ही वो मेरे लिए नारिवादी हो गए जो महिलाओं के अधिकारों पर केवल लिखते या बोलते नहीं थे बल्कि इसके लिए उन्होनें लंबी लड़ाई भी लड़ी|

Also read in English: Why Ambedkar Matters To The Women’s Rights Movement


तस्वीर साभार : Forward Press

Comments:

  1. Nitin says:

    A remarkable example of a great way of writing the truth..

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