आरती
फ्रांस की राजधानी और लियोन शहर में हुआ फीफा महिला विश्व कप आठ टीमों के बीच हुई ये जंग महज खिताबी जंग नहीं थी| यह मंच बना मानव अधिकारों और लिंग समानता के मुद्दों को उठाने का| इस बार फुटबॉल जगत की महिलाओं ने वो सब कर दिखाया है जो अब तक केवल विमर्श का मुद्दा बना हुआ था| वो मैदान में लड़-भिड़ रही थीं, मानव अधिकारों पर बोल रही थीं, अपनी समलैंगिक पहचान को स्वीकार रही थीं और समान वेतन की मांग कर रही थीं|
इस बार का टूर्नामेंट बताता है कि खेल एक संक्रमण के दौर या आसान भाषा में बदलाव से गुजर रहा है| खेल अब अधिक समावेशी हो रहे हैं|
फीफा महिला विश्व कप का खिताब जीतने वाली अमेरिका की खिलाड़ी 11 टीम में से इस बार पांच लेस्बियन खिलाड़ी मैदान में थी| फुटबॉल में 11 खिलाड़ियों की टीम में कितनी बार आपने देखा है कि पांच लेस्बियन खिलाड़ी मैदान में खेल रहे हों| शायद कभी नहीं| लेकिन इसबार ये नामुमकिन-सा नज़ारा हमारी आँखों के सामने था|
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महिला फुटबॉल जगत की ऐसी ही एक दमदार खिलाड़ी मेगन रापिनो लाखों लोगों की प्रेरणा बन गई हैं| महिला फुटबॉल खिलाड़ियों की पॉपुलैरिटी तेजी से बढ़ रही है| लेकिन क्रिकेट को राष्ट्रीय खेल मान बैठे भारत में ऑस्ट्रेलिया की 15 नंबर की खिलाड़ी मेगन और समान मेहनताना के हक में आवाज उठाने वाली ब्राजील की दस नंबर की खिलाड़ी मार्ता द सिल्वा की टी-शर्ट खोज निकलना आज भी आसान काम नहीं है|
इनकी पॉपुलैरिटी अमेरिकी और यूरोपीय देशों में अधिक है, लेकिन महिला फुटबॉल टूर्नामेंट की बढ़ती ऑडियंस के बाद वो दिन दूर नहीं जब महिला फुटबॉल खिलाड़ी एक ग्लोबल पर्सनैलिटी होंगी| मेगन एक दमदार खिलाड़ी हैं जो मैदान में प्रतिद्वंदियों के पसीने छुड़ा देती हैं| वो मैदान के अंदर और बाहर मानव अधिकारों के हक में जमकर आवाज उठाती हैं| फिर चाहे बात हो नस्लीय भेदभाव के खिलाफ खड़े होने की या फिर दुनिया के सबसे ‘पावरफुल’ देश के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ विरोध जताने की|
मेरा मानना है कि मर्दवादी समाज में एक पेशेवर खेल में मेरा बने रहना ही किसी विरोध से कम नहीं है|
एलजीबीटीक्यू स्पोर्ट्स वेबसाइट ‘आउटस्पोर्ट्स’ के मुताबिक इस बार 40 लेस्बियन और बाईसेक्सुअल खिलाड़ी फीफा महिला विश्व कप का हिस्सा रहे| पिछली बार 2015 में 20 एलजीबीटीक्यू खिलाड़ी टूर्नामेंट का हिस्सा रहे थे|
मेगन ने हाल में ‘एलजीबीटीक्यू प्राइड मंथ’ के आखिर में कहा था कि “गे खिलाड़ियों के बिना आप टूर्नामेंट नहीं जीत सकते हैं| इसमें सीधा-सीधा विज्ञान है|” मेगन जब खुलकर उन सभी मुद्दों पर बोलती है जिनका सीधा आपसे और मुझसे सरोकार होता है तब वो हम सबके भीतर बदलाव ला रही होतीं हैं| वो हमें बता रही होती हैं कि अपनी असली पहचान के साथ भी आप एक सम्मान भरी जिंदगी जी सकते हैं| मेगन ने एक बार पितृसत्तात्मक समाज की जड़ों पर यह कहते हुए हमला किया था कि “मेरा मानना है कि मर्दवादी समाज में एक पेशेवर खेल में मेरा बने रहना ही किसी विरोध से कम नहीं है|”
अमेरिकी फुटबॉल टीम की दो स्टार खिलाड़ी अली क्रेगर और ऐश्लिन हैरिस ने भी इस साल मार्च में एक दूसरे के साथ रिश्ते में होने की आधिकारिक घोषणा की| टीम की कोच जिलियन इलिस ने सार्वजनिक रूप से स्वीकारा है कि वो लेस्बियन हैं|इससे पहले भी महिला फुटबॉल जगत में ऐबी वॉम्बे समेत बड़े खिलाड़ियों ने अपनी समलैंगिक पहचान को स्वीकारा है| पर यह पहली बार है जब इतनी अधिक संख्या में समलैंगिक खिलाड़ी किसी पॉपुलर खेल का हिस्सा रहे| यह समाज में आ रहे बदलाव की ओर इशारा करता है| मेगन, हैरिस, ऐबी जैसे लोग इस बदलाव की शुरुआत कर रहे हैं|
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हालांकि ये बदलाव जिस स्तर पर महिला खेलों में देखने को मिला, उतनी व्यापकता से पुरूष खेलों में यह बदलाव नहीं आया है| इससे पता चलता है कि पुरुषों पर पितृसत्ता की मार कम नहीं पड़ी है| बंद कमरों और पुरुष खिलाड़ियों के ड्रेसिंग रूम में आज भी समलैंगिक शब्द शायद एक गाली या मजाक बनकर रह गया है|
अब तक केवल तीन पुरुष फुटबॉल खिलाड़ियों ने सार्वजनिक रूप से अपनी समलैंगिक पहचान को स्वीकारा है- अमेरिका के कॉलिन मार्टिन, स्वीडन के एन्टोन हाइसिन और ऑस्ट्रेलिया के एंडी ब्रेनन| साल 2018 फीफा पुरुष विश्व कप में सार्वजनिक रूप से अपनी समलैंगिक पहचान स्वीकार करने वाले किसी भी खिलाड़ी ने हिस्सा नहीं लिया था|
ये बदलाव जिस स्तर पर महिला खेलों में देखने को मिला, उतनी व्यापकता से पुरूष खेलों में यह बदलाव नहीं आया है|
पूर्व पेशेवर पुरुष फुटबॉल खिलाड़ी मैट हैटज्के ने साल 2015 में रिटायर होने से पहले अपनी समलैंगिक पहचान को सार्वजनिक रूप से स्वीकारा था| ये इस बात की ओर इशारा करता है कि हैटज्के की ही तरह कई समलैंगिक खिलाड़ी रिटायर होने तक अपनी पहचान छुपा कर रखते हैं|ऐसे में भले ही एलजीटीबीक्यू खिलाड़ी रापिनो और अन्य खिलाड़ियों को आइकन के रूप में देखते हैं पर वो खुद को उनसे जोड़ कर नहीं देख पाते हैं| वजह है अपने रोजमरार के जीवन में समलैंगिक लोगों के रूप में रोल मॉडल की कमी|
जरूरत है विश्वभर में खेल नीतियों को अधिक समावेशी बनाने की| अगर हम अपने खेलों को एक बेहतर समावेशी मंच के रूप पर प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इन बदलावों को स्कूल-कॉलेजों स्तर पर बढ़ावा देना होगा|
तस्वीर साभार : outsports
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