संस्कृतिकिताबें हम सभी को नारीवादी क्यों होना चाहिए? – जानने के लिए पढ़िए ये किताब

हम सभी को नारीवादी क्यों होना चाहिए? – जानने के लिए पढ़िए ये किताब

'व्ही शुड ऑल बी फेमिनिस्ट्स' में अदीची के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे किस्से हैं, जिन्हें उन्होंने नाइजीरिया में अनुभव किया है।

‘व्ही शुड ऑल बी फेमिनिस्ट्स’ एक निबंध की तरफ वाली किताब है जिसे नाइजीरियन लेखिका चिमामांडा एनगोज़ी अदीची ने लिखा है। यह अदीची के TedxEuston 2012 में दिए गए टेड टॉक का किताबी वर्ज़न है, जिसे अब तक यूट्यूब पर पचपन लाख बार देखा जा चुका है। केवल 64 पन्नों की यह किताब 21वीं सदी के लिए नारीवाद की शक्तिशाली परिभाषा देती है।

व्ही शुड ऑल बी फेमिनिस्ट्स
लेखिका :
चिमामांडा एनगोज़ी अदीची
प्रकाशक :
फोर्थ एस्टेट (29 जुलाई 2014)
शैली :
निबंध
भाषा :
अंग्रेज़ी

“नारीवाद”, जिस शब्द को लेकर दुनियाभर में लंबी-लंबी बहस छिड़ी रहती हैं, वहां चिमामांडा एनगोज़ी अदीची ने महज़ 60 पन्नों से (या यूं कहें कि अपने एक भाषण से) यह बता दिया कि हम सबको नारीवादी क्यों होना चाहिए| ‘व्ही शुड ऑल बी फेमिनिस्ट्स’ में अदीची के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे किस्से हैं, जिन्हें उन्होंने नाइजीरिया में अनुभव किया है। पर देखा जाए तो पूरे विश्व की महिलाएं उनकी भावनाओं को समझ सकती है क्योंकि लिंग के आधार पर यह भेदभाव हर जगह है। किताब में बहुत सी महत्वपूर्ण व प्रभावशाली बातें कही गई हैं। लेकिन सबसे पहले बात करते हैं उन किस्सों की जो हम सभी अपने दैनिक जीवन में झेलते हैं, फिर भी चुपचाप अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हैं।

लेखिका : चिमामांडा एनगोज़ी अदीची | तस्वीर साभार : youtube

तुम नारीवादी हो!” लोग ये बात ऐसे करते हैं जैसे कि सामने वाला नारीवाद का नहीं बल्कि आतंकवाद का समर्थक है। इस आलोचना को बखूबी नकारते हुए अदीची ने बताया है कि फेमिनिज़्म का अर्थ औरतों के हक की लड़ाई नहीं, बल्कि समाज में हर तरीके से लैंगिक समानता पाने का एक लक्ष्य है, जो सभी के लिए ज़रूरी है। बिल के नामपर होटलों व रेस्त्रां में भेदभाव किया जाना| क्लब में अकेले जाने पर रोक लगाना या घिनौने ताने मारना| घर के कामकाज केवल महिलाओं से ही करवाए जाना| पति के लिए अपना करियर और सपनों का त्याग करने जैसे अन्य अनुभव जो अदीची ने साझा किए हैं, उनसे तो हम सब वाकिफ हैं ही।

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यह किताब उन लोगो पर भी तेज़ी से नज़र दौड़ाती है, जो समाज की मानसिकता को कहीं ना कहीं अपनी सोच से सीमित कर देते हैं। पहले आते हैं वे प्रगतिशील पुरुष, जिनके पास सारी सुख-सुविधाएं होती हैं और वे ऐसे घरों में पले-बड़े होते हैं जहां भेदभाव कम या ना के बराबर होता है। उन्हें लगता है कि जिस अत्याचार और पक्षपात की बात महिलाएं करती हैं, वह पहले के ज़माने में हुआ करता था और अब हर जगह स्त्रियों और पुरुषों को एक समान अवसर मिलते हैं। दूसरे होते हैं वे लोग जिन्हें आज भी यही लगता है कि अगर किसी महिला के साथ छेड़छाड़ या बलात्कार जैसी घटना हुई है, तो उसमें भी दोषी औरत ही है क्योंकि वह उस परिस्थिति या जगह पर मौजूद थी। अब ऐसे विचारों का परिणाम क्या होता है यह तो हमें रोज़ाना न्यूज़ माध्यम से पता चल जाता है।

“तुम नारीवादी हो!” लोग ये बात ऐसे करते हैं जैसे कि सामने वाला नारीवाद का नहीं बल्कि आतंकवाद का समर्थक है।

किताब में अदीची ने ऐसी खोखली विचारधाराओं का उपाय बताया है- अपने बच्चों की परवरिश अलग ढंग से करना। क्यों ना हम लड़कों को बराबरी से सिखाएं कि खाना कैसे पकाया जाता है। क्यों ना हम लड़कियों को यह बताएं कि उनके जीवन का उद्देश्य केवल लड़कों की हां में हां मिलाना नहीं है। भेदभाव की शुरुआत घर से ही होती है। लड़की के बॉयफ्रेंड के बारे में घरवालों को गलती से भी पता नहीं चलना चाहिए लेकिन लड़के की गर्लफ्रेंड हो तो कोई समस्या नहीं होती। लड़के की वर्जिनिटी पर कभी कोई सवाल नहीं उठाता लेकिन अगर लड़की की वर्जिनिटी की बात आए तो जैसे सर पर पहाड़ टूट पड़ता है। लड़कियों को छोटी उम्र से ही शादी के दबाव तले जीना पड़ता है पर लड़के इस चिंता से मुक्त रहते हैं। यह छोटी-छोटी बातें आम जिंदगी में कितनी बड़ी भूमिका निभाती है इसके चश्मदीद हम सब हैं।

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इस किताब में अदीची ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात रखी है जो कपड़ों और लिंग को एक दूसरे से जोड़ती है। अदीची ने बताया है कि कैसे जब वे पहले दिन विद्यार्थियों की क्लास लेने वाली थी तो उनके दिमाग में यह बात घूम रही थी कि उन्हें ऐसे कौन से कपड़े पहनने चाहिए जिससे बच्चे उन्हें गंभीरता से लें और उनकी बात सुने। वे चाहती तो थी ‘शाइनी लिप ग्लॉस’ और ‘स्कर्ट’ पहनना, लेकिन उन्हें मजबूरन मर्दाना, भद्दा सूट पहनना पड़ा। हम अक्सर देखते हैं कि बड़ी-बड़ी कंपनियों और संस्थानों में महिलाओं को अपनी ‘फीमेलनेस’ या ‘फेमिनिटी’ को दबाकर ऐसे कपड़े पहनने पड़ते हैं जो उन्हें तथाकथित “बहादुर” बनाते हैं।

इधर-उधर की बातों से ना भटकते हुए| मुद्दे की बात करके ही इस पुस्तक ने पढ़ने वालों के मन में अपनी खास जगह बनाई है। आज दुनिया में नारीवाद की कितनी अधिक आवश्यकता है और यह कैसे हमारे जीवन पर सकारात्मक तरीके से असरदार है| इसका अनुमान हम समाज में धीरे-धीरे हो रहे बदलाव से लगा सकते है। लेकिन जब तक आपकी और हमारी सोच में यह बदलाव नहीं दिखता तब तक समाज में लिंगभेद जारी रहेगा। चाहे महिला हो या पुरुष| मैं निश्चित तौर पर आपको यह किताब और टेड टॉक रिकमेंड करती हूं क्योंकि हाँ, हम सबको नारीवादी होना चाहिए! 

यस, व्ही शुड ऑल बी फेमिनिस्ट्स!

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Comments:

  1. Rafia says:

    Good I really big fan of Adichie she covered various aspects of human existence n specifically women v all must stand for all ladies around us some are even not aware with the facts that they r exploited by d old beliefs of society now needed to break them.n start new era for every women.

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