शुभिका गर्ग
अरे ! भूल गए तुम वही छोटी सी, नाटी सी, गोलमटोल सी थी वो !
अच्छा हाँ ! वो सांवली सी छोटी छोटी आँखों वाली !
ऐ चश्मिश ! ओए मोटी ! ……और भी ना जाने क्या क्या ! लिस्ट बहुत लंबी है।
अक्सर लोग बातचीत के दौरान ऐसे ही जुमलों का सहजता से इस्तेमाल करते रहते हैं, लोगों के रूप, रंग, कद काठी को लेकर ऐसी बातें करते हुए लोग खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं, उनके लिए यह सहज बात होती है, उन्हें इस बात का जरा सा भी इल्म नहीं होता या वो इस बात पर गौर ही नहीं करना चाहते कि ऐसी बातों का किसी पर विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है।
क्यों करते हैं लोग किसी के भी बारे में ऐसी बातें ? हर इंसान खुद में बेजोड़ है, अद्वितीय है, हर किसी को ईश्वर ने किसी ना किसी काबिलियत से सँवारा है । फिर क्यों लोग किसी इंसान की काबिलियत, हुनर या अस्तित्व को तवज्जो ना देकर उसके बाहरी रूप रंग या शारीरिक गठन को महत्व देते हैं। क्यों नहीं लोग समझना चाहते कि कद काठी या बाहरी सौंदर्य पर मनुष्य का बस नहीं चल सकता। क्यूँ नहीं लोग समझना चाहते कि किसी भी व्यक्ति चाहे वो स्त्री हो या पुरुष को उनके शारीरिक गठन के आधार पर जज करना कितना गलत है ?
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कुछ ऐसी ही मनोव्यथा से जुड़ी बातों को विद्या ने बड़ी मजबूती के साथ व्यक्त किया है एक निजी रेडियो चैनल के वीडियो में। अपने चिरपरिचित सशक्त भावपूर्ण अंदाज में विद्या इस वीडियो में नजर आती हैं, जहां वह अपनी बात कहते हुए क्रमशः भावुक होती जाती हैं। उनकी आँखों में आँसू बह निकलते हैं और गला रुँध जाता है। वो एक आम साधारण इंसान की आवाज बन कर इस वीडियो में उभरती हैं और लोगों के द्वारा जज किये जाने को गलत ठहराते हुए और जज किये जाने पर होने वाली पीड़ा एवं मनोव्यथा को चित्रित किया है।
फिर विद्या झटके से बाहरी आवरण को उतार कर फेंकते हुए यह संदेश देती नजर आती हैं कि लोगों को उनके रूप रंग, कद काठी के आधार पर जज करना बंद कीजिए। आपको अंदाजा भी नहीं है कि आपकी ऐसी बातों से कोई कितना व्यथित हो सकता है, कोई अंदर से टूट सकता है, वो मानसिक रूप से पीड़ित हो सकता है। आपको यह बात समझनी होगी कि हर इंसान खुद में बेहद खास है और उसका उसके नाम, रूप रंग या कद काठी से इतर भी एक व्यक्तित्व है, अस्तित्व है।
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विद्या के इस वीडियो से लोग खुद को जुड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं। शायद यही वजह है कि यह वीडियो तेजी से वायरल हुआ है। कहीं न कहीं, कभी ना कभी, कोई ना कोई, घर पर या बाहर दिल दुखाने वाले जुमलों का सामना करने को विवश हो जाता है। उस वक्त तो वह इंसान उन बातों को हँसकर टाल देता है लेकिन कहीं ना कहीं ऐसी बातें व्यक्ति के अंतर्मन को झकझोर जाती हैं। क्यों ना बदलाव लाया जाए, नजरिये में, स्वभाव में और कोशिश की जाए कि किसी भी व्यक्ति को उसके गुणों के आधार पर ,उसके व्यक्तित्व के आधार पर देखेंगे ना कि बाहरी सौंदर्य के आधार पर जज करेंगे। दृष्टिकोण बदलिए, नजरिया खुद ब खुद बदल जाएगा, किसी को अच्छा फील करवाकर तो देखिए आपका खुद का भी मन गुलज़ार ना हो जाए तो कहिए।
यह लेख इससे पहले मोमप्रेसो में प्रकाशित किया जा चुका है |
तस्वीर साभार : hindirush
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