बारह साल की उम्र में, एक दलित बच्ची की शादी हो जाती है। वह अपने पति के साथ मुंबई जैसे महानगर के एक स्लम में रहती है। अपने ससुराल में प्रताड़ना झेलने के बाद वह लड़की अपने पिता के साथ अपने गांव लौटती है, लेकिन जब गांव वाले भी उसके साथ दुर्व्यवहार करते हैं तो वह आत्महत्या करने की कोशिश करती है। पर इस लड़की की कहानी यहाँ खत्म नहीं होती, बल्कि यहीं से शुरू होती है। इस लड़की का नाम है कल्पना सरोज, जो आज क़रीब 700 करोड़ की कंपनी की मालकिन हैं।
कल्पना के सफर की शुरुआत
कल्पना का जन्म महाराष्ट्र के उस क्षेत्र में हुआ था जो सूखे की ज़बरदस्त मार झेल चुका था, यानी कि ‘विदर्भ’। अपने घर की आर्थिक स्थिति बुरी होने के कारण कल्पना गोबर के उपले बनाकर बेचा करती थीं।
बारह साल की उम्र में कल्पना की शादी उनसे दस साल बड़े व्यक्ति के साथ हुई और वे मुंबई के स्लम एरिया में रहने के लिए आ गई। उसके बाद उनके जीवन के हालात कुछ ऐसे बने कि उन्होंने कीटनाशक पीकर आत्महत्या करने तक की कोशिश की। लेकिन ज़िंदगी ने उनका साथ नहीं छोड़ा तो उन्होंने भी एक नई शुरुआत की, वे 16 साल की उम्र में दोबारा मुंबई में आईं।
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दुख जिसने आगे बढ़ने की प्रेरणा दी
कल्पना ने मुंबई की एक गारमेंट कंपनी में नौकरी शुरू की जहाँ उन्हें दो रुपए की मजदूरी मिलती थी। इसके साथ ही, वे ब्लाउज़ सिलने का काम भी कर रही थीं और एक ब्लाउज़ के उन्हें दस रुपए मिलते थे। इसी दौरान कल्पना की बहन गंभीर रूप से बीमार पड़ गईं और उनका देहांत हो गया।
इस दुख से गुज़रने के बाद कल्पना को इस बात का एहसास हुआ कि आर्थिक मज़बूती के बिना ज़िंदगी कितनी मुश्किल हो जाती है। तभी उन्होंने यह ठान लिया कि वे हालात बदलकर रहेंगी। वे कड़ी मेहनत से दिन में सोलह घंटे काम करने लगीं। उन्होंने महात्मा ज्योतिबा फुले स्कीम के तहत लोन के लिए अर्ज़ी दी और लोन से मिली राशि का इस्तेमाल फर्नीचर का बिज़नेस खड़ा करने में किया। इसके साथ ही उन्होंने अपने टेलरिंग के काम को भी जारी रखा।
कल्पना ने मुंबई की एक गारमेंट कंपनी में नौकरी शुरू की जहाँ उन्हें दो रुपए की मजदूरी मिलती थी।
सँभाली कमानी ट्यूब्स की बागडोर
कल्पना ने सालों से बन्द पड़ी ‘कमानी ट्यूब्स’ कंपनी के कर्मचारी कल्पना से मिले और कंपनी को दोबारा खड़ी करने के लिए उनका सहयोग मांगा। फिर कल्पना ने कर्मचारियों के साथ मिलकर कंपनी को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में काम करने की शुरुआत कर दी। उस समय कंपनी पर करोड़ो का सरकारी कर्ज़ा था। कंपनी की ज़मीन पर गैर कानूनी तरीके से कब्ज़ा किया जा चुका था। कर्मचारियों को लंबे समय से वेतन नहीं मिले थे और कंपनी पूरी तरह से मालिकाना और कानूनी विवादों से घिरी हुई थी।
कल्पना ने लगातार मेहनत करके कंपनी को इन विवादों से बाहर निकाला और ‘कमानी ट्यूब्स’ को दोबारा खड़ा किया। आज इस कंपनी का टर्नओवर करोड़ो में है।
कल्पना सरोज, एक दलित लड़की जिन्होंने जातिगत और लैंगिक भेदभाव से लड़ते हुए कामयाबी का यह सफर तय किया।
जातिगत और लैंगिक भेदभाव के पार
अपने जीवन के बारे में बात करते हुए कल्पना बताती हैं कि कैसे स्कूल में उनके साथ जातिगत भेदभाव करने की कोशिश की गई।’वे (स्कूल प्रशासन) मुझे दूसरे छात्रों से दूर बैठाने की कोशिश करते थे। वे मुझे लगातार खेलकूद और अन्य गतिविधियों में हिस्सा लेने से रोकते रहते थे।’
इसके अलावा, उनकी शादी कम उम्र में हो गई क्योंकि उनके रिश्तेदारों और समाज में बाल – विवाह बहुत आम बात थी। उनके ससुराल में उनके साथ किसी न किसी बहाने से हिंसक व्यवहार किया जाता।उनके पिता को यह बात पता चली तो वे उन्हें वापिस तो ले आए, लेकिन अपने आसपास के लोगों के तानों और दुर्व्यवहार ने उन्हें बेहद निराश कर दिया।
भारतीय समाज में लड़की, वह भी निम्नवर्गीय दलित परिवार की लड़की होना कितना मुश्किल है लेकिन कल्पना की मानें तो ‘जो मंज़िल हासिल करना चाहते हैं, वह चाहे कुछ भी हो, अगर आप पूरे दिल से खुद को उस काम के प्रति समर्पित कर देंगे तो ज़रूर सफल होंगे।’ कल्पना सरोज के दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि साल 2013 में उन्हें ट्रेड और इंडस्ट्री के लिए पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था। कल्पना सरोज, एक दलित लड़की जिन्होंने जातिगत और लैंगिक भेदभाव से लड़ते हुए कामयाबी का यह सफर तय किया, आज छह कम्पनियों की मालकिन हैं।
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तस्वीर साभार : taginlife