घड़ी में दोपहर के 2.30 बजते ही वो घबरा जाती थी। यह समय होता था उस लड़की का पूर्व भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद के साथ “सत्र” के लिए उसके “निजी कमरे” में जाने का।
अपने वकील को दिए 23 वर्षीय छात्रा के बयान के अनुसार, पहली बार जब 72 वर्षीय चिन्मयानंद ने जबरदस्ती उसके साथ सेक्स किया था तो उसे एक डॉक्टर से मिलने जाना पड़ा क्योंकि वो बहुत आक्रामक था। उसने यह भी बताया कि चिन्मयानंद जब भी आश्रम में होता तो उसकी दिनचर्या तय हो गई थी, ‘सुबह 6 बजे मालिश के लिए समय निर्धारित था और 2:30 बजे फिर से ‘अन्य’ सत्र का समय होता।’
यह मामला छात्रा द्वारा फेसबुक पर एक वीडियो जारी करने के बाद सामने आया था । छात्रा ने चिन्मयानंद पर यौन उत्पीड़न के अलावा परिवार को जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया है। मीडिया में मामले ने तूल पकड़ा तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एसआईटी मामले की छानबीन में जुट गई।छात्र ने 42 क्लिप एसआईटी को सौंप दिए हैं। क्लिप में चिन्मयानंद को कथित तौर पर लड़की के साथ अश्लील बातें करते और उसे अपने निजी अंगों पर मालिश करते रहने के लिए कहते हुए देखा जा सकता है। क्लिप को फोरेंसिक जाँच में सही पाया गया। छात्र द्वारा लगाए गए अधिकांश आरोपों को चिन्मयानंद ने स्वीकार भी कर लिया है।
बावजूद इसके अब छात्रा रंगदारी के आरोप में जेल में है और चिन्मयानंद बीमारी का बहाना बनाकर अस्पताल के एसी कमरे में। ये स्थिति एकदम उलटी है, जहाँ बलात्कारी अस्पताल में और पीड़िता जेल में है।
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ये पूरा घटनाक्रम को देख-सुन कर मन आक्रोश से भर जाता है। इसे देखकर आश्चर्य होता है कि ये कैसा देश है जिसमें सरकार की तरफ़ से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के बड़े-बड़े नारे दिए जाते हैं और उसी सत्ताधारी दल का एक ताकतवर नेता अपने आश्रम में पढ़ रही 23 वर्षीय छात्रा का यौन उत्पीड़न करता है। एसआईटी और पुलिस महीने भर पीड़िता की शिकायत पर ना तो एफआईआर दर्ज करती है और न ही आरोपी को गिरफ्तार करती है। जबकि चिन्मयानंद ने उस लड़की के खिलाफ जबरन वसूली का मामला दर्ज कराया और दो दिनों के भीतर यूपी पुलिस ने लड़की को गिरफ्तार कर लिया।
एक सवाल यह भी उठता है कि क्या 23 साल की एक छात्रा 72 वर्षीय ताकतवर नेता पर भारी पड़ रही थी कि पूरा पुलिस और प्रशासन उसे बचाने में जुट गया?
एसआईटी की जांच भी पूरी तरह से पक्षपाती जांच है। एसआईटी ने बलात्कार का मामला दर्ज ही नहीं किया है। चिन्मयानंद के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (सी) लगी है जिसमें अपने पद का दुरुपयोग कर यौन शोषण करने के जुर्म में सजा मुकर्रर होता है। चिन्मयानंद पर इसके बजाय अधिक गंभीर धारा 376 (2) के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए था, जिसमें बलात्कार का दोषी पाए जाने पर दस साल से लेकर आजीवन कारावास होने का प्रावधान है। स्पष्ट है कि आरोपी को बचाया जा रहा है।
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सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि चिन्मयानंद को स्वामी का पद मिला हुआ था। ऐसे पाखंडी जीव हिंदू धर्म पर एक कलंक हैं। पर विडंबना यह है कि ऐसे पाखंडी जीवों से आज की सत्ताधारी पार्टी भरी हुई है। ऐसे पाखंडी जीवों को यह पार्टी ना सिर्फ टिकट देती है बल्कि सिर पर बिठाकर रखती है । यहाँ प्रशंसा करनी चाहिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का जिन्होंने मामले का संज्ञान लेते हुए तत्काल चिन्मयानंद से उसके संत की उपाधि को छीन लिया। पर सत्ताधारी दल आज भी सो रही है। अभी तक चिन्मयानंद को पार्टी से निष्कासित नहीं किया गया है। लीपापोती करने के लिए एकाद प्रवक्ता ने कहा कि वह पार्टी में है ही नहीं पर जो व्यक्ति पूर्व सांसद है वह जब तक या तो स्वयं लिखित में ना दिया हो या फिर पार्टी ने निष्कासित ना किया हो तब तक तो उस पार्टी का ही कहलाएगा।
इसे सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ता और सड़ी हुई सोच का वीभत्स रूप ही कहेंगे जहाँ सारी हदों को पार करते हुए इंसानियत और क़ानून को ताक पर रखा जा रहा है।
एक सवाल यह भी उठता है कि क्या 23 साल की एक छात्रा 72 वर्षीय ताकतवर नेता पर भारी पड़ रही थी कि पूरा पुलिस और प्रशासन उसे बचाने में जुट गया? एक बार के लिए मान भी लिया जाए की छात्रा ने कुछ गलत किया है तो जांच होनी चाहिए और दोषी पाए जाने पर सजा भी होनी चाहिए। पर बिना दोषी पाए, बिना जाँच के उसे गिरफ्तार करना और न्यायिक हिरासत में या फिर जेल में रखना कितना सही है जबकि एक सीरियल बलात्कारी को अस्पताल के एसी कमरे में रखा गया है।
ये पूरी घटना ज़हन में कई सवाल खड़ा करती है कि –
- आखिर क्यों पुलिस चिन्मयानंद को संरक्षण दे रही है?
- आखिर क्यों अब तक बलात्कार का मामला दर्ज नहीं हुआ?
- आखिर क्यों पीड़िता को ही प्रताड़ित किया जा रहा है?
- आखिर चिन्मयानंद अब तक अस्पताल में क्यों है?
ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब मिलना मुश्किल है। बाक़ी इसे सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ता और सड़ी हुई सोच का वीभत्स रूप ही कहेंगे जहाँ सारी हदों को पार करते हुए इंसानियत और क़ानून को ताक पर रखा जा रहा है। ऐसे में आधी आबादी को शोषित कर विश्वगुरु बनने का सपना देखना बेमानी नहीं तो और क्या है भला?
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