पिछले कई दिनों से हमारा देश सड़कों पर उतर आया है। हमारे संविधान की रक्षा के लिए, असंवैधानिक एनआरसी और सीएए जैसे कानूनों को चुनौती देने के लिए। सीएए वो क़ानून हैं जो मज़हब के ज़रिये भेदभाव करने में समर्थ है तो वहीँ एनआरसी वो कानून है जहाँ कागज़ात दिखा कर हमे अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। और जिसके पास कागज़ात नहीं होंगे उसे भारतीय नागरिक मानने से सरासर इंकार कर दिया जाएगा और डिटेंशन सेंटर में उन लोगों को रखा जाएगा जो इस देश की नागरिकता साबित नहीं कर पाए।
वहीँ सीएए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से आये सिख, ईसाई और हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता देने की बात करता है और इसमें मुसलमान धर्म के लोगों को ये कहकर शामिल नहीं किया गया कि पाकिस्तान बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान पहले से ही मुस्लिम बहुसंख्यक देश है। इस प्रकार एनआरसी में अगर कोई हिन्दू, सिख और ईसाई अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकता तो वो सीएए के तहत अपनी नागरिकता हासिल करने के कदम आगे बढ़ा सकता है, लेकिन मुसलमान नहीं। इस तरह ये कानून एक साथ अगर इस्तेमाल किये जाएँ तो देश को मज़हब के नामपर बाँटने का काम करेंगें।
हम भारत के लोग
लेकिन जैसा की भारत के संविधान में लिखा है “हम भारत के लोग” -जो लोग आज सड़कों पर हैं, आन्दोलनों में शामिल है और नारों से ये सारा हुजूम आज देश के संविधान की प्रतिष्ठा और अस्मिता बचाने में जुटा है। ये जद्दोजहद सरकार और देशवासियों के बीच जारी है। सड़कों पर आज वो लोग भी मौजूद हैं जिन्होंने शायद ही कभी किसी आंदोलन में हिस्सा लिया हो। क्यूंकि बात गैर-बराबरी की है, जो की देश का संविधान ख़ुद नहीं कबूलता और ना ही इसकी इजाज़त देता है।
ये सड़कों पर उतरे लोग वो हैं, जिन्हें तकलीफ़ होती हैं कुर्सियों के नीचे अपने हक़ों को कुचलता देख, जो इस अनापरास्त सियासत से ख़फ़ा हैं, जो अपने सारे अधिकार बखूबी जानते हैं। इस आंदोलन में वो लोग भी हैं जो अपने तमाम विशेषाधिकारों की जानकारी रखते हैं और वो लोग तक जो अल्पसंख्यक हैं, हाशिये पर हैं, जिनके पास सियासी न होने की “प्रिवलेज” मतलब विशेषाधिकार नहीं हैं। लेकिन तब भी ये सभी अपने जज़्बों को ज़िन्दा रखते हुए, लगातार अनेकता के खिलाफ़ पुलिस की तरफ़ से की जा रही हिंसा के बावजूद लड़ रहे हैं और आवाज़ उठा रहें हैं।
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गुस्सा, दुःख और जोश!
देश के इस अराजक माहौल में, इस अघोषित आपातकाल में, हम उत्तेजित हैं, क्रोधित हैं, दुखी हैं। ऐसी और भी कई ढेर सारी भावनाओं ने हमारे भीतर एक कौतुहल मचा दिया है, जिसमें बेचारगी, निराशा, चिढ़ और भी बहुत से एहसासों ने ज़हन को दबोच लिया है। ऐसे में हमारा मानसिक स्वास्थ्य चीखते-पुकारते नारें लगाते, लिखते-पढ़ते थक रहा है, परेशान हो रहा है। जब हम उत्तेजित होतें हैं तो जिस्म का हर हिस्सा हांफता हैं, ऐसे में कुछ कर जाने जैसा मन में आता है। लेकिन तब भी ऐसे अस्त-व्यस्त माहौल में, संवैधानिक मर्यादाएं हमें धैर्य रखना सिखाती है, क्योंकि हम उसी के लिए तो ये आन्दोलन कर रहे हैं। पर ऐसे अशांति के माहौल में ऐसी हिंसा में, हम अपने मन को कितना संभाल पाएंगे?
महसूस करना इन एहसासों को
इन सभी एहसासों को महससू करना, रोने का दिल करे तो रोना, गुस्सा आये तो लिखना। इस प्रकार कई साथी इन तमाम एहसासों से निपट रहे हैं। निराशा लगातार है, लेकिन इस निराशा से भागने के बजाय इसे महसूस करना ज़रूरी है। हाँ ये ज़रूर हो सकता है कि इतने बड़े पैमाने पर हो रहें आंदोलन अराजकता हमें और हमारी खुद की निजी समस्याओं को एक छोटा आकर दे दे। हमें ये महसूस होने लगा है कि हमारी अपनी समस्या तो कुछ है ही नहीं या फिर इसे साझा करने में हम शर्म महसूस करने लगे और कहीं बहुत अंदर अपनी समस्याओं को दबाकर रखे रहें तो वो सरासर गलत होगा।
अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख़याल रखना बहुत ज़रूरी है, खासकर तब, जब सियासत से संविधान के लिए लड़ना हो, तो ये और भी ज़रूरी हो जाता है।
मन के लिए थोड़ी सावधानी, जनहित में जारी
हमारा जटिल मन, बहुत सारे ज़ख्म अपने भीतर दबाए रखता है और ऐसे समय में जब चारों ओर हिंसा हो, दमन हो, वहां कई बार उत्तेजना में हमारी अपनी पुरानी दबी यादें तक बाहर आ सकती हैं। ऐसे में ख़याल रखना बेहद ज़रूरी है। अगर आप जानते हैं कि आपका मन हिंसा देखकर विचलित होता है तो हर मीडिया के नीचे लिखे कैप्शन जानकारी को पहले पढ़े, अगर उसमें “ट्रिगर वार्निंग” लिखी हो तो उसे न देखें, न डाउनलोड करें।
ज़रूरी नहीं कि अगर सब सड़कों पर हो तो आप भी हो। अगर आपकी कोई गंभीर वजह है, जिस कारण आप आंदोलन का हिस्सा नहीं बन पा रहे, ऐसे में अपराधबोध महसूस करना ठीक नहीं है! आप घर बैठे भी इसका हिस्सा बन सकते हैं, बातचीत के द्वारा आपके लेखन के द्वारा।
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किस तरह रखें ख़्याल
इस समय में अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख़याल रखना बेहद ज़रूरी है और इसका ये मतलब बिलकुल भी नहीं है कि आप स्वार्थी है। इसका मतलब ये है कि आप खुद को सुलझा कर किसी भी आंदोलन का भाग बनना चाहते हैं। आप चाहते हैं की आप अवसाद की ओर न चले जाएँ। इसीलिए ये स्वार्थ हरगिज़ नहीं हुआ।
आप अपनी निजी समस्याएं अपने विश्वासपात्र लोगों से साझा करने में कभी न चूके और अपने भीतर दबाकर उसे छोटा न बनाये, हर बात जो मन को विचलित करे वो ज़रूरी है। आपकी भावनाएं ज़रूरी है, वो सच्ची हैं और व बेहद मायने रखतीं हैं। अगर आप दिमागी और शारीरिक रूप से थका हुआ महसूस कर रहें हैं तो सोशल मीडिया से कुछ दिन का ब्रेक लें, दोस्तों के संपर्क में रहें, पर किसी भी तरह का मीडिया, न्यूज़, तस्वीरें वीडियों आदि को न देखें हैं।
ख़ुद के मानसिक स्वास्थ्य को समय दें और खुद में ऊर्जा भरें। अगर आप पहले से ही कॉउंसलिंग या थेरेपी लेते हैं तो अपने थेरेपिस्ट/काऊंसलर से बात करें।अगर नहीं तो किसी दोस्त विश्वासपात्र व्यक्ति से बात करें, और अगर बात करने का मन भी नहीं हो, तो ब्रेक लेकर वो चीज़ें करें जिनमे आपकी दिलचस्पी हो। जो आपके मन को थोड़ा शांत कर पाए।
अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख़याल रखना बहुत ज़रूरी है, खासकर तब, जब सियासत से संविधान के लिए लड़ना हो, तो ये और भी ज़रूरी हो जाता है। इसीलिए ये कोशिश करते रहें की आप ख़ुद को अनदेखा न करे। ये याद रखें की आप मायने रखते हैं और आपकी सभी भावनाएं ज़रूरी हैं।
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तस्वीर साभार : straitstimes
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