एसिड अटैक के मुद्दे पर बनाई गई फ़िल्म छपाक, समाज की एक सत्य घटना पर आधारित है। एक लड़की जिसपर दिन दहाड़े एसिड अटैक होता है और किस तरह ये उसकी पूरी ज़िन्दगी को बदल देता है। किस तरह उसकी ज़िन्दगी की कहानी जघन्य हिंसा के उस एक लम्हे से बदल जाती है, ऐसी कहानी बहुत संजीदा तरीके से छपाक बयां करती है।
फ़िल्म छपाक का चित्रण काफ़ी सहज तरीके से किया गया और ज़्यादा नाटकीय रूपांतरण कहीं नहीं दिखा। सभी के किरदार अपने आप में गंभीरता से निभाए गए दर्शाये गए। मेघना गुलज़ार की निर्देशित इस फ़िल्म में हर किरदार बखूबी से उसमें रमा हुआ सा नज़र आया। फ़िल्म में कई गहराइयाँ भी सामने आयीं, खासकर हमारी कानून-व्यवस्था का असंवेदनशील रवैय्या, कि किस प्रकार से विक्टिम शेमिंग की जाती है, किस तरह से पितृसत्तात्मक कानूनी ढांचा पीड़ित लड़की पर ही हावी होता है। ऐसे ही जैसे ये सवाल है कि, “आपने क्या पहना था!” या फिर “आप इतने बजे तक बाहर क्यों थीं?” कि किस प्रकार समाज और कानून पहले लड़की की पुलिसिंग करने को उतारू हो जाता है। आरोपी ने ऐसा क्यों किया या फिर आरोपी को ढूँढना ये सब तो इन प्रश्नों के बहुत बाद आता है। पहले किसी भी लड़की के आचरण पर सवाल उठाना, उसके चरित्र को आंकना या फिर उसे अच्छी बुरी में से किसी एक ढाँचे में बिठाने की कोशिश करना। ये सभी बहुत गंभीरता से फ़िल्म में दर्शाया गया।
भेदभाव की परतें उकेरती फ़िल्म
छपाक कई मायनों में इंटरसेक्शनल फ़िल्म बनकर सामने आयी। जिस तरह से फ़िल्म में दो दलित लड़कियों को दिखाया गया की किस तरह ऊंची जाति के लड़कों ने उनपर एसिड फेंका और दुर्व्यवहार करने की कोशिश की। ये दर्शाता है की वाकई दलित महिलाओं के संघर्ष का एक कतरा बड़े परदे पर सामने लाया गया, किस तरह वो लड़कियां ये तक बताती है की उन्हें पहला इलाज इसीलिए नहीं मिला क्योंकि उनसे कहा गया की “ये अस्पताल तुम्हारी जाति वालों का नहीं है।” वो पीड़ा वो दर्द उस एक दृश्य में साफ़ झलक रहा था, की किस तरह ब्राह्मवादी पितृसत्ता आज भी हावी है और कितनी दमनकारी है।
और पढ़ें : “उसने मेरे चेहरे पर एसिड डाला है, मेरे सपनों पर नहीं” – लक्ष्मी
सरकार की धीमी रफ़्तार
फ़िल्म में सरकार के उठाए गए क़दमों का रूपांतरण भी जिस तरह दर्शाया गया है व बिलकुल ही सही रूप में पेश किया गया। लक्ष्मी अग्रवाल की ज़िन्दगी पर आधारित इस फ़िल्म ने बारीकी से लक्ष्मी के किए गए उन प्रयासों को दिखाया जहाँ वो चाहतीं थी की एसिड की बिक्री पर प्रतिबन्ध लग जाए, जिस तरह उन्होंने जनहित याचिका दायर की। उनकी जनहित याचिका ने अपराध से निपटने के लिए एक नए कानून या मौजूदा आपराधिक कानूनों जैसे आईपीसी, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और सीआरपीसी में संशोधन की मांग की, इसके अलावा मुआवज़े की भी मांग इस याचिका में की गई।
ये फ़िल्म समाज के सामने निडर अडिग होकर बार-बार उनसे सवाल कर रही है और करती भी जायेगी।
एक सुनवाई के दौरान, केंद्र ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय को आश्वासन दिया था कि वह अगली सुनवाई से पहले एक योजना बनाने के लिए राज्य सरकारों के साथ काम करेगा। हालांकि, वो ऐसा करने में विफल रहे, जिसने अदालत को नाराज कर दिया। जब केंद्र एक योजना का निर्माण करने में विफल रहा तो सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर सरकार एसिड हमलों को रोकने के लिए एसिड की बिक्री पर अंकुश लगाने के लिए नीति बनाने में विफल रही तो वह हस्तक्षेप करेगी और आदेश पारित करेगी। जस्टिस आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस मुद्दे को संभालने में सरकार की ओर से गंभीरता नहीं देखी गई है। इससे पहले, अदालत ने केंद्र को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों की छह सप्ताह में बैठक बुलाकर एसिड की बिक्री को रोकने के लिए एक कानून बनाने और उपचार, मुआवजा और देखभाल के लिए एक नीति बनाने के लिए चर्चा करने का निर्देश दिया था। पीड़ितों के पुनर्वास के लिए भी कहा गया था। इस तरह ये सच फ़िल्म में दर्शाया गया सरकार की जुमलेबाज़ी भी दिखाई गई।
एसिड से लड़कियों के सपनों को रौंदने की कोशिश
फ़िल्म में कई बार कोशिश की गई उस मानसिकता पर सवाल उठाने की जिसके साथ एसिड फेंका जाता है और ऐसी अमानवीय हिंसा की जाती है। मधुरजीत सारघी ने वकील के किरदार में ये बात साफ़ शब्दों में कही कि हमला उन लड़कियों पर किया गया जो कुछ बनना चाहती थी, कुछ करना चाहती थीं और ये अटैक उन सभी को उनकी जगह याद दिलाने की कोशिश में किया गया की वो सपने नहीं देख सकती! सारघी के इस डायलॉग ने आधी सच्चाई बयां करी, क्योंकि हम सभी इस बात से वाकिफ़ है की हमला उन लड़कियो पर भी हुआ जिन्होंने पीछा करने वाले लड़के को नज़रअंदाज़ किया, जिन्होंने “ना” कहा, और इस ना से उन अपराधियों का अहम् छलनी हुआ और इसी का बदला लेने के लिए उन्होंने ये हिंसात्मक हमले किये। क्योंकि पितृसत्तात्मक समाज में तो सिर्फ़ पुरुषों का अहम् मायने रखता है और इसी छोटी सोच के चलते ये हमले किये गए।
छपाक आपको कोई भी फ़िल्मी खुशनुमा अंत नहीं दिखाती, ये आपसे अंत तक सवाल करती है।
अभिनय और किरदार
फ़िल्म का हर अभिनेता/अभिनेत्री अपने किरदार में रमे हुए दिखे। दीपिका पादुकोण का अभिनय बहुत ख़ूबसूरती से बड़े परदे पर दिखा। उनके अभिनय ने जनता को समाज की इस हिंसा से सिहरने दिया, रोने दिया, महसूस करने दिया उन तमाम लड़कियों का संघर्ष जिन्होंने इस हिंसा के बाद भी अपनी ज़िन्दगी जी और हिम्मत नहीं हारीं। छपाक आपको कोई भी फ़िल्मी खुशनुमा अंत नहीं दिखाती, ये आपसे अंत तक सवाल करती है और जारी रहते इन एसिड अटैक को दिखाती है कि ये लोग आज भी समाज में बेख़ौफ़ किसी की ज़िन्दगी तबाह करने को आज़ादी से हाँथ में एसिड लिए फिर रहें हैं!
और पढ़ें : छपाक : एसिड अटैक सरवाइवर की महज़ कहानी नहीं, उनकी ज़िंदगी की हक़ीक़त है!
लक्ष्मी के जीवन का संघर्ष
अभिनेताओं ने तो सिर्फ अभिनय किया और जनता ने महसूस करने की कोशिशे की। लेकिन वो लक्ष्मी थीं जिन्होंने वाकई में इन सबको झेला संघर्ष किया। मानसिक शारीरिक पीड़ाओं के बावजूद उन्होंने सिर्फ अपने ही इन्साफ़ की गुहार न्यायालय के आगे नहीं लगाई बल्कि अपनी लगाई गई जनहित याचिका से उन सभी एसिड अटैक सरवाइवर के लिए मुआवाज़ा और बेहतर इलाज की मांग की। उन्होंने भविष्य की महिलाओं को इस हिंसा से न गुज़रना पड़े इसीलिए सीधा-सीधा याचिका में एसिड बैन की मांग की।
लक्ष्मी की ये हिम्मत ही है जो आज उनकी कहानी बड़े परदे से सभी के सामने आयी है। आज कोई भी इस बात को इस हिंसा को कोई भी खबर समझकर आगे नहीं बढ़ा सकता। ये फ़िल्म समाज के सामने निडर अडिग होकर बार-बार उनसे सवाल कर रही है और करती भी जायेगी। लक्ष्मी को शायद इस फ़िल्म से दुबारा अपनी बात रखने का मौका तो मिलेगा ही, साथ ही 2018 सितम्बर के इंटरव्यू में जहाँ लक्ष्मी ने बताया था कि उनके पास नौकरी नहीं है और वो किसी तरह अपना जीवन गुज़ारने का और बेटी की परवरिश अच्छे से करने की कोशिश कर रही है। हम आशा करते हैं की समाज में सिर्फ़ उनकी कहानी से व्यापार न किया जाए, बल्कि गंभीरता से उन तमाम एसिड अटैक सरवाईवर्स का सोचा जाए की वो अपना जीवन कैसे बिताएंगी की सभी आर्थिक रूप से सशक्त हो पाइ है या नहीं।
आख़िर में लक्ष्मी के जज़्बे और सभी एसिड अटैक सर्वाइवर्स को हमारा सलाम!
और पढ़ें : ख़ुद में बेहद ख़ास होता है हर इंसान : विद्या बालन
तस्वीर साभार : hindirush
Good review!