इंटरसेक्शनलजेंडर सेल्फ़ डिफ़ेन्स अच्छी चीज़ है, पर इससे रेप कल्चर ख़त्म नहीं होगा।

सेल्फ़ डिफ़ेन्स अच्छी चीज़ है, पर इससे रेप कल्चर ख़त्म नहीं होगा।

हमारा उद्देश्य है रेप कल्चर को जड़ से उखाड़ फेंकने का, ताकि हमारा समाज लड़कियों और औरतों के रहने लायक़ बन सके और उन्हें हमेशा शोषण के डर से न जीना पड़े।

हम एक ‘रेप कल्चर’ में रहते हैं। एक ऐसा समाज जहां औरतों का बलात्कार, उनका यौन शोषण हर रोज़ की आम बात है। यहाँ हर 20 मिनट में एक औरत का रेप होता है और हर तीसरी रेप पीड़िता एक नाबालिग़ है। यहाँ रेप या यौन शोषण से गुज़री औरत को ‘बदचलन’ मान लिया जाता है और ये कहा जाता है कि उसी की कोई ग़लती रही होगी जिसके कारण उसे ‘सबक सिखाना’ पड़ा। यहाँ रेप करनेवालों को कोई कुछ नहीं कहता, क्योंकि ‘लड़के हैं, ग़लती हो जाती है।’ ऐसे में जब औरतों को समाज से कोई सपोर्ट नहीं मिलता, जब रेप की शिकायत करने पर हमें अपने चरित्र, पहनावे, लाइफस्टाइल और पुराने यौन संबंधों पर सवाल किया जाता है, हमें अपनी रक्षा खुद ही करनी पड़ती है। ‘सेल्फ़ डिफ़ेन्स’ के कई तरीक़े हमें सिखाए जाते हैं। हाथ में चाकू, सेफ्टी पिन या पेप्पर स्प्रे रखने से लेकर कुंग फ़ू, कराटे और टायक्वोंडो जैसे मार्शल आर्ट्स सीखने तक। ये तरीके कई औरतों के काम आए हैं।

सेल्फ डिफ़ेंस के तरीके अपनाने वाली औरतें ख़ुद को पहले से ज़्यादा सशक्त और स्वाभिमानी महसूस कर रहीं हैं और शोषण का वो पुराना डर धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा है। आजकल जगह-जगह सेल्फ डिफ़ेंस की क्लासेज़ रखी जाती हैं और औरतें भारी मात्रा में उनमें हिस्सा भी लेती हैं। फिर भी, रेप कल्चर को जड़ से ख़त्म करने के लिए ये काफ़ी नहीं है। यौन उत्पीड़न के खिलाफ ये कोई ‘लॉंग-टर्म सोल्युशन’ नहीं है  और इसके कई कारण हैं। 

पीड़िता की मानसिक स्थिति पर बहुत कुछ निर्भर है

पहली बात तो ये है कि हम सब मानसिक तौर पर अलग हैं। हर लड़की शोषित होने पर अलग तरह से रियेक्ट करती है। जहां कुछ लड़कियों में ताकत होती है ऐसे हालातों में दिमाग ठंडा रखकर शोषणकारी को उसकी भाषा में जवाब देने की, वहीं कुछ लड़कियां अपना मानसिक संतुलन खो बैठती हैं और एंग्जायटी से ग्रसित हो जाती हैं।  ऐसे में अगर उनको सेल्फ़ डिफेंस आता भी हो तो भी वे उस वक़्त नर्वस होने या सदमे में चले जाने की वजह से उसे नहीं आज़मा पातीं। 

लॉ स्टूडेंट, तान्या मांगलिक, ‘फेमिनिज्म इन इंडिया’ के लिए लिखती हैं कि ‘मुझे बचपन से मार्शल आर्ट्स का बहुत शौक है। नौ  साल की उम्र में मैंने अपने मोहल्ले में टायक्वांडो सीखना शुरू किया था। कुछ महीने बाद जब हम दूसरी कॉलोनी में शिफ्ट हो गए, मैंने वहाँ इसरायली मार्शल आर्ट, ‘क्राव मागा’ की ट्रेनिंग ली। मुझे लगता है कि मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग आपको सिर्फ एक ख़ास परिस्थिति के लिए प्रस्तुत करता है। जिसमें आपको पता होता है कि कोई आप पर हमला करनेवाला है। पर असल ज़िन्दगी ऐसी नहीं है। यहां आप पहले से नहीं बता सकते कि आपके साथ कुछ होनेवाला है। इसलिए जब ऐसा होता है, तो डर और एंग्जायटी आपको खा जाते हैं और आपका दिमाग चलना बंद कर देता है और सारी ट्रेनिंग बेकार हो जाती है।’

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रेपिस्ट अगर जान-पहचान का हो तो?

दूसरी बात, सेल्फ डिफ़ेंस तभी काम आ सकता है जब रास्ते में कोई अजनबी हमें परेशान करे, जबकि NCRB के आंकड़ों के अनुसार, 98 फ़ीसद पीड़िताएं अपने रेपिस्ट को व्यक्तिगत तौर पर पहचानती हैं। शोषणकारी उनका दोस्त या पार्टनर ही नहीं, उनका टीचर, पिता, भाई, रिश्तेदार, सहकर्मी या बॉस हो सकता है। ऐसे में शोषणकारी के साथ पीड़िता का सामाजिक रिश्ता बीच में आ जाता है और उस पर शारीरिक हमला तो दूर की बात, उसके ख़िलाफ़ शिकायत करने पर भी बदनामी पीड़िता की ही होती है। खासकर अगर दोनों की उम्र और पोज़िशन में जब बहुत फ़र्क हो या पीड़िता नाबालिग हो।

वर्तिका पांडे का कहना है कि जब बचपन में उनके भाई ने उनका यौन शोषण किया था, उन्होंने अपनी चाची से शिकायत की थी मगर चाची ने इस बात को गंभीरता से नहीं ली और हंसी में उड़ा दिया। अगर अपनी आवाज़ उठाने पर भी उन्हें सीरियसली नहीं लिया गया, तो सेल्फ़ डिफ़ेन्स से क्या ही फायदा होता?

बच्चियां ही नहीं, 80 साल की बुज़ुर्ग महिलाएं तक रेप की शिकार होती हैं। और इनमें से बहुत कम ही हैं जो शारीरिक तौर पर अपनी रक्षा खुद करने की काबिलियत रखती हैं। 

दिव्यांगों के लिए ये मुश्किल है

स्वाति कंकण दिल्ली की रहनेवाली हैं। उन्हें ‘जॉइंट हाइपरमोबिलिटी सिंड्रोम’ है, जिसकी वजह से वे अपने हाथ-पैर ठीक से चला नहीं पातीं। वे कहती हैं, ‘सेल्फ़ डिफेन्स उन्हीं औरतों के लिए एक सोल्युशन है जो शारीरिक तौर पर लड़ने में सक्षम हैं। जो शारीरिक या मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं, उनके पास रेप से लड़ने का कोई तरीका नहीं है। मेरी शारीरिक स्थिति की वजह से मैं मार्शल आर्ट्स जैसे सेल्फ डिफेन्स के तरीके नहीं अपना सकती। पर फिर भी मुझे सुरक्षित रहने का हक़ है। चाहे मैं कुछ भी पहनूं या कहीं भी जाऊं।’ स्वाति इस बात पर ज़ोर डालती हैं कि अगर कोई लड़की खुद को डिफेंड नहीं कर पाती है तो  उसे उसके रेप के लिए ज़िम्मेदार मानना गलत है।

बच्चियों और बुज़ुर्गों का क्या?

19 साल की श्रेया (नाम बदला गया है) कहती हैं, ‘मुझे बहुत बुरा लगता है जब लोग कहते हैं कि लड़कियों को सेल्फ डिफेन्स सीखना चाहिए। जब मेरा यौन शोषण हुआ था तब मैं सात साल की थी और वो आदमी मुझसे कहीं ज़्यादा बड़ा और ताकतवर था। मैं तो उस वक्त हिल भी नहीं पा रही थी तो मैं कैसे अपने आपको डिफेंड करती?’ बच्चियां ही नहीं, 80 साल की बुज़ुर्ग महिलाएं तक रेप की शिकार होती हैं। और इनमें से बहुत कम ही हैं जो शारीरिक तौर पर अपनी रक्षा खुद करने की काबिलियत रखती हैं। 

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शोषण हमेशा शारीरिक नहीं होता

रेप तो महज़ एक पहलू है। पर यौन उत्पीड़न शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक भी होता है। एक शोध के अनुसार, 13 फ़ीसद महिलाओं को इंटरनेट पर भद्दे और अश्लील मेसेज भेजे जाते हैं। गालियां दी जाती है और गुप्तांगों के फ़ोटो भेजे जाते हैं, जो कि मानसिक तौर पर बहुत स्ट्रेस्फुल होता है। इसके ख़िलाफ़ कौनसे मार्शल आर्ट्स काम आएंगे?

23 साल की यज्ञा (नाम बदला गया है) कहती हैं, ‘जब मैं 9वीं क्लास में थी, कुछ लड़के मुझे बहुत परेशान करते थे। मुझे आज तक मालूम नहीं वे कौन थे। रोज़ सुबह मेरे डेस्क पर कंडोम रख दिए जाते थे। गंदी-गंदी चिट्ठियां भेजी जाती थीं।  मैंने टीचर्स से शिकायत की थी मगर वो लोग ये सब चोरी-छुपे करते थे तो टीचर्स भी पता नहीं लगा पाए कि वे कौन हैं। बाद में ये सब बंद हो गया मगर यादें अभी भी ताज़ा हैं।’ जहां उत्पीड़न करनेवालों का पता ही नहीं लग पाता, ऐसे हालत में एक लड़की से अपनी आत्मरक्षा की उम्मीद करना उसके ऊपर बहुत बड़ा बोझ है।

तो क्या किया जाए?

बात ये नहीं है कि औरतों को सेल्फ डिफेन्स नहीं सीखना चाहिए। यही है कि हर औरत के लिए खुद को हर वक्त डिफेंड करना संभव नहीं है, इसलिए रेप कल्चर ख़त्म करने की ज़िम्मेदारी पीड़िताओं पर नहीं, पूरे समाज पर होनी चाहिए। और ये तभी होगा जब रेप और शोषण के खिलाफ कानून कठोर तरीक़े से लागू किए जाएंगे और लड़कों को बचपन से लड़कियों की इज़्ज़त करना, उनकी पर्सनल बाउंडरीज़ का सम्मान करना सिखाया जाएगा। सेक्स और कंसेंट के बारे में बच्चों के साथ खुलेआम चर्चा की जाएगी और स्कूल के सिलेबस में ‘कॉम्प्रिहेंसिव सेक्सुअल एजुकेशन’ अनिवार्य किया जाएगा।

हमारा उद्देश्य है रेप कल्चर को जड़ से उखाड़ फेंकने का, ताकि हमारा समाज लड़कियों और औरतों के रहने लायक़ बन सके और उन्हें हमेशा शोषण के डर से न जीना पड़े। ये एक लंबी लड़ाई है और इसकी शुरुआत तब होगी जब यौन शोषण की पीड़िताओं को उनकी स्थिति के लिए ज़िम्मेदार ठहरना बंद करेंगे। 

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तस्वीर साभार : sayfty

Comments:

  1. Sulxna Singh says:

    हमें अधिक से अधिक पुरुषों को भी इस मुहिम में शामिल करना चाहिए। मेने कई बार ऐसी कोशिश की बात करने की पुरुषों से पर ज़्यादातर पुरुषों का मानना था कि कपड़े पहनने का style बदलना चाहिए औरतों को । ऐसे जवाब बहुत ही संकीर्ण सोच के होते है पर मेरा मानना है कि स्त्रियों को शिक्षित करने के साथ साथ पुरुषों को प्रशिक्षित करने की ज़्यादा आवश्यकता है। और जो पुरुष वर्ग समझ सकता है उन्हें इस मुहिम का हिस्सा बनाना चाहिए।

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