इतिहास मुझे पैरों से क्या काम जब मेरे पास उड़ने के लिए पंख हैं: फ्रीडा काहलो

मुझे पैरों से क्या काम जब मेरे पास उड़ने के लिए पंख हैं: फ्रीडा काहलो

आज भी फ्रीडा नारीवादी आंदोलन का एक ज़रूरी चेहरा हैं जो सिर्फ़ पितृसत्ता ही नहीं बल्कि हर उस सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ थीं जिसकी नींव वर्ग वैषम्य हो।

मैगडेलीना कारमेन फ्रीडा काहलो ई कैलडेरोन। एक नाम जो बहुत कम लोगों ने सुना होगा। हमारे यहां कितने लोग जानते होंगे इस बाग़ी मेक्सिकन औरत को, जिसने अपने पेंटिंग्स के ज़रिए अपने क्रांतिकारी विचारों को पेश कर चित्रकला की दुनिया में कहर ढा दिया था? महिलाओं के शरीर और स्वास्थ्य से संबंधित टैबू माने जाने वाले विषयों पर जिनकी पेंटिंग ने सबको चौंका दिया था? मिलवाते हैं आपको बेबाक फेमिनिस्ट और कट्टर मार्क्सवादी फ्रीडा काहलो से, जिनकी सजीव, उज्जवल तस्वीरें उनके ख्यालात की तरह इंक़लाबी थीं। आंखों के सामने जीवंत होकर बोल उठती थीं, जिनका जीवन भी उनकी कला की तरह रोमांचक था।

फ्रीडा का जन्म 6 जुलाई 1907 में मेक्सिको के कोयोकान में हुआ था। हालांकि वो सब को बताती थीं कि वो साल 1910 में मेक्सिकन आंदोलन की शुरुआत में जन्मी थीं। पिता जर्मन थे और मां नेटिव अमरीकी। उनकी तीन बहनें थीं जिनमें दो उनसे बड़ी और एक छोटी थी। फ्रीडा के शब्दों में उनका बचपन “दुखद, बेहद दुखद” था। छह साल की उम्र में उन्हें पोलियो हो गया था जिसकी वजह से वे क़रीब एक साल बिस्तर पर पड़ी रहीं थीं। ठीक होने के बाद भी उनकी एक टांग दूसरी से छोटी और पतली हो गई थी, जिसकी वजह से लोग उनका मज़ाक उड़ाते थे। उनका कोई दोस्त नहीं था और अपनी मां के साथ उनका रिश्ता भी बिलकुल अच्छा नहीं था। उन्होंने लिखा था, “मेरी मां एक होनहार औरत थीं लेकिन बहुत क्रूर, बेरहम, और धर्मांध थीं।” पोलियो से पीड़ित होने के दौरान अपने पिता से उनका रिश्ता गहरा हो गया था और ज़िंदगीभर वे अपने पिता की सबसे क़रीबी इंसान रहीं। इसकी एक वजह ये थी कि उनके पिता लेप्रोसी यानी कुष्ठ रोग के मरीज़ थे और पोलियो होने के बाद फ्रीडा समझ पाईं कि एक मरीज़ की ज़िंदगी कैसी होती है।  फ्रीडा का कहना है, “मेरे पिता ने मुझे जो कुछ भी सिखाया है, मैं उसे मानती हूँ। और मैं हर उस चीज़ के खिलाफ हूं जो मेरी मां ने मुझे सिखाई हो।”

बचपन से ही उन्हें पेंटिंग करने का शौक था।  हालाँकि उन्होंने ऐसा कभी सोचा नहीं था कि वो आगे जाकर भी यही करेंगी। पोलियो के दिनों में वो बिस्तर पर लेटे अपनी और अपनी बहनों की तस्वीरें बनाती थीं। उनके पिता के दोस्त फर्नांडो फर्नांडेस चित्रकला के मामले में उनका मार्गदर्शन करते थे और उनके फोटोग्राफर पिता ने भी उन्हें तस्वीरें डेवेलप करना सिखाया था। फिर भी चित्रकला फ्रीडा के लिए महज़ एक शौक थी और वो बड़ी होकर डॉक्टर बनना चाहतीं थीं।

एक बड़ा हादसा

साल 1922 में फ्रीडा मेक्सिको सिटी के नेशनल प्रिपरेटरी स्कूल में मेडिकल की पढ़ाई करने लगीं। इसी दौरान वे मार्क्सवादी विचारधारा की ओर आकर्षित हुईं और एक छात्र संगठन से जुड़ीं। संगठन के नेता आलेहांद्रो गोमेज़ एरियस से उनकी अच्छी दोस्ती हुई और फिर प्यार भी हो गया। उस दौर में लड़कियों ने स्कूल जाना शुरू ही किया था और नेशनल प्रिपरेटरी स्कूल में महज़ 35 लड़कियां पढ़ती थीं, जिनमें से फ्रीडा अपनी बेबाक़ी, होशियारी और बागी ख्यालात की वजह से सबसे मशहूर हो गई थीं। साल 1925 में फ्रीडा के साथ बहुत बड़ा हादसा हुआ। एक दोपहर वो आलेहांद्रो के साथ बस से सवारी कर रही थीं, जब बस एक गाड़ी के साथ बुरी तरह से टकरा गई। फ्रीडा को गहरी चोट पहुंची थी। एक लोहे का डंडा उनकी कमर में घुस गया था और उनकी रीढ़ और कमर की हड्डी बुरी तरह से फ्रैक्चर हो गई थी। इस दुर्घटना से उन्हें शारीरिक चोट ही नहीं पहुंची, बल्कि बुरी तरह से सदमा भी लगा।

एक्सीडेंट की वजह से उनका स्कूल जाना बंद हो गया और डॉक्टर बनने का सपना भी अधूरा रह गया। इस गहरी मानसिक चोट को भुलाने के लिए उन्होंने अपना सारा वक्त चित्रकला को समर्पित कर दिया। उनके पिता ने उनके लिए एक ख़ास किस्म का कैनवस बनवाया जिस पर तस्वीरें बनाने के लिए उन्हें बिस्तर से उठना नहीं पड़ता। रेड क्रॉस अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए वे घंटों तक पेंटिंग करतीं। उनकी ज़्यादातर तसवीरें ‘सेल्फ़ पोर्ट्रेट’ थीं और उनका कहना था, “मैं खुद की तस्वीरें इसलिए बनाती हूँ क्योंकि मैं बहुत अकेली रहती हूं और मैं अपने आप को ही सबसे अच्छी तरह से पहचानती हूँ।”

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दिएगो रिवेरा से मुलाक़ात

साल 1927 में पूरी तरह से स्वस्थ हो जाने के बाद वे मेक्सिको सिटी वापस आ गईं और मेक्सिकन कम्युनिस्ट पार्टी का हिस्सा बन गईं। तब तक आलेहांद्रो के साथ उनका रिश्ता टूट चुका था। स्कूल के दोस्तों के साथ वो एक बार फिर जुड़ने लगीं और अपनी विचारधारा के लोगों से दोस्ती भी करने लगीं। अपने नए दोस्तों के साथ वो रोज़ पार्टियों में जातीं जहां शराब, नाच-गाना, और राजनैतिक मुद्दों पर घंटों तक आलोचना चलते थे।

एक ऐसी ही पार्टी में उनकी मुलाक़ात जाने माने चित्रकार दिएगो रिवेरा से हुई। अपने से बीस साल बड़े दिएगो को फ्रीडा ने पहले भी देखा था जब वो स्कूल में पढ़तीं थीं। तब दिएगो को उनके स्कूल की दीवारों पर तसवीरें बनाने के लिए रखा गया था। क्लास के बाद फ्रीडा अक्सर छुप छुपकर उन्हें काम करते हुए देखतीं और उनकी कला को देखकर दंग रह जातीं।  अपनी सबसे अच्छी दोस्त से फ्रीडा ने कहा भी था कि, “मैं एक दिन दिएगो से शादी करूंगी। “

वैसा ही हुआ। दिएगो तब चौदह साल बाद मॉस्को से वापस लौटे थे। उनकी याद में फ्रीडा महज़ एक बच्ची थी पर जब फ्रीडा ने उन्हें अपनी पेंटिंग्स दिखाई, वो समझे कि अब वो बच्ची नहीं रही, बल्कि एक बेहतरीन कलाकार और बेहद समझदार इंसान है। दोनों की मुलाकात रोज़ होने लगी और उनका रिश्ता गहराने लगा। फ्रीडा की मां को ये रिश्ता बिलकुल मंज़ूर नहीं था। दिएगो फ्रीडा से पूरे बीस साल बड़े थे और उनकी दो शादियां भी हो चुकी थीं। पर फ्रीडा के पिता राज़ी हो गए और 21 अगस्त 1929 में फ्रीडा और दिएगो की शादी हो गई।

फ्रीडा नारीवादी आंदोलन का एक ज़रूरी चेहरा हैं जो सिर्फ़ पितृसत्ता ही नहीं बल्कि हर उस सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ थीं जिसकी नींव वर्ग वैषम्य हो।

अपनी मेक्सिकन पहचान

शादी के बाद फ्रीडा और दिएगो एक छोटे से गांव, कुएरनावका में बस गए। यहां फ्रीडा का परिचय मेक्सिको की मूल-निवासी संस्कृति से हुआ। इस संस्कृति से उन्हें लगाव हो गया और अपने मेक्सिकन होने पर गर्व होने लगा। उन्हें देखकर बहुत दुःख हुआ कि किस तरह औपनिवेशीकरण की वजह से मूल संस्कृतियां ख़त्म हो जाती हैं और उनके राष्ट्रवादी विचार और औपनिवेशीकरण के खिलाफ विरोध और मज़बूत होते गए।

अपने मूलनिवासी मेक्सिकन पहचान को वो अपनाने लगीं और इसका प्रभाव उनकी कला में भी नज़र आया। उन्होंने इस समय कई सेल्फ़ पोर्ट्रेट किए जिनमें वो मूलनिवासी कपड़े पहनी या मूल-निवासी संस्कृति के प्रतीकों के साथ नज़र आती हैं। फ्रीडा के सेल्फ पोर्ट्रेट के बारे में एक दिलचस्प बात ये है कि वे ‘सुंदरता’ के पैमानों पर नहीं बैठते।  इन तस्वीरों में उनकी भौहें जुड़ी हुई हैं, नाक चपटी है, होंठों पर हलकी मूछें हैं। वो सारी चीज़ें जो समाज की आँखों में एक औरत को ‘बदसूरत’ बनाती हैं। ये भी एक तरह की बग़ावत थी। पितृसत्ता के ख़िलाफ़, औरतों के  ‘सुंदर’ दिखने की मजबूरी के ख़िलाफ़, और सौंदर्य की परिभाषा के ख़िलाफ़।

अमेरिका में ज़िन्दगी

साल 1930 में फ्रीडा अमेरिका चली गईं, जहां दिएगो को कई जगह चित्रकला करने के लिए बुलाया जा रहा था। कई साल वो उनके साथ सान फ़्रांसिस्को, डेट्रॉइट और न्यू यॉर्क सिटी में रहीं। उन्हें अमेरिका बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। उनके मुताबिक़ वहां पूंजीवाद और शोषण के अलावा और कुछ नहीं था। उन्होंने दिएगो के साथ पार्टियों में जाना भी बंद कर दिया क्योंकि उन्हें ‘पूंजीवादियों’ से मिलना-जुलना अच्छा नहीं लगता था। उनका कहना था, “बहुत डर लगता है ये देखकर कि ये अमीर लोग दिनरात पार्टी करते रहते हैं और सैकड़ों हज़ारों गरीब रोज़ भूखे मर जाते हैं।”

अमेरिका की पूंजीवादी संस्कृति से नफरत भी फ्रीडा की तस्वीरों में दिखती है। उनके सेल्फ पोर्ट्रेट ‘मेक्सिको और अमेरिका की सरहद पर मैं’ में नज़र आता है कि वो इन दोनों देशों के बीच में मेक्सिको का झंडा लिए खड़ी हैं। जहां अमेरिका का आसमान फैक्ट्री की धुआं से काला हो गया है और ज़मीन बंजर हो गई है, वहीं दूसरी तरफ मेक्सिको में हर तरफ हरियाली और खुशहाली है। एक और तस्वीर ‘मेरी ड्रेस वहां लटकी है’ में नज़र आता है कि कई फ़ैक्टरियों, मशीनों वग़ैरे के बीच में एक ड्रेस लटकी हुई है। जैसा कि फ्रीडा कहना चाह रही हों कि, “मेरा दिल तो मेक्सिको में है। सिर्फ़ मेरी ड्रेस (यानी उपस्थिति) ही अमेरिका में है। “

अमेरिका में फ्रीडा की ज़िन्दगी एक मुश्किल दौर से गुज़री। उन्हें पता चला था कि दिएगो का कई औरतों के साथ अफेयर चल रहा है। ये एक बड़ा धक्का था। इसी दौरान उनका एक मिसकैरेज भी हो गया। इस दर्द को भी फ्रीडा ने अपनी तस्वीरों में दर्शाया था। एक तस्वीर, ‘हेनरी फोर्ड अस्पताल’ में नज़र आता है कि नंगी फ्रीडा खून से सने बिस्तर पर लेटी हैं और गर्भनाल से जुड़ा उनका बच्चा हवा में लटक रहा है।  आसपास फ्रीडा के शरीर से जुड़ीं कुछ और चीज़ें भी हैं। अपनी सारी तकलीफ़ें फ्रीडा अपनी तस्वीरों में भर देती थीं। वो कहती भी थीं, “मेरी तस्वीरों में दर्द का सन्देश है।”

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बिगड़ती सेहत

साल 1934 में फ्रीडा को पता चला कि दिएगो का उनकी छोटी बहन के साथ अफेयर चल रहा था। दर्द और गुस्से से उन्होंने अपने सारे बाल काट लिए और अपने सारे अच्छे कपड़े हमेशा के लिए अलमारी में कैद कर लिए। दिएगो और फ्रीडा अलग रहने लगे। इसी दौरान फ्रीडा की सेहत भी बिगड़ने लगी। उन्हें अपेंडिक्स का ऑपरेशन करवाना पड़ा। उस वक्त प्रेगनेंट हुई थीं पर दिमाग़ी हालत ठीक न होने की वजह से उन्होंने गर्भसमापन करवाया।

इस समय उन्हें फ़ाइब्रोमायल्जिया की बीमारी भी हो गई। फ़ाइब्रोमायल्जिया एक दर्दनाक बीमारी है जिससे पीड़ित लोगों को शरीर में दर्द, सांस की तक़लीफ़, नींद की कमी, एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसे लक्षण महसूस होते हैं। फ्रीडा शारीरिक और मानसिक तौर पर पूरी तरह कमज़ोर हो चुकी थीं और पेंटिंग, ड्रग्स और शराब में अपना सुकून ढूंढने लगीं। “चित्रकला ही मेरी ज़िन्दगी को पूरी करती है,” फ्रीडा ने कहा है। “मैंने अपने बच्चे खो दिए हैं। मैंने ऐसा बहुत कुछ खोया है जिससे मेरी ये बेकार ज़िन्दग़ी बेहतर हो सकती थी। इन सारी चीज़ों की जगह मेरी कला ने ले ली। मेरे काम के सिवा मेरे पास कुछ नहीं है। ”

फ्रीडा और दिएगो कुछ साल अलग रहने लगे और साल 1940 दिएगो से दोबारा जुड़ने से पहले फ्रीडा का रूसी कम्युनिस्ट नेता लीओन ट्रॉट्स्की के साथ अफेयर भी रहा। साल 1943 में वे मेक्सिको सरकार के आर्ट स्कूल ‘ला एस्मेराल्डा’ से चित्रकला की प्रोफ़ेसर के तौर पर जुड़ीं। साल 1950 तक वो यहां पढ़ाती रहीं, जिसके बाद उनकी सेहत पूरी तरह से बिगड़ गई। उनकी रीढ़ की हड्डी इतनी कमज़ोर हो गई कि उनके लिए खड़े होना नामुमकिन था। उनके हाथ पैर कमज़ोर होने लगे और उन्हें यौन संक्रामक रोग ‘सिफ़िलिस’ भी हो गया। मरने से पहले उन्होंने कहा, “मुझे अपने जाने का इंतज़ार है। उम्मीद है कि मैं फिर कभी वापस न आऊं।” उनकी आखिरी इच्छा के मुताबिक उनकी लाश को कम्युनिस्ट पार्टी के झंडे में लपेटा गया। उनके दफ़नाए जाने से पहले पूरे शहर से उनके सैकड़ों प्रशंसक उन्हें आख़िरी बार देखने के लिए इकट्ठे हुए।

फ्रीडा काहलो को शायद हम नहीं पहचानते अगर 1970 के दशक में फ़ेमिनिस्ट आंदोलन की दूसरी लहर के दौरान उनकी कलाकृतियां दुनिया के सामने नहीं आतीं। अपनी ज़िन्दगी का एक बड़ा हिस्सा ‘दिएगो रिवेरा की पत्नी’ बने रहने के बाद फ्रीडा को अपनी मृत्यु के बाद ही वो सम्मान मिला जिसकी वो लायक थीं। आज भी फ्रीडा नारीवादी आंदोलन का एक ज़रूरी चेहरा हैं जो सिर्फ़ पितृसत्ता ही नहीं बल्कि हर उस सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ थीं जिसकी नींव वर्ग वैषम्य हो।

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तस्वीर साभार : cnn