कोविड-19 महामारी ने विश्व के महाशक्ति देशों को भी धाराशायी कर दिया है। भारत में भी इसकी चपेट में आने वालो का आंकड़ा हर दिन बढ़ रहा है। पर इस जानलेवा वायरस की भारत में शुरुआत होने के बावजूद भी हमारा टेस्टिंग रेट विश्व के अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम था, जिसको लेकर वैश्विक स्तर पर भारत को काफी निंदा और स्थिति को गंभीर न लेने जैसे आरोपों का सामना करना पड़ रहा था। जहां एक तरफ कोरोना का खतरा हर तरफ से फैल रहा था और मेडिकल व्यवस्था डगमगा रही थी। उसी समय पुणे के एक डायग्नोस्टिक फर्म ने देश की पहली टेस्टिंग किट तैयार करी। इस किट को तैयार करने के पीछे मीनल ढकावे भोंसले नाम की विषाणु विज्ञानी ( वायरोलॉजिस्ट) का योगदान है।
1. मीनल ढकावे भोंसले

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार मीनल (जो कि मायलैब की रिसर्च और डेवलपमेंट प्रमुख हैं) ने मात्र 6 हफ्तों में कोरोना वायरस की टेस्टिंग किट – पैथो डिटेक्ट का निर्माण किया। उस समय मीनल गर्भवती थीं, जब उन्होंने यह किट बनायी। एनआईवी को किट जमा करवाने के बाद मीनल ने एक शिशु कन्या को जन्म दिया, जिस पर मीनल कहतीं हैं कि उन्हें लगा मानों उन्होंने दो बच्चों को जन्म दिया हो। यह किट दो से ढाई घंटे में वायरस का पता लगाती है।
मीनल के अलावा भी ऐसी अनेकों महिला विषाणु वैज्ञानिक रही हैं, जिन्होंने समय-समय पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपना योगदान दिया है।
2. गगनदीप कंग

गगनदीप कंग विषाणु विज्ञान के क्षेत्र का एक प्रमुख, विख्यात और बहुचर्चित नाम हैं। गगनदीप के प्रमुख विषय हैं – संक्रमित होने वाली बीमारियां, एंटरिक इंफेक्शन, टीकाकरण, जल और स्वच्छता। उन्होंने वायरस के कारण बच्चों में होने वाली बीमारियों पर विशेष रूप से काम किया है। डायरिया उनकी शोध का एक बड़ा हिस्सा रहा है। रोटावायरस का टीका, रोटावेक तैयार करने की उपलब्धि भी गगनदीप के नाम दर्ज़ है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने 300 से अधिक वैज्ञानिक पत्र प्रकाशित किए हैं। साल 2016 में उन्हें लाइफ साइसेंज के क्षेत्र में इंफोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साल 2019 में वो पहली भारतीय नागरिक थीं, जिन्हें रॉयल सोसाइटी फैलो के लिए चयनित किया गया। गगनदीप को भारत की ‘वैक्सीन गॉडमदर‘ के संबोधन से जाना जाता है।
3. एच एस सावित्री

हंदनाहल सुब्बाराव सावित्री जी ने बैंगलोर विश्विद्यालय से विज्ञान में अपनी स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करी। वह संयंत्र आणविक वायरोलॉजी, एंजाइमोलॉजी, प्रोटीन रसायन विज्ञान के क्षेत्र में विशेष रूप से कार्यरत रहीं। सावित्री ने संक्रमण के तंत्र को समझने के लिए कई वायरसों के जीनोमिक क्रम और उनके प्रभाव पर अध्ययन किया। वें सेंटर फॉर काउसलिंग एंड स्टाफ सपोर्ट, आईआईएससी की अध्यक्ष भी रहीं। अपने समर्पित काम के चलते उन्हें पी.एस. सरमा मेमोरियल अवार्ड और ए. कृष्ण मूर्ति अवार्ड ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्ट्स से सम्मानित किया जा चुका है।
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4. विद्या अरांकल्ले

विद्या अविनाश अरांकल्ले, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी और विज्ञान अकादमी की एक सदस्या हैं। विद्या ने सावित्री बाई फूले विश्विद्यालय से पीएचडी प्राप्त की। इन्होंने विषाणु विज्ञान, वैक्सीनोलॉजी, आणविक विकास, रोगजनन, जैव प्रौद्योगिकी और महामारी विज्ञान का विशेष रूप से अध्ययन किया है। विद्या की मुख्य परियोजनाओं में, भारत में बच्चों के टीकाकरण के लिए प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शामिल है। इससे पहले भी उन्होंने अनेकों परियोजना के लिए मुख्य अन्वेषक के रूप में काम किया है। जिनमें से कुछ परियोजनाओं के नाम अंग्रेज़ी में कुछ इस प्रकार हैं-
- “Attempt to transmit the putative agent to rhesus monkeys (2011-13).”
- “Attempts to identify the putative Gorakhpur agent using solid technology (2011-13).”
- “Genomic characterization of hepatitis E and A viruses in Indian for 25 years ( 2006-09)”
- “Development of protein vaccine for H5N1 and other influenza viruses.”
5. गीता रामजी

विश्व प्रसिद्ध गीता रामजी एक दक्षिण अफ्रीका स्थित भारतीय विषाणु विज्ञानी थीं। उनके कार्यक्षेत्र के मुख्य विषय एचआईवी और बाल चिकित्सा थे। उन्हें मुख्य, एचआईवी और माइक्रोबॉडी के बारे में अपने शोध कार्य के लिए जाना जाता है। गीता जी को, साल 2012 में अंतर्राष्ट्रीय माइक्रोबायसाइड सम्मेलन में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला। वह लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में एक मानद प्रोफेसर थीं। एक अकादमिक के रूप में, उन्होंने 170 से अधिक लेख प्रकाशित किए।
रामजी, 17 मार्च 2020 को लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में व्याख्यान देने के लिए पहुंची। पर वहां से वापस लौटने के बाद उन्हें अपनी तबियत नासाज़ लगी। गीता जी को तुरंत अस्पताल में भर्ती किया गया। परन्तु 31 मार्च 2020 के दिन, कोविड-19 से ग्रस्त होकर उनका निधन हो गया।
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6. पोली रॉय

पोली रॉय का जन्म कलकत्ता, भारत में हुआ। वर्तमान में, पोली लंदन में रह रहीं हैं और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में कार्यरत हैं। वह बर्मिंघम में अलबामा विश्वविद्यालय में गईं और उन्होंने खुद का ब्लूटंग वायरस रिसर्च ग्रुप शुरू किया। पोली को वेलकम ट्रस्ट (2012) से सीनियर इनवेस्टीगेटर अवार्ड, ‘इनोवाटर ऑफ द ईयर’ फाइनलिस्ट, बायोटेक्नोलॉजी एण्ड बायोलॉजिकल साईंसिस रिसर्च काउंसिल(2012) और भारतीय प्रधानमंत्री (2012) द्वारा सम्मानित किया गया है।
इन महिलाओं के विषय में पढ़कर हर व्यक्ति को गर्व महसूस हो सकता है। पर इस पूरे अध्ययन के बाद एक महत्वपूर्ण बात यह भी उठती है कि, ‘क्या हर वो महिला जो एक सफल विषाणु विज्ञानी बनना चाहती है, उसे पर्याप्त अवसर मिलते है?’ या प्रश्न को थोड़ा सरल कर दें तो, ‘क्या हर महिला को जीवन में अपनी इच्छा से कुछ भी बनने के समान मौकें दिए जाते हैं?’
महिलाओं को आज भी शिक्षा प्राप्त करने से लेकर नौकरी मिलने तक ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। काफी लंबे समय से हमारा समाज पुरुष प्रधान सिद्धांतो को मानता हुआ आ रहा है। इस कारण देश की बहुत सी प्रणालियों में महिलाओं के लिए लचीलापन देखने के लिए नहीं मिलता, जबकि पुरुष उन्हीं प्रणालियों का आसानी से उपभोग करतें हैं। ऐसा नहीं है कि हमें पुरुषों के अवसरों में कटौती के देनी चाहिए, पर अगर हम स्त्रियों के लिए भी समान अवसर उपलब्ध करवाने में सफल हो जाएं तो देश को अनेकों मीनल ढकावे भोंसले जैसे सफल महिला नागरिक मिल सकतें हैं।
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नारी शक्ति को प्रणाम
Very informative and nicely written 👌🏻….. Well done Chetna 👍🏻💛