ये महिला कमीडियन सिर्फ़ पीरियड्स, सेक्स और ब्रा के बारे में क्यों बात करतीं हैं?’ इंटरनेट भर के मर्दों का यही एक सवाल है। महिला स्टैंड अप कमीडियन सिर्फ़ पीरियड्स जैसे मुद्दों पर क्यों मज़ाक करतीं हैं? दुनिया में कोई और विषय नहीं है क्या? अब क्या पुरुष कमीडियन भी अपनी शारीरिक प्रक्रियाओं को लेकर बोलना शुरू कर दें? पर सवाल ये होना चाहिए कि क्यों महिलाएं अपने पीरियड्स के बारे में बात न करें? क्यों आपको इससे इतना ऐतराज़ है? क्या पुरुष कमीडियन अपनी सेक्स लाइफ़ और व्यक्तिगत भावनाओं पर मज़ाक नहीं करते? अगर महिलाएं भी अपने जीवन के इतने बड़े हिस्से पर खुलकर बात करें तो आपको क्या समस्या है?
हास्य विनोद के क्षेत्र में आमतौर पर उन्हीं विषयों पर चर्चा की जाती है जो कमीडियन व्यक्तिगत तौर पर अनुभव करता हो। या जो उसने अपने सामने होते हुए देखा हो। इन व्यक्तिगत अनुभवों को, जिनमें से कई सारे बेहद गंभीर भी हैं, एक नए नज़रिए से देखना और उनमें हंसी-मज़ाक का विषय ढूंढ लेना ही कॉमेडी कहलाता है। कॉमेडी के ज़रिए ही हम ज़िंदगी के कठिन मुद्दों को हल्के में लेना सीखते हैं और एक खुशहाल, तनाव-मुक्त ज़िंदगी की ओर कदम बढ़ाते हैं।
और क्षेत्रों की तरह कॉमेडी का क्षेत्र भी सालों से पुरुष-प्रधान रहा है। हाल ही में महिलाओं ने कमीडियन के तौर पर अपना नाम कमाना शुरू किया है। कॉमेडी के ज़रिए वे महिलाओं के स्वास्थ्य तथा सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन से जुड़े उन मुद्दों पर चर्चा कर रही हैं जिन पर उनकी तरह सैकड़ों औरतें मुंह नहीं खोल पातीं। ऐसा ही एक मुद्दा पीरियड्स का है। उससे जुड़ीं तमाम शारीरिक और मानसिक समस्याएं, सामाजिक पाबंदियां, मिथक, अंधविश्वास और न जाने क्या क्या। जिनका भार दुनियाभर की औरतों को झेलना पड़ता है। इन्हीं चीज़ों के बारे में मज़ाक करके महिला कमीडियन मनोरंजन के ज़रिए उन सारी औरतों की व्यथा हमारे सामने लाती हैं और उन्हें ये संदेश देती हैं कि वे इस दर्द में अकेली नहीं हैं।
एक स्टैंडअप कमीडियन सिर्फ़ मनोरंजन करनेवाला ही नहीं, एक जीता जागता इंसान है और इसलिए ये स्वाभाविक है कि अपने परफ़ॉर्मेंस के ज़रिए वो अपनी ज़िंदगी की कहानी बताएगा, अपने जीवन के अनुभव साझा करेगा।
अमरीकी कमीडियन एमी शूमर ने अपने नेटफ्लिक्स शो ‘ग्रोइंग’ में लिंग के आधार पर समाज के दोहरे मापदंडों पर नज़र डाली है। वे बताती हैं किस तरह लड़कियों को एक ऐसी प्राकृतिक प्रक्रिया के लिए शर्मिंदा महसूस करवाया जाता है जिस पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। वे कहती हैं, “किशोरावस्था में एक लड़की के लिए सबसे शर्मनाक बात ये होती है कि लोगों को पता चल जाए कि उसके पीरियड्स चल रहे हैं। लड़कों के लिए भी सबके सामने इरेक्शन हो जाना शर्म की बात है मगर बड़े होते होते ये शर्म चली जाती है और वे सबको अपना इरेक्शन दिखाते फिरते हैं।” पीरियड्स से जुड़ी शर्म की भावना के साथ साथ वे मर्दों द्वारा औरतों के मानसिक शोषण पर भी कटाक्ष करती हैं।
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अभिनेत्री और कमीडियन ऐना गिलक्रिस्ट भी एक स्टैंडअप शो में पीरियड्स पर मर्दों की प्रतिक्रिया की बात करती हैं। कहती हैं, “मर्द पीरियड्स को एक घिनौनी चीज़ के साथ साथ कमज़ोरी की निशानी मानते हैं। हमारे शरीर के सबसे नाज़ुक अंग से हमें जीवन देनेवाला ख़ून हर महीने बह जाता है और हम वहां थोड़ी सी रुई लगाकर अपनी स्वाभाविक ज़िंदगी आराम से जीते हैं। इसे ये कमज़ोरी समझते हैं?” पीरियड्स के प्रति यही नकारात्मक मानसिकता इसके ऊपर हंसी-मज़ाक के बारे में मर्दों को असहज महसूस करवाती है। क्योंकि जिस चीज़ के बारे में बात तक नहीं करनी चाहिए, जिसका नाम तक नहीं लेना चाहिए, उसके बारे में इतनी खुली चर्चा कैसे बर्दाश्त हो सकती है, और कोई क्यों करे?
भारत में भी महिला स्टैंडअप कमीडियनों ने अपने चुटकुलों में पीरियड्स संबंधित बातें करना शुरू किया है। अदिति मित्तल एक छह मिनट लंबे यूट्यूब वीडियो में सैनिटरी नैपकिन के ऐड्स का विश्लेषण करतीं नज़र आती हैं, कि पीरियड्स के अनुभव बारे में इनमें कितना सच होता है और कितना झूठ। वहीं सुप्रिया जोशी एक वीडियो में कहती हैं, “मर्द हमेशा ये शिकायत करते हैं कि महिला कमीडियन सिर्फ पीरियड्स, सेक्स और ब्रा के बारे में बोलती हैं। मैं तो पीरियड्स के बारे में बोल ही नहीं सकती, क्योंकि मुझे तो पीसीओडी है!” पीसीओडी या पॉली सिस्टिक ओवरी डिज़ीज़ एक हॉर्मोनल बीमारी है जिसकी वजह से पीरियड्स रुक जाते हैं या अनियमित हो जाते हैं। मज़ाक के माध्यम से सुप्रिया इस बीमारी से हमें वाकिफ़ कराती हैं जिससे भारत में हर पांच औरतों में से एक पीड़ित है।
एक स्टैंडअप कमीडियन सिर्फ़ मनोरंजन करनेवाला ही नहीं, एक जीता जागता इंसान है और इसलिए ये स्वाभाविक है कि अपने परफ़ॉर्मेंस के ज़रिए वो अपनी ज़िंदगी की कहानी बताएगा, अपने जीवन के अनुभव साझा करेगा। पीरियड्स भी ऐसा ही एक अनुभव है जो हर किसी को होता है और जो प्राकृतिक है। इसलिए इसके बारे में खुलकर बात करना या इस पर मज़ाक करना कोई भी घृणा या शर्म की बात नहीं है, बल्कि इसे और बढ़ावा ही देना चाहिए ताकि और लोग इस पर बात करने के लिए सहज महसूस कर सकें।
मर्दों को भी थोड़ा और संवेदनशील होने की ज़रूरत है। औरतें अपने अनुभव साझा करें तो सुनिए, समझिए और जानिए। मुंह बनाकर चले मत जाइए। एक दूसरे की समस्याओं को समझकर और संवेदना जताकर ही हम एक दूसरे के सच्चे दोस्त और साथी बन पाएंगे।
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तस्वीर साभार : t2online