भारत में लॉकडाउन का चौधा चरण शुरू हो चुका है। कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते संक्रमण की वजह से 26 मार्च को कड़ी सख्ती के साथ लॉकडाउन देशभर में लगाया गया था, जिसकी वजह से लोगों की जिंदगी पटरी से उतर गई। लेकिन इस बुरे दौर में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं किसान, मजदूर, दलित और महिलाएं। इनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर गहरा असर देखने को मिला है। इस दौरान व्यथित कर देने वाली तस्वीरें भी देखने को मिली। इसी देश में एक ऐसा तबका भी है जो सरकार, विपक्ष और समाज की कल्पना तक में नहीं है और वो हैं सेक्स वर्कर्स। यहां महिलाएं शुरू से ही सामाजिक भेदभाव, सरकारी नीतियों से बेदखली के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ रही थी। इसी बीच साल 2016 में नोटबंदी की मार इन पर पड़ी तो अब लॉकडाउन ने सेक्स वर्कर की परेशानियों में और इजाफा कर दिया।
आलम यह है कि लॉकडाउन में देशभर में मौजूद सेक्स वर्कर्स जिंदा रहने के लिए हर रोज नई मुसीबत से दो चार हो रही हैं। उन्हें इसकी वजह से आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। दवाइयों जैसी बुनियादी सहुलियत भी नसीब नहीं हो पा रही। सरकार इन्हें इस दौरान खाना मुहैया कराने तक में नाकाम है। साल 2014 की सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 28 लाख सेक्स वर्कर हैं। वहीं साल 2016 में आई यूनाइटेड नेशन की एक रिपोर्ट बताती है कि सबसे ज्यादा सेक्स वर्कर महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में रहती हैं, जिनका आंकड़ा 657,800 है। गैर-सरकारी संगठनों की रिपोर्ट में इनकी संख्या कहीं ज्यादा बताई जाती है।
लॉकडाउन के दौरान इन महिलाओं की परेशानियां दोगुनी हो गई हैं। दरअसल सेक्स वर्कर्स के पास अब न तो कोई काम है और ना ही जिंदा रहने के लिए खाना। सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से दिल्ली स्थित जीबी रोड पर रह रही सभी महिलाएं इस वक़्त बेरोजगार हैं। यहां रहने वाली सेक्स वर्कर सुनीता (बदला हुआ नाम) का कहना है कि उनके पास इस वक्त खाना खाने के लिए भी पैसे नहीं। घर में दो छोटे बच्चे हैं जिनको खिलाने-पिलाने में भी दिक्कत होती है। काम पूरी तरह से ठप है।
यह हाल सिर्फ दिल्ली का नहीं कमोबेश देश के बाकी हिस्सों में रह रही सेक्स वर्कर्स को भी यहीं मुसीबत झेलनी पड़ रही है। झारखंड के रांची में ज्वाला शक्ति समूह की सेकरेट्री सीमा सिंह (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि ‘सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से यहां भी सेक्सवर्कर्स का काम बंद हो चुका है। बहुत-सी महिलाएं कोरोना की वजह से डरी हुई हैं, वो कह रही हैं कि लॉकडाउन खुलने के बाद वो कोई दूसरा काम देखेंगी। उन्होंने बताया कि कोरोना और लॉकडाउन की वजह से हमारे काम पर काफी असर पड़ा है। यहां तक कि हमारे सामने खाने-पीने की भी समस्या खड़ी हो गई। कुछ ऐसे ही हालात महाराष्ट्र के सांगली, सतारा और कोल्हापुर में रह रही सेक्स वर्कर्स के हैं। नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्सवर्कर्स (NNSW) के कार्यकर्ता सुधीर ने बताया कि ‘अचानक से लॉकडाउन लागू हो जाने की वजह से सेक्सवर्कर के पास सेविंग का कोई पैसा नहीं था जिस वजह से ये महिलाएं दो वक़्त के खाने के लिए भी तरस गई।’
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कर्नाटक की तस्वीर भी इससे जुदा नहीं है। कर्नाटक एनएनएसडब्लू की उपाध्यक्ष निशा ने बताया कि ‘यहां सेक्स वर्कर्स कोरोना की वजह से सहमी हुई हैं और वो काम नहीं कर रही हैं। यहां कुछ महिलाओं के पास किराया देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। हालांकि कुछ सामाजिक संगठन राशन मुहैया करा रहें हैं लेकिन किराया देना उनके लिए भी मुश्किल है। सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए।’ काम ना होने की वजह से इनके पास बचे-खुचे सारे पैसे खत्म हो गए और नतीजतन कई महिलाएं कर्ज में डूब गई हैं।
जीबी रोड स्थित 100 कोठों में लगभग 3 हजार सेक्स वर्कर रहती हैं। एक कोठे में बच्चों समेत लगभग 15 से 20 लोग रहते हैं। यह महिलाएं पुराने, तंग, गंदे और छोटे-छोटे कमरों में रहने के लिए मजबूर हैं। ऐसे में सरकार जिस सोशल डिस्टेंसिंग की बात कह रही उसका पालन करना मुश्किल हो जाता है और इसी वजह से कोरोना जैसी बीमारी की चपेट में आ जाना और ज्यादा आसान हो गया। यहां रह रहे लोगों के साथ बड़ी संख्या में ऐसी सेक्स वर्कर भी मौजूद हैं जो पहले से ही एचआईवी/एड्स, हाइपरटेंशन, टीबी और डायबिटीज जैसी बीमारियों से जूझ रही है।
निशा बताती हैं कि ‘कर्नाटक मे कुछ एचआईवी की मरीज भी हैं, जो शहरों में रहती हैं उनको दवाइयां खरीदने में ज्यादा तकलीफ नहीं उठानी पड़ती। लेकिन जो ग्रामीण इलाकों में रहती हैं उनके लिए लॉकडाउन परेशानी का सबब बन चुका है। किसी भी एचआईवी मरीज को पौष्टिक खाने की बहुत जरूरत होती है जिसे केंद्रीय और राज्य सरकारें मुहैया कराने में नाकाम हो रही हैं।’ उधर, मार्च में लॉकडाउन के दौरान सांगली में 34 साल की एक सेक्स वर्कर ने आत्महत्या कर ली। रिपोर्टस के मुताबिक इस महिला को हल्का बुखार था इसकी वजह से उसे इसबात का डर सताने लगा कि कहीं उसे कोरोना तो नहीं हो गया है और इसी चिंता में उसने खुदकुशी कर ली। महाराष्ट्र के कोल्हापुर में भी एक ट्रासजेंडर ने लॉकडाउन के कारण दवाइयां ना मिलने की वजह से खुदकुशी कर ली।
सेक्स वर्कर्स के पास अब न तो कोई काम है और ना ही जिंदा रहने के लिए खाना। सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से दिल्ली स्थित जीबी रोड पर रह रही सभी महिलाएं इस वक़्त बेरोजगार हैं।
इतना ही नहीं लॉकडाउन के बाद से इनके मानसिक स्वास्थ्य पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके साथ ही घरेलू हिंसा हेल्पलाइन बंद हो जाने की वजह से भी इनकी कठिनाइयाँ और बढ़ गई हैं। इसी साल 26 मार्च को सरकार ने कहा था कि कोविड 19 से निपटने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत एक लाख सत्तर हजार करोड़ रूपए का आवंटन किया जाएगा और जिन महिलाओं के जन धन योजना के तहत बैंक अकाउंट खुले होंगे उनके खातों मे तीन महीने के लिए प्रति माह 500 रूपए डाले जाएंगे। लेकिन कई रिपोर्टस इस बात की तस्दीक करती हैं कि देशभर में मौजूद ज्यादातर सेक्स वर्कर का जनधन अकाउंट नहीं है।
हालांकि जिनके पास यह खाते है भी, उनका कहना है कि इतनी कम रकम में परिवार का गुजारा करना बेहद मुश्किल है। सीधे तौर पर इन सेक्स वर्कर को सरकारी योजनाओं से किसी तरह का कोई फायदा नहीं पहुंच रहा है। इन में से कई सेक्सवर्कर प्रवासी हैं जिसकी वजह से इनके पास कोई राशन कार्ड भी नहीं हैं जो इन्हें पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण जैसी जरूरी योजनाओं से भी वंचित रखता है। सुनीता ने बताया है कि ‘जनधन योजना के तहत मेरा खाता देना बैंक में खुला था जिसमें मेरे 1500 रुपए जमा थे। कुछ दिन पहले मैं वो जमा पैसे निकालने गई थी लेकिन बैंक कर्मचारी ने मुझे ये कहकर वापस लौटा दिया कि मेरा खाता बंद हो चुका है। अब उसमें जो पैसे थे वो भी मुझे नहीं मिल पाएंगे।’
कई रिपोर्टस बताती हैं कि देश में ज्यादातर सेक्स वर्कर्स दूसरे राज्यों से आकर यह काम करती हैं जिसकी वजह से उनके पास पहचान पत्र और आधार कार्ड जैसे कागजात अपने राज्य के होते हैं। इसी वजह से यह महिलाएं जनधन जैसी कई योजनाओं का लाभ नहीं ले पाती हैं। देशभर में सरकारों की तरफ से मजदूरों को राशन देने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन सेक्स वर्कर्स इन दावों को गलत बता रही हैं। उनका कहना है कि सरकार की बजाय कुछ सामाजिक संगठन ऐसे हैं जो इस दौरान उन्हें राशन मुहैया करा रहे हैं।
सुनीता ने बताया कि ‘सरकार की तरफ से एक किलो चावल और दाल दी जा रही है। इतने कम राशन में मेरे छह लोगों के परिवार को भरपेट खाना कैसे मिलेगा? अभी पिछले एक महीने से सरकार की तरफ से कोई राशन नहीं मिला है।’ इस मसले पर बात करते हुए सुधीर ने कहा कि सरकार ने कोई मदद मुहैया नहीं कराई है। सिर्फ चुनिंदा सेक्स वर्कर्स को राशन दिया गया है और ज्यादातर को कोई मदद नहीं मिल सकी। नेशनल नेटवर्क ऑफ़ सेक्सवर्कर मुस्कान, संग्राम जैसे संगठनों सेक्सवर्कर्स को खाना और दवाईयां मुहैया करा रहे हैं। अप्रैल के महीने से यहीं संगठन राशन बांट रहे हैं।‘
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उधर निशा ने बताया कि कर्नाटक में भी सरकार की तरफ से बहुत कम मात्रा में राशन मिल रहा है। कुछ के पास राशन कार्ड हैं तो वो उससे राशन का सामान खरीद लेती हैं। लेकिन जो प्रवासी हैं उनके पास किसी तरह के कोई कागज नहीं हैं, जिसकी वजह वो राशन नहीं ले पाती हैं। क्योंकि यहां कोई रेड लाइट एरिया नहीं है और महिलाएं भी भेदभाव के डर से अपनी पहचान छिपा कर सेक्स वर्क करती हैं इस वजह से सरकार भी उन तक राशन की मदद पहुंचाने में नाकाम साबित हो रही है। लेकिन एनएनएसडब्ल्यू, यूनियन ऑफ सेक्सवर्कर्स और उत्तर कर्नाटक महिला उक्कुटा मिलकर यहां राशन बांट रहे हैं।
लॉकडाउन खत्म होने बाद भी सेक्स वर्कर को कोरोना से बचने के लिए अपने ग्राहकों से बहुत सावधानी बरतनी होगी। सुधीर ने कहा कि ‘हमने सेक्स वर्क को अपना काम चुना है। यह हमारे लिए काम है। हम इसे नहीं छोड़ेंगे। जब तक लॉकडाउन है तब तक हम सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे उसके बाद हम अपना काम फिर से शुरू करेंगे। हम चाहते हैं कि हमारे काम को पहचान मिले और इसे डिक्रिमिनलाइज्ड किया जाए, जब तक हमारा काम बंद है सरकार हमें फूड और हेल्थ सिक्योरिटी जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराए। निशा ने बताया कि ‘लॉकडाउन खुलने के बाद भी यहां सेक्स वर्कर कुछ महीनों के लिए अपना काम नहीं करेंगी और कोई दूसरा काम देखेंगी क्योंकि सरकार ने कहा कि कोरोना से अभी राहत मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। सरकार की तरफ से सेक्स वर्कर्स को फिलहाल किसी तरह की कोई राहत नहीं दी गई है। हम सरकार से सेक्स वर्कर्स के लिए स्पेश्ल पैकेज देने की मांग करेंगे।’ वहीं, सीमा ने सरकार पर नजरअंदाजी का आरोप लगाते हुए कहा कि ‘सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए। हमें अनदेखा ना करे क्योंकि मजदूर और सेक्सवर्कर में कोई फर्क नहीं है। हम लोगों को भी रोज ही खाना कमाना होता है। बहुत बार ऐसा होता है कि जब काम नहीं होता है तो हमारा खर्च तक नहीं निकल पाता। ऐसे में हम सरकार से काफी उम्मीदें लगाए बैठे हैं।
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तस्वीर साभार : dailymail
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