हाल ही में ट्विटर पर #BarDancer करके एक हैशटैग नज़र आया है। ये हैशटैग कट्टर दक्षिणपंथियों से चलाया जा रहा है और इसका इशारा है – पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी। इसके पीछे की कहानी ये है कि 21अप्रैल को पत्रकार अर्णब गोस्वामी ने सोनिया गांधी पर बेहद छिछली टिप्पणी की थी। उन्होंने ये कहा कि महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं की निर्मम हत्या पर ‘इटली वाली सोनिया’ इसलिए चुप हैं क्योंकि वे इस देश की नहीं है। अपने बयान में अर्णब ने सोनिया गांधी को उनके शादी से पहले वाले नाम ‘ऐंटोनिया माईनो’ से भी संबोधित किया। इसके कुछ ही दिनों बाद अर्णब ने ये दावा किया कि कुछ कांग्रेस कर्मियों ने उनपर और उनकी पत्नी पर शारीरिक हमला करने की कोशिश की। ये आरोप और सोनिया गांधी के बारे में टिप्पणी के लिए अर्णब पर एफआईआर दर्ज हुई और मुंबई पुलिस ने लगभग 12 घंटे उनकी पूछताछ की।
ज़ाहिर सी बात है कि अर्णब और उनके ज़रिए प्रचारित कट्टर दक्षिणपंथी नैरेटिव के समर्थकों को इसबात पर बहुत गुस्सा आया। और ये सारा गुस्सा उन्होंने निकाल दिया सोनिया गांधी पर। #BarDancer हैशटैग के द्वारा वे ये दावा कर रहे हैं कि राजीव गांधी से मिलने से पहले सोनिया गांधी इटली में बार डांसर थीं जिसकी वजह से वे एक चरित्रहीन औरत हैं और अच्छी नेता नहीं बन सकतीं। ये दावा झूठा है क्योंकि वे एक बार में काम ज़रूर करतीं थीं मगर वेट्रेस के तौर पर। फिर भी अगर इसमें कोई सच्चाई होती तो इसका उनके चरित्र या एक नेता के तौर पर उनकी काबिलियत से कोई लेना-देना न होता। आखिर बार डांसर का पेशा एक पेशा ही है और एक बार डांसर भी उतने ही सम्मान की योग्य है जितना कोई डॉक्टर, वकील, वैज्ञानिक, लेखक या पत्रकार है।
इंटरनेट भर में अब सोनिया गांधी की यौनिकता पर चुटकुले और मीम्स घूम रहे हैं। उनकी ‘रेट’ से लेकर उनके वैजाइना की साइज़ तक की चर्चा हो रही है। इन बेहद गंदे और घिनौने चुटकुलों को देखकर एक बार फिर यही स्वीकार करना पड़ता है कि चाहे कोई औरत कितनी ही सफलता क्यों न प्राप्त कर ले, चाहे वो देश के सबसे बड़े विपक्ष दल की नेता ही क्यों न बन जाए, वो रहेगी औरत ही और उसका मूल्य उसके शरीर और यौनिकता से ही नापा जाएगा।
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अगर एक समाज के तौर पर हमें वाकई आगे बढ़ना है तो इसी मानसिकता को निकाल फेंकना है। औरतों को देवी या डायन की तरह नहीं, इंसानों की तरह देखना है।
सोनिया गांधी अकेली महिला राजनेता नहीं हैं जिन्हें इस तरह के लांछन का शिकार होना पड़ा है। याद आता है साल 2013 जब कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने स्मृति ईरानी को ‘टीवी पर ठुमके लगाने वाली’ कहा था सिर्फ़ इसलिए कि राजनीति में आने से पहले वे टीवी अभिनेत्री हुआ करती थीं। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बसपा अध्यक्ष मायावती को निशाना बनाते हुए भी अनगिनत चुटकुले और तस्वीरें सोशल मीडिया पर फैलाए जाते हैं। उनके शरीर, उनकी आवाज़, उनके चेहरे कई लोगों के लिए मज़ाक का विषय हैं क्योंकि वे ‘आदर्श’ औरत होने के पैमानों पर खरी नहीं उतरतीं। उनका रंग गोरा नहीं है, उनकी आवाज़ कर्कश है, उनका स्वभाव कड़क है। उन्हें भला ‘औरत’ कैसे माना जा सकता है?
हमारा समाज महिला सशक्तिकरण की डींगें हांकने में खूब माहिर है। हम बड़े रौब से कहते फिरते हैं कि हम महिलाओं का सम्मान करते हैं। हम देवी के रूप में उनकी पूजा करते हैं। पर दरअसल हम सिर्फ़ उन्हीं महिलाओं को देवी बनाकर सिर पर बिठाते हैं जो हमारे बनाए ‘नारीत्व’ के पैमानों पर खरी उतरती हैं। हमें औरतें सीता जैसी पसंद हैं जो अपनी ‘पवित्रता’ साबित करने के लिए आग में कूद पड़े। सावित्री जैसी पसंद हैं जो अपनी सारी ज़िंदगी अपने पति के लिए न्यौछावर कर दें। ऐसी ही औरतें हमारी पूजा, हमारे सम्मान के लायक हैं। जो ऐसी नहीं हैं वे रंडियां हैं, चुड़ैलें हैं, डायनें हैं। उनकी बातों को सीरियसली नहीं लिया जा सकता। उन पर गंदे चुटकुले बनाए जा सकते हैं। उन्हें बलात्कार की धमकी दी जा सकती है। क्योंकि हमारे मापदंडों के हिसाब से तो वे औरतें हैं ही नहीं।
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देशभर में अब इसी मानसिकता का सामान्यीकरण हो चुका है। जहां खुद प्रधानमंत्री को एक महिला सांसद की हंसी से रामायण की सुर्पनखा याद आ सकती है, वहां के मर्दों के दिमाग़ में ये बात बैठ ही जाएगी कि औरत दो ही तरह की होती है। सीता या सुर्पनखा। जहां एक फूल-चंदन से पूजने के लायक है वहीं दूसरी तिरस्कार, लांछन और शोषण के ही लायक है। जिस समाज में इस तरह की गिरी हुई मानसिकता कूट कूटकर भरी है, क्या वहां महिलाओं की प्रगति ज़रा भी संभव है?
एक पूरे समाज के मर्दों ने ये पाठ पढ़ लिया है कि एक ‘बार डांसर’ कभी देवी नहीं बन सकतीं। देवी क्या, उसे एक इंसान का दर्जा ही नहीं दिया जा सकता और इसलिए उसे न्यूनतम इज़्ज़त भी नहीं दी जा सकती। उस पर हर तरह का शारीरिक और मानसिक हमला करना जायज़ है और ऐसा करनेवालों को सज़ा तो मिलेगी ही नहीं बल्कि तारीफ़ ही मिलेगी। अगर एक समाज के तौर पर हमें वाकई आगे बढ़ना है तो इसी मानसिकता को निकाल फेंकना है। औरतों को देवी या डायन की तरह नहीं, इंसानों की तरह देखना है।
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