‘मैं तब 19 साल की थी।’ अदिति कहती है ‘जब एक दिन कॉलेज से वापस आने के बाद मेरे पेट में बहुत दर्द होने लगा। मुझे लगा कि शायद मुझे फ़ूड पॉइज़निंग हो गया होगा, पर धीरे-धीरे ये दर्द पूरे शरीर में फैल गया और उस रात मुझे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा जहां मुझे कई सारे इन्जेक्शन दिए गए। अस्पताल से वापस आने के बाद भी ये दर्द गया नहीं, हालांकि मेरे सारे रिपोर्ट नॉर्मल थे। सिर्फ़ दर्द ही नहीं, बल्कि मुझे थकान भी होने लगी। इतनी थकान कि नहाने या ब्रश करने जैसे सामान्य काम भी मुश्किल लगने लगे। कई डॉक्टरों को दिखाने के बाद, कई दवाएं लेने के बाद भी कोई असर नहीं हुआ है। आज इस तकलीफ़ को झेलते हुए 4-5 साल हो गए।’ अदिति गुप्ता को फ़ाइब्रोमायलजिया है।
फ़ाइब्रोमायलजिया एक ऐसी बीमारी जिससे इंसान की हड्डियां और मांसपेशियाँ कमजोर और नाजुक हो जाती हैं। इसके कारण पूरे शरीर में असहनीय दर्द, मांसपेशियों में सूजन, चक्कर आना, थकान, बेहोशी, नींद की समस्याएं, याददाश्त की कमज़ोरी जैसे लक्षण अनुभव होते हैं। ये एक रहस्यमय बीमारी है जिसके पीछे का कारण अभी तक पहचाना नहीं गया है, और इसे शारीरिक रोग माना जाए या एक मानसिक स्थिति, इस पर भी विवाद है। इसलिए जब अदिति ने पहली बार अपनी जांच करवाई थी, उसके मेडिकल रिपोर्ट में कोई कमी नज़र नहीं आई थी और उसके घरवाले और डॉक्टर समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर समस्या क्या है। अदिति के परिवारवालों को ये भी शक हुआ कि उसे दरअसल कोई परेशानी नहीं है और वह पढ़ाई न करने के लिए बहाने बना रही है।
अदिति को फ़ाइब्रोमायलजिया के बारे में तभी पता चला जब उसने अपनी समस्याओं को गूगल करना शुरू किया। उसने देखा कि उसकी सारी परेशानियाँ इस बीमारी के लक्षणों से मिलती जुलती हैं। बाद में जब वह अपने घर बेंगलुरु से लखनऊ के एक डॉक्टर से जांच करवाने गई तो सामने आया कि वाकई वह फ़ाइब्रोमायलजिया से पीड़ित है।
‘इस बीमारी की वजह से मेरी ज़िंदगी के इतने साल बर्बाद हो गए।’ वह बताती है ‘मेरा ग्रेजुएशन पूरा नहीं हुआ और मुझे मानसिक उत्पीड़न भी झेलना पड़ा है क्योंकि लोग ये मानने को ही तैयार नहीं थे कि मैं वाक़ई बीमार हूँ।’ अदिति के डॉक्टरों ने उसे जितनी भी दवाएं दी हैं, वे न सिर्फ़ नाकामयाब रही हैं बल्कि उनके ‘साइड एफ़ेक्टस’ से उसकी तकलीफ़ बढ़ी ही है। फ़िलहाल वह होमीओपैथी कि दवाएं ले रही है।
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अदिति की तरह दिल्ली निवासी पूजा प्रियंवदा भी फ़ाइब्रोमायलजिया की शिकार हैं। वे कहती हैं, ‘कभी-कभी अचानक से इतना दर्द शुरू हो जाता है कि बिस्तर में करवट लेना भी असंभव हो जाता है। पढ़ने, लिखने, और कंप्यूटर पर काम करने में भी मुश्किल होती है क्योंकि रीढ़ की हड्डी को सीधी करने पर सिर चकरा जाता है। ऊपर से अब मैं एक कान से सुन भी नहीं सकती।’
पेशे से लेखिका होने के साथ साथ पूजा एक छोटी बेटी की मां भी है और इस हालत के साथ ये दोनों भूमिकाएं निभाना एक काफ़ी बड़ी चुनौती है। अमेरिका में ‘इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन’ में स्नायुविज्ञान के प्रोफ़ेसर डॉ. जॉन किनकैड का कहना है, ‘फ़ाइब्रोमायलजिया पर हर डॉक्टर की अलग राय है। जहां आधे डॉक्टर इसे एक गंभीर बीमारी मानते हैं, बाकी आधे को लगता है कि ऐसी कोई बीमारी है ही नहीं। बिल्कुल ‘फिफ्टी-फिफ्टी’ वाली स्थिति है।’ वे ये भी स्वीकार करते हैं कि क्योंकि इस बीमारी के इतने सारे लक्षण हैं, जो एक-दूसरे से इतने अलग हैं (जैसे बदन दर्द और याददाश्त कि कमी) ये आसानी से पकड़ में नहीं आती। अक्सर डॉक्टर समझ नहीं पाते कि इतने सारे लक्षणों के पीछे कोई एक वजह है।
फ़ाइब्रोमायलजिया, एक ऐसी बीमारी जिसके शारीरिक लक्षण जितने पीड़ादायक हैं, उतने ही उसके मनोवैज्ञानिक लक्षण भी हैं।
मिशिगन विश्वविद्यालय के फ़ाइब्रोमायलजिया विशेषज्ञ डॉ. डेनियल क्लॉ का मानना है कि, ‘कभी-कभी डॉक्टर इस बीमारी के लक्षणों के पीछे का कारण न ढूंढ पाने का गुस्सा मरीज पे ही उतार देते हैं। बिगड़ी सेहत के लिए ज़िम्मेदार मरीज़ को ही ठहराते हैं और जांच करना छोड़ देते हैं।’ ‘अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ़ पेन’ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. टॉड सिट्ज़मैन भी मानते हैं, ‘इस फ़ाइब्रोमायलजिया से डॉक्टर तंग आ चुके हैं। इसका कोई इलाज न होने के बावजूद सालों तक इससे पीड़ित लोगों को ठीक करने की पूरी कोशिश हम करते है। ऐसे में जब नए मरीज़ ये परेशानी लेकर आते हैं तो उन्हें संभालना बहुत मुश्किल भी हो जाता है।’
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फ़ाईब्रोमायलजिया के शारीरिक लक्षण जितने पीड़ादायक हैं, उतने ही उसके मनोवैज्ञानिक लक्षण भी हैं। ऐसे दो प्रमुख लक्षण हैं ‘ब्रेन फ़ॉग’ (थोड़े समय के लिए अचानक याददाश्त खो देना या ध्यान का भटक जाना) और कैटप्लैक्सी (हाथ-पैर का अचानक ढीला हो जाना)। ब्रेन फ़ॉग कभी कभार इतना बुरा हो जाता है कि लोग अपना नाम तक भूल जाते हैं और अपनी रोज़ की ज़िम्मेदारियां निभाना उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। क्योंकि याददाश्त इतनी कमज़ोर रहती है, उन्हें छोटी से छोटी जानकारी लिखकर रखनी पड़ती है। और कैटप्लैक्सी के दौरान वे अक्सर हाथ में पकड़ी हुई चीज़ें गिरा देते हैं, खुद को किसी चीज़ से टकरा जाने से रोक नहीं पाते, या बैठे बैठे गिर पड़ते हैं। ये उनकी रोज़ की गतिविधियों में एक बाधा ही नहीं बल्कि जान के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है।
इस बीमारी की सबसे बुरी बात ये है कि आपको देखकर पता ही नहीं चलता कि आप बीमार हैं। कई लोगों के मुताबिक ये एक अदृश्य शोषणकारी के साथ रहने जैसा है, जिसे कोई देख नहीं पाता पर जो हर पल आपको अपने इशारों पर नचाता है। इसे काबू में रखने के लिए दवाएं हैं ज़रूर पर इनका असर कुछ हद तक ही है।
फ़ाइब्रोमायलजिया को पूरी तरह हराना शायद संभव नहीं है पर इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाकर कई लोगों ने इसकी आदत डाल ली है। और एक स्वस्थ और बेहतर ज़िंदगी की आस उन्होंने अभी तक नहीं छोड़ी है। पूजा कहती हैं, ‘मुझे ज़िंदगी जीने की ताकत अपनी बेटी और कुछ अच्छे दोस्तों से मिलती है। मैं खुद को समझाती हूं कि इस बीमारी का सामना करनेवाली मैं अकेली नहीं हूं।’ उसी तरह अदिति भी कहती हैं कि अपनी परिस्थिति से लड़ने के लिए वह खुद को मानसिक तौर पर मज़बूत बनाने की पूरी कोशिश करती है। थोड़ी कोशिश और ताकत से इस बीमारी को भी हराना मुमकिन है। इससे जूझते हर इंसान को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वे अकेले नहीं हैं और इस संघर्ष में वे एक दिन ज़रूर जीतेंगे।
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तस्वीर साभार : lifeberrys