इंटरसेक्शनल महाराष्ट्र की इन महिलाओं को रोज़ी-रोटी के लिए निकलवाना पड़ रहा है ‘गर्भाशय’

महाराष्ट्र की इन महिलाओं को रोज़ी-रोटी के लिए निकलवाना पड़ रहा है ‘गर्भाशय’

इस इलाके में महिलाओं का गर्भाशय निकाल देना आम चलन है। आप शायद ही इन गांवों में ऐसी महिलाओं से मिल पायेंगे जिनका गर्भाशय है।

महाराष्ट्र में गन्ना काटने वाले ठेकेदार उन महिलाओं को काम पर रखने के लिए तैयार नहीं हैं जिनकी माहवारी नियमित होती है। इसीलिए इस इलाके में महिलाओं का गर्भाशय निकाल देना आम चलन है। आप शायद ही इन गांवों में ऐसी महिलाओं से मिल पायेंगे जिनका गर्भाशय है। ये गाँव गर्भाशय विहीन महिलाओं के गाँव हैं। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के सूखा प्रभावित बीड जिले के हाजीपुर गांव में अपने छोटे से घर में बैठी मंदा उंगले बहुत ही दर्द के साथ यह बमुश्किल बयां कर पाती हैं। वंजरवाड़ी में, जहाँ 50 फ़ीसद महिलाओं का गर्भाशय निकाल दिया गया है, महिलाओं का कहना है कि गाँवों में दो या तीन बच्चे होने के बाद गर्भाशय को निकालना आम बात है।

इन महिलाओं में से अधिकांश गन्ना काटने वाली मजदूर हैं और गन्ना काटने के मौसम के दौरान पश्चिमी महाराष्ट्र के चीनी बेल्ट में प्रवास करती हैं। सूखे की तीव्रता के साथ, प्रवासियों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। एक अन्य गन्ना काटने वाली सत्यभामा कहती हैं, ‘मुकादम (ठेकेदार) अपने गन्ने के मजदूरों के समूह में बिना गर्भाशय वाली महिला को लेने को ज्यादा इच्छुक होता है।’ क्षेत्र के लाखों पुरुष और महिलाएं अक्टूबर और मार्च के बीच गन्ना कटर के रूप में काम करने के लिए पलायन करते हैं। ठेकेदार एक इकाई के रूप में गिने गए पति और पत्नी के साथ अनुबंध तैयार करते हैं। गन्ना काटना एक कठिन प्रक्रिया है और अगर पति या पत्नी एक दिन के लिए विराम लेते हैं, तो दंपति को हर ब्रेक के लिए ठेकेदार को प्रतिदिन 500 का जुर्माना देना पड़ता है।

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 काम में रुकावट बनती माहवारी

माहवारी की अवधि काम में बाधा डालती है जिसके कारण जुर्माने लगते हैं। बीड में इसका समाधान निकाला गया है बिना गर्भाशय के महिला मजदूर। ‘गर्भाशय निकल जाने के बाद, मासिकधर्म की कोई संभावना नहीं होती है। फिर तो गन्ना काटने के दौरान ब्रेक लेने का कोई सवाल ही नहीं है। सत्यभामा कहती हैं, ‘हम एक रुपया भी नहीं गंवा सकते। ठेकेदारों का कहना है कि मासिकधर्म के दौरान, महिलाएं एक या दो दिन का ब्रेक चाहती हैं जिससे काम रुक जाता है।’ एक ठेकेदार दादा पाटिल ने कहा, ‘हमारे पास एक सीमित समय सीमा में काम पूरा करने का लक्ष्य होता है और इसलिए हम ऐसी महिलाओं को नहीं चाहते हैं जिनको उस समय माहवारी हो।’ पाटिल ने जोर देकर कहा कि वह और अन्य ठेकेदार महिलाओं को सर्जरी करने के लिए मजबूर नहीं करते हैं, बल्कि यह उनके परिवारों का बनाया गया एक विकल्प है।

इस इलाके में महिलाओं का गर्भाशय निकाल देना आम चलन है। आप शायद ही इन गांवों में ऐसी महिलाओं से मिल पायेंगे जिनका गर्भाशय है।

दिलचस्प बात यह है कि महिलाओं ने कहा कि ठेकेदार उन्हें एक सर्जरी के लिए अग्रिम भुगतान करते हैं और यह पैसा उनके वेतन से वसूला जाता है। इस मुद्दे पर एक अध्ययन करने वाले संगठन ‘तथापि’ के अच्युत बोरगांवकर ने बताया कि, ‘गन्ना काटने वाले समुदाय में, मासिकधर्म को एक समस्या माना जाता है और उन्हें लगता है कि इससे छुटकारा पाने के लिए सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है। लेकिन इससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है क्योंकि वे एक हार्मोनल असंतुलन, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे, वजन बढ़ने आदि से जूझने लगती हैं। हमने देखा कि 25 साल की उम्र में भी कम उम्र की लड़कियों को इस सर्जरी से गुजरना पड़ा है।’

सत्यभामा के पति और स्वयं गन्ना काटने वाले बंडू उगले, इसके पीछे के तर्क को स्पष्ट करते हैं। ‘एक टन गन्ना काटने के बाद एक जोड़े को क़रीब 250 मिलते हैं। एक दिन में हम लगभग 3-4 टन गन्ना काटते हैं और 4-5 महीने के पूरे सीजन में एक जोड़ी लगभग 300 टन गन्ना काटती है। हम इस सीजन के दौरान जो कमाते हैं, वह हमारी वार्षिक आय है क्योंकि हम गन्ना काटने से वापस आने के बाद कोई काम नहीं करते हैं। हम एक दिन के लिए भी छुट्टी नहीं ले सकते। अगर हमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं तो भी हमें काम करना होगा। कोई आराम नहीं है और महिलाओं को होने वाली पीरियड एक अतिरिक्त समस्या है।’

सत्तर वर्षीय विलाबाई का कहना है कि एक गन्ना काटने वाली महिला का जीवन नारकीय होता है। वह संकेत देती है कि ठेकेदारों और उनके पुरुषों द्वारा महिलाओं का बार-बार यौन शोषण होता है। गाँव की एक बूढ़ी महिला अपने अनुभवों के आधार पर कहती है कि ‘गन्ना काटने वालों को गन्ने के खेतों में या एक तम्बू में चीनी मिलों के पास रहना पड़ता है। स्नानघर और शौचालय नहीं हैं। एक महिला के लिए यह और भी मुश्किल हो जाता है अगर इन परिस्थितियों में पीरियड्स हों।’ इस सूखाग्रस्त इलाके की कई महिलाओं ने कहा कि निजी चिकित्सक सामान्य पेट दर्द या श्वेत प्रदर की शिकायत होने पर भी गर्भाशय निकालने का सुझाव देते हैं।

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तस्वीर साभार : nbchindi

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