हमारा भारत देश महान है। महान पुरुषों और हमारे देश को महान बनाने के लिए महिलाओं ने भी पुरुषों के साथ कंधे-से कंधा मिलाकर देश को विकास की ओर ले जाने में अहम भूमिका अदा की है। संपूर्ण संसार में जितने भी देश हैं, उन सभी देशों में कुछ चुनिंदा ही महान पुरुष हैं लेकिन हमारा भारत देश महान पुरुषों से भरा पड़ा है। इसलिए हमारे देश को ‘भारत देश महान’ और ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा’ कहा जाता है।
हमारे देश के इन महापुरुषों ने जिस भी अच्छे कार्य को उद्देश्य बनाया उस कार्य को अंतिम कर के ही आखरी सांस ली है। ये महापुरुष हमारे देश के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत बनें। देश एवं मानव जाति के विकास की नींव बनाकर, वे इस संसार से हमेशा के लिए अलविदा हो गए। देश के विकास के लिए महान पुरुषों ने अपने-अपने मतानुसार अलग-अलग ढंग और भिन्न-भिन्न विषयों पर नींव रखी। हमारे महान पुरुषों ने जो भी कार्य योजनाबद्ध तरीके से किए, उन्हें आज के नेता या सरकार अनुसरण करते हुऐ कर्तव्यनिष्ठ होकर निभा रहे हैं। आज की सरकार देश के विकास लिए विभिन्न योजनाएं चला रही हैं।
हमारा देश तो सभी जानते हैं कि गाँवों में बसता है। जब तक गाँवों का विकास नहीं होगा तब तक गाँवों में रहने वाले लोगों का भी विकास नहीं होगा। उनको आर्थिक रुप से मदद नहीं मिलेगी, उनको रोज़गार नहीं मिलेगा तब तक हम तो क्या, कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता है।
आज हमारा देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है तो ऐसे में ज़रूरी है कि मनरेगा जैसी योजनाओं को और बेहतर बनाने के लिए सरकार की तरफ़ से प्रयास किए जाए।
आखिर मनरेगा क्या है?
सरकार के विभिन्न महापुरुषों के नाम से योजना का नामकरण कर किसी भी योजना को देश हित में प्रारंभ किया जाता है। वर्तमान समय में हर वर्ष गाँवों में 100 दिनों तक बेरोज़गार गरीब किसानों को रोज़गार दिया जाता है। इसे महात्मा गाँधी रोज़गार गारंटी (मनरेगा) के नाम से जाना जाता है। इस योजना के तहत गाँव में शिक्षित-अशिक्षित सभी बेरोज़गारों को काम दिया जाता है। इस काम में तालाब निर्माण, आवास योजना, कुंआ निर्माण, मेढ़ बंधी अनेक प्रकार के क्षेत्रों में गाँवों के लोगों को उनके योजना के अनुसार काम दिया जाता है।
तालाब निर्माण के लिए सुबह होते ही लोग अपने साथ फावड़ा, गैंती, रांपा, मिट्टी उठाने के लिए बांस की बनी हुई टोकरी लेकर घर से निकल पड़ते हैं। तालाब का निर्माण इस तरह से किया जाता है कि जिस तरफ ज़मीन ढलाऊ होती है, उस तरफ मिट्टी से मेढ़ बांध दिया जाता है जिससे पानी ठहर सके। पुरुष गैंती से मिट्टी खोदते है और टोकरी में मिट्टी को भरा लेते हैं। फिर महिलाएं उस मिट्टी को फेंकने जाती हैं। मिट्टी फेंकने का काम पुरुष भी करते है। बांस की बनी हुई दो टोकरियों को एक बांस के डंडे के दोनों सिरों पर गठी हुई रस्सी से बांधा जाता है। दोनों टोकरियों में मिट्टी भरी जाती है। पुरुष उसे उठाकर मिट्टी को फेंकते हैं।
काम के बाद भुगतान की प्रक्रिया
हां तो गड्ढा खोदने वाले लोग बहुत होते हैं। इसलिए सब लोग टेप से मापकर 5 फिट का एक डंडा रखते हैं, जिससे कि खोदने के बाद मापने में आसानी हो। मापने के बाद मुंशी के पास अपने जॉब कार्ड लेकर जाते हैं और उस पर अंकित कराया जाता है कि कितने गड्ढे खोदे हैं। यह किया जाता है ताकि कोई भी गड़बड़ी ना हो सके और काम करने वालों को सही समय पर उचित मेहनताना मिल सके।
सत्ता को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों का जीवन बहुत ही संघर्ष भरा होता है। उनको जीवन चलाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। उनके पास खाने की कमी होती है, पहनने के लिए कपड़े कम होते हैं। उनके पास इतने पैसे नहीं होते हैं जिससे भौतिक संसाधन खरीदे जा सकें।
आज जब हमारा देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है तो ऐसे में ज़रूरी है कि मनरेगा जैसी योजनाओं को और बेहतर बनाने के लिए सरकार की तरफ़ से प्रयास किए जाए, जिससे ज़्यादा से ज़्यादा बेरोज़गार लोग इसका लाभ ले सकें। सरकार अगर अनेक प्रकार की योजनाएं चलाएं जिससे लोगों को काम मिल सके और काम से उनको पैसा मिल सके तो उनको विकास में मदद मिलेगी। समाज में उनको सम्मान मिल सकेगा और देश तरक्की कि राह पर आगे बढ़ सकेगा।
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यह लेख छत्तीसगढ़ के राकेश नागदेव ने लिखा है, जिसे इससे पहले आदिवासी लाइव मैटर में प्रकाशित किया जा चुका है।
तस्वीर साभार : gaonconnection