स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य सर्वाइकल कैंसर : जानें, कैसे इस घातक बीमारी से खुद को सुरक्षित रख सकती हैं आप

सर्वाइकल कैंसर : जानें, कैसे इस घातक बीमारी से खुद को सुरक्षित रख सकती हैं आप

ब्रेस्ट कैंसर के बाद, सर्वाइकल कैंसर भारतीय महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है। सर्वाइकल कैंसर यानी सर्विक्स में सेल्स की बेकाबू वृद्धि।

कैंसर एक घातक बीमारी होती है। इस बीमारी के होने का मतलब होता है शरीर के एक हिस्से में कोशिकाओं (सेल्स) की बेकाबू वृद्धि। शरीर के जिस हिस्से में ऐसी बेकाबू वृद्धि होती है, उस हिस्से के नाम पर ही कैंसर का नाम दिया जाता है। जैसे अगर स्तन में ऐसी वृद्धि होती है तो वो होता है स्तन कैंसर, पैंक्रियास में होता है तो पैंक्रिअटिक कैंसर, आदि। ऐसी ही एक बीमारी है- सर्वाइकल कैंसर। आंकड़ों के मुताबिक ब्रेस्ट कैंसर के बाद, सर्वाइकल कैंसर भारतीय महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक दुनियाभर में सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों में से 15.2 फीसद मौतें भारत में होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि साल 2018 में दुनियाभर में 5,70,000 महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित हुई थी और 3,11,000 महिलाओं की मौत इस बीमारी के कारण हुई।  

वहीं, साल 2018 में ही हुए एक रिसर्च सर्वे (Estimates of incidence and mortality of cervical cancer in 2018: a worldwide analysis) के मुताबिक अकेले भारत में सर्वाइकल कैंसर के 97,000 मामले सामने आए जिसमें से 48,000 मरीज़ों की मौत हो गई। इस रिपोर्ट के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में सर्वाइकल कैंसर के मामलों में थोड़ी गिरावट ज़रूर देखी गई है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी स्थिति जस की तस बनी हुई है। अधेड़ उम्र की महिलाओं को खासकर उन देशों में जहां संसाधनों की कमी है, उनके लिए एक खतरे की बना हुआ है। दक्षिण भारत में इस बीमारी को लेकर जागरूकता कितनी है, यह जानने के लिए की साल 2020 में की गई एक स्टडी बताती है कि बहुत ही कम महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर के बारे में पता है। साथ ही  उस से भी कम महिलाएं इस बीमारी का पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट करवाती है। 

और पढ़ें : ब्रेस्ट कैंसर : जागरूकता और समय पर जानकारी है असली उपाय

क्या होता है सर्वाइकल कैंसर  

सर्वाइकल कैंसर का मतलब होता है सर्विक्स में सेल्स की बेकाबू वृद्धि। सर्विक्स, यूटेरस के सबसे नीचे वाला हिस्सा होता है और जो वजाइना से भी कनेक्टेड होता है। यूटेरस, महिलाओं के शरीर का वो हिस्सा होता है जहां भ्रूण का विकास होता है। यूटरस और वजाइना, इन दोनों के बीच होता है- सर्विक्स। इस हिस्से में होने वाला कैंसर, सर्वाइकल कैंसर आम-तौर पर 30 साल से ऊपर की महिलाओं में होता है। सर्वाइकल कैंसर होने के पीछे कई सारी वजहें हो सकती है – लेकिन एक मुख्य वजह होती है HPV वायरस। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सर्वाइकल कैंसर के 99 फीसद मामले HPV वायरस से संबंधित होते हैं। ऐसे में मन में ये सवाल उठना वाजिब है कि शरीर में ये वायरस कैसे आता है? HPV वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान के अंदर शारीरिक संबंध बनाने के दौरान फैलता है। 

किसे ये कैंसर होगा और किसे नहीं ये कहना मुश्किल होगा। इसका होना और न होना, महिला की जीवन शैली और आस-पास के माहौल पर भी निर्भर करता है।  लेकिन कुछ सतर्क क़दमों से हर महिला खुद को इस बीमारी से बचा सकती है।

यह एक बहुत ही सामान्य सी घटना है। असल में तो इस वायरस का ट्रांसफर होना अपने आप में समस्या नहीं है क्योंकि हर वह महिला जिसमें HPV वायरस ट्रांसफर होता है, उसे सर्वाइकल कैंसर नहीं होता। केवल कुछ ही महिलाओं को ये कैंसर होता है। वास्तव में तो, आधे यौन सक्रिय (सेक्सुअली एक्टिव) लोगों के शरीर में कभी न कभी HPV ज़रूर होता है, लेकिन इनमे से कुछ ही औरतों को सर्वाइकल कैंसर होता है। HPV वायरस के अतिरिक्त, सर्वाइकल कैंसर होने के पीछे और भी कई वजहें हो सकती है, जैसे कि सेक्स के वक़्त कंडोम का इस्तेमाल न करना, शरीर में पहले से ही HPV वायर का होना, कई लोगों के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाना, लंबे समय के लिए गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करना, धूम्रपान करना, आदि। 

और पढ़ें : फ़ाइब्रोमायलजिया : एक रहस्यमय बीमारी

किसे ये कैंसर होगा और किसे नहीं ये कहना मुश्किल होगा। इसका होना और न होना, महिला की जीवन शैली और आस-पास के माहौल पर भी निर्भर करता है।  लेकिन कुछ सतर्क क़दमों से हर महिला खुद को इस बीमारी से बचा सकती है। वैसे तो, प्रारंभिक अवस्था में इस बीमारी के लक्षण नजर नहीं आते। लेकिन फिर भी बीमारी को प्रारंभिक अवस्था में रोकने के लिए जांच और जागरूकता ही इसका समाधान है। 21 वर्ष का हो जाने पर हर लड़की/ महिला को 3 से 5 साल के बीच में पैप टेस्ट और पेल्विक एग्जाम करवाते रहने चाहिए। इस प्रकार की जांचों में सर्विक्स की कैंसर की संभावना पकड़ में आ जाती है। अगर बीमारी बढ़ जाती है तब ही इस प्रकार के कुछ लक्षण नजर आते है, जिन पर गौर करना चाहिए: पीरियड्स आने से पहले ही ब्लीडिंग होना, बहुत ही ज्यादा वाइट डिस्चार्ज होना,  असमय ब्लीडिंग होना, जैसे सेक्स के बाद ब्लीडिंग होना, पेल्विक एरिया में दर्द होना, सेक्स के दौरान दर्द होना, पीरियड्स के बंद होने के बावजूद (मेनोपॉज के बावजूद) ब्लीडिंग होना, आदि। 

अक्सर इस प्रकार के लक्षणों को महिलाएं कोई इन्फेक्शन या पीरियड्स की प्रॉब्लम या यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन समझ लेती हैं। यह समझने की जगह समय-समय पर सर्वाइकल कैंसर की जांच करा लेनी चाहिए। नियमित जांच से बीमारी जल्दी पकड़ में आ जाती है और इलाज भी समय पर हो जाता है। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि आप ऊपर दिए गए लक्षणों को समझें और याद रखें। जब भी अपने शरीर में इस प्रकार के किसी लक्षण को महसूस करें और अगर वो लक्षण 2 या 2 से ज्यादा हफ्ते रहते है तो उसे नजरअंदाज़ न करें और तुंरत ही पेल्विक एरिया की जांच करा लें/ या स्क्रीनिंग टेस्ट करवा ले/ या डॉक्टर की सलाह अनुसार कोई न कोई सही कदम जरूर उठाएं। अगर बहुत ज्यादा बढ़ जाने के बाद, सर्वाइकल कैंसर पकड़ में आता है तो फिर न सिर्फ इलाज का खर्चा बहुत ज्यादा बढ़़ जाता है, जो कि अधिकतर महिलाएं चुकाने में असमर्थ होती हैं बल्कि बचने की संभावनाएं भी काफी कम हो जाती हैं। यही नहीं, दूसरे कैंसर की तरह ही, एडवांस्ड स्टेज में जाने के बाद इलाज भी बहुत ही कष्टदायी हो जाता है। वहीं, कैंसर काउंसिल न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया की एक रिसर्च में यह अनुमान लगाया गया है कि सर्वाइकल कैंसर संभावित रूप से साल 2100 तक 181 देशों में से 149 देशों से एक गंभीर सार्वजनिक समस्या के रूप में खत्म हो सकता है।

ऊपर दिए गए कदमों के अतिरिक्त, इस बीमारी को रोकने के लिए, 9 से 26 साल की बच्चियों को HPV टीका लगवा लेना चाहिए। इस टीकाकरण से भी सर्वाइकल कैंसर को होने से रोका जा सकता है। अगर सेक्सुअली एक्टिव होने से पहले ही ये टीका लगवा दिया जाता है तो वो सबसे प्रभावी होता है। ये कुछ कदम है जिन्हें अपनी जिंदगी में अपनाने से महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से खुद को बचा सकती हैं। 

और पढ़ें : टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम : एक विरल लेकिन जानलेवा बीमारी


तस्वीर साभार : cyte care

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content