गोवा लॉ कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर शिल्पा सिंह के खिलाफ जानबूझकर धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में एफआईआर दर्ज हुई है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार गोवा के एक लॉ कॉलेज में सहायक प्रोफेसर पद पर कार्यरत शिल्पा सिंह के खिलाफ राष्ट्रीय हिंदू युवा वाहिनी की गोवा इकाई के राजीव झा की शिकायत पर दायर की गई है। दरअसल, शिल्पा सिंह ने इस साल 21 अप्रैल को सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी थी जिसमें उन्होंने पितृसत्ता को चुनौती देते हुए मंगलसूत्र की तुलना चेन से बंधे हुए एक कुत्ते से कर दी थी। राजीव झा ने उनकी इस पोस्ट के खिलाफ गोवा पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई है। उन्होंने आरोप लगाया कि शिल्पा सिंह ने हिंदू धर्म को लेकर सोशल मीडिया पर अपमानजनक कमेंट किए हैं और धार्मिक भावनों का मजाक उड़ाया है।
इस वाकये के बाद शिल्पा सिंह ने भी पुलिस से सुरक्षा मांगी, उन्होंने कहा कि उन्हें सोशल मीडिया पर धमकी भरे मैसेज आ रहे हैं और उनकी जान को खतरा है इसलिए उन्हें सुरक्षा दी जाए। इस मामले में शिल्पा सिंह के खिलाफ छात्र संगठन एबीवीपी ने भी कॉलेज में शिकायत की थी। एबीवीपी ने शिल्पा के खिलाफ अपनी शिकायत में कहा था कि वह एक विशेष धर्म के बारे में सामाजिक रूप से घृणास्पद विचारों को बढ़ावा देती हैं। साथ ही उन्होंने शिल्पा सिंह के निष्कासन की मांग की थी। जिस पर कॉलेज ने कोई भी एक्शन लेने से मना कर दिया। घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए, एसपी (उत्तरी गोवा) उत्कर्ष प्रसून ने कहा कि झा और सिंह दोनों की शिकायतों के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई हैं। शिल्पा सिंह पर आईपीसी की धारा 295-ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों से धार्मिक भावनाओं को अपमानित करना के तहत मामला दर्ज किया गया है। पोंडा के निवासी राजीव झा पर आईपीसी धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान), 506 (आपराधिक धमकी) और 509 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
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भारतीय हिंदू संस्कृति में महिलाओं के लिए कई ऐसे नियम-कायदे हैं जहां शादी-शुदा स्त्री पुरुष के लिए अलग-अलग शर्ते बनाई गई हैं। एक तरफ शादीशुदा महिला के लिए मंगलसूत्र और सिंदूर जैसी चीजें ज़रूरी हैं जबकि दूसरी तरफ पुरुषों के लिए ऐसे कोई भी नियम -कानून नहीं है।
हालांकि अपनी फेसबुक पोस्ट पर बवाल मचने के बाद प्रोफेसर शिल्पा सिंह ने माफी भी मांगी, उन्होंने लिखा कि ‘मेरी बातों को गलत तरीके से लिया गया, मैं उन सभी महिलाओं से खेद प्रकट करती हूं जिन्हें मेरी पोस्ट से दुख हुआ। उन्होंने आगे लिखा कि बचपन से ही मैं हमेशा यह सोचती थी कि शादी के बाद मैरिटल स्टेटस सिर्फ महिलाओं के लिए क्यों ज़रूरी है, पुरुषों के लिए क्यों नहीं। ये देखकर निराश हूं कि मेरे बारे में गलत विचार फैलाए गए कि मैं एक ‘अधार्मिक’ और नास्तिक हूं, जबकि ये सच्चाई से कोसों दूर है। यह खबर ने पितृसत्तात्मक समाज में लैंगिक असमानता और विचारों की आज़ादी की बहस को जन्म दिया है कि क्या एक माहिला की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन जीने का तरीका, उसकी इच्छाएं कोई मतलब नहीं रखती हैं? अगर कोई माहिला खुलकर अपनी बात रखती है तो उसे धर्म-विरोधी मान लिया जाता है।
भारतीय हिंदू संस्कृति में महिलाओं के लिए कई ऐसे नियम-कायदे हैं जहां शादी-शुदा स्त्री पुरुष के लिए अलग-अलग शर्ते बनाई गई हैं। एक तरफ शादीशुदा महिला के लिए मंगलसूत्र और सिंदूर जैसी चीजें ज़रूरी हैं जबकि दूसरी तरफ पुरुषों के लिए ऐसे कोई भी नियम-कायदे नहीं हैं। ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिन्हें एक सुहागन महिलाओं के लिए ज़रूरी माना जाता है। लेकिन ऐसा क्यों है कि स्त्री पुरुष के लिए अलग-अलग नियम हैं यह समझना बहुत जरूरी है।
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पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री की पहचान उसके श्रृंगार से की जाती है कि वह महिला विवाहित है, अविवाहित है या विधवा है। इस तरह श्रृंगार का विचार इस बात से संबंधित है कि महिलाओं के जीवन में पुरुषों की उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण रखती है ना कि उसकी खुद की इच्छाएं। इसीलिए उसके सुहागन दिखने के लिए ये सभी चीज़ें जरूरी बना दी गई हैं। मसलन कंगन, बिंदी, बिछुये या पाजेब इन्हीं प्रतीकों को धारण करने से माहिला की पहचान आसानी से जा सकती है कि उसकी जिंदगी में कोई पुरुष मौजूद है या नहीं। इसका दूसरा कारण स्त्री की यौनिकता को नियंत्रण करना भी है। शादीशुदा महिला पर कोइ पर पुरुष ‘बुरी नज़र’ ना डालें उसके द्वारा पहने जाने वाले जेवर और श्रृंगार इसलिए महत्वपूण हैं। जबकि ऐसे नियम-कानून शादीशुदा पुरुषों पर लागू नहीं होते।
सवाल ये उठता है कि क्या मंगलसूत्र जैसी चीज़ धर्म का हिस्सा है या नहीं। यदि हम गहराई से देखें तो समझ पाएंगे चाहे मंगलसूत्र हो या दूसरे सुहागन चिन्ह, उन्हें धर्म का हिस्सा नहीं माना जा सकता क्योंकि धर्म की परिभाषा कोई स्थाई वस्तु नहीं है। यह समय, स्थान, व्यक्ति, समुदाय या परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती है। मसलन भाषा हो, पहनावा हो, श्रृंगार हो, रीति-रिवाज समय के साथ और स्थान के साथ बदलते हैं। उदाहरण के लिए उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम भारत के सारे हिस्सों के पहनावे, रीति-रिवाज, नियम-कायदे अलग-अलग हैं। ऐसे में देखा जाए तो मंगलसूत्र मात्र एक गहना है जो भारत के कुछ हिस्सों में पहना जाता है। लेकिन जब धार्मिक कट्टरता बढ़ने लगती है तो इस तरह की चीज़ों और प्रतीकों को धर्म से जोड़ दिया जाता है और कट्टरपंथी सोच के व्यक्ति इनका विरोध, धर्म विरोध मानते हैं।
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तस्वीर साभार : Indian Express