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एक बच्ची जब एक पल के लिए भी अपने माता-पिता की आंखों से ओझल हो जाती है, तब उसके माता-पिता बेचैन हो उठते हैं। अब आप सोचिए अगर एक बच्ची अपने माता-पिता की आंखों से बीते आठ सालों से ओझल हो, उस मां-बाप की स्थिति का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं। बिहार के मुज़फ्फरपुर ज़िले के रहने वाले अतुल्य चक्रवर्ती और मैत्री चक्रवर्ती की आंखें आज भी अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए तरसती हैं। साथ ही जितनी घबराहट और बैचेनी नवरुणा के माता-पिता को है, उतनी ही बैचेनी यहां के लोगों को भी है मगर उस बैचेनी को सीबीआई ने खत्म कर दिया है क्योंकि नवरुणा की हत्या/अपहरण गुत्थी आज तक नहीं सुलझ सकी है। बीते आठ सालों की तहकीकात के बाद भी नवरुणा कांड पर रहस्य का पर्दा बरकरार है।
नवरुणा की कहानी 18 सितंबर 2012 से शुरू होती है, जब जवाहर लाल रोड में रहने वाले अतुल्य और मैत्री चक्रवर्ती के घर से उनकी 12 साल की बेटी नवरुणा चक्रवर्ती का खिड़की के तीन सींखचो को तोड़कर अपहरण कर लिया जाता है। 19 सितंबर को जब मां अपनी बेटी को जगाने के लिए कमरे का दरवाज़ा खटखटाती है और जवाब ना मिलने पर बाहर जाकर खिड़की से झांकती है तो उनके होश उड़ जाते हैं। बेटी कमरे में नहीं मिलती है और आसपास कॉपी-किताब बिखरे हुए होते हैं। बेटी को कमरे में ना पाकर दोपहर तक माता-पिता सगे-संबंधियों के यहां पता लगाते हैं और आखिर में कोई समाचार नहीं मिलने पर वे कुछ लोगों के साथ मुज़फ्फरपुर नगर थाना पहुंचते हैं और अपनी बेटी की बरामदगी के लिए गुहार लगाते हैं। थानाध्यक्ष टालने वाला रवैया अपनाते हुए कहते हैं, “आवेदन दे दीजिए और जाकर आप भी पता लगाइए। कहीं वह खुद ही भाग गई होगी।” पुलिस के इस रवैये पर अतुल्य चक्रवर्ती विनती करते हुए कहा था, “साहब, अगर भागना होता तो वह गेट खोलकर भागती, खिड़की तोड़कर नहीं। आप पता लगाइए कहीं देर ना हो जाए।” इस तरह से नवरुणा केस की शुरुआत होती है।
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अतुल्य के लिए उनकी बेटी ही सब कुछ थी, ऐसे में उनका मन नहीं मान रहा था और किसी अनहोनी की आशंका से दिल बैठा जा रहा था। नवरुणा के अपहरण की खबर हर जगह फैल गई। धीरे-धीरे टाउन डीएसपी, थानाध्यक्ष, आई.ओ. अधिकारी दल-बल के साथ पहुंचते हैं और जांच की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है। अपहरण की प्राथमिकी दर्ज कर दी जाती है और अनुसंधान की ज़िम्मेदारी इंस्पेक्टर अमित कुमार को सौंपी दी जाती है। पूछताछ होने पर कोई नतीजा सामने नहीं आने के कारण नवरूणा के माता-पिता आत्मदाह की चेतावनी देते हैं। इस बात को देखते हुए 22 अक्टूबर को डीआईजी के आदेश पर नवरुणा की बरामदगी के लिए विशेष टीम तैयार की जाती है।
26 नवंबर 2012 को नवरूणा के घर के सामने बने नाले की उड़ाही की जाती है, जिसमें से एक कंकाल बरामद किया जाता है। लोगों द्वारा यह आशंका जताई जाती है कि कंकाल नवरुणा का हो सकता है। उस वक्त कई तरह के सवाल उठने शुरू हो जाते हैं, जैसे- इस नर कंकाल से कोई दुर्गंध क्यों नहीं आई? हालांकि यह सवाल बिल्कुल लाज़िमी है कि लाश की र्दुगंध क्यों नहीं फैली? इसका जवाब आता है कि हो सकता है मृतक के शरीर को केमिकल ट्रीटमेंट करके फेंका गया हो। जांच की प्रक्रिया आगे बढ़ने के बाद उस लाश के एबालमिंग की बात सामने आती है। खैर, नर कंकाल मिलने के बाद उसकी पहचान तक नहीं हो सकती है कि वह लड़के की है या लड़की की। इसी बीच अतुल्य और मैत्री से डीएनए जांच की बात कही गई पर उन्होंने मना कर दिया। इस बीच नवरुणा की बरामदी को लेकर विरोध-प्रर्दशन होने लगे। हर तरफ लोग नवरुणा के लिए आवाज़ उठाने लगे क्योंकि सभी नागरिकों नवरूणा की खबर चाहिए थी।
तारीखों का सिलसिला
एक ओर अगर किसी बच्चे का अपहरण हो जाए, तब अन्य मां-बाप और उन के मन में भी डर के भाव आ जाते हैं कि कहीं उनके साथ भी ऐसी घटना ना हो जाए। कुछ लड़कियों से मैंने नवरूणा केस को लेकर बात भी की और बातचीत में उन्होंने बताया कि नवरूणा केस के बाद उनमें डर का साया घर कर गया था क्योंकि इस केस के बाद लड़कियां घर में भी सुरक्षित महसूस नहीं करती थी। खुली खिड़की से डर हो गया था क्योंकि नवरूणा का अपहरण खिड़की के रोड को तोड़कर ही कर दिया था। 30 अक्टूबर 2012 को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र अभिषेक द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से नवरुणा कांड में पहल करने की गुहार लगाई जाती है और दिसंबर के पहले हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी जाती है। 7 जनवरी 2013 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका स्वीकार होने के बाद 25 फरवरी को सुनवाई की तारीख तय करके राज्य सरकार और डीजीपी को हाज़िर होने के लिए नोटिस भेजा दिया जाता है।
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सुनवाई की तारीख नज़दीक आते-आते तारीख फिर बढ़ा कर दो महीने बाद निर्धारित कर दी जाती है मगर सुनवाई नहीं होने के कारण तारीख को बढ़ाकर फिर 1 जुलाई तय कर दी जाती है, जिससे परेशान होकर अतुल्य चक्रवर्ती द्वारा अर्जेंसी लगाई जाती है और सुनवाई 7 मई 2013 को होती है। जहां राज्य सरकार के वकील द्वारा फॉरेंसिक रिपोर्ट की मौखिक जानकारी दी जाती है। यहां भी फॉरेंसिक रिपोर्ट अधूरी होने के कारण जस्टिस लोढ़ा डीएनए जांच की बात पर आपत्ति जताते हैं। हालांकि 25 मार्च 2014 को मुज़फ्फरपुर के एसकेएमसीएच में नवरूणा के माता-पिता अपना ब्लड सैंपल देते हैं। बाद में पता चलता है कि यह लाश नवरुणा की ही है, और केस अपहरण से मर्डर मिर्स्टी में तब्दील हो जाता है। इसके बाद शुरू होता है तारीखों का सिलसिला और तब खुलती है सुशासन बाबू की नींद। 18 सितंबर 2013 को नवरूणा मामले की जांच के लिए सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी जाती है, मगर सीबीआई द्वारा मुख्यमंत्री की सिफारिश को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
25 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया जाता है, जिससे नवरूणा के माता-पिता को तसल्ली मिलती है कि अब उन्हें न्याय ज़रुर मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के करीब 3 महीने बाद सीबीआई ने 14 फरवरी 2014 को एफआईआर दर्ज होती है। 18 फरवरी 2014 को सीबीआई की टीम पूछताछ के लिए निकलती है। सीबीआई की टीम ने घंटों नवरूणा के माता-पिता से पूछताछ करती है, जिसमें यह बात सामने आता है कि 8 कट्ठा ज़मीन के लिए 12 साल की नवरुणा का अपहरण हुआ था। इस दौरान केस राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा राज्य मानवाधिकार आयोग को केस ट्रांसफर होता है, जो सीबीआई जांच शुरू होने के बाद स्थगित कर दिया जाता है। इस दौरान नवरूणा के माता-पिता पर भी अपनी बेटी को मारने और अपहरण करने के आरोप लगते हैं।
एक ओर एक पिता अपनी बेटी के लिए लड़ रहा है और उसी पर आरोपों की बौछार हो जाती है। न्याय की गुहार मांगने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत होती है क्योंकि न्याय तारीखों में पिसता है। कुछ ऐसा ही हुआ अतुल्य और मैत्री के साथ क्योंकि सीबीआई ने तारीखों का ऐसा जाल बुना कि नवरुणा केस तारीखों में ही घुट गया। लेकिन नवरूणा के न्याय के लिए गंभीरता नहीं दिखाई। कभी 6 महीने का वक्त मांगा गया तो कभी 4 महीने का वक्त, नवरुणा केस में सिमटती चली गई और माता-पिता न्याय की आस में बूढ़े। अब साल 2012 से 2020 आ गया मगर नवरुणा की गुत्थी नहीं सुलझ सकी। आठ सालों तक सीबीआई केवल कयास में जीती रही मगर नवरुणा के साथ क्या हुआ, उसकी कोई खबर नहीं ला सकी। 27 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अंतिम सुनवाई हुई थी, जहां सीबीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट से जांच में और समय देने की मांग हुई थी। कोर्ट ने सीबीआई को अंतिम रूप से 2 महीने का समय जांच के लिए दिया था, जो 27 दिसंबर को पूरी होने वाली है। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को स्पष्ट रूप से कहा था कि इस अंतिम तारीख में वह चार्जशीट भी फाइल करे लेकिन उससे पहले ही सीबीआई ने मुज़फ्फरपुर की विशेष सीबीआई अदालत में अपनी फाइनल रिपोर्ट समर्पित कर दी है। 40 पन्नों की रिर्पोट में केस के क्लोज़र की बात सामने आई है।
नवरूणा के माता-पिता सीबीआई जांच से नाखुश हैं क्योंकि उन्हें अपनी बेटी की जानकारी तक नहीं मिली, जिस कंकाल के मिलने की बात सामने आई थी, जांच में पता चला था कि वह नवरुणा के ही अवशेष हैं मगर सीबीआई ने नवरुणा के अवशेषों तक को उसके माता-पिता को नहीं सौंपा है। अपनी बेटी के अपहरण की गुत्थी सुलझाते-सुलझाते वे अवशेष मांगने की स्थिति में आ गए मगर केस नहीं सुलझ सका। नवरुणा के माता-पिता के दर्द को केवल वही समझ सकता है, जिसने अपने बच्चों को खोया हो, मगर देश की शीर्ष जांच एजेंसी के रवैये ने उम्मीद की किरण को अंधियारे में लपेट दिया है। नवरुणा की बंद सांसे और माता-पिता की आंखें प्रशासन समेत पूरे देश से सवाल कर रही है, मगर जवाब किसी के पास नहीं है।
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तस्वीर साभार : बीबीसी