1. बिलकिस बानो
82 साल की बिलकिस बानो भारत सरकार द्वारा लाए गए नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ दिल्ली के शाहीन बाग में शुरू हुए आंदोलन का एक चेहरा बन चुकी हैं। इस साल उन्हें मशहूर टाइम पत्रिका द्वारा जारी की गई 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया गया है। मौजूदा किसान आंदोलन में भी बिलकिस बानो ने अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई है।
2. लिसीप्रिया कांगूजम
लिसिप्रिया 9 साल की पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं, जिन्हें आमतौर पर भारत की ‘ग्रेटा थनबर्ग’ कहा जाता है। उन्होंने 2019 में ‘यूनाइटेड नेशन क्लाइमेट कांफ्रेंस’ में दुनिया भर के नेताओं को संबोधित किया था, जिसमें नेताओं से अपील की गई थी कि जलवायु परिवर्तन पर कुछ ठोस कदम जल्दी उठाए जाएं। उन्हें पुडुचेरी की गवर्नर किरण बेदी द्वारा 2020 का ‘ग्लोबल चाइल्ड प्रोडिजी अवॉर्ड’ भी दिया गया है। इस साल भी वह जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के मुद्दों पर काफी सक्रिय रही हैं।
3. त्रिनेत्रा हालदार
त्रिनेत्रा हालदार एक ट्रांस महिला हैं। वे डॉक्टर, एक्टिविस्ट और कलाकार हैं। डॉक्टर बनने वाली वह कर्नाटक की पहली ट्रांस महिला हैं। त्रिनेत्रा का जन्म अंगद गुम्माराजू के रूप में हुआ था, जो बाद में जेंडर कंफर्मेशन सर्जरी के बाद त्रिनेत्रा बनीं। यह सर्जरी इसी साल फरवरी में हुई। त्रिनेत्रा एक मशहूर व्लॉगर भी हैं जो इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर जेंडर, सेक्सुअलिटी, क्वीयरफ़ोबिया, मानसिक स्वास्थ्य और नारीवाद जैसे मुद्दों को लेकर जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रही हैं। उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल ‘ द त्रिनेत्रा मेथड’ पर परिवर्तन की अपनी पूरी यात्रा साझा की है।
4. नताशा नरवाल और देवांगना कलिता
नताशा और देवांगना जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्रा और महिला और मानवाधिकार समर्थक हैं। इस संबंध में आवाज़ उठाने के लिए वे पिंजरा-तोड़ नामक संगठन से जुड़ी हुई हैं। पिंजरा तोड़ दिल्ली विश्वविद्यालय की महिला छात्राओं वऔरएलुमिनी छात्राओं का कलेक्टिव है, जो ‘कर्फ्यू’ और रूढ़िवादी धारणाओं, महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करने वाले नियमों को ख़त्म किए जाने और नारी-मुक्ति का समर्थन करता है। इन दोनों महिलाओं को साल 2019 में संसद द्वारा पारित नागरिकता कानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में सक्रिय होने के कारण दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया था। ये दोनों फिलहाल जेल में ही बंद हैं।
5. महुआ मोइत्रा
महुआ मोइत्रा पश्चिम बंगाल से सांसद हैं, जो लगातार केंद्र की भाजपा सरकार की शोषणकारी नीतियों के ख़िलाफ़ खुलकर बोलती रही हैं। वह भाजपा के नागरिकता कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी गईं। वह महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा और बलात्कार की घटनाओं के ख़िलाफ़ लगातार आवाज़ उठाती रही हैं। भारतीय संसद जो पुरुष प्रभुत्व वाला है, उसमें महुआ मोइत्रा की सशक्त मौजूदगी प्रभावशाली है।
6. सफ़ूरा ज़रगर
सफ़ूरा ज़रगर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी का छात्रा और एक स्टूडेंट एक्टिविस्ट हैं। नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में सफ़ूरा काफी सक्रिय रही थी। सफ़ूरा को 10 अप्रैल को फ़रवरी में इस साल हुए एंटी-सीएए प्रोटेस्ट से संबंधित मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था। अपनी गिरफ्तारी के वक्त सफूरा तीन महीने की गर्भवती थी। उनकी इस गिरफ्तारी का विरोध अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हुआ था। उनके ख़िलाफ दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों और आईटी सेल द्वारा सोशल मीडिया पर एक अभियान भी चलाया गया था। सफूरा को 23 जून को आखिरकार ज़मानत दे दी गई थी।
7. केके शैलजा
केके शैलजा उर्फ शैलजा टीचर केरल की स्वास्थ्य मंत्री हैं। केरल में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में केके शैलजा और उनकी टीम ने एक बेहद अहम भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व के तहत केरल में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में बेहद मदद मिली। इससे पहले साल 2016 में केरल को निपाह वायरस के संक्रमण से बचाने में भी बेहद अहम भूमिका निभाई थी।
8. जेसिन्डा आर्डर्न
जेसिन्डा आर्डर्न ने दुनिया भर में सशक्त नारीवादी नेतृत्वकर्ता के रूप में एक नया इतिहास रचते हुए औरतों को लेकर गढ़े गए पारंपरिक और रूढ़िवादी पैमानों को ध्वस्त कर दिया है। कोविड-19 महामारी के समय में उनकी निर्णयात्मक क्षमता और नेतृत्व के दम पर न्यूज़ीलैंड इससे उबरने में सफ़ल रहा जिसका परिणाम हुआ कि जनता ने उन्हें दोबारा चुना। धर्म और नस्ल के मसले पर उनकी समावेशी प्रवृत्ति काबिल-ए-तारीफ़ है। ब्रिटिश पत्रिका ‘प्रॉस्पेक्ट’ ने उन्हें कोविड एरा की दूसरी सबसे महान विचारक’ कहा। साथ ही, टाइम पत्रिका ने भी 2020 की सर्वाधिक प्रभावशाली हस्तियों में उन्हें शामिल किया है।
9. कमला हैरिस
कमला हैरिस 2020 में हुए 59वें अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में अमेरिका की उपराष्ट्रपति चुनी गई हैं। व इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला हैं। टाइम मैगज़ीन ने इन्हें ‘पर्सन ऑफ द ईयर,2020’ घोषित किया है।
10. अलेक्सेन्ड्रीया ओकैसियो कॉर्टेज़ (AOC)
अलेक्सेन्द्रिया ओकेसियो कॉर्टेज़ अमेरिकी कांग्रेस में चयनित अबतक की सबसे कम उम्र की प्रतिनिधि हैं। वह सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य-शिक्षा व्यवस्था, राजनीति में व्याप्त स्त्रीद्वेष, पर्यावरण आदि के मुद्दों पर लगातार आवाज़ उठाती रही हैं। वह पितृसत्ता और आर्थिक क्षेत्र में पूंजीवाद के बढ़ते दबाव की ख़िलाफ करती रही हैं। सदन में सहकर्मी द्वारा स्त्री-विरोधी शब्द के इस्तेमाल करने पर उन्होंने सीधे तौर पर उसे जवाब दिया था।
11. ग्रेटा थनबर्ग
ग्रेटा थनबर्ग स्वीडन की पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं जो दुनियाभर के नेताओं को जलवायु परिवर्तन पर तुरंत कदम उठाने का दबाव बनाने के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानी जाती हैं। जलवायु परिवर्तन की दिशा में सकारात्मक हस्तक्षेप के लिए उन्होंने ‘स्कूल स्ट्राइक’ किया था। उनकी जागरूकता और प्रयासों के लिए उन्हें बहुत सारे पुरस्कार दिए गए।
12. सना मारिन
सन्ना मारिन दुनिया की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री हैं। वह फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री हैं। फ़िनलैंड के इतिहास में वह तीसरी महिला राष्ट्रप्रमुख हैं। मारिन का पूरा जीवन महिला अधिकार और मुक्ति का पर्याय है। उनका लालन-पालन सेम-सेक्स पेरेंट द्वारा किया गया है। वह ट्रांस समुदाय को लेकर खुले तौर पर बातचीत करती हैं और कहती हैं कि वह ‘RAINBOW’ परिवार से आती हैं लेकिन समाज में हमेशा अदृश्य रहीं क्योंकि उनके परिवार को कभी महत्व नहीं दिया गया। उनकी परवरिश का असर उनकी राजनीतिक विचारधारा में साफ़ तौर पफ देखा जा सकता है। वह हर क्षेत्र में महिलाओं को लेकर बनाए गए पैमाने तोड़ती नज़र आती है। फोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें 2020 की प्रभावशाली महिलाओं की सूची में 85वें स्थान पर दर्ज किया है।
13. रानिया नाशर
रानिया नाशर सांबा फाइनेंसियल समूह की सीईओ हैं। वेइस पद पहुंचने वाली पहली महिला हैं। वह लगभग 20 साल से बैंकिंग सेक्टर में सक्रिय हैं और बेहतरीन काम कर रही हैं। दरअसल, सऊदी अरब जैसे देश में जहां धार्मिक रूढ़िवाद के चलते औरतों को बुनियादी अधिकारों के लिए भी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी हो, वहां उनका इस पद पर पहुंचना स्त्री-अधिकार की दिशा में बहुत बड़ा कदम है। रानिया को ‘वुमन ऑफ इंफ्लुएंस मिडल ईस्ट, 2020’ में भी शामिल किया गया है।
14. लेया टी (LEA T)
लेया टी ब्राज़ील की ट्रांसजेंडर मॉडल हैं। वह अपने करियर की शुरुआत से ही बहुत ज़्यादा सफल रही हैं और फ्रांस और अन्य जगहों की बड़ी कम्पनियों जैसे वोग, क्लेयर इत्यादि के लिए काम करते हुए लगभग 10 साल से इस क्षेत्र में हैं। लेया को 2016 ओलंपिक आरंभ समारोह में एक ट्रांस मॉडल के रूप में खुलासा करते हुए भागीदारी करने पर दुनिया भर में सराहा गया। वह ट्रांस समुदाय के हितों की वकालत करने वाली ‘पॉप कल्चर’ आइकन बन चुकी हैं, ली लगातार इन मुद्दों पर खुलकर बोलती हैं और समाज को अपनी रूढ़ियों से निपटने की सलाह देती हैं। अपने पूरे करियर में उन्होंने अपनी तरह ही, अन्य लोगों को भी उनके सपनों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया है। बीबीसी की 100 प्रभावशाली महिलाओं की सूची में इनका नाम भी शामिल किया गया है।
15. हयात मिर्शद
हयात मिर्शद लेबनानी नारीवादी, पत्रकार और मानववादी हैं जिन्होंने अन्य नारीवादी एक्टिविस्ट व मानवाधिकार एक्टिविस्ट के साथ मिलकर 2012 में फ़ी-मेल नाम का NGO यानी ग़ैर-सरकारी संगठन शुरू किया था। यह संगठन लेबनान में महिलाओं के हित और मानवाधिकार की बात करता है साथ ही औरतों के साथ होने वाले भेदभाव और शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है तथा महिलाओं को जागरूक करता है। मिर्शद शारिका वा लेकन (@ Sharika Wa Laken) नाम के मीडिया प्लेटफार्म की एडिटर-इन-चीफ़ हैं। हयात समाज की रूढ़ियों व कट्टरवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष में डटी हुई हैं और उनका लक्ष्य है- लड़कियों और महिलाओं की न्याय, सूचना, सुरक्षा व मानवाधिकार तक पहुंच सुनिश्चित करना। वह अपना संदेश लगातार विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल करते हुए लोगों तक पहुंचाती हैं और घूसखोर व पितृसत्तात्मक व्यवस्था के ख़िलाफ़ प्रतिरोध, मार्च व रैलियां आयोजित करती हैं। वह अपने आप को ‘लाउड व प्राउड फेमिनिस्ट’ उद्घोषित करती हैं।
16. लालेह ओस्मानी ( अफगानिस्तान)
लालेह ओस्मानी अफ़गानिस्तान में ‘व्हेयर इज़ माय नेम’ कैंपेन की प्रणेता हैं। इससे पहले अफगानिस्तान में सार्वजनिक रूप से किसी महिला का नाम लिए जाने को सभ्य नहीं माना जाता था। जन्म प्रमाण पत्र पर केवल पिता का नाम दर्ज किया जाता था। न शादी के निमंत्रण पत्र पर दुल्हन का नाम दर्ज किया जाता था, न ही बीमार होने पर दवाई के पर्चे पर उसका नाम होता था, मरने पर भी मृत्यु प्रमाणपत्र पर उसका नाम नहीं होता था, न ही कब्र पर लगे पत्थर पर उनका नाम होता था। इस तरह से, अफगानिस्तान के रूढ़िवादी समाज ने औरतों के होने को ही जैसे नकार दिया था। लालेह ओस्मानी महिलाओं के इस तरह से नकारे जाने को स्वीकार नहीं कर पाईं और उन्होंने ‘व्हेयर इज़ माय नेम’ कैंपेन शुरू की। 3 साल की लंबी लड़ाई लड़ने के बाद अफ़गानी सरकार ने माओं का नाम उनके बच्चों के राष्ट्रीय पहचान पत्र पर दर्ज करने के लिए स्वीकृति दे दी। ओस्मानी के इस संघर्ष को दुनिया भर में पहचान मिली और उन्हें सराहा गया।
17. मसरत ज़हरा
मसरत ज़हरा एक कश्मीरी महिला फोटो जर्नलिस्ट हैं जो कश्मीर के संघर्ष को, उसकी कहानी को अपने कैमरे में कैद कर दुनिया के सामने लाती हैं। उन पर इस साल यूएपीए के तहत देशद्रोह का मुकदमा भी दर्ज किया गया था लेकिन इससे मसरत ने अपना काम नहीं रुकने दिया। बता दें कि उन्हें इस साल उनके बेहतरीन काम के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला मीडिया फ़ाउंडेशन की तरफ़ से इस साल के ‘अंजा निएंद्रिंहौस बहादुरी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
ये तो सिर्फ कुछ महिलाओं के नाम हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में रूढ़ियों और पितृसत्ता को चुनौती देते हुए एक नया मुकाम हासिल किया है। दुनियाभर में लाखों-करोड़ों ऐसी महिलाएं जो हर दिन इस पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती देती हैं अपने-अपने तरीके से।