(यह ग्राउंड रिपोर्ट निष्ठा शांति, जपलीन पसरीचा और नलिनी मेनन द्वारा की गई है)
दिल्ली के बॉर्डर पर इन दिनों हज़ारों की संख्या में किसान मौजूद हैं, जो हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के अलग-अलग हिस्सों से आए हैं। इन किसानों ने अपनी खेती छोड़कर दिल्ली आने का फैसला किया केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने के लिए। इस साल अगस्त से ही किसानों का प्रदर्शन शुरू हो गया था जब केंद्र सरकार कृषि बिल जनता के सामने लेकर आई थी। 25 सितंबर, 2020 को देश के कई किसान संगठनों ने भारत बंद का एलान किया था। यह बंद तीन कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ बुलाया गया था।जब किसानों को राज्य सरकारों की तरफ़ से कोई मदद नहीं मिली तब उन्होंने फ़ैसला किया केंद्र सरकार पर दबाव बनाने का दिल्ली चलो प्रदर्शन के ज़रिए। 25 नवंबर 2020 को दिल्ली चलो अभियान के तहत हज़ारों किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर्स पर मौजूद थे।
केंद्र सरकार के पहले कृषि कानून के तहत किसान सरकारी मंडियों यानी एपीएमसी मंडी से बाहर भी अपनी फसल बेच सकते हैं। दूसरे कानून के तहत केंद्र सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इज़ाज़त दे दी है। तीसरे कृषि कानून के तहत केंद्र सरकार ने गेहूं, चावल, दाल, तिलहन, आलू, प्याज़ जैसी चीज़ों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है।किसानों का कहना है कि इन कानूनों के तहत उन्हें चंद कॉरपोरेट्स के भरोसे छोड़ दिया गया। ये कानून कृषि क्षेत्र के निजीकरण की ओर बढ़ाया गया कदम है।किसानों को डर है कि मंडी से बाहर फ़सल अगर वे बेचेंगे तो ताकतवर खरीददार, कॉरपोरेट्स का प्रभुत्व कीमत तय करने पर अधिक होगा।पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आई महिला प्रदर्शनकारी यह बखूबी जानती हैं कि ये तीन कृषि कानून किसानों के लिए कितने नुकसानदायक हैं। फेमिनिज़म इन इंडिया की टीम पहुंची सिंघु और टिकरी बॉर्डर और बात की प्रदर्शनकारियों से और जानने की कोशिश की क्या हैं उनकी मांग और परेशानियां। देखें, इस रिपोर्ट में:
प्रदर्शनस्थल पर आपको कई ऐसी महिलाएं मिल जाएंगी जिनका मानना है कि ये उनकी ज़िम्मेदारी है कि वे इस लड़ाई में मौजूद रहें। प्रदर्शन में शामिल किसानों की मेनस्ट्रीम मीडिया से शिकायत है कि मीडिया इस प्रदर्शन का नेगेटिव कवरेज कर रही है। उनके ख़िलाफ़ अफ़वाह फैलाई जा रही है कि ये प्रदर्शनकारी खालिस्तानी अलगाववादी हैं, देशद्रोही हैं, विपक्ष द्वारा भड़काए गए लोग हैं। यहां तक कि मीडिया ने इस प्रदर्शन को एक सांप्रदायिक एंगल भी दे दिया है। सत्ता के कई लोगों ने जिसमें हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं उनका कहना है कि किसानों को भड़काया जा रहा है और ये किसान इन कृषि कानूनों के फायदे को नहीं समझ पा रहे हैं। वहीं किसानों का कहना है कि उनका स्टैंड साफ़ है।केंद्र सरकार का कहना है कि किसानों को इन तीन कृषि कानूनों से फायदा होगा। जबकि किसानों का कहना है कि ये कृषि कानून उनका उत्पीड़न करेंगे और इससे कॉरपोरेट्स को ही फायदा पहुंचेगा और उन्हें नुकसान होगा।तो सवाल ये है कि सरकार किसके हित के लिए काम कर रही है?