संस्कृतिकिताबें पुस्तक समीक्षा : ऐलिस वॉकर की ‘द कलर पर्पल’

पुस्तक समीक्षा : ऐलिस वॉकर की ‘द कलर पर्पल’

कुल मिलाकर, ऐलिस वॉकर ने इस उपन्यास के माध्यम से महिलाओं के असली संसार मे घट रही रोज़मर्रा की घटनाओं को सशक्तता से खोलकर रख दिया है। सेली की ही तरह आज भी दुनिया भर की महिलाएं पुरुषों के शोषण को झेल रही हैं। आज भी वे अपने लिए न जीकर दूसरों के लिए जीती हैं और श्रम करती हैं। एलिस वॉकर इस किताब के माध्यम से सन्देश देती हैं कि दुनिया भर की महिलाओं को एक दूसरे के लिए खड़ा होना होगा।

ऐलिस वॉकर की इस विश्व प्रसिद्ध कृति ‘द कलर पर्पल’ की कहानी शुरू होती है,दूसरे विश्व युद्ध से लगभग 30 साल पहले के अफ्रीकी-अमरीकी समुदाय की पृष्ठभूमि में, जिसकी नायिका सेली है। सेली दक्षिणी अमेरिका के ग्रामीण इलाके में स्थित एक गरीब ब्लैक महिला है। ग्रामीण क्षेत्र की एक गरीब ब्लैक स्त्री के रूप में उसके साथ जितनी भी यातनाएं होती हैं, वे अक्सर नज़रअंदाज़ कर दी जाती हैं, इसके कई कारण थे– अव्वल तो वह बहुत कम पढ़ी-लिखी है और बाहरी दुनिया से उसका संबंध न के बराबर है, परिवार में उसे अपनी मां तक से कोई सहयोग नहीं मिलता बल्कि मां तो उसे कोसती है, 14 साल से कम उम्र में ही भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी उसपर थोप दी जाती है और वह लगातार काम करती रहती है, बचपन से सौतेले पिता द्वारा शारीरिक-मानसिक शोषण किया जाता है और वह दो बार गर्भवती हो जाती है। इस तरह सेली का अधिकांश जीवन सबसे अलग-थलग और नीरस बीतता है। वह यह भी नहीं जानती कि उसके साथ जो कुछ हो रहा है, वह क्या है, ग़लत है या सही है, सभी तरह की यातनाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने में वह असमर्थ होती है और केवल ईश्वर को पत्र लिखकर अपने साथ हुई घटनाएं बताती है।

वह 14 साल की होती है, जब उसकी मां एक बच्चे को जन्म देती है और गम्भीर रूप से बीमार पड़ने के कारण अल्फांसो ( सौतेला पिता) की सेक्स करने की इच्छा पूरी नहीं कर पाती। एक दिन जब उसकी मां डॉक्टर के पास गई होती है, अल्फांसो आता है और कहता है― ‘अब तू वह करेगी, जो तेरी मां नहीं कर सकती’। यह कहकर वह अपना लिंग उसके नितंबों पर रगड़ते हुए उसका गला दबाता है। सेली के कराहने पर कहता है― ‘जितनी जल्दी इसकी आदती हो जाएगी, तेरे लिए अच्छा होगा।’ इस तरह लगातार उसका शोषण होता है और वह गर्भवती हो जाती है। सेली ईश्वर को पत्र लिखती है और कहती है-‘ मैं कभी उसकी आदी नहीं हो पाती।’ गर्भवती होने पर उसकी मां पूछती है, यह बच्चा किसका है, जवाब में सेली कहती है― भगवान का। बाद में, एक दिन सोकर उठने पर उसका बच्चा वहां नहीं होता, वह सोचती है, ईश्वर ले गया होगा। इस तरह, सेली लगातार अल्फांसो की ज्यादतियों को सहती है और अपने बच्चों को खो देती है। अल्फांसो उसे मारता-पीटता है। तमाम शोषण सहते हुए भी सेली अपनी बहन नेटी के प्रति संवेदनशील रहती है और उसे इस नर्क से बाहर निकालना चाहती है। ऐलिस वॉकर ने बड़ी स्पष्टता से महिलाओं के आपसी संबंधों और ‘सिस्टरहूड’ की अवधारणा को मजबूत किया है।

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सेली का व्यक्तित्व शुरुआत में डरा हुआ, शोषित, एकांत में रहने वाला लेकिन नेटी के लिए बेहतर भविष्य की इच्छा समाहित किए हुए था। वह अपने बच्चों के बारे में भी सोचती है। लेकिन उसके व्यक्तित्व का विस्तार औ खुद को लेकर रवैये में बदलाव तब आता है, जब वह अन्य महिलाओं से मिलती है, उनसे संवाद करती है। ये महिलाएं सोफ़िया (मिस्टर के बेटे हार्पो की पहली पत्नी), शग अवरी, स्क्वीक (हार्पो की दूसरी पत्नी), नेटी होती हैं। लेखिका ने हमेशा से चली आ रही बनी बनाई परंपरा को तोड़ते हुए दर्शाया है कि औरतें एक दूसरे की दुश्मन नहीं बल्कि सहयोगी हैं। इस उपन्यास की सभी औरतें एक दूसरे की हितैषी होती हैं, उनका संबंध भले ही पति या पुरुषों के माध्यम से हुआ लेकिन वे आखिर में सहेलियां बन एक दूसरे का सुख-दुख बांटती हैं।

शुरुआत में, मिस्टर नाम का एक व्यक्ति नेटी के लिए रिश्ता लेकर आता है, लेकिन अल्फांसो नेटी का भी बलात्कार करना चाहता है, इसलिए इनकार कर देता है। मिस्टर नेटी के लिए फिर से आता है लेकिन अल्फांसो उसे सेली का ऑफ़र देते हुए कहता है-‘ हालांकि वह कुरूप है और ‘फ्रेश’ भी नहीं है लेकिन वह तुम्हारे बच्चों की मां बन सकती है।’ यहां लेखिका ने दिखाया है कि अमरीकी महाद्वीप में ब्लैक अफ़्रीकी नस्ल के लोग एक समुदाय के रूप से शोषित थे लेकिन रंग के आधार पर भेदभाव व शोषण झेलने के बावजूद वे भी लैंगिक आधार पर शोषण करते थे। स्त्रियां रंग के आधार पर तो शोषित थी हीं, उनके अपने समुदाय में भी पुरुष उन्हें किसी वस्तु से अधिक नहीं समझते थे। लेखिका यह भी दर्शाती हैं कि किस तरह पितृसत्ता अपने अस्तित्व के बने रहने के लिए एक भी विद्रोही स्वर नहीं उठने देना चाहती। दरअसल, आदमी चाहते ही नहीं कि औरतें कोई भी सवाल करें, उन्हें टोकें इसलिए एक पत्नी के रूप में वे कम समझदार या कुल मिलाकर एक चुप रहने वाली पत्नी चाहते थे। तभी तो जब अल्फांसो सेली को कमअक्ल कहकर स्कूल से निकाल रहा था, नेटी के कहने पर कि शिक्षिका मिस बीसली भी सेली को बुद्धिमान समझती हैं, अल्फांसो कहता है― बीसली तो इतना मुंह चलाती है कि कोई पुरुष कभी भी उसे नहीं अपनाएगा, इसलिए ही तो वह स्कूल शिक्षिका बन कर रह गई है।’

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सेली लगातार पुरुषों की ज्यादतियां सहती रही थी और सदैव अकेली ही रही थी, उसने ईश्वर को अपना ‘इस्केप’ बना लिया था। पत्र लिखकर वह अपने मन मे चल रही बातें, अपने साथ हुई घटनाएं साझा करती रहती थी। इसलिए ही, जब नेटी उससे कहती है कि मिस्टर के साथ उसकी स्थिति ऐसी है जैसे दफ़न हुई हो, सेली कहती है, ‘यह उससे भी बुरा है। मैं सोचती हूं मैं दफ़्न रहती तो कम से कम काम नहीं करना पड़ता, लेकिन कोई बात नहीं, जबतक मैं ईश्वर का ध्यान कर सकती हूं, मैं इतनी भी अकेली नहीं हूं।’ वह खुद अकेली थी लेकिन एक व्यक्ति के रूप में वह अन्य लोगों के लिए ‘स्पेस’ थी, जिससे वे अपनी बातें कह सकते थे। मिस्टर का बेटा हार्पो सेली से अपनी प्रेमिका के बारे मे बात कर पाता है। शग भी उससे अपनी बहुत सारी बातें कह पाती है। शादी के कई साल तक सेली खुद के बारे में कभी नहीं सोच पाती। पितृसत्ता इस तरह से हावी होती है कि वह औरत को अपने अस्तित्व के सवाल तक से भटका देती है और उसे दूसरों के बारे में सोचने तक सीमित कर देती है। औरत एक मशीन की तरह होती है, जिसका काम केवल भरे गए डेटा के अनुसार काम करना है, उसकी अपनी कोई दुनिया नहीं है। सेली भी इसी तरह का जीवन जी रही थी। अपनी दुनिया के बारे में उसे तब पता चलता है, जब उसके जीवन में बाहरी महिलाएं आती हैं।

सोफ़िया यानी हार्पो की पत्नी से वह पुरुषों को, उनकी ‘आज्ञा’ को नकारना सीखती है, अपने लिए आवाज़ उठाना सीखती है और ज़रूरत पड़ने पर उनका फिर फोड़ने तक का साहस रखना सीखती है। शग उसे बाहरी दुनिया के बारे में बताती है जो अल्फांसो और मिस्टर के घर से अलग और बड़ी है। वह उसे आत्मनिर्भरता सिखाती है, वह बताती है कि एक औरत केवल अपने बारे में भी सोच सकती है- उसका अपना घर, अपनी गाड़ी हो सकती है, सबसे अहम वह अपनी मर्जी की मालकिन हो सकती है। वहीं से वह पैंट बनाने का काम शुरू करना सीखती है। पहले पैंट उसके लिए पुरुषों का परिधान हुआ करता था, वह कभी पैंट नही पहन सकती थी, लेकिन वह पैंट बनाने का धंधा शुरू करती है और आर्थिक रूप से मज़बूत होती है। शग से मिलकर ही वह घर छोड़कर मेम्फिस जाती है, इस प्रक्रिया में दूसरी महिलाएं उसे उसकी आज़ादी के लिए उठ खड़े होने का साहस देती हैं। यहां एलिस वॉकर नारीवादी ग्लोरिया स्टेनिम के कथन को उपयुक्तता से लागू करती दिखती हैं- ‘वी ऑल नीड ऑवर सिस्टरहूड।’ पितृसत्ता की जड़ो को उखाड़ फेंकने के लिए औरतों को एक दूसरे के सहयोग की ज़रूरत होगी। शग और सोफ़िया का सहयोग ही था, जिसके बदौलत सेली मिस्टर के सामने खड़ी होकर बोली-‘ वह शग के साथ जा रही है, भले ही उसे मिस्टर के मरे शरीर को लांघ कर जाना पड़े।’

कुल मिलाकर, ऐलिस वॉकर ने इस उपन्यास के माध्यम से महिलाओं के असली संसार मे घट रही रोज़मर्रा की घटनाओं को सशक्तता से खोलकर रख दिया है।

इस नॉवेल में शग अवरी एक मजबूत महिला है। वह आत्मनिर्भर है। उसे अपने जीवन के पुरुषों से कोई विशेष मतलब नहीं है। उसे संगीत पसन्द है। वह अपने चयन का महत्व जानती है। गीत गाकर वह खुश होती है, सजती-संवरती है। वह जानती है कि पुरुष उसकी ओर आकर्षित हैं और वह उसका लाभ भी लेती है, आनंद में रहती है। शग ऐसी औरत नहीं है जो अपना जीवन पति और बच्चों के लिए न्योछावर कर दे। जब सेली पूछती है कि उसे अपने बच्चों की याद नहीं आती, शग जवाब देती है- ‘ मैं किसी को याद नहीं करती।’ लेखिका ने सेली के बरक्स शग का व्यक्तित्व बड़ी सतर्कता से गढ़कर स्पष्ट किया है कि पितृसत्ता से टकराने के लिए स्त्री को मजबूत होना पड़ेगा, अपने लिए बेहतर चुनना होगा और अपने आप को अपनी प्राथमिकता बनाना होगा, तब ही बदलाव आएगा।

इन सब के समानातंर शग सेली को नेटी के पत्र ढूंढने में मदद करती है और नेटी के पत्र पढ़कर सेली की सीमित दुनिया का विस्तार सुदूर अफ्रीका तक होता है। सेली एक ‘ब्लैक’ औरत के रूप में अपने आप को हीन महसूस करती है लेकिन नेटी के पत्र उसे यह विश्वास दिलाते हैं कि दुनिया के किसी भाग में काले लोग दयनीय जीवन जीने के लिए बाध्य नहीं हैं। पहली बार वह अपना इतिहास जानकर गर्व महसूस करती है। वह अफ्रीका के संपन्न सभ्यता के बारे में जानकर खुश होती है। वह यूरोपीयों द्वारा नष्ट किए जाने से पहले की आदिवासी बस्तियों के बारे में जानकर अपनी विरासत पर मान करती है। वह सोचती है कि भले ही आज काले लोग शोषित हैं, लेकिन यह शोषण हमेशा नहीं था, न रहेगा। 

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इस कहानी में सेली लेस्बियन होती है, हालांकि उसे यह बात पता नहीं होती। शुरुआत से ही वह महिलाओं की ओर आकर्षित रहती है। एक बार चर्च में आंखें झपकने पर अल्फांसो उसे पीटता है, तब वह कहती है-‘ मैं आदमियों की तरफ़ देखती भी नहीं, यह सच है। मैं औरतों की तरफ़ देखती हूं, हो सकता है इसलिए कि मैं उनसे डरती नहीं हूँ।’ कम पढ़ी लिखी होने और बलात्कार इत्यादि के कारण सेली सेक्स को लेकर उतनी उन्मुक्त नहीं थी। अल्बर्ट यानी मिस्टर से भी उसे उपेक्षा व शोषण ही मिला। शग अवरी के प्रति वह शुरू से ही आकर्षित रहती है, जब मिस्टर नेटी के लिए रिश्ता लेकर आया होता है, तभी उसकी जेब से शग की फ़ोटो गिरती है। सेली उसकी फ़ोटो रातभर देखती रहती है। बाद में, शग अवरी से संवाद व बातचीत में सहजता होने पर वह शग से प्रेम करने लगी और उसकी ओर आकर्षित हुई। शग से मिलकर ही वह स्पष्ट रूप से अपनी भावनाएं व्यक्त कर पा रही थी और तभी उसने हार्पो से कहा-‘उन्होंने मुझसे शादी अपने बच्चों के लिए की है, मैंने अपने पिता के कहने पर, मैं उनसे प्यार नहीं करती।’ कुछ न बोलने वाली सेली अपनी भावनाओं को लेकर खुल रही थी, शग के करीब आने पर अब दिनों की नीरसता खत्म होने लगी थी, वह अच्छा महसूस करने लगी थी। दरअसल,औरतें पुरुषों के इस निरकुंश संसार मे एक दूसरे के लिए उम्मीद और भरोसे का प्रतीक हैं। वे एक दूसरे को बाहों में लिए अपने दुःख कह-सुन सकती हैं। शग सेली के लिए वही उम्मीद और भरोसा थी। वह शग को बताती है कि मिस्टर जब उसका गाउन उतार कर ‘अपना काम’ करते हैं, उसे कुछ भी महसूस नहीं होता। शग तब उसे योनी और ‘फिंगरिंग’ और उसके सुख के बारे में बताती है। सेली ने कभी वह सुख महसूस नहीं किया था, लेकिन शग के कहने पर वह पहली बार अपनी योनी को देखती हैं, छूती है। उसके होने को महसूस करती है। शग उसे ‘मस्टरबेट’ करने के बारे में बताती है। सेली वैसा ही करती है जैसा शग उसे बताती है और उस कंपन को महसूस कर आनंद पाती है। 

कुल मिलाकर, ऐलिस वॉकर ने इस उपन्यास के माध्यम से महिलाओं के असली संसार मे घट रही रोज़मर्रा की घटनाओं को सशक्तता से खोलकर रख दिया है। सेली की ही तरह आज भी दुनिया भर की महिलाएं पुरुषों के शोषण को झेल रही हैं। आज भी वे अपने लिए न जीकर दूसरों के लिए जीती हैं और श्रम करती हैं। एलिस वॉकर इस किताब के माध्यम से सन्देश देती हैं कि दुनिया भर की महिलाओं को एक दूसरे के लिए खड़ा होना होगा। एक दूसरे का भरोसा बनना होगा। लेखिका स्वयं भी अफ्रीकी-अमरीकी पीढ़ी से हैं, इसलिए उनका यह लेख अमरीका में मौजूद नस्लीय भेदभाव व समाज में निहित पितृसत्ता पर दोहरी चोट करता है। वे यूरोपीय लोगों द्वारा अफ्रीका के लोगों के साथ किए गए व्यवहार को लेकर अक्षम्य रवैया अपनाते हुए कहती हैं कि यूरोपीयों ने अफ्रिकी लोगों के देवी-देवताओं को नष्ट कर अपने ‘श्वेत ईसा मसीह’ को जबरन अपनाने के लिए विवश कर दिया था। 

यह सब कुछ उन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी शोषण करते हुए लोगों को उनके इतिहास से विखण्डित करके किया। ‘द कलर पर्पल’ टाइटल के माध्यम से भी लेखिका बहुत कुछ कहती है। कहानी की मुख्य पात्र सेली जीवन भर उपेक्षा झेलने और बदसूरत कहे जाने के कारण से अपने शरीर व रंग को लेकर निराश रहती है। जब वह शग से सहज होती है, तब अपना यह डर साझा करती है, उस समय शग उसे समझाती है कि ईश्वर हम सबको प्यार करता है और तमाम इशारों में वह अपना स्नेह हम तक पहुंचाता है। वह बैंगनी गुलाब के फूलों की ओर इशारा करती है और कहती है, हताशा छोड़कर ‘पर्पल’ फूलों को सूंघती रहे, ईश्वर इस रंग के फूल को भी प्रेम करता है।’ इसके माध्यम से  ‘एलिस’बताती हैं कि भले ही यूरोपीय लोगों ने बाइबिल को अपने हिसाब से समझकर काले लोगों को हीन बना दिया हो लेकिन ‘ईश्वर किसी भी रंग से भेदभाव नहीं करता।’

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तस्वीर साभार : Melan

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