इतिहास भोपाल की इन 4 बेगमों ने जब सँभाली रियासत की बागडोर

भोपाल की इन 4 बेगमों ने जब सँभाली रियासत की बागडोर

साल 1819 से साल 1926 के बीच, कुदसिया बेगम, सिकंदर बेगम, शाहजहाँ बेगम और सुल्तान जहाँ बेगम ने भोपाल रियासत पर शासन किया।

भोपाल के 240 साल पुराने इतिहास के 107 साल वो थे, जब यहां बेगमों ने शासन किया। इन सालों में रियासत को लगातार चार बेगम मिली, जिन्होंने अपनी वास्तुकला से न केवल शहर को संवारा बल्कि अपनी बुद्धि के बल पर रियासत की रक्षा भी की। साल 1819 से साल 1926 के बीच, कुदसिया बेगम, सिकंदर बेगम, शाहजहाँ बेगम और सुल्तान जहाँ बेगम ने भोपाल रियासत पर शासन किया।पुरुषों ने शक्तिशाली विरोध के बावजूद, बेगमों ने दृढ़ता के साथ राज्य का विकास किया। भोपाल की बेगमें कुदेसिया बेगम, सिकंदर बेगम (साल 1819-68), शाहजहां बेगम (साल 1838-1901) और सुल्‍तान जहां (साल 1858-1930) ऐसे शाही खानदान की थी, जिसने तीन पीढ़ियों तक किसी पुरूष वारिस को पैदा नहीं किया था। इसलिए उन औरतों ने उस मध्‍य भारतीय राज्‍य पर शासन किया। वे चारों बेगमें शिक्षित थी। वे अपने राज्‍य और अन्‍य जगहों पर लड़कियों की शिक्षा की बड़ी संरक्षिकाएं बनी। सुल्‍तान जहां बेगम ने अपनी आत्‍मकथा में बताया था कि उनके हर दिन के शैक्षिक अभ्‍यास क्‍या–क्‍या थे। उन सब अभ्‍यासों की शिक्षा पुरूषों को दी गई थी। विषयों में कुरान, फारसी अंग्रेजी, पश्‍तों (शाही खानदान पठान मूल का था), अंक-गणित, हस्‍तलेखन, घुड़सवारी और तलवारबाज़ी शामिल थे। उनसे पहले की पीढ़ियों में यह शिक्षा एक शरीफ पुरूष को ही मिलती थी। जब एक मुसलमान औरत ने उस तरह की औपचारिक शिक्षा प्रापत की थी तब उस औरत द्वारा पढ़ी गई चीजों और पुरूषों द्वावा पढ़ी गई स्‍तरीय किताबों में बहुत कम अंतर रह गया था।

1. कुदसिया बेगम

तस्वीर साभार : geni

भारत के संदर्भ में भोपाल रियासत वह पहला उदाहरण है जहां ‘बेगम’ ने शासन की बांगडोर अपने हाथ में सम्हाली थी। बात है 1819 ईस्वी की, जब भोपाल में पहली महिला शासक कुदेसिया बेगम ने तख्त सँभाला। उन्हें गौहर महल के नाम से भी जाना जाता है। कुदसिया बेगम की नज़र मुहम्मद खान नाम के एक सामंतवर्ग के व्यक्ति से शादी की। 11 नवंबर 1819 का वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन था, जब यह शाही परिवार शिकार करने के लिए अपने पड़ोसी इस्लामनगर गया। तब, कुदसिया बेगम के छोटे भाई, आठ साल के फौजदार मुहम्मद ने नज़र मुहम्मद की बेल्ट से एक पिस्तौल खींची और उसके साथ खेलना शुरू कर दिया। एक भयंकर दुर्घटना में, छोटे लड़के ने भोपाल के नवाब की हत्या कर दी। भोपाल पर तीन साल और पांच महीने तक शासन करने के बाद 28 साल की आयु में उनका निधन हो गया। बेगम कुदेसिया ने साल 1819 से साल 1837 तक भोपाल में राज किया। वे स्वभाव से बेहद शांत थीं और यही कारण रहा कि भोपाल की सीमाएं भी शांत बनी रही। न कोई दुश्मन आया और न ही कोई बाहर गया। उनका वास्तुकला के प्रति प्रेम इतना था कि उन्होंने अपने शासन में कई नायब इमारतों का निर्माण करवाया। बेगम कुदेसिया ने साल 1819 से साल 1837 तक भोपाल में राज किया। वे स्वभाव से बेहद शांत थीं और यही कारण रहा कि भोपाल की सीमाएं भी शांत बनी रहीं। न कोई दुश्मन आया और न ही कोई बाहर गया। उनका वास्तुकला के प्रति प्रेम इतना था कि उन्होंने अपने शासन में कई नायब इमारतों का निर्माण करवाया। साल 1820 में उन्होंन गौहर महल बनवाया, जहां से भोपाल की खबूसूरत झील का नजारा साफ दिखाई देता था। यह महल भोपाल रियासत का पहला महल कहलाया। उन्होंने भारतीय और इस्लामिक वास्तुकला का समावेश किया। कहा जाता है कि कुदेसिया के शासनकाल में कभी भी दोनों धर्मों के बीच कोई मतभेद नहीं हुए। बल्कि खानपान से लेकर पहनावे और जीवन के अन्य पहलुओं को समझने में दोनों समुदायों के लोगों ने साथ काम किया।

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2. सिकंदर बेगम

तस्वीर साभार : geni

कुदसिया बेगम के इंतकाल के बाद सत्ता की बागडोर उनकी बेटी सिकंदर जहां बेगम के हाथ आई। अपने 21 साल का कार्यकाल में सिकंदर जहां ने मां की वास्तुकला को विस्तार दिया। वैसे सिकंदर जहां को एक और वजह से जाना जाता है। दरअसल साल 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली की जामा मस्जिद बंद कर दी थी। ऐसे में केवल सिकंदर जहां ही थी जिन्होंने अंग्रेजों को दोबारा मस्जिद खोलने पर राजी किया और खुद सबसे पहले मस्जिद के आंगन की सफाई भी की। साल 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने भोपाल सहित कई रियासतों पर दोहरे नियंत्रण की प्रणाली लागू कर दी थी। इस तरह सिंकदर जहां के अलावा उनके मामा फौजदार माेहम्मद खान भी सियासी मसलों में दखल देने लगे थे, तब सिकंदर बेगम ने भारत के गवर्नर जनरल को चिट्ठी लिखकर कर कहा कि जनता अपनी समस्याओं के लिए मेरे दरवाजे आती है, पर आपकी थोपी गई व्यवस्था ने शासन को मुश्किल में डाल दिया है। इसके बाद सबसे पहले भोपाल से ही दोहरे नियंत्रण की प्रणाली खत्म हुई और साल 1847 से साल 1868 तक भोपाल रियासत पर केवल सिकंदर जहां का शासन कायम रहा।

साल 1819 से साल 1926 के बीच, कुदसिया बेगम, सिकंदर बेगम, शाहजहाँ बेगम और सुल्तान जहाँ बेगम ने भोपाल रियासत पर शासन किया।

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3. शाहजहाँ बेगम

तस्वीर साभार : thefridaytimes

सिकंदर बेगम ने 29 जुलाई 1838 को शाहजहाँ बेगम नाम की एक लड़की को जन्म दिया। ब्रिटिश सरकार ने शाहजहाँ बेगम के उत्तराधिकार को मान्यता दी और 11 अप्रैल 1845 को उन्हें राज्य का प्रमुख घोषित किया। उनकी मां सिकंदर बेगम को राज्य-संरक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। राज्य-संरक्षक रानी ने अपने प्रजा की भलाई के लिए कई नीतियाँ बनाईं। साल 1854 में, सिकंदर बेगम ने एक चिकित्सा विभाग स्थापित किया गया और एक योग्य यूनानी चिकित्सा अधिकारी नियुक्त किया गया। उनके शासन में, राज्य का पहला सर्वेक्षण भी किया गया था। उनके शासनकाल के दौरान, भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कैनिंग ने भोपाल की बेगम की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘राज्य जिसे हमारे विरोधियों द्वारा धमकी दी गई थी, आपने एक महिला हो कर भी साहस, क्षमता और सफलता के साथ अपने नीतियों से मार्गदर्शित किया, इस स्थिति मे किसी भी राजनेता या सैनिक को सम्मान दिया जाता… ऐसी सेवाओं को सम्मानित हुए बिना नहीं रहना चाहिए।‘ नवंबर 1861 में, बेगम को इलाहाबाद में स्टार ऑफ इंडिया का सर्वोच्च सम्मान दिया गया।

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4. सुल्तान जहाँ बेगम

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16 जून 1901 को बेगम शाहजहाँ की मृत्यु हो गई। उनकी बेटी सुल्तान जहाँ बेगम जिनका जन्म 9 जुलाई 1858 को हुआ था, ने विरासत ली। जब ताजमहल का नाम किया जाता है, तो हमें आगरा में शाहजहां के बनाई नायब कला ही दिखाई देती है। भोपाल के दूसरे ताजमहल से शायद आज की पीढ़ी अंजान हो। इस ताजमहल को भोपाल की तीसरी महिला शासक और सिकंदर जहां बेगम की बेटी शाहजहाँ बेगम ने बनवाया था। साल 1861 से साल 1901 तक भोपाल रियासत की बेगम रही, शाहजहां अपनी पुरखों की दी गई वास्तुकला को आगे बढ़ाया। साल 1905 में, वेल्स की रॉयल महारानी, राजकुमार और राजकुमारी के साथ उनकी भेट हुई और उन्हे नाइट ऑफ कमांडर, ऑर्डर ऑफ शेवलरी से सम्मानित किया गया। बेगम सुल्तान जहाँ ने अपने बड़े बेटे नवाब मुहम्मद नसर-उल-लाह खान के साथ राज्य का प्रशासन संचालित किया। बेगम सुल्तान जहाँ ने भारत में महिलाओं के उद्धार के लिए बहुत योगदान दिया। महिलाओं में स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए, विधवाओं और निराश्रित महिलाओं के लिए साल 1905 में एक कला विद्यालय शुरू किया गया।

साल 1914 में, अखिल भारतीय मुस्लिम महिला सम्मेलन की वह अध्यक्ष बनीं। सुल्तान जहाँ बेगम ने अपने बेटे, मुहम्मद हामिद-उल-लाह खान को सिंहासन सौंप दिया। वे भोपाल के अंतिम शासक नवाब थे, बाद में 1956 में राज्य का मध्य प्रदेश में विलय हो गया। 12 मई 1930 को भोपाल के क़सर-ए-सुल्तानी पैलेस में बेगम सुल्तान जहान का निधन हो गया। भोपाल राज्य के शासकों को महारानी नवाब बेगम की उपाधि से सम्मानित किया गया और उन्हें 19 तोपों की सलामी दी। बेगम सुल्तान जहाँ के बेटे हमीदुल्लाह खान के तीन बच्चे थे। उनकी दूसरी सबसे बड़ी बेटी साजिदा सुल्तान की शादी पटौदी परिवार के आठवें नवाब इफ्तिखार अली खान से हुई थी। उनका एक बेटा, मंसूर अली खान पटौदी, प्रसिद्ध क्रिकेटर थे, जिन्होंने भारतीय अभिनेत्री और रबींद्रनाथ टैगोर की वंशज, शर्मिला टैगोर से शादी की।

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तस्वीर साभार : feminisminindia

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