समाजख़बर प्रिया रमानी केस में अदालत का फ़ैसला और न्याय की एक उम्मीद| नारीवादी चश्मा

प्रिया रमानी केस में अदालत का फ़ैसला और न्याय की एक उम्मीद| नारीवादी चश्मा

प्रिया रमानी जैसी सशक्त महिलाओं का रसूख़दार तबके के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना महिलाओं को हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करता है।

‘उसने कुछ किया तो नहीं, बस छेड़ा ही है न?’

छुआ ही तो है इससे क्या हुआ? कुछ किया तो नहीं है?’

यौन उत्पीड़न के संदर्भ में अक्सर हमलोग ऐसी बातें सुनते है, जब राह चलते कोई पुरुष महिला की छाती में हाथ मारने की कोशिश करता है। या फिर भद्दे कमेंट करता है। या फिर भीड़ में ग़लत तरीक़े से छूने की कोशिश करता है। या रिश्ते-नाते के नामपर जबरदस्ती यौन-उत्पीड़न करता है। आमतौर पर महिला के साथ यौन उत्पीड़न को हिंसा के रूप में देखा ही नहीं जाता है। इसके चलते ऐसी घटनाओं की शिकायत करने पर ज़्यादातर हमारा समाज नज़रंदाज़ करने का रवैया अपनाता है और जैसी ही महिला शिकायत के बाद सजा दिलाने की दिशा में अपने कदम आगे बढ़ाती है तो उसके चरित्र पर सवाल उठाकर उसे मानसिक रूप से तोड़ने की कोशिश करती है। आए दिन यौन उत्पीड़न की घटनाएँ बढ़ती जा रही है। ऐसे में नफ़रत और हिंसा की निराशाजनक खबरों के बीच जब बीते सोमवार अदालत में पत्रकार प्रिया रमानी के हक़ में फ़ैसले की जब खबर आयी तो मानो मन एक उम्मीद जगी। उम्मीद सच्चाई की और इंसाफ़ की गुंजाइश की। दिल्ली की एक अदालत ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री एम. जे. अकबर की तरफ़ से दायर मानहानि के मामले में पत्रकार प्रिया रमानी को जमानत दे दी।

साल 2018 में प्रिया रमानी ने ‘मी टू’ अभियान के दौरान अकबर के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगाया था। इसपर अकबर ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसमें रमानी को बतौर आरोपी समन किया गया था। लेकिन अदालत ने पाया कि अकबर के खिलाफ लगाए गए आरोप पहली नजर में मानहानि कारक हैं और उन्होंने सभी आरोपों को ‘फर्जी तथा मनगढ़ंत’ बताया है। बता दें प्रिया रमानी का आरोप है कि बीस साल पहले जब अकबर पत्रकार थे तब उन्होंने रमानी का यौन शोषण किया था। हालांकि पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने आरोपों से इनकार किया है। अकबर पर अन्य कई महिलाओं ने भी आरोप लगाए हैं। उन दिनों वह नाइजीरिया में थे। फिर उन्होंने 17 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया था।

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सशक्त महिला की मिसाल प्रिया रमानी

बीस साल बाद अपने साथ हुई यौन उत्पीड़न की घटना के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना और उसकी लड़ाई ज़ारी रखना अपने आपमें बड़ी मिसाल है। वो दौर जब समाज हर हिंसा की घटनाओं में महिलाओं को दोषी करार देता है, ऐसे में समाज की दक़ियानूसी और जजमेंटल सोच के बीच प्रिया रमानी का अपनी लड़ाई को लेकर मज़बूती से डटे रहना अपने आपमें एक सशक्त मिसाल है।

प्रिया रमानी जैसी सशक्त महिलाओं का समाज के रसूख़दार तबके के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना महिलाओं को अपने साथ होने वाली हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करता है।

पत्रकार प्रिया रमानी ने अदालत के इस फ़ैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए एनडीटीवी को बताया कि ‘उम्मीद करती हूं कि और महिलाएं यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाएंगी। इसके साथ ही ये फैसला उन पावरफुल पुरुषों को भी हतोत्साहित करेगा जो सच सामने लाने वाली महिलाओं के खिलाफ झूठे केस फाइल करते हैं।‘ इसके साथ ही प्रिया रमानी ने ट्वीट कर कहा कि मैं बहुत अच्छा महसूस कर रही हूं। यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने वाली महिलाओं को यह फैसला समर्पित है। यौन उत्पीड़न के मामलों पर ध्यान दिया जाना चाहिए और उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने इस लड़ाई में साथ देने वालों को शुक्रिया भी कहा।‘

समाज की दक़ियानूसी सोच पर तमाचा है ‘फ़ैसले के साथ अदालत की कही ये बातें’

पर जैसा कि हम जानते है भारतीय समाज में लोगों को यह समझने में समय लगता है कि कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति मानसिक आघात के कारण सालों तक नहीं बोल पाती है, जिसे समाज समझने की बजाय अक्सर महिलाओं के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करता है। अपनी ढ़ेरों सलाह और शिकायतें उड़ेलता है। अपने समाज की सोच पर दिल्ली की अदालत ने अपने फ़ैसले में कही कुछ ज़रूरी बातों से सीधे ज़वाब दिया है, जिसमें कहा गया कि – ‘महिला अक्सर सामाजिक दबाव में शिकायत नहीं कर पाती। समाज को अपने पीड़ितों पर यौन शोषण और उत्पीड़न के प्रभाव को समझना चाहिए और सोशल स्टेट्स यानी कि ऊँचे ओहदे वाला व्यक्ति भी यौन उत्पीड़न कर सकता है। इसके साथ ही, यौन शोषण गरिमा और आत्मविश्वास से दूर ले जाता है। प्रतिष्ठा का अधिकार को गरिमा के अधिकार की कीमत पर संरक्षित नहीं किया जा सकता और हमें ये याद रखना होगा कि एक महिला को दशकों बाद भी अपनी शिकायत किसी भी मंच पर रखने का अधिकार है। मानहानि कहकर किसी महिला को शिकायत करने से रोका नहीं जा सकता है और सज़ा नहीं दी जा सकती।‘ दिल्ली अदालत ने इस फ़ैसले और फ़ैसले में कही गयी बातों ने एकसाथ समाज में यौन उत्पीड़न को करारा ज़वाब दिया है।

भारत देश में महिला हिंसा की जुड़ी घटनाएँ हर दिन वीभत्स रूप लेती दिख रही है, ऐसे में प्रिया रमानी जैसी सशक्त महिलाओं का समाज के रसूख़दार तबके के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना महिलाओं को अपने साथ होने वाली हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करता है। वहीं दिल्ली अदालत का फ़ैसला सी कठिन दौर में भी न्याय की उम्मीद जगाता है, जिसे स्वीकार कर सरोकार से जोड़ा जाना चाहिए।

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तस्वीर साभार : www.india.

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