इतिहास वो कौन थी: होलोकॉस्ट को अपनी डायरी में दर्ज करने वाली ऐन फ्रैंक की कहानी

वो कौन थी: होलोकॉस्ट को अपनी डायरी में दर्ज करने वाली ऐन फ्रैंक की कहानी

एडिटर्स नोट : यह लेख फेमिनिज़म इन इंडिया हिंदी और DW हिंदी की सहभागिता के तहत प्रकाशित किया गया है। इसके तहत हम DW हिंदी की नई पॉडकास्ट सीरीज़ ‘वो कौन थी’ के अलग-अलग एपिसोड्स को फीचर करेंगे। इस सीरीज़ के तहत पॉडकास्ट की होस्ट और DW हिंदी की डेप्युटी हेड ईशा भाटिया सानन उन महिलाओं की जीवनी और योगदान को अपने श्रोताओं तक पहुंचा रही हैं जिन्होंने लीक से हटकर काम किया और सपने देखने की हिमाकत की। वो कौन थी के चौथे एपिसोड में आज सुनिए ऐन फ्रैंक की कहानी।

‘हिटलर, उसकी तानाशाही, उसके शासन की क्रूरता, उसके शासन में यहूदियों पर हुए अत्याचार, होलोकॉस्ट’, इन सबके बारे में  हमने जरूर सुना या पढ़ा होगा। जर्मनी में जब हिटलर की तानाशाही और उसके अत्याचार अपने चरम पर थे, जब लाखों लोग हर दिन उस क्रूर तानाशाह के कैंप में अपनी जान गंवा रहे थे। उस दौरान उस तानाशाह की नफरत से छिपकर रह रही एक 14 साल की लड़की उस बेरहम दौर को अपनी डायरी के पन्नों में कैद कर रही थी। DW हिंदी के पॉडकास्ट ‘वो कौन थी’ के चौथे एपिसोड में होस्ट ईशा भाटिया सानन इसी लड़की और उसकी डायरी की चर्चा कर रही हैं। किसे पता था उस छोटी सी बच्ची की डायरी जब सामने आएगी तो दुनिया में कोहराम मच जाएगा। वह डायरी  किताब बनकर लाखों-करोड़ों लोगों के हाथों में पहुंच जाएगी। शायद आपको अंदाज़ा लग गया होगा कि यहां बात हो रही है ऐन फ्रैंक की डायरी की। वही ऐन फ्रैंक जो अपने यहूदी परिवार के साथ नाज़ी शासन काल में छिपकर रह रही थी।

12 जून 1929 में जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में जन्मी ऐन अपने परिवार के साथ एक खूबसूरत ज़िंदगी जी रही थी। लेकिन उन्हें क्या पता था कि देश के बदलते माहौल के साथ उनकी और उनके परिवार की ज़िंदगियां तबाह हो जाएंगी। वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वे यहूदी थे। 1933 वह साल था जब जर्मनी में सब बदलने लगा था, यह वक्त था जब हिटलर की तानाशाही की शुरुआत का। नाज़ी यहूदी विरोधी थे। ईशा आगे बताती हैं कि ऐन के पिता को यह एहसास हो गया था कि अब जर्मनी उनके परिवार के लिए एक सुरक्षित जगह नहीं थी। इसलिए वह परिवार सहित नीदरलैंड चले गए। कुछ समय बाद यहां भी ऐन का परिवार एक अच्छी ज़िंदगी जीने लगा। लेकिन इसके बाद साल 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया। ऐन का परिवार अमेरिका या ब्रिटेन जाना चाहता था लेकिन ऐसा हो न पाया। 

पॉडकास्ट का गंभीर होता बैकग्राउंड म्यूज़िक 10 मई 1940 के उस भयावह दिन की ओर ले जाता है जब जर्मन सैनिकों ने नीदरलैंड पर कब्ज़ा कर लिया। यहूदियों का विरोध अब यहां भी शुरू हो गया। लेकिन उनका गुज़ारा किसी तरह हो रहा था। अब ऐन 13 साल की हो चुकी थी। जन्मदिन पर तोहफे में मिली डायरी में बच्चे अपने सपने, अपने मन की बातें, अपने दोस्तों परिवारों, पसंदीदा खेल, खिलौने आदि के बारे में लिखते हैं न! पर ऐन अपनी डायरी में अपने डर जाहिर कर रही थी, नाज़ी काल में यहूदी होने का डर। हालात बद् से बद्तर होने लगे थे। ईशा ने इस बदलते हालात की पूरी जानकारी इस एपिसोड में दी है। ऐन अपनी डायरी में उस वक्त क्या लिख रही थी इस बारे में भी पॉडकास्ट में बताया गया है। 

एक तीर से भेदते हुए बैकग्राउंड म्यूज़िक के साथ अब यह पॉडकास्ट हमें उस वक्त में ले जाता है जब ऐन के परिवार की असली चुनौती शुरू होने वाली थी। 6 जुलाई 1942 वह दिन था जब ऐन फ्रैंक का परिवार छिपने चला गया। यह जगह कौन सी थी इसे पॉडकास्ट में बताया गया है। यहां 8 लोग छिपकर रहते थे, बिल्कुल चुपचाप। छिपकर रहना आसान कहां होता है। हर वक्त बस दिमाग में यही चलता रहता है कि कहीं कोई हमें खोज न ले। ऐसी ही हालत ऐन और उसके परिवार की थी। ईशा बताती हैं कि ऐसी हालत में ऐन का पसंदीदा काम था डायरी लिखना। वह इस दौर की हर छोटी से छोटी चीज़ अपनी डायरी में दर्ज किए जा रही थी। ध्यान रहे ये सब 13 साल की एक छोटी सी बच्ची कर रही थी। ऐन की इस डायरी के कारण ही हम आज पढ़ पा रहे हैं कि उस क्रूर दौर में छिपे हुए परिवारों के बच्चों के मन में क्या चलता होगा। 

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ऐन की किताब “The Diary Of a Young Girl” का एक हिस्सा बेहद खूबसूरती से ईशा ने सुनाया है। ऐन की कहानी न सही पर इस हिस्से के लिए इस पॉडकास्ट को ज़रूर सुनना चाहिए। क्या आप जानते हैं कि ऐन पत्रकार बनना चाहती थी? वह अपने शब्दों के ज़रिये मरने के बाद भी ज़िंदा रहना चाहती थी। खैर! छिपकर रह रहे इन परिवारों के लिए वह दिन भी आ ही गया जब पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा। वही हुआ जो उस दौरान लाखों यहूदियों के साथ हुआ था। 1 महीने के अंदर इन लोगों को नाज़ियों द्वारा बनाए गए यातना शिविर भेज दिया गया। ऐन और उसका परिवार अब अन्य लाखों यहूदियों की तरह हिटलर के क्रूर शासन की यातना झेल रहा था। 

यहां इस पॉडकास्ट में न सिर्फ ऐन के बारे में बताया गया बल्कि यह भी बताया गया है कि इन कैंपों में लोगों को किस तरह रखा जाता है, या यूं कहें मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। ऐन कैंप में अपनी बहन के साथ पत्थर तोड़ने का काम करती थी। लेकिन एक बच्ची की हिम्मत कब तक बची रहती जब वह हर दिन अपनी आंखों के सामने बच्चों से बड़ों तक को गैस चेंबर में दम तोड़ता देख रही थी। ऐन और उसकी बहन को दूसरे यातना शिविर भेज दिया गया जहां उन्हें टायफाइ़ड हो गया। 1945 में जब ब्रिटिश सेना इस शिविर से लोगों को छुड़ाने आई, उससे पहले ही ऐन और उसकी बहन दुनिया से जा चुके थे, सिर्फ उसके पिता बचे। ऐन का पूरा परिवार एक तानाशाह की सनक की भेंट चढ़ चुका था। जिस घर में ऐन फ्रैंक अपने परिवार के साथ छिपी रही आज उसे देखने दुनियाभर के लोग आते हैं। ऐन की डायरी को उसके पिता ने एक किताब की शक्ल दी क्योंकि वह अपनी बेटी के लेखक होने के सपने को पूरा करना चाहते थे। वो कौन थी का यह एपिसोड बेहद संवेदनशील और भावुक करने वाला है। ऐन फ्रैंक की डायरी को 19 मिनटों में ईशा ने बेहद खूबसूरती से सुनाया है। 

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तस्वीर साभार : फेमिनिज़म इन इंडिया

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