इंटरसेक्शनलधर्म पौराणिक कथाएं और उन कथाओं में औरतों का हिस्सा

पौराणिक कथाएं और उन कथाओं में औरतों का हिस्सा

पौराणिक कथाएं, धार्मिक ग्रंथ आदि समाज को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। इन्हें सुनकर ही हम बड़े होते हैं पर जिस समाज की झलक हम पौराणिक कथाओं में देखते हैं उसका प्रतिबिम्ब तो हम आज अपने आस-पास भी देख पाते हैं। समाज में औरतों की आज भी वही दशा बनी हुई है, जो सालों पहले थी बल्कि उससे भी कई ज़्यादा बदत्तर हो चुकी है। औरतों को आज भी समाज के खिलाफ उन्हीं मुद्दों पर लड़ना पड़ रहा है जिन मुद्दों पर हमने पौराणिक कथाओं में औरतों को लड़ते देखा है। समाज की वह रुढ़ीवादी सोच आज भी वही है जो सालों पहले से चली आ रही है। ना तो समाज की विचारधारा में परिवर्तन हुआ ना ही समाज के पितृसत्तात्मक रवैये में पर आखिर इसका कारण क्या है। जिन कथाओं को सुनकर हम बड़े हुए और हमें यह समझाया गया कि चाहे जैसी भी परिस्थिति हो अधर्म पर धर्म की विजय अवश्य होती है। असल में आज इस समाज ने उन्हें अपने अनुकूल ही परिवर्तित कर लिया है। पितृसत्ता को बनाए रखने के लिए पौराणिक कथाओं का उतना ही अंश हमारे सामने रखा गया जितना पितृसत्ता के लिए ज़रूरी था और यही नहीं बल्कि उन कथाओं को तोड़-मोड़कर इस तरह औरतों के सामने रखा गया जिससे सालों से चली आ रही पितृसत्ता रुढ़ीवादी विचारधारा पर कोई भी असर ना पड़े।

रामायण, महाभारत जैसे धर्मग्रंथों आदि में हमें कई जगह ऐसी झलक देखने को मिलती है। रामायण तो आप सब ही ने सुनी, पढ़ी या देखी होगी ना? आखिर सीता की अग्नि परीक्षा का असली मतलब क्या था? क्या यह अग्नि परीक्षा आज तक नहीं चली आ रही, जिसे आज वर्जिनिटी टेस्ट का नाम दे दिया गया है। वैसे तो समाज में सीता को मईया का दर्जा दिया जाता है पर औरतों को लेकर समाज का नज़रिया अभी भी वही है, शायद इसीलिए यह अग्नि परीक्षा आज भी समाज में कई जगह चल रही है। भारत में आज भी कई जगह शादी के बाद लड़कियों के वर्जिनिटी टेस्ट की परंपरा चली आ रही है। इसमें शादी के बाद लड़की को शादी से पहले अपने कुंवारे होने का सबूत देना होता है। अगर लड़की इस वर्जिनिटी टेस्ट में फेल हो जाती है तो उसे वापस उसके घर भेज दिया जाता है और उसकी कभी भी शादी नहीं होती है। तो वहीं, कई जगह शादी की पहली रात ही सम्भोग के समय स्त्री की योनि से निकले रक्त को सबके सामने लड़की के कुंवारे होने के प्रमाण के रूप में पेश किया जाता है। इस पितृसत्तात्मक समाज की सोच के कारण आज भी स्त्री की पवित्रता आज भी उसके शरीर के एक अंग से मापी जाती है। क्या सारी पवित्रता स्त्री की योनि में ही बसती है?

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एक सवाल जो बचपन से ही मेरे दिमाग़ में मंडराता रहा है, जब भी ज़हन में उठता हमेशा यह मुझे झकझोरता रहा है तो अगर सीता को स्पर्श कर लिया गया होता तो क्या छिन जाता सीता से राम की पत्नी होने का हक़? राम-लक्ष्मण संग क्या आज भी खड़ी मिलती वह मंदिरों में? क्या फिर भी सीता मईया “मईया” होती? जैसा हमेशा होता आया है और आज भी यही हो रहा है। कभी अहिल्या के साथ तो कभी सीता के साथ, जिनका अपहरण हुआ उनको अपमान का पात्र बना दिया गया, सवाल उनसे से पूछे गए।

समाज में शारीरिक शोषण का सामना करने वाली या किसी भी तरह के उत्पीड़न का सामने करनेवाली लड़कियों का घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया जाता है।

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समाज में शारीरिक शोषण का सामना करने वाली या किसी भी तरह के उत्पीड़न का सामने करनेवाली लड़कियों का घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया जाता है। उसे ही उसके कपड़े, व्यवहार, बाहर निकलने के वक्त आदि के आधार पर दोषी ठहरा दिया है। वैसे ही जैसे ग्रीक पौराणिक कथाओं की मैड्यूसा को उसके बलात्कार के बाद समाज के द्वारा उसे अपवित्र और चरित्रहीन ठहरा दिए जाने पर उसकी सुंदरता छीन उसे एक कमरे में बंद कर दिया गया था। यह पितृसत्तात्मक समाज उन्हीं कहानियों को सामने लाने का प्रयास करता है जहां औरतों को समाज के ही अनुकूल रहना पड़ा और दूसरी तरफ उन कहानी और पात्रों को दबाता आया है जिसमें औरतों ने समाज के खिलाफ जाकर एक क्रांतिकारी काम किया हो। जिसका एक सबसे बड़ा उदाहरण महाभारत में द्रौपदी के किरदार में देखने को मिलता है जिन्होंने स्त्री जाति के सम्मान के लिए युद्ध किया। शायद इसीलिए आज ये पितृसत्तात्मक समाज कभी द्रौपदी को नारी समाज के लिए प्रेरणा मानकर उनकी पूजा नहीं करता।

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तस्वीर साभार : womenpla

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